For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,998)

'इक दिन बिक जायेगा' (लघुकथा)

"अब तो सुधर जाओ! कुछ ही साल बचे हैं रिटायर होने में! औलाद के लिए कुछ तो ऊपरी कमाई कर लो, इंजीनियर साहब!"



"ठेकेदारी में तुम्हें जो करना है, करते रहो! मैं ह़राम की कमाई में यकीं नहीं रखता! जवान पढ़ी-लिखी औलाद अपने पैरों पर ख़ुद खड़ी हो ले या तुम लोगों माफ़िक अपना ईमान बेचकर 'होड़ और झूठ' की दुनिया में दाख़िल हो कर अपना स्टेटस बनाये-दिखाये; ये उनके ज़मीर पर है! मेहरबानी कर ये लिफ़ाफ़े आप ही आपस में बांट लें!"



".. तो पिछली बार की तरह एक लिफ़ाफ़ा बड़े साहब को ... और बाक़ी हमारे ही…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2018 at 11:55pm — 3 Comments

"अद्भुत तंत्र की अद्भुत घुट्टी" (लघुकथा)

"... और अब बंदरों से निबटने का फार्मूला भी सुन लो! बंदरों से बचना है, तो उनकी आरती करो! चालीसे गाओ, गव्वाओ!"- एक जंगली 'बंदर' को गोद में बिठाले धार्मिक वस्त्रधारी चर्चित नेताजी ने राष्ट्र के युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, तो महाविद्यालय के उस सभागार में कुछ श्रोता युवक आपस में खुसुर-पुसुर करने लगे।



"धर्म के सदियों पुराने पिंजरों में क़ैद रह कर 'विज्ञान और तकनीकी तरक़्क़ी' के गीत गाओ!" एक नवयुवक ने कहा।



"अरे नहीं यार! अपने-अपने धर्म की 'बंदर-घुट्टी' पी-पी कर जोगी-भोगी…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2018 at 7:52pm — 3 Comments

मंजिल की पहली सीढ़ी--लघुकथा

एक बार फिर वह बुझे मन से उस अर्धनिर्मित क्लास रूम की तरफ निकाल पड़ी जहाँ पिछले दो महीने से वह बच्चों को पढ़ा रही थी. बच्चों को पढ़ाना उसका शौक था और इसके पहले भी वह जहाँ भी रही, उसने यह काम हमेशा किया. लेकिन हमेशा बच्चे उसके घर पढ़ने आते थे और ठीक ठाक घरों के होते थे.

उस मलिन बस्ती में, जहाँ बच्चों की कक्षा चलती थी, जाने में शुरुआत में तो उसकी हालत खराब हो गयी थी. चारो तरफ गंदगी, रास्ते के किनारे बहता हुआ खुला नाबदान और खस्ताहाल दो कमरे, जिसमें बच्चे चटाई पर बैठकर पढ़ते थे. हालाँकि धीरे…

Continue

Added by विनय कुमार on September 1, 2018 at 5:00pm — 9 Comments

"बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ"

ग़ज़ल

बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ

मैं नफ़रतों का ही क़िस्सा तमाम करता चलूँ

अब आख़िरत का भी कुछ इन्तिज़ाम करता चलूँ

दिल-ओ-ज़मीर को अपने मैं राम करता चलूँ

जहाँ जहाँ से भी गुज़रूँ ये दिल कहे मेरा

तेरा ही ज़िक्र फ़क़त सुब्ह-ओ-शाम करता चलूँ

अमीर हो कि वो मुफ़लिस,बड़ा हो या छोटा

मिले जो राह में उसको सलाम करता चलूँ

गुज़रता है जो परेशान मुझको करता है

तेरे ख़याल से…

Continue

Added by Samar kabeer on September 1, 2018 at 3:12pm — 53 Comments

"तमाशा"

पल में तोला है पल में माशा है

ये ज़िन्दगी है या एक तमाशा है

 

मय को पीकर इधर उधर गिरना

ये मयकशी है या एक तमाशा है

 

दब गए बोल सारे साज़ों में

ये मौसिक़ी है या एक तमाशा है

 

दिख रहे ख़ुश बिना तब्बसुम के 

ये ख़ुशी है या एक तमाशा है

 

इश्क़ को कर रहा रुसवा कबसे     

ये आशिक़ी है या एक तमाशा है

 

दरिया में रह के नीर की चाहत

ये तिश्नगी है या एक तमाशा है

 

तू जल रहा फिर…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 1, 2018 at 1:14pm — 1 Comment

जीने की चाह

चाह जीने की अगर, तुझमें पनपती है प्रबल,

रास्ता रोकेगा कैसे, फिर तुम्हारा दावानल ।

चाहे जितनी मुश्किलें, आयें तुम्हारे सामने,

तुम कभी करना नहीं, अपनों नयनों को सज़ल ।

जिंदगी के रास्ते, इतने सरल होते नहीं,

तुझको भी पीना पड़ेगा,अपने हिस्से का गरल ।

तू अगर सच्चा है तो फिर, डर तुझे किस बात का,

मंजिलों की जुस्तज़ू में, हौसले लेकर निकल ।

कर नहीं पायेगी तुझको, कोई भी मुश्किल विकल,

गर इरादे होंगे तेरे, आसमां…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 31, 2018 at 5:30pm — 2 Comments

नैन कटोरे ..

नैन कटोरे ..

नैन कटोरे
कब छलके
खबर न हुई
बस
ढूंढता रहा
भीगे कटोरों से
अपना मयंक
उस मयंक में

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on August 31, 2018 at 1:14pm — 10 Comments

गजल - गुनगुनाने से रहे

मापनी -  2122 2122 2122 212

 

जिन्दगी है कीमती यूँ ही लुटाने से रहे  

हर किसी के गीत हम तो गुनगुनाने से रहे

 

पैर अंगद से जमे हैं सत्य की दहलीज पर

हो रही मुश्किल बहुत लेकिन हटाने से रहे

 

अर्जियाँ सब गुम गईं या…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on August 31, 2018 at 12:00pm — 17 Comments

मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन में एक कोशिश ।

'भर के आँखों में नमी लहज-ए-साइल बाँधा ।

उनसे मिलने जो चला साथ ग़म ए दिल बाँधा ।

उनकी तशबीह सितारों से न अशआर में दी ।

उनके रुख़सार पै जो तिल था उसे तिल बाँधा ।

मैं भँवर से तो निकल आया मगर मैरे लिए ।

एक तूफ़ान भी उसने लबे साहिल बाँधा ।

हौसले पस्त हुए पल में मिरे क़ातिल के ।

तीर के सामने जब सीन-ए- बिस्मिल बाँधा ।

लुत्फ़ अंदोज़ है "जावेद"तग़ज़्ज़ल कितना ।

हमने मोज़ू ए…

Continue

Added by mirza javed baig on August 31, 2018 at 12:59am — 12 Comments

तरही ग़ज़ल : साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं

2122  1122  1122  22/112

कोई पूछे तो मेरा हाल बताते भी नहीं,

आशनाई का सबब सबसे छुपाते भी नहीं।

शेर कहते हैं बहुत हुस्न की तारीफ़ में हम

पर कभी अपनी ज़बाँ पर उन्हें लाते भी नहीं।

जब भी देते हैं किसी फूल को हँसने की दुआ,

शाख़ से ओस की बूंदों को गिराते भी नहीं।

ये तुम्हारी है अदा या है कोई मजबूरी,

प्यार भी करते हो और उसको जताते भी नहीं।

सिर्फ़ अल्फ़ाज़ से पहचान…

Continue

Added by Ravi Shukla on August 29, 2018 at 4:00pm — 17 Comments

जिगर औ साँस में उतर आई मई (ग़ज़ल, इस्लाह के लिए)

122 212 122 212

ये शेर-ओ-शायरी? मुझे, इश्क़ है भई
सभी से, आप से; किसी ख़ास से नई

क़लम चिल्ला उठी, जहाँ के दर्द से
कुई तड़पा, निगाह नम हो गई

किसी नें राष्ट्र को तरेरी आँख तो
जिगर औ साँस में उतर आई मई

सुनो ए, नाज़नीं घमण्डी होने का
इसे इल्ज़ाम देने को बस तुम नई

महज़ खटती रहीं वो बच्चों के लिए
सभी माताओं की उम्र यूँ ही गई

मौलिक-अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2018 at 12:00am — 7 Comments

अब तीरगी से जंग कोई आर पार हो

221 2121 1221 212

कुछ दिन से देखता हूँ बहुत बेकरार हो।।

कह दूँ मैं दिल की बात अगर ऐतबार हो ।।

परवाने  की ख़ता थी  मुहब्बत चिराग  से ।

करिए न ऐसा इश्क़ जहां जां निसार हो ।।

रिश्तों की वो इमारतें ढहती जरूर हैं ।

बुनियाद में ही गर कहीं आई दरार हो ।।

कीमत खुली हवा की जरा उनसे पूँछिये ।

जिनको अभी तलक मयस्सर…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2018 at 6:40pm — 13 Comments

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

1.

ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।

जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।

बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-

जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।

2.

सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।

कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती ।

ऐसे   रूठे वो   कि . रूठ  गयी  साँसें -

दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।

3.

खुशी के पर्दे  में  क्यूँ   नमी .बनी   रहती है।

हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 2:15pm — 28 Comments

काँधे पर सभी शरीर गए (इस्लाह के लिए)

16 रुकनी ग़ज़ल

किस किस के नाम गिनाऊँ मैं, जो इस दिल मे भर पीर गए

जिस जिस को हिफाज़त सौंपी थी, वो सारे ही दिल चीर गए

वो तन्हा छोड़ गए लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूँगा

जो तोहफे में इन दो प्यासे नयनों को दे कर नीर गए

हर गीत ग़ज़ल अशआर सभी हैं जिन लोगों की सौगातें

आबाद रहें वो, जो मुझ को, दे कर ग़म की जागीर गए

हर ख़ाब कुचल डाले मेरे, तुम रौंद गए अरमानों को

पर मुआफ़ किया मैंने तुमको, तुम चाहे कर तफ़्सीर गए

रातों की…

Continue

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 28, 2018 at 1:30am — 18 Comments

प्रतीक्षारत विरह

"प्रिये अपनी दाईं तरफ थोड़ा सा मुड़कर देखो

कोई है जो हौले से तुम्हारे सीने पर हाथ रखना चाहती है ।

तुम्हे नील गगन और खुद को धरा बनाना चाहती है ।

तुम्हारे आलिंगन…
Continue

Added by Monika Jain on August 27, 2018 at 9:30pm — 2 Comments

दोस्ती [तुकांत - अतुकांत कविता]

बचपन की यादों का अटूट बंधन 

बिना लेनदेन के चलने वाला 

खूबसूरत रिश्तों का अद्वितीय बंधन 

एक ढर्रे पर चलने वाली जिंदगी में 

नई-नई सोच से रूबरू करवाया 

अर्थहीन जीवन को अर्थ पूर्ण बनाया 

जीने का एक…

Continue

Added by babitagupta on August 27, 2018 at 8:00pm — 4 Comments

जब रक्षा बंधन आता है.....

जब रक्षा बंधन आता है.....
 
शूलों में फूल खिल जाते हैं , जब रक्षा बंधन आता है  

स्मृतियाँ सारी वो बचपन की, संग अपने ले आता है 
रेशम के बस इक धागे से ,
हृदय के बैर मिट…
Continue

Added by Sushil Sarna on August 27, 2018 at 7:01pm — 4 Comments

" रक्षाबंधन "- कविता/ अर्पणा शर्मा,भोपाल

रक्षाबंधन पर्व ले आई,

श्रावण शुक्ल पूर्णिमा,

भर लाई अतुलित उल्लास,

पुनीत-पावन स्नेहिल ऊष्मा,

मैं  हर्षित पर्व यह सुमंगल मनाऊँगी,

हाथों सुंदर मेंहदी रचाऊँगी,

भाई मंगल तिलक करने 

मैं अवश्य ही आऊंगी, 

हाथ से रेशम की ड़ोरी बनाऊंगी,

जरी का उसमें झुमका लगाऊंगी,

चौक पूर, पाट पर तुमको बिठाऊँगी,

श्रीफल, रोली-अक्षत थाल सजाऊँगी,

राखी तुम्हारी कलाई सजाऊंगी,

तिलक चर्चित कर उन्नत भाल पर,

मंगल-दीप से आरती…

Continue

Added by Arpana Sharma on August 27, 2018 at 3:30pm — 2 Comments

अफ़सुर्दा सा लम्हा ....



अफ़सुर्दा सा लम्हा ....

अफ़सुर्दा से लम्हों में

लफ़्ज़ भी उदास हो जाते हैं

बीते हुए लम्हों की लाशें

अपने शानों पर लिए लिए

चीखते हैं

मगर खामोशी की क़बा में

उनकी आवाज़ें

घुट के रह जाती हैं

रोज़ो-शब्

उनके ख़्यालों से

गुफ़्तगू होती है

लफ़्ज़ कसमसाते हैं

चश्म नम होती है

सैलाब लफ़्ज़ों का

हर तरफ है लेकिन

दर्द को तसल्ली

कहाँ होती है



लफ़्ज़ों के शह्र में

अफसानों की…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 27, 2018 at 1:30pm — 5 Comments

कोई देकर गया था इक खुशी यारो - गजल (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" )

१२२२/१२२२/१२२२

मुहब्बत भी कहानी हो गयी हमसे

बहुत बद ये जवानी हो गयी हमसे।१।



कोई देकर गया था इक खुशी यारो

कहीं गुम वो निशानी हो गयी हमसे।२।



जमाना सारा ही  दुश्मन हुआ है यूँ

जरा सी सच बयानी हो गयी हमसे।३।



कसक सी दिल में उठ्ठी है कहीं यारो

किसी से बद जबानी हो गयी हमसे।४।



भला यूँ कम कहाँ हम थे मगर अब तो

ये दुनिया  भी  सयानी  हो …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 9:55am — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
22 hours ago
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"बदलते लोग  - लघुकथा -  घासी राम गाँव से दस साल की उम्र में  शहर अपने चाचा के पास…"
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"श्रवण भये चंगाराम? (लघुकथा): गंगाराम कुछ दिन से चिंतित नज़र आ रहे थे। तोताराम उनके आसपास मंडराता…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय ज़ेफ जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आदरणीय अमित जी, आपकी टिप्पणी से सीखने को मिला। इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी मार्ग दर्शन…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"शुक्रिया ज़ैफ़ जी, टिप्पणी में गिरह का शे'र भी डाल देंगे तो उम्मीद करता हूँ कि ग़ज़ल मान्य हो…"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास रहा। आ. अमित जी की इस्लाह महत्वपूर्ण है।"
yesterday
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"आ. अमित, ग़ज़ल पर आपकी बेहतरीन इस्लाह व हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिय:।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service