जवाहरात व्यवसायी रामकिशन ने अपनी पढ़ी लिखी लड़की सोनाली के लिए अच्छा वर
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 20, 2012 at 10:00am — 1 Comment
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 20, 2012 at 9:30am — 6 Comments
मेरी जिंदगी एक खुली किताब है
हर पन्ने पे तेरा नाम है ।
मैं रहूँ न रहूँ ,परवाह नहीं है
जिंदगी मेरी तुम्हारे नाम है ।
जब कभी ख्यालों की आँधी उठेगी
तन्हाई में मेरी आवाज़ गूँजेगी
परछाईं बनकर…
ContinueAdded by kavita vikas on March 19, 2012 at 10:00pm — 5 Comments
लघु कथा : हाथी के दांत
बड़े बाबू आज अपेक्षाकृत कुछ जल्द ही कार्यालय आ गए और सभी सहकर्मियों को रामदीन दफ्तरी के असामयिक निधन की खबर सुना रहे थे. थोड़ी ही देर में सभी सहकर्मियों के साथ साहब के कक्ष में जाकर बड़े बाबू इस दुखद खबर की जानकारी देते है और शोक सभा आयोजित कर कार्यालय आज के लिए बंद करने की घोषणा हो जाती है | सभी कार्यालय कर्मी इस आसमयिक दुःख से व्यथित होकर अपने अपने घर चल पड़ते है | बड़े बाबू…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 19, 2012 at 9:03pm — 68 Comments
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 18, 2012 at 10:00pm — 15 Comments
इश्क़ की बात चली
रात आँखों में जली
————
मौजूदगी तेरी हर लम्हा मौजूद रहे
तू साथ हो न हो, साथ बावजूद रहे
ख़यालों में गुज़रा ये दिन सारा
शाम यादों में ढली
इश्क़ की बात चली..
————…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 5:57pm — 22 Comments
डाक्टर
मरीजों की भीड़ को-
डाक्टर झट-पट ऐसे निपटाता रहा,
बगैर गर्दन उठाये-
मरीज का हांल-चाल कुछ सुनता रहा
मरीज दर्द से कराहता रहा-…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 18, 2012 at 3:00pm — 5 Comments
रात्रि का अंतिम प्रहर घूम रहा तनहा कहाँ
थी ये वो जगह आना न चाहे कोई यहाँ
हर तरफ छाया मौत का अजीब सा मंजर हुआ
घनघोर तम देख साँसे थमी हर तरफ था फैला धुआं
नजर पड़ी देखा पड़ा मासूम शिशु शव था
हुआ जो अब पराया वो अपना कब था
कौंधती बिजलियाँ सावन सी थी लगी झड़ी
कौन है किसका लाल है देख लूं दिल की धड़कन बढ़ी
देखा तनहा उसे सर झुकाए समझ गया कि उसकी दुनिया लुटी
जल रही थी चिताएं आस पास ले रही थी वो सिसकियाँ घुटी घुटी
देती कफ़न क्या कैसे…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 17, 2012 at 10:00pm — 26 Comments
Added by dilbag virk on March 17, 2012 at 7:28pm — 12 Comments
जिंदगी ले के चली, एक ऐसी डगर,
राह के उस पार, चलते हैं हम सफ़र.
रात और दिन, मील के पत्थर जैसे हैं,
मोड़ बन जाते कभी, हैं चारों पहर.
फादना पड़ता है, दीवारें अनवरत,
ढूँढना चाहूँ मै, 'उसको' जब भी अगर.
शख्शियत में नये, बदलता हूँ धीरे से,
नये चेहरे मिले और, नये से राही जिधर.
द्वार-मंदिर मिले न मिले, पर चाहतें,
बांहों में ही भींचे रहती हैं, ता-उमर.
जिंदगी में लेने आता, एक बार पर-
बैठती हूँ रोज, 'बस्तीवी'…
Added by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 17, 2012 at 9:07am — 13 Comments
Added by RAJEEV KUMAR JHA on March 17, 2012 at 9:00am — 9 Comments
बटेश्वरनाथ गाँव के सबसे बड़े आदमी हैं। भगवान का दिया हुआ सबकुछ है उनके पास। माता पिता अभी सलामत हैं। दो लड़के और एक लड़की भी है। बड़ा लड़का गटारीनाथ ८ साल का है। लड़की सुनयनी ६ साल की और सबसे छोटा लड़का मेहुल नाथ अभी ३ साल का है जिसे प्यार से सब मेल्हू कहते हैं।
बटेश्वरनाथ के पिता कोई ३ साल पहले रिटायरमेन्ट लिये थे जब मेल्हू का जन्म हुआ था। रिटायरमेन्ट के समय खूब सारा पैसा भी मिला था। ये लोग खानदानी रईस भी थे। बटुकनाथ के पिता बहुत सारा पैसा छोड़ गये थे। इनके परिवार की खूबियाँ बहुत…
ContinueAdded by आशीष यादव on March 17, 2012 at 9:00am — 16 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 10:29pm — 11 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 9:30pm — 8 Comments
खिला धूप चेहरा मदमाती वो आंखें।
सुर्ख से अधर, पर शर्माती वो आंखें॥
.
देखूं जो नजर भर चुराती वो आंखें।
हटे जो नजर तो बल खाती वो आंखें॥
.
लगे दर्द दिल में छुपाती वो आंखें।
छुपे राजे दिल को बताती वो आंखे॥
.
क्यों ही न जाने दिल जलाती वो आंखें।
बहा अश्क फिर से बुझाती वो आंखें॥
.
सब्र के अब्र को छेद जाती वो आंखें।
अब्र से आब ले बरसाती वो आंखें॥
.
सुनो दोस्त मेरे मदमाती वो…
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 16, 2012 at 9:30pm — 9 Comments
गज़ल........उनको हवा नाम दूँ जाने मैं क्या करूँ .............
वो दूर हैं आज यूँ जाने मैं क्या करूँ
वो मूक हैं आज क्यूँ जाने मैं…
ContinueAdded by Atendra Kumar Singh "Ravi" on March 16, 2012 at 1:21pm — 15 Comments
शिक़ायत
मेरे दिल के कुछ कांटे
मेरे साथ रहे और चुभते रहे
वोह मुझको छलनी करते रहे
हम उनकी हिफाज़त करते रहे
अपना गुनाह बस इतना था
हम उनको अपना कह बैठे
वह हमसे नफरत करते रहे
हम उनसे मुहब्बत करते रहे
हम दीपक थे जलना ही था
पर वफ़ा की आग में जलते रहे
वह समझ न पाए प्यार मेरा
दुनियाँ से शिक़ायत करते रहे
दीपक शर्मा 'कुल्लुवी'
9350078399
१६.०३.१२.
Added by Deepak Sharma Kuluvi on March 16, 2012 at 11:46am — 9 Comments
कभी
Added by AVINASH S BAGDE on March 16, 2012 at 10:25am — 16 Comments
दूर क्षितिज प्राची की लाली ,
अरे बावरी ओ मतवारी ,
उस पल को तूँ विस्मृत कर दे ,
जीवन मे विष को जो भर दे ,
इंद्रव्रज्या नही बन दधीचि तूँ ,
परम दंभ का ना बन प्रतीक तूँ ,
कण्ठ गरल मुख पर मुस्कान…
ContinueAdded by अश्विनी कुमार on March 16, 2012 at 10:00am — 8 Comments
निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा…
Added by MAHIMA SHREE on March 15, 2012 at 4:30pm — 60 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |