बह्र-212-212-212-212
घर पे अपने बुरा या भला ठीक हूँ।।
गुमशुदा हूँ अगर गुमशुदा ठीक हूँ।।
पर्त धू की चढ़ी,दीमकों का बसर।
हो लगी चाहे सीलन पता ठीक हूँ।।
मेरा लहजा है कोई कहे न कहे।
मैं रदीफ़ ए ग़ज़ल काफिया ठीक हूँ।।
ठाठ की टोकरी या तुअर झाड़ की ।
घर के सपने संजो अधभरा ठीक हूँ।।
शान ओ शौक़त न कोई बसर चाहिए।
बस है चादर फटी अध-ढका ठीक हूँ।।
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आमोद बिन्दौरी…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on August 18, 2018 at 5:00pm — 4 Comments
घूंघट - लघुकथा –
"बहू, जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए शादी को और तुमने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिये"।
"माँ जी, यह आप क्या कह रहीं हैं? मैं कुछ समझी नहीं"?
"अरे वाह, चोरी और सीना जोरी"।
"माँ जी, आप मेरी माँ समान हैं। मुझसे कोई गलती हुयी है तो बेशक डाँटिये फटकारिये मगर मेरी गलती तो बताइये"।
"क्या तुम्हारी माँ ने तुम्हें अपने ससुर और जेठ का आदर सम्मान करना नहीं सिखाया"?
"माँ जी, मैं तो पिता जी और बड़े भैया का पूरा सम्मान करती हूँ"।
"तुम्हें क्या…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 18, 2018 at 11:01am — 9 Comments
"लगता है वाक़ई बहुत गड़बड़ हो गई। कुछ ज़्यादा ही नेक साहित्य पढ़ ऊल-जलूल उसूल बना कर उलझन में डाल दिया अपनी इस शख़्सियत को!" एक मुशायरे में शामिल होने के लिए मिर्ज़ा साहिब सूटकेस जमाते हुए पिछले अनुभवों से 'सबक़' सीखने की कोशिश कर रहे थे; आजकल के हालात के हिसाब से अपने कुछ फैसले वे बदलने की सोच रहे थे।
"उस दाढ़ी वाले मुल्लाजी को रोक कर ज़रा उसकी तलाशी तो लो!" उनके पिछले अनुभव की पुनरावृत्ति करते हुए देर रात ग़श्त लगाते हुए एक पुलिस वाले ने अपने साथी को निर्देश दिया था पिछली दफ़े। मिर्ज़ा जी को आवाज़…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 17, 2018 at 5:00pm — 1 Comment
कितनी ही बार वह प्रयास कर चुका था लेकिन झोला संभालने में वह अपने आप को असमर्थ पा रहा था. अपने आप पर उसे अब क्रोध आने लगा, क्या जरुरत थी पैदल आकर सब्जी खरीदने की. स्कूटर रहता तो कम से कम उसपर इसे रख तो लेता लेकिन अब करे? सब्जियों से ठसाठस भरा झोला उठाने में उसे वैसे ही बहुत कठिनाई हो रही थी और उस पर इसकी पट्टी को आज ही टूटना था.
अब घर कैसे जाए, झख मारकर उसने घर पर बेटे को फोन लगाया. बेटा भी मैच देखने में मगन था तो उसने भी टालते हुए कहा "अरे एक रिक्शा ले लीजिये और आ जाईये", और फोन रख…
Added by विनय कुमार on August 17, 2018 at 12:30pm — 4 Comments
पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को नमन
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हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू युक्त अटल।
आज जगत के इस बन्धन को त्याग हो गए मुक्त अटल।।
नैतिकता के मानदंड थे प्रेम राग के अनुरागी
सर्वधर्म समभाव के असली आप थे सच्चे अनुगामी
सकल विश्व में भारत की जो मान-प्रतिष्ठा आज बढ़ी
उसकी गाथा अटल बिहारी के द्वारा परवान चढ़ी
विश्व पटल पर एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है भारत जो
आप…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 16, 2018 at 6:00pm — 10 Comments
"लो! एक और गया! .. बह गया बेचारा!"
"वो देखो! एक तो अब आ गया न!" आशावादी दृष्टिकोण वाले युवक ने तेज बहाव वाले जलप्रपात के किनारे वाली चट्टान पर खड़ी भीड़ से आसमान की ओर देखते हुए कहा। रेस्क्यू ऑपरेशन में भेजे गये इकलौते चॉपर हेलिकॉप्टर से लगभग चालीस लोगों को जलसमाधि से बचाना था। घने काले बादलों के अंधकार और रुक-रुक कर हो रही बारिश को झेलते हुए रेस्क्यू दल-सदस्य 'रस्सी की सीढ़ी' से पार्वती नदी के बीच चट्टान में फंसे चार-पांच युवाओं को ही बचाने में सफल हुए। क़रीब तीन सौ मीटर दूर किनारे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 15, 2018 at 10:30pm — 4 Comments
स्वतंत्रता दिवस पर ३ रचनाएं :
एक चौराहा
लाल बत्ती
एक हाथ में कटोरा
भीख का
एक हाथ में झंडा बेचता
कागज़ का
न भीख मिली
न झंडा बिका
कैसे जलेगा
चूल्हा शाम का
क्या यही अंजाम है
वीरों के बलिदान का
सुशील सरना
.... .... ..... ..... ..... ..... ....
हाँ
हम आज़ाद हैं
अब अंग्रेज़ नहीं
हम पर
हमारे शासन करते हैं
अब हंटर की जगह
लोग
आश्वासनों से
पेट भरते हैं
महंगाई,भ्रष्टाचार
और…
Added by Sushil Sarna on August 15, 2018 at 1:00pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on August 15, 2018 at 9:59am — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
बड़ी उम्मीद थी उनसे वतन को शाद रक्खेंगे ।
खबर क्या थी चमन में वो सितम आबाद रक्खेंगे ।।
है पापी पेट से रिश्ता पकौड़े बेच लेंगे हम।
मगर गद्दारियाँ तेरी हमेशा याद रक्खेंगे ।।
हमारी पीठ पर ख़ंजर चलाकर आप तो साहब ।
नये जुमले से नफ़रत की नई बुनियाद रक्खेंगे ।।
विधेयक शाहबानो सा दिये हैं फख्र से तोहफा ।
लगाकर आग वो कायम यहां उन्माद रक्खेंगे ।।
इलक्शन आ रहा है दाल गल जाए न फिर उनकी।
तरीका…
Added by Naveen Mani Tripathi on August 14, 2018 at 8:06pm — 8 Comments
122 122 122 122
उजाले हमें फिर लुभाने लगे हैं
नया गीत हम आज गाने लगे हैं।1
बढ़े जो अँधेरे, सताने लगे हैं
गये वक्त फिर याद आने लगे हैं।2
कदम से कदम हम मिलाके चले थे
पहुँचने में क्यूँ फिर जमाने लगे हैं? 3
लुटे जालिमों से,यहाँ भी ठगे हम
लुटेरे मसीहा कहाने लगे हैं।4
अदाओं ने मारा बहाने बनाकर,
बसे जो ज़िगर खूं बहाने लगे हैं।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on August 14, 2018 at 7:13pm — 11 Comments
खुदापरस्ती ... (अतुकांत)
मुअम्मे कुछ ऐसे जो हम जीते रहे
पर ज़िन्दगी भर हमसे बयां न हुए
कैसी है तिलिस्मी मुसर्रत की तलाश
मशगूल रखती रही है शब-ओ-रोज़
हसरतें भी देती हैं छलावा…
ContinueAdded by vijay nikore on August 13, 2018 at 9:08pm — 8 Comments
मैं
आस था
विश्वास था
अनभूति का
आभास था
पथ पथरीला प्रीत का
लम्बा और उदास था
जाने किसके हाथ थे
जाने किसका साथ था
गोधूलि की बेला में
अंतिम जीवन खेला में
आहटों की देहरी पर
अटका
मेरा
श्वास था
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 13, 2018 at 6:30pm — 14 Comments
कैसे-कैसे सवालों का जवाब है जिंदगी
कांटों के साथ-साथ गुलाब है जिंदगी
तुम समझ सके न जिसे हम समझ सके
ऐसे मसाएलों का अजाब (दुख/संत्रास) है जिंदगी
शज़र (वृक्ष) की ओट में चांद ठहर गया है
चांदनी कह रही है, माहताब है जिंदगी
मेरे औ चांद के जो दरम्यान था
शज़र का हल्का सा नक़ाब है जिंदगी
तेरी मुस्कुराहटों, रुसवाईयों से अलग
भूख और गुरबतों का असबाब है जिंदगी
तू रहे कहीं, मुझ से जुदा रह नहीं…
ContinueAdded by SudhenduOjha on August 13, 2018 at 10:30am — 3 Comments
भले थोड़ी रुकावट आज है
पतवार के आगे
किनारा भी मिलेगा कल,
हमें मँझधार के आगे.
अमन की क्यारियाँ सींचो,
मुहब्बत को महकने दो.
हृदय में आज अपने तुम,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 12, 2018 at 12:08pm — 10 Comments
"अरे, भाबीजी तुम तो अब भी घर पर ही जमी हो!" मोती ने बड़े ताअज्जुब से कहा - "ऊ दिना तो तुम बड़ी-बड़ी बातें फैंक रईं थीं कि अब नईं रहने इते हाउस-वाइफ़ बनके; बहोत सह लई!"
"तो का अकेलेइ कऊं भग जाते! ई मुटिया को न तो कोनऊ फ़ादर है, न गोडफ़ादर.. कोनऊ लवर या फिरेंड मिलवे को तो सवालइ नईये, मोती बाबू!"
"तुम तो कैरईं थीं कि पड़ोसन के घरे झांक-झांक के दुबले-पतले होवे की कसरतें सीख लईं तुमने और डाइटिंग करवा रये थे मुन्ना भाइसाब तुमें!"
"दुबरो करावे को उनको मकसद दूसरो हतो!…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 11, 2018 at 6:30am — 5 Comments
चक्रव्यूह - लघुकथा –
"ए लड़की, क्या झाँक रही हो की होल से अंदर"?
सरकारी शाँती बालिका कल्याण संस्थान की व्यस्थापक सुमित्रा देवी गोमती को चोटी से पकड़ कर लगभग घसीटते हुए अपने कार्यालय ले गयीं। गोमती पीड़ा से बेचेन होकर छटपटा रही थी। वह लगातार रोये जा रही थी।
“क्या ताक झाँक कर रही थी वहाँ”? सुमित्रा जी ने लाल आँखें दिखाते हुए पुनः वही प्रश्न दोहराया।
"मैडम, मेरी बहिन को उस कमरे में एक सफ़ेद कुर्ता धोती वाला नेताओं जैसा आदमी पहले तो बहला फ़ुसला कर ले जाना चाह रहा था।…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on August 10, 2018 at 12:40pm — 10 Comments
Added by Ajay Kumar Sharma on August 10, 2018 at 10:27am — 12 Comments
कब यहाँ पर प्यार की बातें हुईं
जब हुईं तकरार की बातें हुईं
दो मिनट कचनार की बातें हुईं
फिर अधिकतर खार की बातें हुईं
बाढ़ में जब बह चुका सब, तब कहीं
नाव की, पतवार की बातें हुईं
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 10, 2018 at 9:30am — 10 Comments
उसका सपना था कि दुनिया ख़त्म हो जाए और दुनिया ख़त्म गयी। अब अगर कोई बचा था तो सिर्फ़ वो और उसकी टूटी-फूटी मोहब्बत।
"अब तो इसे मुझसे बात करनी ही पड़ेगी।" खण्डहर बन चुके शहर की वीरान सड़क पर खड़े उस शख़्स ने कहा।
वह उससे बेपनाह मुहब्बत करता था। वह चाहता था कि वो उसे देखे, उसे समझे, उससे बात करे मगर वो हमेशा ही किसी न किसी और को ढूँढ लेती थी। वह इस बात से हमेशा दुःखी रहता था कि उसे छोड़कर वो बाकी सबसे बात करती है मगर उससे नहीं। उसने कहीं पढ़ा था कि मनुष्य सामाजिक प्राणी है।…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on August 10, 2018 at 8:30am — 10 Comments
आज फिर अब्बू सुबह सुबह शुरू हो गए थे, “तुझे फौजी ही बनना चाहिए, और कुछ नहीं”.
दरअसल आज फिर अखबार के पहले पन्ने पर छपा था कि दहशतगर्दों से लड़ाई में कई फौजी शहीद हो गए और उनकी अन्त्येष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ की जाएगी.
पिछले कई दिन से वह अपने प्ले के रिहर्सल में लगा हुआ था. वर्तमान राजनीति और धर्म के घालमेल के दुष्परिणाम पर आधारित उसका प्ले, जिसे खुद उसी ने लिखा था. और अपने कुछ रंगकर्मी दोस्तों के साथ आने वाले स्वतन्त्रता दिवस पर लोगों के सामने प्रदर्शित करने की पुरजोर कोशिश…
Added by विनय कुमार on August 9, 2018 at 1:00pm — 8 Comments
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