छंद त्रिभंगी
विधान : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता,
प्रति पद १०,८,८,६ पर यति,
पदांत में गुरु अनिवार्य
प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान
जगण निषिद्ध
यह जीवन मृण्मय , बंधन तृणमय , भास हिरण्मय , भरमाए
इन्द्रिय बहिगामी , कृत…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 7, 2013 at 10:10pm — 12 Comments
ग़ज़ल-
.
मौसम की आसमान में जाहिर हुई खुशी।
खुश्बू है आम की, और कोयल है कूकती।।
बाहर निकल के घर से जरा खेत में चलें,
फ़सलों की खुश्बुओं से निखरती है जिन्दगी...
सूरज को प्रातः काल नमस्कार कीजिये,
अंधकार वो भगाये है, देता है रोशनी....
है आज मेरी और सितारों की ग़फतगू,
ऐ-चाँद पास आओ जरूरत है आपकी...
बरसों गुजर गये हैं मुलाक़ात भी हुये,
अब भी ख़याल आता है मुझको…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on December 7, 2013 at 10:00pm — 12 Comments
जीवन का क्या
कब झड़े ज्यूँ सूखे
पेड़ के पत्ते
माँ का दुलार
कितना भी हो, लगे
ओस की बूँद
मन बावरा
कभी जो मान जाता
मन की बात
नदी डालती
भले ही मीठा जल
सागर खारा
.
(मौलिक-अप्रकाशित)
Added by Neelam Upadhyaya on December 7, 2013 at 6:00pm — 6 Comments
तुम्हारे बाहुपाश के लिए …….
कितने
वज्र हृदय हो तुम
इक बार भी तुमने
मुड़कर नहीं देखा
तुम्हारी एक कंकरी ने
शांत झील में
वेदना की
कितनी लहरें बना दी
और तुम इसे एक खेल समझ
होठों पर
हल्की सी मुस्कान के साथ
मेरे हाथों को
अपने हाथों से
थपथपाते हुए
फिर आने का आश्वासन देकर
मुझे
किसी गहरी खाई सा
तनहा छोड़कर
कोहरे में
स्वप्न से खो गए
और मैं
तुम्हें जाते हुए
यूँ निहारती रही…
Added by Sushil Sarna on December 7, 2013 at 5:30pm — 11 Comments
2122 2122 2122 2121
ख़म नहीं ज़ुल्फ़ों के ये जिनको कि सुलझायेंगे आप
उलझने हैं इश्क़ की फिर से उलझ जायेंगे आप
कौन कहता है मुहब्बत अक्स है तन्हाइयों का
हम न होंगे साथ जब साये से घबराएंगे आप
दे तो दोगे इस ज़माने के सवालो का जवाब
दिल नहीं सुनता किसी की कैसे समझायेंगे आप
जा रहे हो बे-रुखी से जान लो इतना ज़रूर
क़द्र जब होगी मुहब्बत कि…
Added by Ayub Khan "BismiL" on December 7, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
तुम हो कली कश्मीर की , कोई फ़ना हो जाएगा
रब देख ले तुझको अगर , वो भी फ़िदा हो जाएगा /१
कोरा दुपट्टा बांध लो, पतली कमर के खूंट से
सरकी अगर ये नाज़ से , मौसम खफ़ा हो जाएगा/२
साहिब बहाने से गया, मैं बारहा उसकी गली
दिख जाये गर शोला बदन , कुछ तो नफा हो जाएगा /३
शीशे से नाजुक हुस्न पर, जालिम बड़ी मगरूर है
दो पल की है ये नाजुकी, फिर सब हवा हो जाएगा /४
मुझको सज़ा-ए-मौत दो , शामिल रहा हूँ क़त्ल में
उनको सुकूँ मिल जाएगी, हक़ भी…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on December 7, 2013 at 12:30pm — 12 Comments
सोच रही हूँ
लड़ूँगी प्रभु से
जब मिलूँगी पर वह भी
डर से
छुपा बैठा है , आता ही नहीं
बुलाने पर हमारे हमारी जिन्दगी को
तबाह किये बैठा है , जिस दिन भी
मिलेगा सुनाउँगी
उसे बहुत जानता हैं
वह भी शायद
इसी लिए मेरी जिन्दगी
की डोर को
ढील दिए
बैठा है ....
.
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by savitamishra on December 7, 2013 at 12:00pm — 22 Comments
212221222122
आज खबरों में जहाँ जाती नज़र है।
रक्त में डूबी हुई, होती खबर है।
फिर रहा है दिन उजाले को छिपाकर,
रात पूनम पर अमावस की मुहर है।
ढूँढते हैं दीप लेकर लोग उसको,
भोर का तारा छिपा जाने किधर है।
डर रहे हैं रास्ते मंज़िल दिखाते,
मंज़िलों पर खौफ का दिखता कहर है।
खो चुके हैं नद-नदी रफ्तार अपनी,
साहिलों की ओट छिपती हर लहर है।
हसरतों के फूल चुनता मन का…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 7, 2013 at 10:56am — 20 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २
जब तलक पँहुचे लहर अपने मुहाने तक
साथ क्या दोगे मेरा तुम उस ठिकाने तक
हीर राँझे की कहानी हो बसी जिसमे
ले चलोगे क्या मुझे तुम उस जमाने तक
प्यार का सैलाब जाने कब बहा लाया
हम सदा डरते रहे आँसू बहाने तक
थी बहुत मासूम अपने प्यार की मिटटी
दर्द ही बोते रहे अपने बेगाने तक
क्यों करें परवाह हम अब इस ज़माने की
हर कदम पे जो मिला बस दिल दुखाने तक
छोड़ दी किश्ती भँवर में देख साथी रे
जिंदगी गुजरे फ़कत अब…
Added by rajesh kumari on December 7, 2013 at 10:00am — 29 Comments
सन अड़तालीस की तीस जनवरी के दिन
नहीं मरे थे तुम
बापू
तुम एक गोली से
मर भी नहीं सकते थे
तुम्हारे जर्जर हो चुके शरीर को
सिर्फ भेद पाई थी
वह गोली
चंद सूखी लकड़ियों से भी
नहीं जल सकते थे तुम
बापू
तुम्हारी चिता जला पाई थी
सिर्फ तुम्हारे अचेत शरीर को
तुम्हे कंधा देने
उमड़ पड़ा था पूरा देश
आज भी बदस्तूर जारी है
तुम्हें कंधा देना
बापू
आज भी हर घर…
ContinueAdded by hemant sharma on December 7, 2013 at 12:00am — 9 Comments
2122 2122 2122 212
.
आपकी पिछली कही मन में प्रवाहित है अभी
इसलिये तो प्रेमधारा मेरी बाधित है अभी
.
अब सदा बहती ही रहती है उपेक्षा आँखों से
मै कहाँ हूँ आपके मन में ये साबित है अभी
.…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 6, 2013 at 2:30pm — 29 Comments
कैसे सुनाएँ दास्ताँ तरसी निगाह की ।
दौरे ग़मों में किस तरह हमने पनाह की ।
दर्दे सितम प्यार में मिलते रहे हमे ,
चुपचाप सह गए कभी हमने न आह की ।
बीती फकत जो ज़िन्दगी हमने किया नही ,
हमें सजा भी मिल गयी ऐसे गुनाह की ।
एक एक करके हसरतें दम तोड़ती गयीं ,
हमको मिला वही कभी जिसकी न चाह की ।
तूफाँ कभी न आया शायद मेरी डगर ,
उसकी डगर में ज़िन्दगी हमने तबाह की ।
हाले बयान ये जो महफ़िल में कर…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on December 6, 2013 at 2:30pm — 17 Comments
पहले थे हम इक हकीकत अब कहानी हो गए
जब से अपने ख्वाब यारो आसमानी हो गए
पांच सालों में महल सा अपने घर को कर लिया
चोर डाकू करके मेहनत खानदानी हो गए
तुम जियो खुश जिन्दगी भर ऐसा उसने जब कहा
एक सिक्का था उछाला हम भी दानी हो गए
यूँ हमारी हर ग़ज़ल खुशबू हुई औ सर चढ़ी
देखते देखते हम जाफरानी हो गए
“दीप” गम के पर्वतों को तुमने क्या पिघला दिया
गर्दिशों की कौम के सब पानी पानी हो गए
संदीप…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:00pm — 21 Comments
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
2122 1212 22
जिस्म में जान जब नही होगी,
शांत चुपचाप दोस्त रहने दो,
सत्य बोलूँगा खलबली…
Added by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 1:00pm — 26 Comments
ये कैसा नव शोणित है , जिसमे जीवन रस घोल नहीं |
जीवन बगिया में महके ऐसा , योवन सौरभ का शोर नहीं ||
सरबस लूटे कोई फिर भी , जिस रक्त में कोई उबाल न हो |
वह खून नहीं जल धारा है , जिसमें कोई मलाल न हो |
जो देश धर्म के लिए जिए ,वह जीवन है वह जीवन है |
जो मानवता के लिए मरे , वह मानव है वह मानव है ||
मानवता को मानव से यों , हमने ही तो दूर किया |
दानवता को लाकर के यहाँ , हमने ही मसहूर किया ||
देवत्व इसी से लुप्त हुआ , और दिल भी दया से रिक्त हुआ |…
Added by chouthmal jain on December 6, 2013 at 12:00am — 5 Comments
बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२
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सच है यही कि स्वर्ग न जाती हैं सीढ़ियाँ
मैं उम्र भर चढ़ा हूँ पर बाकी हैं सीढ़ियाँ
तन के चढ़ो तो पल में गिराती हैं सीढ़ियाँ
झुक लो जरा तो सर पे बिठाती हैं सीढ़ियाँ
चढ़ते समय जो सिर्फ़ गगन देखता रहे
जल्दी उसे जमीन पे लाती हैं सीढ़ियाँ
मत भूलिये इन्हें भले आदत हो लिफ़्ट की
लगने पे आग जान बचाती हैं सीढ़ियाँ
रहना अगर है होश में चढ़ना सँभाल के
हर पग पे एक पैग…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 5, 2013 at 11:09pm — 24 Comments
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2
प्यार में होता सदा ही दर्द क्यों है ?
प्यार में अब चल रही यूँ कर्द क्यों है ?
यार को जो हैं समझते इक खिलौना
प्यार जाने हो गया अब नर्द क्यों है ?
है बिना दस्तक चला आता सदा जो
वो बना यूँ आज फिर हमदर्द क्यों है ?
छू रही है रूह मेरी आते जाते
यह तुम्हारी साँस इतनी सर्द क्यों है ?
अपनी यादों को समेटे जब गए हो
आज यादों की उठी फिर गर्द क्यों है ?
प्यार पर है जुल्म…
Added by Sarita Bhatia on December 5, 2013 at 6:00pm — 22 Comments
हां ठीक था, अर्जुन !
तुम अपने युयुत्सु परिजनों पर
शस्त्र न उठाते i
उन्हें अपने गांडीव की प्रत्यंचा
की सीध में न लाते i
तुम्हारा यह निर्णय ठीक होता या न होता
हां सभी मर जाते तो शवो पर कौन रोता ?
किन्तु यह क्या---
तुम्हारे शरीरांग कांपे क्यों ?
वदन सूखा क्यों, दशन चांपे क्यों ?
वेपथु क्यों हुआ, क्यों हुआ लोमहर्षण
अभी तो शंख घोष था, नही था अस्त्र वर्षण
तब भी तुम्हारे हाथ से गांडीव खिसका
तुम्हारी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2013 at 5:24pm — 33 Comments
कभी कभी
शब्दो के साथ
खेलने वाले ही
भूल जाते हैं
शब्दो की बाजीगरी
रात-दिन जो
रहते हैं शब्दो के बीच
कभी कभी उनको ही
नही मिलते शब्द
कहने को अपनी बात
जाहिर करने को
अपने जज्बात ....
ऐसा लगता है मानो
रूठ गया हो खुदा भी हमसे
उनकी ही तरह
जैसे वो रूठे हैं हमसे
सिर्फ कुछ
शब्दो के कारण …
एक ख्याल
बार-बार आता है
मन के छोटे से घर में
कि क्यों नही होता ऐसा
कि जज्बात को …
Added by Sonam Saini on December 5, 2013 at 4:30pm — 17 Comments
खुशियों के हम दीप जलाएं
जग में उजियारा फैलाएं
हो हमसे कोई हृदय दुखी
वहाँ प्रेम का बीज बो आयें
खुशियों के हम दीप जलाएं
जग में उजियारा फैलाएं
हो न कोई भूखा, ग़मगीन
हों सब रोजगारी व ज़हीन
खुशियों के हम दीप जलाएं
जग में उजियारा फैलाएं
निर्भय हो समाज में सभी जहाँ
बेटियों का हो सम्मान जहाँ
खुशियों के हम दीप जलाएं
जग में उजियारा फैलाएं
भाई हों राम लक्ष्मण जहाँ
ना हो सीता वनवास जहाँ …
Added by Meena Pathak on December 5, 2013 at 4:30pm — 18 Comments
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