दरवाजे की घंटी सुन, दरवाजा मेड शीला ने खोला तो अपरिचित समझ मुझे आवाज लगाने पर मैं देखने गई तो सामने सलिल भैया और शालिनी भाभी को देख हतप्रद रह गई.मुझे इस तरह देख,भैया कहने लगे- 'भूल गई क्या ?मैं तुम्हारा भाई .......
मैं अपने को संभालते हुए ,उन्हें इशारे से अंदर आने को कह,कहने लगी- 'अरे नहीं भैया,आपको अचानक इतने सालो बाद देखा ....बस और कुछ नहीं।'
भाभी मेरी मनोस्थिति समझ भैया को डाटने वाले लहजे में कहा - 'अब ,उसे झिलाना छोडो'।और मुझे रसोई में ले जाकर खाना बनाने में हाथ बटाँने…
ContinueAdded by babitagupta on August 26, 2018 at 9:42pm — 8 Comments
"आज सही मौका है इसे सबक़ सिखाने का! बड़ा आया राखी बंधवाने वाला हमारी बिरादरी की लड़की से!"
"हां, ये वही तो है न 'याक़ूब', जो कल तेरी गाय के बछड़े की पूंछ पकड़ कर मज़े ले रहा था अपने दोस्तों के बीच! .. मारो साले को एक शॉट इसी खिलौना बंदूक से! .. और मैं फैंकता हूं ये पत्थर! आज यह राखी न बंधवा पाये अपनी पड़ोसन सविता से!"
निशाने साध कर दोनों ने याक़ूब पर वार किये ही थे कि तभी पास के मंदिर से घंटी की आवाज़ें और एक मस्जिद से अज़ान सुनाई दी! उन दोनों दोस्तों के क़दम वहीं थम गये। कुछ पल बाद देखा तो…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 26, 2018 at 6:31pm — 7 Comments
कच्चे धागों से जुड़ा, रक्षाबंधन पर्व
बहना बाँधे डोर जब, भैया करता गर्व
भैया करता गर्व, नेग बहना को देकर
प्रण जीवन रक्षार्थ, वचन खुश बहना लेकर
रेशम बाँधे प्रीत, सनातन रिश्ते सच्चे
बाँटे खुशी अपार, भले हैं धागे कच्चे।1।
सावन में बदरा घिरे, बहने लगी बयार
प्यार बाँटने आ गया, राखी का त्योहार
राखी का त्योहार, सजीं चहुओर दुकानें
ट्रांजिस्टर पर खूब, बजें राखी के गाने
जात धर्म से दूर, भाव है कितना पावन
बँधे स्नेह की डोर, मास आये…
Added by नाथ सोनांचली on August 26, 2018 at 1:00pm — 19 Comments
राखी के पावन त्यौहार पर कुछ दोहे :
राखी का त्यौहार है, बहना की मनुहार।
इक -इक धागा प्यार का, रिश्तों का उपहार।।
'भाई बहना से सदा', माँगे उसका प्यार।
राखी पावन प्रेम के ,बंधन का आधार।।
बाँध जरा तू हाथ पर, बहना अपना प्यार।
दूँगा तुझको आज वो, जो मांगे उपहार।।
राखी है इस हाथ पर, बहना तेरी शान।
तेरे पावन प्यार पर, मुझको है अभिमान।।
सावन में सावन बहे, आँखों से सौ बार।
राखी पर परदेस से,'बहना भेजे…
Added by Sushil Sarna on August 26, 2018 at 1:00pm — 13 Comments
राखी
राखी धागा प्रेम का, कर लेना स्वीकार
केवल ये धागा नहीं,जनम जनम का प्यार ll
बहना तेरी खुश रहे,ऐसा करना काम
मान धर्म रखना सभी, होवे ना बदनाम ll
रिश्ता ये अनमोल है,समझो इसका मोल
पावन रिश्ते को कभी, पैसे से ना तोल ll
प्रेम झलकता एक दिन,फिर करते तकरार
दुख सहती बहना अगर, ये कैसा है प्यार ll
दिल से बहना को सभी, देना स्नेह दुलार
याद करे बहना कभी,मत करना इनकार…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on August 26, 2018 at 12:38pm — 10 Comments
"अब हमसें और न हो पेहे! दो-दो बोरे गेहूं तुम दोनों भाइयों और दो बोरे तुमाई बहना को भिजवा दये हते! अब मुंह फाड़के फिर आ गये गांव घूमवे के बहाने!"
"जे मत भूलो कि हमने अपने हिस्से के बड़े-बड़े बढ़िया खेत तुमें सस्ते में बेच दये हते! फसलों के ह़िस्से बिना मांगे हमें मिलते रहना चईये न! बड़े भाई हैं हम तुमाये; तुमाओ परिवार अकेले इते मजे करत रेहे का!"
"कौन ने कई हती कि अगल-बगल के शहरन में बस जाओ! पैसों से तो तुम औरन के मज़े हो रये हैं! हमारी मिहनत और हालात तुम कभऊं न समझ पेहो! सारी फसल तुम…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 26, 2018 at 12:00pm — 4 Comments
भारी बारिश हो रही थी। बगीचे की टीन-शेड के नीचे बच्चे भीगे मौसम के साथ झूले के मज़े ले रहे थे। गरम पकोड़ों का लुत्फ़ लेते हुए उनके अब्बूजान अपने पुराने से अज़ीज़ ट्रांजिस्टर पर मुल्क की चुनावी राजनीतिक हलचलों, बाढ़ों के क़हर और तबाहियों के गरम समाचार सुन रहे थे । बच्चों की अम्मीजान भी समाचारों को झेल रहीं थीं। तभी बड़ी बेटी बोली - "अब्बू! ख़ुदा न करे! अगर नेताओं और अंग्रेज़ों के 'रिमोट कंट्रोल' से '1947 की रात' जबरन दुबारा रिपीट की गई और मुसलमानों को अलग किसी हिस्से में हांका गया, तो आप कहां तशरीफ़ ले…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on August 26, 2018 at 5:00am — 4 Comments
हिन्दू - मुस्लिम का कहें, एक रंग है खून.
हिन्दू हिन्दू में फरक, क्यों करता कानून.
सबके दो हैं हाथ, पाँव भी सबके दो हैं.
नाक सभी के एक, सूँघते जिससे वो हैं.
नयन जिसे भी मिले,जगत के दर्शन करता.
कान और मुँह से, सुनता - वर्णन करता.
सात दिन मिले सभी को, हफ्ते में एक समान.
विद्यालय में गुरु सभी को, देता ज्ञान समान.
अन्न नहीं करता देने में, ताकत कोई भेद.
मनु के पुत्र सभी मनुष्य हैं, कहते सारे वेद.
सूरज सबके लिए चमकता, सबको राह दिखाता.
श्वांस सभी पवन से…
Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on August 26, 2018 at 1:45am — 5 Comments
1212 1122 1212 112
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 26, 2018 at 1:00am — 15 Comments
हर धड़कन पर इक आहट,
सोचूँ तो हो घबराहट..
यारों उससे पूंछो तो,
क्यूँ है मुझसे उकताहट..
लहजा उसका है शीरीं,
आँखें उसकी कड़वाहट..
मुझसे इतनी दूरी क्यूँ,
हर लम्हा है झुंझलाहट..
उससे हाले दिल कह कर,
देखी उसकी तिर्याहट..!!
मौलिक एवं अप्रकाशित।
Added by Zohaib Ambar on August 25, 2018 at 8:31pm — 3 Comments
तृप्ति ....
मेरा कहाँ था
वो पल
जो बीत गया
वक्त के साथ
तुम्हारा आकर्षण भी
रीत गया
यादों के धागों पर
मिलते रहे
अतृप्त तृप्ति की
अव्यक्त अभियक्ति के साथ
कहीं तुम
कहीं हम
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 25, 2018 at 1:20pm — 5 Comments
अनुसरण- लघुकथा –
माँ भारती अपनी संध्याकालीन पूजा अर्चना से निवृत होकर जैसे ही प्रांगण में आयीं। उन्होंने देखा कि उनके बच्चे दो गुट में बंटे हुए एक दूसरे पर तमंचों से गोलियाँ दाग रहे थे। एक गुट हर हर महादेव के जयकारे लगा रहा था और दूसरा गुट अल्ला हो अकबर के नारे लगा रहा था। माँ भारती स्तब्ध रह गयीं।
उन्होंने तुरंत बच्चों को रोका,"बच्चो, यह क्या कर रहे हो तुम लोग"?
"माँ, हम लोग हिंदू मुसलमान खेल रहे हैं"।
"पर यह खेल कौन सा है"?
"यह हिंदू मुस्लिम दंगा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 25, 2018 at 12:08pm — 8 Comments
221 2121 1221 212
क़ीमत ज़बान की है जहाँ बढ़के जान से
है वास्ता हमारा उसी ख़ानदान से
चढ़ना है गर शिखर पे, रखो पाँव ध्यान से
खाई में जा गिरोगे जो फिसले ढलान से
पल - पल झुलस रही है ज़मीं तापमान से
मुकरे हैं सारे अब्र अब अपनी ज़बान से
काली घटाएँ रास्ता रोकेंगी कब तलक?
निकलेगा आफ़ताब इसी आसमान से
ये दौलतों के ढेर मुबारक तुम्हीं को हों
हम जी रहे हैं अपनी फ़क़ीरी में शान से
क्या-क्या न हमसे छीन…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on August 25, 2018 at 11:03am — 8 Comments
मस्त हुए वे प्रभुताई में
देश झुलसता महँगाई में
घास तलक उगना हो मुश्किल
क्या रक्खा उस ऊँचाई में
फटी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 25, 2018 at 10:00am — 6 Comments
सुनो, नारी कभी नग्न नहीं होती है
और सुनो, नारी कभी नहीं रोती है
नारी कभी नग्न नहीं होती
नग्न होती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
नारी कभी नहीं रोती है-
रोती हैं ;
हमारी मातायें,
हमारी बहनें,
हमारी पत्नी,
हमारी बेटियां,
हमारी पुत्र-वधुयें,
हमारी विवशताएं
फिर…
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 6:30pm — 9 Comments
मिश्रित दोहे :
कड़वे बोलों से सदा, अपने होते दूर।
मीठी वाणी से बढ़ें, नज़दीकियाँ हुज़ूर।।
भानु किरण में काँच भी, हीरे से बन जाय।
हीरा तो अपनी चमक, तम में ही दिखलाय।।
घडी-घड़ी क्यों देखता, जीव घडी की चाल।
घड़ी गर्भ में ही छुपा, उसका अंतिम काल।।
हंस भेस में आजकल, कौआ बांटे ज्ञान।
पीतल सोना एक सा, कैसे हो पहचान।।
राखी का त्यौहार है बहना की मनुहार।
इक -इक धागे में बहिन, बाँधे अपना…
Added by Sushil Sarna on August 24, 2018 at 4:15pm — 4 Comments
जीवन की धमाचौकड़ी में वो अस्त-व्यस्त था।
मिलता तो था सभी से मगर ज़्यादा व्यस्त था।।
हर चंद कोशिशें थीं कि दीदार-ए-यार हो।
पहरा मगर महल में बहुत ज़्यादा सख्त था।।
कहने को गर हैं भाई फिर मैदान-ए-जंग में।
गिरता था ज़मीन पे वो फिर किसका रक्त था।।
गर सब हैं बेगुनाह तो चल अब तू ही दे बता।
खंज़र मेरे शरीर में वो किसका पेवस्त था।।
जिससे भी जुड़ा रिश्ते में वो बंधता चला गया।
बस उसका ही मिजाज थोड़ा ज़्यादा…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 24, 2018 at 3:00pm — 1 Comment
वो बेबसी का
कहर देखते हैं
हम भी अपना
शहर देखते हैं
उतर गया है
पानी सैलाब का
मिट्टी से सना
घर देखते हैं
शर्म, हया, अना
कहाँ बची है
झुक के सभी
दीवारो-दर देखते हैं
घोल दी गई कुछ
इस तरह मिठास
ज़ुबाँ में ज़हर का
असर देखते हैं
इस उम्र न आओगे
लौट कर यहाँ
हम न जाने किसकी
डगर देखते हैं
मौलिक एवम अप्रकाशित
सुधेन्दु ओझा
Added by SudhenduOjha on August 24, 2018 at 12:20pm — 1 Comment
Added by Dr.Prachi Singh on August 24, 2018 at 1:05am — 6 Comments
अरकान:-
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फ़ा
फिर ज़ख़्मों को धोने का दिल करता है
चुपके चुपके रोने का दिल करता है
जब जब…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on August 22, 2018 at 10:09pm — 14 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |