उषा अवस्थी
"नग्नता" सौन्दर्य का पर्याय
बनती जा रही है
फिल्म चलने का बड़ा आधार
बनती जा रही है
"तन मेरा मैं
जो भी चाहे सो करूँ"
की विषैली सोच का उन्माद
गहती जा रही है
आधुनिकता शब्द का
नव अर्थ गढ़
संक्रमण का बीज धरती पर
सतत बिखरा रही है
मार्ग मध्यम छोड़कर
है दिन-ब-दिन
अमर्यादित आचरण
विस्तार करती जा रही है
"नग्नता" सौन्दर्र का…
ContinueAdded by Usha Awasthi on January 7, 2023 at 11:30am — 4 Comments
अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है
है बर्फीली फज़ा जारी साज़ तो सूरज नहीं है !
मरें मुफ़लिस अभी ठंडी उन्हें घर क्या क़मी है
लगे हैं लाव लश्कर दर अमीरों क्या ग़मी है
अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !
दरीचों पर जमी है बर्फ ठिठुरन हड्डियों है
है बिस्तर गर्म नेताओं के गरमी गड्डियों है
बुलाकर अफसरों को घर अभी फाइल पढ़ी है
है मौसम ये पकोड़ो का अभी दारू उड़ी है
गरीबों को लगे अब ठंड चढ़ती फुरफुरी…
Added by Chetan Prakash on January 6, 2023 at 9:00pm — No Comments
2122 1212 22/112
इश्क़ में दिल-जले नहीं होते
काश के तुम मिरे नहीं होते
बस ज़रूरत बिगाड़ देती है
लोग वर्ना बुरे नहीं होते
यूँ चमत्कार रोज़ होते हैं
बस हमारे लिए नहीं होते
दोष मत दो नसीब को अपने
दुनिया में ग़म किसे नहीं होते
एक बिजली जला गई थी यूँ
ये शजर अब हरे नहीं होते
तोड़ना दिल मुझे भी आता है
काश तुम फूल-से नहीं होते
'ज़ैफ़' उनका तो हो गया लेकिन
वो…
Added by Zaif on January 6, 2023 at 7:27pm — 7 Comments
ग़ज़ल
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
उजाला इसलिए कमरे में पहले सा नहीं रहता
हमारे साथ अब वो चाँद सा चहरा नहीं रहता
ग़िलाज़त ही ग़िलाज़त है सियासत तेरी बस्ती में
यहाँ आकर कोई भी शख़्स पाकीज़ा नहीं रहता
जूनूँ के दश्त में जिस दिन से दाख़िल हो गया हूँ मैं
मेरी दीवानगी पे दोस्तो पहरा नहीं रहता
उसी को मंज़िल-ए-मक़सूद मिलती है ज़माने में
जो सर पर हाथ रख कर दोस्तो बैठा नहीं…
ContinueAdded by Samar kabeer on January 6, 2023 at 3:41pm — 18 Comments
गीत-११
*
स्वार्थ के विधान अब और यूँ गढ़ो नहीं।
अर्थ के अनर्थ कर प्रपंच नित पढ़ो नहीं।।
*
आप यूँ अनीति को लोभवश न मान दो।
छीन निर्बलों से मत सशक्त को जहान दो।।
मार्ग हो कठिन भले हर परोपकार का।
सिर्फ हित स्वयं के ही मत कभी वितान दो।।
*
अशक्त पर प्रहार कर क्रूर दर्प से बिहँस।
मानकर अनाथ हैं दोष निज मढ़ो नहीं।।
*
आह हर अशक्त की वज्र जब रचायेगी।
कौन शक्ति पाप का घट भला बचायेगी।।
हर तमस के अन्त को दीप जन्मता सदा।
सूर्य की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 6, 2023 at 2:23pm — 2 Comments
दोहा ग़ज़ल- चाय
प्याली से हो चाय की ,जाड़े का सत्कार ।
फिर चुस्की से नेह का, बढ़े प्रणय संसार ।
नैन मिले जब नैन से, स्वरित हुआ संदेश,
किया अधर अभिसार ने,जाड़े का शृंगार ।
रैन अलावों में हुए , क्षीण सभी अनुबंध ,
अन्धकार की कैद में, हार गए इंकार ।
बढ़ी शीत होने लगा , मन में मिलन प्रभात,
दम तोड़ा इंकार ने, जीत गए स्वीकार ।
मौन चरम मुखरित हुए, चली प्रेम की नाव ,
वाह्य अगन …
Added by Sushil Sarna on January 4, 2023 at 3:45pm — No Comments
भाल जिसका है हिमालय औ तिरंगा शान है
देश प्यारा वह हमारा नाम हिन्दुस्तान है
हर सुबह जिसकी सुहानी सुरमई औ' शाम है
स्वर्ग सा यह देश अपना मोक्ष का यह धाम है
खेत गिरि मैदान जंगल लहकतीं हरियालियाँ
भोर की आहट मिले तो स्वर्ग सी हो वादियाँ।
पूर्व में आसाम मेघालय मिजोरम ख़ास है
साथ में बंगाल सिक्किम का अमर इतिहास है
गन्ध फूलों की बिखरती है हवाओं में वहाँ
गीत गाते खग ख़ुशी के …
Added by नाथ सोनांचली on January 2, 2023 at 7:42am — No Comments
गीत-१०
----------
सब स्वागत में खड़े हुए हैं, आने वाले साल के
कौन विदाई देगा बोलो, जाने वाले साल को।।
*
कितनी कड़वी मीठी यादें, बाँधे घूम रहा गठरी में
आँसू वाली आँख न कोई, देखी मतवाली नगरी में
आया था तो पलकपावड़े, बिछा दिये थे सब लोगो ने
आज न कोई पूछ रहा है, बोलो जाओगे किस डगरी।।
*
दुख पाया जिसने उसकी तो, बात समझ में आती है
सुख पाने वाले भी कहते, रुको न जाते काल को।।
*
माना अभिलाषायें सबकी, पूर्ण न कर पाया हो लेकिन
कुछ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 31, 2022 at 1:30pm — No Comments
( गीत -९)
**
हर्षित करने सब का जीवन, आना नूतन साल।
निर्धन हो कि धनी नर नारी, रखना उन्नत भाल।।
*
धर्म जाति से फूट मत पड़े, हो जनता समवेत।
नगर गाँव में अन्तर कम हो, यूँ व्यवहार समेत।।
हर आँगन में किलकारी हो, हरा भरा हर खेत।
स्वर्ण कणों में अबके बदले, ऊसर मिट्टी रेत।।
*
अतिशय हों भण्डार अन्न के, दूध दही भरपूर।
महामारियों, दुर्भिक्षो का, रूप न ले फिर काल।।
*
शासक कोई न हो विश्व में, इतना बढ़चढ़ क्रूर।
झोंके जायें और समर में, राष्ट्र न अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 28, 2022 at 3:53pm — 4 Comments
अतुकांत कविता : सुनो ना
=====
सुनो ना,
कहनी है मुझे
दिल की बात..
जब घर से निकलता हूँ
और कोई पूछ लेता है,
कहाँ जा रहे हो
मैं बुरा नहीं मानता
जब चलता हूँ गाड़ी से
और बिल्ली काट देती है रास्ता
मैं रुकता नहीं
चलता रहता हूँ
मैं नही मानता अंधविश्वास
जब भी निकलता हूँ
किसी महत्वपूर्ण कार्य हेतु
माँ खिलाती है
दही और चीनी
माँ को है विश्वास
ऐसा करना
होता है शुभ …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 27, 2022 at 5:30pm — 5 Comments
11212 11212 11212 11212
हैं यूँ ज़िंदगी ने सितम किए, मुझे क्या से क्या है बना दिया
मैं तो आसमाँ के सफ़र में था, मुझे ख़ाक में ही मिला दिया
ये ख़ुशी भी दर्द समेत थी, कि ग़मों के सहरा की रेत थी
जो ख़ुशी ने लाके दिया मुझे, मिरे ग़म ने उसको भी खा दिया
मिरे दिल में दर्द ही दर्द था, कि तमाम उम्र ये सर्द था
लहू सारा दिल ने उड़ेल कर यूँ नज़र के रस्ते गिरा दिया
जो दिल-ओ-जिगर से भी प्यारा था, जिसे अपना कहके पुकारा…
ContinueAdded by Zaif on December 26, 2022 at 9:17pm — 6 Comments
तेरे उपकार का ये ऋण, भला कैसे चुकाऊंगा?
दबा हूँ बोझ में इतना, खड़ा अब हो ना पाऊँगा
मेरी पूंजी है ये जीवन, जो तुम चाहो तो बस ले लो
सिवा इसके तुम्हें अर्पण, मैं कुछ भी कर ना पाऊँगा
दिया था हाथ जब तुमने, मैं तब डूबता हीं था
सम्हाला था मुझे तुमने, के जब मैं टूटता हीं था
मैं भटका सा मुसाफिर था, राह तू ने था…
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 26, 2022 at 2:22pm — No Comments
गीत-८
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कामना में नित्य जिस की, हर कली सुख की लुटाई।
पा लिया स्पर्श तेरा वेदना ने, अब न लेगी वो विदाई।।
*
वेदना के बीज से ही, जन्म लेता है सुखद क्षण।
जेठ की तीखी तपन का, दान जैसे ओस का कण।।
कंटकों में पुष्प खिलते, दीप जलते नित तमस में।
मोल सुख का जानने को, हो गयी दुख से सगाई।।
*
ध्वंस के अवशेष पर नित, दीप दुनिया है जलाती।
प्राण रहते पूछने पर, एक पल भी वह न आती।।
कर समर्पित प्राण ऐसे, चिर अखण्डित वेदना पर।
शेष करने…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 26, 2022 at 7:30am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
कौन सी मंज़िल पे ये रस्ता नया ले जाएगा।
मुझको लगता है ये मेरा हौसला ले जाएगा।
ऐ फरेबी वक़्त मुझको हर सितम तेरा कुबूल,
मेरी साँसों से अधिक तू मेरा क्या ले जाएगा।
ये अँधेरा युग तो इक दिन बीत जाएगा मगर,
कीमती मौसम हमारी उम्र का ले जाएगा।
इससे पहले वक़्त अपनी चाल चल दे डाकिये,
उससे कहना मेरे होने का पता ले जाएगा।
टूट जाएगा मेरी उम्मीद का सच जानकर,
मेरी ग़ज़लों को कुरेदा तो…
Added by मनोज अहसास on December 26, 2022 at 12:15am — 11 Comments
भिखारी छंद - 24 मात्रिक - 12 पर यति
पदांत-गा ला
जब -जब सर्दी आती ,कब वृद्धों को भाती ।
गिरे आँख से पानी ,खाँसी बहुत सताती ।
रोटी गिर -गिर जाती ,चाल संभल न पाती ।
लड़ते-लड़ते आख़िर ,काया चुप हो जाती ।
* * *
ठहर जरा दीवानी , तेरी उम्र सयानी ।
आशिक़ नज़रें घूरें, तेरी मस्त जवानी ।
अक्सर मीठे धोखे ,इन राहों पर होते ।
पड़ न जाए महंगी , थोड़ी सी नादानी ।
सुशील सरना /…
ContinueAdded by Sushil Sarna on December 25, 2022 at 1:30pm — 8 Comments
किस मौसम के रंग चुराऊँ किस मौसम की रीत।
जिस को पाकर फिर से रीझे रूठा मन का मीत।।
*
तितली फूल हवा को भी है इस का पूरा भान।
जगत मन्थरा बनकर भरता निश्चित उसके कान।।
आँखों देखा जाँचा परखा बना दिया सब झूठ।
इसीलिए तो मन के आँगन वह रच बैठी भीत।।
*
फागुन गाये फाग भला क्या सावन धोये पाँव।
मधुमासों में भी जब लगता पतझड़ जैसा गाँव।।
गुनगुन करते तितली भौंरे विरही मन सह मौन।
उस बिन व्याकुल हुई लेखनी रचे भला क्या गीत।।
*
तपते सूरज से विनती की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2022 at 7:23pm — 6 Comments
122 122 122 12
सज़ा तय हुई है ख़ता के बग़ैर
गला जाएगा अब रज़ा के बग़ैर
मेरे सब्र की इंतिहा देखिए
शिफ़ा चाहता हूँ दवा के बग़ैर
तेरे दाम-ए-तज़्वीर की ख़ैर हो
रिहा हो गया हूँ क़ज़ा के बग़ैर
तेरी बेवफ़ाई प कबतक जियूँ
कभी इश्क़ कर ले दग़ा के बग़ैर
अजब रस्म-ए-दुनिया है क़ाबिज़ यहाँ
न कुछ भी मिले इल्तिजा के बग़ैर
अना से छुटा तो ख़याल आया है
मैं कुछ भी नहीं हूँ ख़ुदा के…
Added by Zaif on December 24, 2022 at 2:48pm — 5 Comments
उषा अवस्थी
यह कोरा उपदेश नहीं
कोई झूठा संदेश नहीं
सत्य ही आधार है
न स्त्री, न पुरुष
एक निराकार है
मौत हमारा क्या बिगाड़ेगी?
हम उससे डरें क्यों?
भूत हो, वर्तमान हो,भविष्य हो
हम काल के महाकाल हैं
सदा चैतन्य; नहीं इन्द्रजाल हैं
आत्मा कहाँ मरती है?
अतः इस जगत की
वैतरणी के पार
सच्चिदानन्द में समाओ
शोक से परे हो जाओ
मौलिक एवं…
ContinueAdded by Usha Awasthi on December 24, 2022 at 11:14am — No Comments
डूबते को जैसे तिनके का, सहारा काफी होता है
हर निराश चेहरे का, उम्मीद हीं साथी होता है
अंधेरी गुफा में जब कोई राही, अपनी राह बनाता है
आँखों से कुछ दिख ना पाए, उम्मीद पर बढ़ता जाता है
जब कोई अपना संगी-साथी, अपनों से बिछड़ जाए
और दूर तक उसके पग के, निशां ना हमको मिल पाए
तब भी ये उम्मीद हीं है, जो हमको बांधे रखती है
मिल जाएगा हमदम…
ContinueAdded by AMAN SINHA on December 19, 2022 at 3:05pm — 1 Comment
यह रचना "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-146
हेतु सृजित है किंतु गलती से यहाँ पोस्ट कर दी गयी है, लेखक द्वारा अब महोत्सव में रचना पोस्ट करने के फलस्वरूप यहाँ से रचना एडमिन स्तर से हटा दी गयी है ।
Added by Saurabh Pandey on December 18, 2022 at 5:00pm — 2 Comments
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