2122 2122 212
मिर्च कोई आग पर बोता है क्या,
लोन-पानी ज़ख्म को धोता है क्या।
हो रहा जो अब भले होता है क्या,
कोई अपने आप को खोता है क्या।
बेबसी को तू हटा औज़ार बन,
इसका दामन थाम कर रोता है क्या।
इश्क़ करता, सब्ज़ धरती देख ले,
बीज इसका तू कभी बोता है क्या।
'बाल' चुप्पी साध लेना जुर्म पर,
जुर्म से खुद कम कभी होता है क्या।
लोन-नमक
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on April 6, 2021 at 8:06pm — No Comments
२१२२/२१२२/२१२
सादगी से घर सँभाला कीजिए
लालसा को मत उछाला कीजिए।१।
*
यह धरा तो रौंद डाली जालिमों
चाँद का मुँह अब न काला कीजिए।२।
*
करके सूरज से उधारी आब की
चाँद से कहते उजाला कीजिए।३।
*
जब नया देने की कुव्वत ही नहीं
मत फटे में पाँव डाला कीजिए।४।
*
गर तबीयत जाननी है देश की
सबसे पहले ठीक आला कीजिए।५।
*
चाँद तारे सिर्फ महलों को न दो
झोपड़ी में भी उजाला कीजिए।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2021 at 6:30pm — 4 Comments
2122 1212 22/112
रोयेंगे और मुस्कुरायेंगे
उम्र भर तुम को गुनगुनायेंगे
तुम जो रहते हो बादलों में सनम
तुम को हम कैसे भूल पायेंगे
जब भी देखेंगे आसमानों को
दिल के अरमाँ मचल ही जायेंगे
ग़म की आँधी न रोक पायेंगे
अश्क आँखों से बहते जायेंगे
कैसे रोकेंगे हसरतें दिल की
चीख कर तुम को फ़िर बुलायेंगे
जी न पायेंगे मर न पायेंगे
दिल जलायेंगे…
Added by Aazi Tamaam on April 5, 2021 at 11:00am — No Comments
उस उजाड़ से गांव में बस कुछ टूटीफूटी झोपड़ियां ही मौजूद थीं जो वहाँ के लोगों के आर्थिक दशा और सरकार के विकास के नारे की तल्ख सच्चाई बयान कर रही थीं. उसको थोड़ा अजीब लगा, उसने अपने स्टाफ की बात को गंभीरता से नहीं लिया था. दरअसल जब भी इस गांव के लोगों से वसूली की बात होती, स्टाफ मना कर देता कि वहाँ जाने से कोई फायदा नहीं होगा. "सर, वहाँ लोगों के पास अभी खाने को नहीं है, बैंक की किश्त कैसे चुकाएंगे", अक्सर उसे यही बात सुनने को मिलती थीं.
लेकिन उसे लगा कि शायद दूर होने और वहाँ पैदल जाने के…
ContinueAdded by विनय कुमार on April 4, 2021 at 4:30pm — 6 Comments
2122 1122 1122 22 /112
1
अच्छा महफ़िल में तमाशा बना मेरा कल शब
दिल मेरा तोड़ा गया कह के ख़िलौना कल शब
2
ज़ख़्मी दिल पर तेरा जब नाम उकेरा कल शब
हाय रब्बा मेरे तब होंठों से निकला कल शब
3
झूठ की सुब्ह तलक माँग है बाज़ारों में
और मैं एक भी सच बेच न पाया कल शब
4
मेरे हाथों की लकीरें भी बदल जाएँगी
ख़्वाब आँखों ने दिखाया मुझे ऐसा कल शब
5
उस तरफ़ चाँद सितारों की चमक थी "निर्मल"
इस तरफ़ था…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on April 4, 2021 at 7:00am — No Comments
1212 - 1122 - 1212 - (112 / 22)
किसी की याद में ख़ुद को भुला के देखते हैं
निशान ज़ख्मों के हम मुस्कुरा के देखते हैं
निकल तो आए हैं तूफ़ाँ की ज़द से दूर बहुत
भँवर हैं कितने ही जो सर उठा के देखते हैं
चले भी आओ कि अब इंतज़ार होता नहीं
कि अब ये रस्ते हमें मुँह चिढ़ा के देखते हैं
ये ज़िन्दगी भी फ़ना कर दी हमने जिनके लिए
वही तो हैं जो हमें आज़मा के देखते हैं
तेरी जफ़ा …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 3, 2021 at 6:11pm — 18 Comments
एक साल हो गया था माँ से मिले हुए। मिलने का बहुत मन हो रहा था। इसलिए वह होली के अवसर पर गाँव जाना चाहता था। किन्तु छुट्टी का आवेदन अस्वीकार कर दिया गया। घर पहुँचते ही वह सीधे बिस्तर पर गिर पड़ा और सामने दीवार पर लगी स्वर्गीय पिता की तस्वीर को एकटक देखते-देखते कब आँख लग गई, कब वह सपनों में गोते खाने लगा, पता ही न चला।
"बेटा बहुत परेशान लग रहे हो!"
"हाँ पापा, इस कोरोना के कारण माँ से मिले एक साल हो गया, छुट्टी मिल नहीं रही है। क्या नौकरी का मतलब यही होता है कि आदमी घर-परिवार से ही कट…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 3, 2021 at 3:30pm — 8 Comments
ग़ज़ल
22 22 22 22 22 2
जिसने देखा वो ये बोला ओबीओ
कोई नहीं है तेरे जैसा ओबीओ
जब तक ज़िंदा हूँ मैं साथ निभाऊँगा
है ये तुझ से मेरा वादा ओबीओ
'बाग़ी' जी के साथ सभी ने मिलजुल कर
नाज़ों से तुझको है पाला ओबीओ
दुनिया के कोने कोने में फैल गया
तू ने जो भी पाठ पढ़ाया ओबीओ
तेरा नाम शिखर पर दुनिया लिखती थी
मैंने कल शब ख़्वाब में देखा…
ContinueAdded by Samar kabeer on April 1, 2021 at 2:52pm — 18 Comments
नहीं आती हिसाबों में सताती हैं तेरी यादें।
भला ये साथ कैसा जो बताती हैं तेरी यादें।'
.
संभालोगे कहां खुद को गिराने आ गये जब वो,
उठाना हाथ रोको जो सुनाती हैं तेरी यादें।
.
ऐ इंसाँ अब न इतना भी ज़माने का हो कर रहना,
ज़रा दिल झाँक देखा याद आती हैं तेरी यादें।
.
बनाई जिंदगी मेरी कहानी जो सुना देते,
अगर भटके सफ़र में क्यूँ जताती हैं तेरी यादें।
.
ये दिल चाहे कहूं कोई ग़ज़ल अब प्यार में तेरे,
मगर अंदर ही फिर क्यूँ ये दबाती…
Added by मोहन बेगोवाल on April 1, 2021 at 2:00pm — No Comments
कोशिश करो हिम्मत करो
आगे बढ़ो बढ़ते रहो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
गिरने के डर से मत रुको
गिर जाओ तो फिर से उठो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
मंज़िल तुम्हें मिल जाएगी
क़िस्मत भी ये खुल जाएगी
मंज़िल के मिलने तक चलो
चलते रहो चलते रहो आगे बढ़ो... आगे बढ़ो...
रुकने से कुछ हासिल नहीं
रुक जाए जो कामिल नहीं
उठते क़दम पीछे न लो
पूरा करो जो …
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on April 1, 2021 at 8:26am — 2 Comments
2212 - 1212 - 2212 - 12
.
मुश्किल सहीह ये फिर भी है महबूब ज़िन्दगी
रब का हसीन तुहफ़ा है क्या ख़ूब ज़िन्दगी
.
आजिज़ हैं ज़िन्दगी से जो वो भी मुरीद हैं
तालिब सभी हैं इसके है मतलूब ज़िन्दगी
.
हर लम्हा शादमाँ है तेरे दम से दिल मेरा
जब से हुई है तुझसे ये मन्सूब ज़िन्दगी
.
जिसने नज़र उठा के भी देखा नहीं मुझे
उस पर हुई है देखिए मरग़ूब ज़िन्दगी
.
लोगों के दिल…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 31, 2021 at 9:22am — 4 Comments
212 1222
1
ज़ार ज़ार रोते हैं
जब वो होश ख़ोते हैं
2
ख़्वान ए इश्क वाले ही
तो फ़कीर होते हैं
3
लोग क्यों अदावत में
हाथ खूँ से धोते हैं
4
डोरी में वो सांसों की
आरज़ू पिरोते हैं
5
चाहतों की गठरी सब
उम्र भर सँजोते हैं
6
क्यों अज़ीज़ अपने ही
अश्कों में डुबोते हैं
7
ख़्वाब देखने वाले
रात भर न सोते हैं
मौलिक व अप्रकाशित
रचना…
ContinueAdded by Rachna Bhatia on March 30, 2021 at 8:30pm — 2 Comments
221 2121 1221 212
था नाम दिल पे नक़्श मिटाया नहीं गया
मुझसे तुम्हारा प्यार भुलाया नहीं गया
कल को सँवारने में गई बीत ज़िन्दगी
जो सामने था लुत्फ़ उठाया नहीं गया
कोशिश बहुत की, राज़-ए- मुहब्बत अयाँ न हो
अल्फ़ाज़ से मगर ये छिपाया नहीं गया
बीवी बहन बहू न मिलेगी कोई तुम्हें
बेटी को कोख़ में जो बचाया नहीं गया
मंदिर में जाके भोज …
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on March 30, 2021 at 5:30pm — 3 Comments
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 30, 2021 at 1:30pm — No Comments
2122 2122 212
कौन कहता है खुशी मिट जाएगी?
हौसले से तीरगी मिट जाएगी।
है भरम बस धूल आँधी के समय,
शांत होते ही कमी मिट जाएगी।
चोर चोरी भी तो मिहनत से करे,
कर ले मिहनत, गंदगी मिट जाएगी।
एक होता दूसरे खातिर फिदा,
फिर कहा क्यों जिंदगी मिट जाएगी?
'बाल' कर अल्फ़ाज़ से तू दोस्ती,
तेरी तन्हा बेबसी मिट जाएगी।
मौलिक अप्रकाशित
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 29, 2021 at 7:34am — 2 Comments
१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
कोई गर रंग डाले तो न खाना खार होली में
भिगाना भीगना जी भर बढ़ाना प्यार होली में।१।
*
मिलन का प्रीत का सौहार्द्र का त्योहार है ये तो
न हो ताजा पुरानी एक भी तकरार होली में।२।
*
मँजीरे ढोल की थापें पड़ा करती हैं फीकी सच
करे पायल जो सजनी की मधुर झन्कार होली में।३।
*
जमाना भाँग ठंडायी पिलाये पर सनम तुम तो
दिखाकर मदभरी आँखें करो सरशार होली में।४।
*
चले हैं मारने हम तो दिलों से दुश्मनी…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 28, 2021 at 2:00pm — 8 Comments
122 - 122 - 122 - 122
हमें तुम से कोई शिकायत नहीं है
तुम्हें भी तो हम से महब्बत नहीं है
जो शिकवा था हमसे हमें ही बताते
यूँ बदनाम करना शराफ़त नहीं है
किया जो भरोसा तो कर लो यक़ीं भी
तुम्हारे सिवा कोई चाहत नहीं है
ख़फ़ा होके हमसे जुदा होने वाले
ज़रा कह दे हमसे अदावत नहीं है
करोगे वफ़ा जो वफ़ा ही मिलेगी
महब्बत की ऐसी रिवायत नहीं है
तुम्हें दिल के बदले ये जाँ हमने…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 28, 2021 at 12:10pm — 2 Comments
"बाबा, गौर से सुनो, आज फिर मेरे कान्हा की बांसुरी की मधुर स्वर लहरी गूंज रही है।"
बाबा ने अपने दाँये कान के पास हथेली से ओट बनाते हुए सुनने की कोशिश की।
"राधा बेटी मुझे तो कुछ नहीं सुनाई पड़ा ? तू तो बावरी हो गई है उस बहुरूपिया कान्हा के लिये।"
"आप बूढ़े हो गये हो। आपके कान कमजोर हो गये हैं।"
"बिटिया तू क्यों खुद को झूठी तसल्ली दे रही है।अब वह कभी नहीं आने वाला।"
"मेरा कान्हा अवश्य आयेगा।"
"अब वह केवल तेरा कान्हा नहीं है।अब वह द्वारिका का राजा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 27, 2021 at 7:30pm — 4 Comments
तेरे सच्चे बयानों को यहाँ पर कौन समझेगा,
तेरे गम के निशानों को यहाँ पर कौन समझेगा?
यहाँ महलों से होती हैं हमेशा बात की कोशिश,
बता कच्चे मकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
हुई है कीमती नफ़रत, बनी व्यापार का सौदा,
मुहब्बत के ठिकानों को यहाँ पर कौन समझेगा।
बदलते पक्ष ये झट-से, फिसलते एक बोटी पर,
अडिग रह लें, उन आनों को यहाँ पर कौन समझेगा।
जिन्होंने 'बाल' सोचा था करें कुछ देश की खातिर,
शहीदों को व जानों को यहाँ पर कौन…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 26, 2021 at 11:02pm — 8 Comments
2122- 2122- 2122- 212
तू वतन की आबरू है तू वतन की शान है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत तुझपे दिल क़ुर्बान है
तेरी जुर्रत से हुआ नाकाम दुश्मन हिन्द का
नाज़ करता आज तुझपे सारा हिन्दुस्तान है
हैं मुबारक तेरी गलियांँ, गाँव तेरा, घर तिरा
मरहबा माँ बाप हैं वो जिनकी तू संतान है
ईद हो या हो दिवाली सरहदों पर ही रहा
मेरी धड़कन मेरी साँसों पर तेरा अहसान है
मुल्क पर होते फ़िदा जो वो कभी मरते…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 26, 2021 at 3:45pm — 8 Comments
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