अजनबी लगता है ... ...
न वज़ह पूछी
न मौका मिला
वक्त सरकता रहा
कोई अपना
हर लम्हा
अजनबी लगता रहा
किसे आवाज़ दूँ
तारीकियों की क़बा में
उजालों को ओढ़ कर
खो गयी कोई तलाश
टूट गया
उसके साये होने का भ्रम
बावज़ूद ज़िस्मानी करीबी के
वो हर नफ़स
जाने क्यूँ
अजनबी लगता रहा
झूठ है
वो अजनबी है
मेरी तिश्नगी का
समंदर है वो
मेरे हर ख्वाब का
मंज़र है वो
मेरे ज़ह्न में सदियों से…
Added by Sushil Sarna on October 5, 2018 at 6:07pm — 7 Comments
मौसम
धूप की तपन
विदा होने को तैयार
नन्ही कोपलों के फूटने का
पौधों को इंतजार
छांह को ढोते बादल
अब बूंदें चुराएँगे
इस कालचक्र के बीच
मौसम बदल जाएंगे ।
सीप
चमकते मोती
पलते सीप के सीने में
पिरोये जाकर धागों में
शोभा बढ़ाते गले की शान से
छुपाकर रखा मोती को
दर्द सजाकर सीने में
छाती चीरकर दिया…
ContinueAdded by Neelam Upadhyaya on October 5, 2018 at 4:13pm — 14 Comments
किसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर?
फिर किसी सुनसान कोने
चीख कोई जो उठी
रात की खामोशियों में
रातरानी रो उठी
दानवी अट्टाहसों में
आह तड़पी घुट गई
टूटती साँसें समेटे
लड़खड़ाती वो उठी
इस कदर बरपी क़यामत
बन गई मातम सहर
इसलिये हैं नैन घायल
आँसुओं से तर-ब-तर
है नहीं जग में ठिकाना
आँख जाए नीर का
मोल कोई दे सकेगा
वेदना का पीर का
जिस नज़र पे था भरोसा
घात भी उससे मिली
हाथ…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2018 at 6:00pm — 20 Comments
ट्रैफिक सिग्नल की बत्ती लाल हो गयी थी तो उसने ब्रेक लगाया और बाहर देखने लगा. जाने और आने वालों की दो दो लेन थी और हर आदमी ने अपनी गाड़ी थोड़े थोड़े फासले पर खड़ा कर रखी थी. जोहानसबर्ग की यह बात उसे बेहद पसंद थी कि अमूमन हर व्यक्ति कानून का पूरी तरह से पालन करता था और शायद ही कभी लाल बत्ती पर सड़क पार करता था. हॉर्न बजाना तो बेहद असभ्यता की बात मानी जाती थी और किसी की गलती को जताने के लिए ही लोग हॉर्न बजाते थे.
रोज की तरह ही वह अफ़्रीकी नवयुवक, जिसे वह शक्ल से पहचानता था, लेकिन कभी उसने उसका…
Added by विनय कुमार on October 4, 2018 at 4:50pm — 10 Comments
गाँववालों की भीड़ इकठ्ठा हो चुकी थी, उनको भी पता था कि जब किसी गाड़ी में लोग आते हैं तो कुछ न कुछ बांटते हैं. गाड़ी में से कुछ पैकेट निकाले जा रहे थे और चारो तरफ खड़े लोगों में से कई निगाहें बड़ी हसरत से उन्हें निहार रही थीं.
कुछ समय बाद छोटा सा मंच सज गया और गाड़ी से आये कुछ लोगों ने गांववालों को समझाना शुरू किया "सफाई बहुत जरूरी है चाहे वह घर की हो या अपने शरीर की. आप लोग आज से यह प्रण कीजिये कि आगे से सफाई का पूरा ध्यान रखेंगे. आज हम लोग स्वछता से सम्बंधित सामग्री वितरित करेंगे".
बीमार…
Added by विनय कुमार on October 3, 2018 at 4:32pm — 23 Comments
बेज़ुबान पहचान ...
कितनी खामोशी होती है
कब्रिस्तान में
जिस्मों की मानिंद
कब्रों पर लिखे नाम भी
वक्त के थपेड़ों से
धीरे -धीरे
सुपुर्द-ए-ख़ाक हो जाते हैं
रह जाती है
कब्रों पर
उगी घास के नीचे
ख़ामोशी की कबा में सोयी
अपने -पराये रिश्तों की
बेज़ुबान पहचान
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on October 3, 2018 at 4:00pm — 10 Comments
नीम रिश्तों में जेसे दर आया
हर तरफ़ तीरगी सी फेली है
रूह घायल है और सहमी है
अपका साथ अब न होने से
ज़िन्दगी जैसे एक मक़तल है
और मक़तल में मैं अकेला हूं
ज़िन्दगी की तवील राहों में
ख़ुद को बेआसरा सा पाता हूँ
साथ एसे में राहबर भी नहीं
दिल की मेहफ़िल में रोशनी भी नहीं
रूह में कोई ताज़गी भी नहीं
मैं हूँ बेआसरा सा सहरा में
ढ़ूंढ़ता हूं वही…
ContinueAdded by mirza javed baig on October 3, 2018 at 12:30am — 24 Comments
राजा चोर है - लघुकथा –
"आचार्य,इस चोर राजा के शासन से मुक्ति का कोई तो उपाय बताइये। प्रजा त्राहि त्राहि कर रही है।"
"वत्स, सर्वप्रथम तो अपनी वाणी को नियंत्रित करो।"
"गुरू जी, आपका आशय क्या है।"
"जब तक राजा का अपराध प्रमाणित नहीं होता, उसे सम्मान देना अनिवार्य है।"
"राजा का अपराध कैसे प्रमाणित होगा?"
"यह जाँच द्वारा सुनिश्चित करना दंडाधिकारी का कार्य है, जो कि विधि द्वारा स्थापित न्याय प्रणाली के तहत कार्य करता है।"
"दंडाधिकारी यह जाँच…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 2, 2018 at 8:30pm — 16 Comments
मानवता के अग्रदूत
मानवता के अग्रदूत बन
नववाहक सच्चे सपूत बन
किया स्वप्न तूने साकार
नत मस्तक पशुता बर्बरता
देख अहिंसा का हथियार
तुझसे धन्य हुआ संसार ll
मानवता का ध्वज लहराए
जन जन को सन्मार्ग दिखाए
तेरे दया धर्म के आगे
जग लगता कितना आसार
तुझसे धन्य हुआ संसार ll
नित सुकर्म भरपूर किया है
हर विषाद को दूर किया है
श्रम प्रसूति के बल से बापू
किया चतुर्दिक बेड़ा पार
तुझसे धन्य हुआ संसार…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 2, 2018 at 6:25pm — 12 Comments
आज फिर बापू को हमने याद दिल से कर लिया ।
और सारे साल फिर इनसे किनारा कर लिया ।।
फूल चरणों में चढ़ाकर सोचते सब ठीक है ।
रूप बगुले का बशर ने फिर तिबारा कर लिया।।
परचम-ए-खादी तिरंगे में लिपटकर…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 2, 2018 at 9:00am — 5 Comments
क्लास के
सबसे होनहार बच्चे से
मैंने कहा
कल दो अक्टूबर है
और है
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की
जयंती
तुम लिखो, एक निबंध
देश के राष्ट्र-पिता पर
और मुझको दिखाओ
एक घंटे बाद
आया वह होनहार
लिखकर लाया था वह एक निबंध
जैसा मैंने कहा था
उसने लिखा था
कल दो अक्टूबर है
और है
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की
जयंती…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 2, 2018 at 6:56am — 7 Comments
जंतर-मंतर चौराहे पर भीड़ जमा हो चुकी थी। कुछ नियोजित, तो कुछ टाइम-पास थी। कुछ नुक्कड़-नाटिका कलाकार मुखौटे पहने हुए थे, कुछ आम नागरिकों और कुछ नेताओं के वेश में थे। एक वृत्ताकार जमावड़े में संवादों और अदायगी का जंतर-मंतर शुरू हुआ :
"तुरपाई हो नहीं सकती, भरपाई हो नहीं सकती
कपड़े फट सकते हैं, चिथड़े उड़ सकते हैं!
सुनवाई होती है, कार्यवाही सदैव हो नहीं सकती!"
ज़मीन पर पड़ी बलात्कार-पीड़िता और लिंचिंग-पीड़ित के शवों को घेरते हुए दो कलाकार बोले।
"घटना बहुत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 1, 2018 at 5:30pm — 7 Comments
2122 2122 212
गर अदब में नाम की दरकार है।
तो ग़ज़ल कोई नयी दरकार है।।
तू किसी को देख ले ग़मगीन तो।
आँख में तेरी नमी दरकार है।।
प्यार करते हो मुझे तुम भी अगर
इक नज़र चाहत भरी दरकार है।।
एक दूजे पे हमेशा हो यकीं।
दोस्ती में बस यही दरकार है।।
ये अँधेरा दूर होगा एक दिन।
इल्म की बस रौशनी दरकार है।।
बात सच्ची ही कहें हर शेर में।
शाइरी में ये रही दरकार है।।
तुम बढ़ा…
ContinueAdded by surender insan on October 1, 2018 at 12:00pm — 6 Comments
बेवजह खुर्शीद पर, उँगली उठाया मत करो।
ख़ाक हो जाओगे तुम, नज़रें मिलाया मत करो।।
चलना है तो साथ चल वरना कदम पीछे हटा।
दोस्ती की राह में काँटे बिछाया मत करो।।
मुश्किलें आती रहेंगी जब तलक जीवन है…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 30, 2018 at 6:30pm — 1 Comment
तुरपाई हो नहीं सकती, भरपाई हो नहीं सकती
कपड़े फट सकते हैं, चिथड़े उड़ सकते हैं
सुनवाई होती है, कार्यवाही सदैव हो नहीं सकती
घटना दुखद है, अफ़सोस, घुटना ही सुखद है!
मुुुलाक़ात, मीडियापा, राजनीति, बदज़ुबानी हो सकती है,
अपहरण, लिंचिंग, जुतयाई, जगहंसाई हो सकती है,
निवारण, निराकरण तो क्या एफआईआर ही हो नहीं सकती,
घटना दुखद है, अफ़सोस, घुटना ही सुखद है!
टूटना-फूटना, लुटना-लूटना, रोना-रुलाना, चीखना-चिल्लाना,
सब फ़िल्मी शूटिंग सी अदायगी हो सकती है,…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2018 at 10:00am — 4 Comments
"अच्छा, तो आपको केवल 'केमिस्ट्री' में इंट्रेस्ट है, 'कैमरों' की 'मिस्ट्री' में नहीं!"
"जी, मैं उनकी 'हिस्ट्री' अच्छी तरह पढ़ और सुन चुकी हूं! मुझे ग्लैमर की वैसी दुनिया पसंद नहीं!"
"अच्छा, तो यह बताओ कि तुम्हारी अपनी 'केमिस्ट्री' किस तरह के लोगों से मेल खा पाती है?"
"सर, आप ये कैसे सवाल कर रहे हैं! ये इंटरव्यू है या इनर-विउ?"
"तो आप अपनी ख़ूबसूरती पर मेरे रिव्यूज़ समझ ही गईं! मतलब हमारे बीच 'केमिस्ट्री' जमने की गुंजाइश है!"
"जी नहीं, समझ तो मैं गई हूं आपकी मशहूर करिअर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 30, 2018 at 5:04am — 3 Comments
चिन्ह
कोई अविगत "चिन्ह"
मुझसे अविरल बंधा
मेरे अस्तित्व का रेखांकन करता
परछाईं-सा
अबाधित, साथ चला आता है
स्वयं विसंगतिओं से भरपूर
मेरी अपूर्णता का आभास कराता
वह अनन्त, अपरिमित
विशाल घने मेघ-सा, अनिर्णीत
मंडराता है स्वछंद…
ContinueAdded by vijay nikore on September 29, 2018 at 4:47pm — 11 Comments
रिश्तों में दूरी
जब से मैंने अपने दोस्त को
सूरज के बड़े होकर भी छोटे लगने में
धरती से उसकी दूरी की भूमिका समझाई है
बड़ा दिखने के लिए कद बढाने की जगह
दोस्त मुझसे लगातार दूरियां बढ़ा रहा है
ताकि मैं मान लूं वो बृहत् आकार पा रहा है
पर दूरी के कारन छोटा नजर आ रहा है
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on September 29, 2018 at 10:55am — 6 Comments
शोहरत पर कुछ क्षणिकाएं :
कुछ रिश्ते
रिश्तों का
दिलाने लगे हैं
अहसास
शायद
शोहरत की चमक से
वो
बनने लगे हैं
ख़ास
.... .... .... .... ....
शोहरत की ऊंचाई से
लगते हैं
सभी बौने
यश की धूप
सांझ से डरती है
जाने
कब उतर जाये
यश के जिस्म से
अहं का मुलम्मा
और रह जाएँ
हाथों में
यथार्थ के
खाली दोने
.... .... .... .... .... ....
दर्पण
अंधे हो जाते हैं
अंधेरों में
यथार्थ…
Added by Sushil Sarna on September 28, 2018 at 5:00pm — 11 Comments
2122 2122 2122 212
भूख से मरता रहा सारा ज़माना इक तरफ़ ।
और वह गिनता रहा अपना ख़ज़ाना इक तरफ़ ।।
बस्तियों को आग से जब भी बचाने मैं चला ।
जल गया मेरा मुकम्मल आशियाना इक तरफ ।।
कुछ नज़ाक़त कुछ मुहब्बत और कुछ रुस्वाइयाँ ।
वह बनाता ही रहा दिल में ठिकाना इक तरफ ।।
ग्रन्थ फीके पड़ गए फीका लगा सारा सुखन ।
हो गया मशहूर जब तेरा फ़साना इक तरफ ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on September 28, 2018 at 12:00pm — 8 Comments
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