"अब तो सुधर जाओ! कुछ ही साल बचे हैं रिटायर होने में! औलाद के लिए कुछ तो ऊपरी कमाई कर लो, इंजीनियर साहब!"
"ठेकेदारी में तुम्हें जो करना है, करते रहो! मैं ह़राम की कमाई में यकीं नहीं रखता! जवान पढ़ी-लिखी औलाद अपने पैरों पर ख़ुद खड़ी हो ले या तुम लोगों माफ़िक अपना ईमान बेचकर 'होड़ और झूठ' की दुनिया में दाख़िल हो कर अपना स्टेटस बनाये-दिखाये; ये उनके ज़मीर पर है! मेहरबानी कर ये लिफ़ाफ़े आप ही आपस में बांट लें!"
".. तो पिछली बार की तरह एक लिफ़ाफ़ा बड़े साहब को ... और बाक़ी हमारे ही…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2018 at 11:55pm — 3 Comments
"... और अब बंदरों से निबटने का फार्मूला भी सुन लो! बंदरों से बचना है, तो उनकी आरती करो! चालीसे गाओ, गव्वाओ!"- एक जंगली 'बंदर' को गोद में बिठाले धार्मिक वस्त्रधारी चर्चित नेताजी ने राष्ट्र के युवाओं को संबोधित करते हुए कहा, तो महाविद्यालय के उस सभागार में कुछ श्रोता युवक आपस में खुसुर-पुसुर करने लगे।
"धर्म के सदियों पुराने पिंजरों में क़ैद रह कर 'विज्ञान और तकनीकी तरक़्क़ी' के गीत गाओ!" एक नवयुवक ने कहा।
"अरे नहीं यार! अपने-अपने धर्म की 'बंदर-घुट्टी' पी-पी कर जोगी-भोगी…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 1, 2018 at 7:52pm — 3 Comments
एक बार फिर वह बुझे मन से उस अर्धनिर्मित क्लास रूम की तरफ निकाल पड़ी जहाँ पिछले दो महीने से वह बच्चों को पढ़ा रही थी. बच्चों को पढ़ाना उसका शौक था और इसके पहले भी वह जहाँ भी रही, उसने यह काम हमेशा किया. लेकिन हमेशा बच्चे उसके घर पढ़ने आते थे और ठीक ठाक घरों के होते थे.
उस मलिन बस्ती में, जहाँ बच्चों की कक्षा चलती थी, जाने में शुरुआत में तो उसकी हालत खराब हो गयी थी. चारो तरफ गंदगी, रास्ते के किनारे बहता हुआ खुला नाबदान और खस्ताहाल दो कमरे, जिसमें बच्चे चटाई पर बैठकर पढ़ते थे. हालाँकि धीरे…
ContinueAdded by विनय कुमार on September 1, 2018 at 5:00pm — 9 Comments
ग़ज़ल
बहुत दिनों से है बाक़ी ये काम करता चलूँ
मैं नफ़रतों का ही क़िस्सा तमाम करता चलूँ
अब आख़िरत का भी कुछ इन्तिज़ाम करता चलूँ
दिल-ओ-ज़मीर को अपने मैं राम करता चलूँ
जहाँ जहाँ से भी गुज़रूँ ये दिल कहे मेरा
तेरा ही ज़िक्र फ़क़त सुब्ह-ओ-शाम करता चलूँ
अमीर हो कि वो मुफ़लिस,बड़ा हो या छोटा
मिले जो राह में उसको सलाम करता चलूँ
गुज़रता है जो परेशान मुझको करता है
तेरे ख़याल से…
ContinueAdded by Samar kabeer on September 1, 2018 at 3:12pm — 53 Comments
पल में तोला है पल में माशा है
ये ज़िन्दगी है या एक तमाशा है
मय को पीकर इधर उधर गिरना
ये मयकशी है या एक तमाशा है
दब गए बोल सारे साज़ों में
ये मौसिक़ी है या एक तमाशा है
दिख रहे ख़ुश बिना तब्बसुम के
ये ख़ुशी है या एक तमाशा है
इश्क़ को कर रहा रुसवा कबसे
ये आशिक़ी है या एक तमाशा है
दरिया में रह के नीर की चाहत
ये तिश्नगी है या एक तमाशा है
तू जल रहा फिर…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 1, 2018 at 1:14pm — 1 Comment
चाह जीने की अगर, तुझमें पनपती है प्रबल,
रास्ता रोकेगा कैसे, फिर तुम्हारा दावानल ।
चाहे जितनी मुश्किलें, आयें तुम्हारे सामने,
तुम कभी करना नहीं, अपनों नयनों को सज़ल ।
जिंदगी के रास्ते, इतने सरल होते नहीं,
तुझको भी पीना पड़ेगा,अपने हिस्से का गरल ।
तू अगर सच्चा है तो फिर, डर तुझे किस बात का,
मंजिलों की जुस्तज़ू में, हौसले लेकर निकल ।
कर नहीं पायेगी तुझको, कोई भी मुश्किल विकल,
गर इरादे होंगे तेरे, आसमां…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on August 31, 2018 at 5:30pm — 2 Comments
नैन कटोरे ..
नैन कटोरे
कब छलके
खबर न हुई
बस
ढूंढता रहा
भीगे कटोरों से
अपना मयंक
उस मयंक में
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 31, 2018 at 1:14pm — 10 Comments
मापनी - 2122 2122 2122 212
जिन्दगी है कीमती यूँ ही लुटाने से रहे
हर किसी के गीत हम तो गुनगुनाने से रहे
पैर अंगद से जमे हैं सत्य की दहलीज पर
हो रही मुश्किल बहुत लेकिन हटाने से रहे
अर्जियाँ सब गुम गईं या…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 31, 2018 at 12:00pm — 17 Comments
'भर के आँखों में नमी लहज-ए-साइल बाँधा ।
उनसे मिलने जो चला साथ ग़म ए दिल बाँधा ।
उनकी तशबीह सितारों से न अशआर में दी ।
उनके रुख़सार पै जो तिल था उसे तिल बाँधा ।
मैं भँवर से तो निकल आया मगर मैरे लिए ।
एक तूफ़ान भी उसने लबे साहिल बाँधा ।
हौसले पस्त हुए पल में मिरे क़ातिल के ।
तीर के सामने जब सीन-ए- बिस्मिल बाँधा ।
लुत्फ़ अंदोज़ है "जावेद"तग़ज़्ज़ल कितना ।
हमने मोज़ू ए…
ContinueAdded by mirza javed baig on August 31, 2018 at 12:59am — 12 Comments
2122 1122 1122 22/112
कोई पूछे तो मेरा हाल बताते भी नहीं,
आशनाई का सबब सबसे छुपाते भी नहीं।
शेर कहते हैं बहुत हुस्न की तारीफ़ में हम
पर कभी अपनी ज़बाँ पर उन्हें लाते भी नहीं।
जब भी देते हैं किसी फूल को हँसने की दुआ,
शाख़ से ओस की बूंदों को गिराते भी नहीं।
ये तुम्हारी है अदा या है कोई मजबूरी,
प्यार भी करते हो और उसको जताते भी नहीं।
सिर्फ़ अल्फ़ाज़ से पहचान…
ContinueAdded by Ravi Shukla on August 29, 2018 at 4:00pm — 17 Comments
122 212 122 212
ये शेर-ओ-शायरी? मुझे, इश्क़ है भई
सभी से, आप से; किसी ख़ास से नई
क़लम चिल्ला उठी, जहाँ के दर्द से
कुई तड़पा, निगाह नम हो गई
किसी नें राष्ट्र को तरेरी आँख तो
जिगर औ साँस में उतर आई मई
सुनो ए, नाज़नीं घमण्डी होने का
इसे इल्ज़ाम देने को बस तुम नई
महज़ खटती रहीं वो बच्चों के लिए
सभी माताओं की उम्र यूँ ही गई
मौलिक-अप्रकाशित
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 29, 2018 at 12:00am — 7 Comments
कुछ दिन से देखता हूँ बहुत बेकरार हो।।
कह दूँ मैं दिल की बात अगर ऐतबार हो ।।
परवाने की ख़ता थी मुहब्बत चिराग से ।
करिए न ऐसा इश्क़ जहां जां निसार हो ।।
रिश्तों की वो इमारतें ढहती जरूर हैं ।
बुनियाद में ही गर कहीं आई दरार हो ।।
कीमत खुली हवा की जरा उनसे पूँछिये ।
जिनको अभी तलक न मयस्सर…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2018 at 6:40pm — 13 Comments
तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....
1.
ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।
जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।
बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-
जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।
2.
सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं आती ।
ऐसे रूठे वो कि . रूठ गयी साँसें -
दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।
3.
खुशी के पर्दे में क्यूँ नमी .बनी रहती है।
हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।…
Added by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 2:15pm — 28 Comments
16 रुकनी ग़ज़ल
किस किस के नाम गिनाऊँ मैं, जो इस दिल मे भर पीर गए
जिस जिस को हिफाज़त सौंपी थी, वो सारे ही दिल चीर गए
वो तन्हा छोड़ गए लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूँगा
जो तोहफे में इन दो प्यासे नयनों को दे कर नीर गए
हर गीत ग़ज़ल अशआर सभी हैं जिन लोगों की सौगातें
आबाद रहें वो, जो मुझ को, दे कर ग़म की जागीर गए
हर ख़ाब कुचल डाले मेरे, तुम रौंद गए अरमानों को
पर मुआफ़ किया मैंने तुमको, तुम चाहे कर तफ़्सीर गए
रातों की…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 28, 2018 at 1:30am — 18 Comments
Added by Monika Jain on August 27, 2018 at 9:30pm — 2 Comments
बचपन की यादों का अटूट बंधन
बिना लेनदेन के चलने वाला
खूबसूरत रिश्तों का अद्वितीय बंधन
एक ढर्रे पर चलने वाली जिंदगी में
नई-नई सोच से रूबरू करवाया
अर्थहीन जीवन को अर्थ पूर्ण बनाया
जीने का एक…
ContinueAdded by babitagupta on August 27, 2018 at 8:00pm — 4 Comments
Added by Sushil Sarna on August 27, 2018 at 7:01pm — 4 Comments
रक्षाबंधन पर्व ले आई,
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा,
भर लाई अतुलित उल्लास,
पुनीत-पावन स्नेहिल ऊष्मा,
मैं हर्षित पर्व यह सुमंगल मनाऊँगी,
हाथों सुंदर मेंहदी रचाऊँगी,
भाई मंगल तिलक करने
मैं अवश्य ही आऊंगी,
हाथ से रेशम की ड़ोरी बनाऊंगी,
जरी का उसमें झुमका लगाऊंगी,
चौक पूर, पाट पर तुमको बिठाऊँगी,
श्रीफल, रोली-अक्षत थाल सजाऊँगी,
राखी तुम्हारी कलाई सजाऊंगी,
तिलक चर्चित कर उन्नत भाल पर,
मंगल-दीप से आरती…
ContinueAdded by Arpana Sharma on August 27, 2018 at 3:30pm — 2 Comments
अफ़सुर्दा सा लम्हा ....
अफ़सुर्दा से लम्हों में
लफ़्ज़ भी उदास हो जाते हैं
बीते हुए लम्हों की लाशें
अपने शानों पर लिए लिए
चीखते हैं
मगर खामोशी की क़बा में
उनकी आवाज़ें
घुट के रह जाती हैं
रोज़ो-शब्
उनके ख़्यालों से
गुफ़्तगू होती है
लफ़्ज़ कसमसाते हैं
चश्म नम होती है
सैलाब लफ़्ज़ों का
हर तरफ है लेकिन
दर्द को तसल्ली
कहाँ होती है
लफ़्ज़ों के शह्र में
अफसानों की…
Added by Sushil Sarna on August 27, 2018 at 1:30pm — 5 Comments
मुहब्बत भी कहानी हो गयी हमसे
बहुत बद ये जवानी हो गयी हमसे।१।
कोई देकर गया था इक खुशी यारो
कहीं गुम वो निशानी हो गयी हमसे।२।
जमाना सारा ही दुश्मन हुआ है यूँ
जरा सी सच बयानी हो गयी हमसे।३।
कसक सी दिल में उठ्ठी है कहीं यारो
किसी से बद जबानी हो गयी हमसे।४।
भला यूँ कम कहाँ हम थे मगर अब तो
ये दुनिया भी सयानी हो …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 27, 2018 at 9:55am — 10 Comments
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