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Umesh katara's Blog (67)

ग़ज़ल----क़भी सोचा नहीं मैंने ,तेरे रुख़सार से आगे

1222 1222 1222 1222

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कोई चाहत नहीं मेरी ,तेरे इक़ प्यार से आगे

क़भी सोचा नहीं मैंने ,तेरे रुख़सार से आगे

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क़भी का जीत लेता मैं,ज़माने को मेरे दम पर

मग़र वो जीत मिलनी थी,तेरी इक हार से आगे

---------

हरिक ख़्वाहिश अधूरी है,इन्हे करदे मुकम्मल तू

क़भी तो आज़मा ले तू ,मुझे इनकार से आगे

---------

जमाने की हरिक़ खुशियाँ ,तेरे कदमों तले रख़ दूँ 

तेरा हर ख़्वाब हो जाऊँ,तेरे इक़रार से…

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Added by umesh katara on December 31, 2014 at 8:20pm — 9 Comments

ग़ज़ल----उमेश कटारा ---बिचाराधीन है मेरा मुकदमा भी अदालत में

फँसा इन्साफ है मेरा गुनाहों की सियासत में 

विचाराधीन है मेरा मुकदमा भी अदालत में

-----

लिये हथियार हाथों में,चली थी मज़हबी आँधी

ज़ला परिवार था मेरा , कभी शहरे क़यामत में

-----

अख़रता है सियासत को ,मेरा इन्सान हो जाना 

हुआ बरबाद था मैं भी, क़भी सच की वक़ालत में

-----

कहीं मन्दिर कोई तोड़ा ,कहीं मस्ज़िद कोई तोड़ी

फँसा है आदमी देखो,न जाने किस इबादत में

-----

दरिन्दे आज बाहर हैं,मेरी तारीख पड़ती है

खडे मी-लॉर्ड हैं देखो ,गुनाहों की…

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Added by umesh katara on December 25, 2014 at 11:00am — 20 Comments

ग़ज़ल-उमेश कटारा

फँस गया हूँ आफ़तों में
आज़ हूँ मैं पागलों में

क्या सुँकू तूने कमाया
क्या मिला है फ़ासलों में

मज़हबी आतंक से अब
आदमी है दहशतों में

सब ग़िले शिक़वे भुलादो
क्या रख़ा है रतज़गों में 

ख़ो दिये हैं घर हजारों
जिन्द़गी ने हादसों में

मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा

Added by umesh katara on December 21, 2014 at 10:00am — 11 Comments

ग़ज़ल---उमेश कटारा

मुहब्बत का ज़ला हूँ मैं,पिघलता ही रहा हूँ मैं

ख़ुदा से माँगकर तुझको,भटकता ही रहा हूँ मैं

................

समन्दर के किनारों ने समेटा है बहुत मुझको

मगर आँखों की कोरों से निकलता ही रहा हूँ मैं

................

अगर सच बोलता हूँ तो,समझते हैं मुझे पागल

मगर सच्चाई को लेकर ,उबलता ही रहा हूँ मैं

................

सितारों की कसम ले ले,नजारों की कसम ले ले

तेरे दीदार की ख़ातिर मचलता ही रहा हूँ मैं

.................

मेरी किस्मत के सौदागर ,मुझे…

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Added by umesh katara on December 6, 2014 at 10:00am — 21 Comments

ग़ज़ल--उमेश कटारा

क्या पता किस ख़ुदा ने बनायी मोहब्बत

पत्थरों से मुझे फिर करायी मोहब्बत



उसकी आँखों में सारा जहाँ मिल गया था

उसने हँसके ज़रा सा ज़तायी मोहब्बत



वो मेरा हा गया ,हो गया मैं भी उसका

हमने बर्षों तलक फिर निभायी मोहब्बत



रोज मिलने लगे ,सिलसिला चल पड़ा था

चाँद तारों से मैंने सजायी मोहब्बत



पर खुदा हमसे नाराज रहने लगा तो

दिलजलों की तरह फिर जलायी मोहब्बत



हो गये हम दिवानों से मशहूर दोनों

दुश्मनों ने बहुत फिर सतायी मोहब्बत



ख़ाक में…

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Added by umesh katara on December 2, 2014 at 7:37pm — 15 Comments

तब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी

212 212 212 2122



जब तलक इस जहाँ में हवायें रहेंगी

तेरे चेहरे पे मेरी निगाहें रहेंगी



कोई पागल कहे या कहे फिर दिवाना

बस तेरे वास्ते ही व़फायें रहेंगी



चाहता ही नहीं मैं तुझे भूलजाना 

मैं रहूँ न रहूँ मेरी चाहें रहेंगी



हर कदम पर बुलन्दी कदम चूमे तेरे

इस तरह की मेरी सब दुआयें रहेंगी



अक्ल के शहर में आ गया एक पागल

कब तलक बेगुनाह को सजायें रहेंगी



आजकल बिक रही दौलतों से बहारें

बस अमीरें के घर में फिजायें…

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Added by umesh katara on November 29, 2014 at 10:30am — 8 Comments

ग़ज़ल-----मैं समन्दर को आँखों में भरके चला हूँ

212 212 212 2122

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मुद्दतों से पलक बन्द करके चला हूँ

मैं समन्दर को आँखों में भरके चला हूँ

....

जा बसा पत्थरों में हुआ वो भी पत्थर

मैं फकीरों के जैसे बे-घरके चला हूँ

....

कैसे कहदूँ मेरे यार को बेव़फा मैं

जिसकी तस्वीर को दिल में धरके चला हूँ

....

ले गया वो मेरी साँस भी साथ अपने

जिन्दगी भर बिना साँस मरके चला हूँ

....

ले न जाये छुड़ाके कहीं याद अपनी

इसलिये उम्र भर ही मैं ड़रके चला…

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Added by umesh katara on November 25, 2014 at 8:18am — 22 Comments

ग़ज़ल -उमेश कटारा------नाम जिसके मेरी जिन्दगानी लिखी है

212 212 212 212
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नाम जिसके मेरी जिन्दगानी लिखी है
कतरे कतरे में वो ही दिवानी लिखी है

आखिरी साँस तक आह भरता रहूँ मैं
इस तरह से ये उसने कहानी लिखी है

मैं बदलता रहा उम्र भर आशियाँ
फिर भी तस्वीर दिल में पुरानी लिखी है

कैसे भूलूँ उसे मै बताओ मुझे
नाम जिसके ये मेरी जवानी लिखी हैे

याद करता रहूँ मैं हमेशा उसे
इसलिये आँसुओं की निशानी लिखी है

मौलिक व अप्रकाशित 
उमेश कटारा

Added by umesh katara on November 14, 2014 at 9:30pm — 14 Comments

ग़ज़ल-मुद्दतों से वो तेरी तस्वीर धुँधलाती नहीं

2122 2122 2122 212

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तंग सी तेरी गली की याद वो जाती नहीं 

मुद्दतों से वो तेरी तस्वीर धुँधलाती नहीं

..

बे-जबाबी हो चुके हैं ला-ज़बाबी ख़त मेरे 

क्या मेरी चिट्ठी तेरे अब दिल को धड़काती नहीं

..

खत्म होने को चला है सिलसिला तेरा मेरा 

बेव़फाई पर तेरी क्यों आके पछताती नहीं

..

झूठ से तकदीर लिखना खूब आता है तुझे

लूटकर तू दिल किसी का लौट कर आती नहीं

..

खौफ़ हावी हो चुका है आज तेरा शहर में

कत्ल करके भी तेरी…

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Added by umesh katara on November 11, 2014 at 6:45pm — 8 Comments

उमेश कटारा ग़ज़ल --------चाँद ने मुस्कराकर जलाया बहुत

212 212 212 212

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एक किस्सा उसी ने बनाया मुझे

फिर तो पूरे शह़र ने ही गाया मुझे



बात आँखों से आँखों ने छेडी ज़रा

रात को छत पे उसने बुलाया मुझे



चाँद शामिल रहा फिर मुलाकात में

प्यार का गीत उसने सुनाया मुझे



रात चढ़ती गयी बात बढ़ती गयी

उसने बाहों में भरके सुलाया मुझे



मिल गये दिल, बदन से बदन मिल गये

पंछियों की चहक ने ज़गाया मुझे



सुब्ह होने से पहले दिखा आयना

खुद हक़ीक़त…

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Added by umesh katara on November 8, 2014 at 10:00am — 22 Comments

ग़ज़ल------जुबाँ ग़र जह्र जो उगले जुबाँ को काट डालेंगे

कोई भी लफ्ज आगे से नहीं सच का निकालेंगे

जुबाँ गर जह्र जो उगले जुबाँ को काट डालेंगे



चलो तनहाई को लेकर यहाँ से दूर चलते हैं

ग़मे दिल के सहारे से नयी दुनिया बसालेंगे



मग़र तरक़ीब तो कोई बतादे बेव़फा हमको

तेरी हो याद ज़ोरों पर भला कैसे सँभालेंगे

कभी भी जुर्म के आगे मेरा सर झुक नहीं सकता

अना के वास्ते अपनी उसी दिन सर कटालेंगे



लगा है देश अब घुटने सियासत कायदे भूली

कभी आवाम के आँसू सियासत को डुबालेंगे



मौलिक व…

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Added by umesh katara on November 5, 2014 at 10:00am — 13 Comments

सितारों की कसम उस चाँद को भूला नहीं अब तक--ग़ज़ल उमेश कटारा

1222 1222 1222 1222



मुझे ख़त भेज़ता है वो ,कभी मेरा हुआ था जो

गया था छोड़कर मुझको ,मेरा बनकर ख़ुदा था जो



सितारों की कसम उस चाँद को भूला नहीं अब तक

मेरी तन्हा भरी उस रात में सँग सँग ज़गा था जो



परेशाँ तो नहीं होगा,अकेला तो नहीं होगा

मुझे है फिक्र क्यों उसकी, नहीं मेरा हुआ था जो



कभी दिन के उज़ाले में चला था साथ वो मेरे

मगर फिर छोड़कर मुझको अँधेरे में गया था जो



जमाने को शिकायत भी मेरे इन आँसुओं से है

बहुत लम्बा चला…

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Added by umesh katara on November 1, 2014 at 8:30pm — 6 Comments

उमेश कटारा-ग़ज़ल

मेरे हक़ में,खि़लाफ़त में, कोई तू फैसला तो दे

सज़ा-ऐ-मौत ही दे दे ,मेरे मुन्सिफ़ सज़ा तो दे



हुनर तेरा तू ही जाने ,बसाकर घर उज़ाडा है

लगाकर आग़ हाथों से,मेरे घर को ज़ला तो दे



व़फादारी तेरी आँखों में अब ढ़ूँढ़े नहीं मिलती

नज़र गद्दार है तेरी ,ज़रा इसको झुका तो दे



मेरे ही वास्ते तूने सज़ाकर जहर का प्याला

रख़ा है घोलकर कब से जरा मुझको पिला तो दे



चला में छोड़ के दुनिया मुबारक़ हो जहाँ तुझको

तसल्ली मिल गयी होगी, जरा अब मुस्क़रा तो…

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Added by umesh katara on October 31, 2014 at 10:03pm — 11 Comments

जिक्र तेरा भी करूँ,पर कौनसे हक़ से

लोग हैं सब पत्थरों के आजकल मैं भी
बार करते ख़न्जरों के आजकल मैं भी

लुट गयीं अब तो बहारें, सब शज़र सूखे
गीत लिखता बन्जरों के आजकल मैं भी

मुफलिसी देखी कभी फुटपाथ पर रोती 
लोग देखे बे-घरों के आजकल मैं भी

दर्द को गाते हुये देखा फकीरों को
हो गये जो दर-दरों के आजकल मैं भी

आसमाँ छूने चला हूँ जिद़ पुरानी है
उड़ रहा हूँ बिन परों के आजकल मैं भी
 
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित 


Added by umesh katara on October 30, 2014 at 9:30am — 15 Comments

ग़ज़ल --एक तू क्या मिला मैं ख़दा हो गया

212 212 212 212

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इश्क़ मैंने किया दिलज़ला हो गया

उम्र भर के लिये मसख़रा हो गया



कुछ ग़लत फहमियाँ इस क़दर बढ़ गयीं

एक तू क्या मिला मैं ख़ुदा हो गया



चाँद भी सो गया रात तन्हा कटी 

लुट गयी महफ़िलें सब ये क्या हो गया



एक लौ दिख रही थी कहीं दूर फिर

देख़ते देख़ते रतज़गा हो गया



दर्द बढ़ता गया आँख बहती गयीं

आँसुओं का समन्दर ख़ड़ा हो गया



आसमाँ फट पडा जब ये उसने कहा

हाथ छोड़ो मेरा मैं बड़ा हो…

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Added by umesh katara on October 6, 2014 at 5:40pm — 3 Comments

गज़ल

कभी का मर चुका हूँ मैं महज साँसें ही चलती है

मेरी पथरा गयी आँखें मगर फिर भी बरसती हैं

के अक्सर खींच लाती है मुझे लहरों की ये मस्ती

मगर मँझधार में लाकर ये लहरें क्यों मचलती हैं

बहुत है दूर वो मुझसे नहीं आना कभी उसको

मगर दीदार को आँखें न जाने क्यों तरसती हैं

कहीं गुमनाम हो जाऊँ ये शहरा छोड कर मैं भी

मगर दुनियाँ तेरे जैसी तेरे जैसी ही बस्ती हैं

मेरा ये बावफा होना किसी को रास ना आया

सभी की आदतें आपस में…

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Added by umesh katara on June 21, 2014 at 7:00pm — 4 Comments

गजल -

फिर किया है कत्ल उसने इश्तिहार है

शुक्र है वो हर गुनाह का जानकार है

कत्ल वो हथियार से करता नहीं कभी

कत्ल करने की अदा कजरे की धार है

अब वफादारी निभाता कौन है यहाँ

अब मुहब्बत हो गयी नौकाबिहार है

आजकल लगने लगा हैं वो कुछ नया नया

फिर हुआ शायद कोई उसका शिकार है

झूठ भारी हो गया सच के मुकाबले

आजकल सच हारता क्यों बार बार है

मार डालें ना मुझे बेचैनियाँ मेरी

दिल मेरा ये सोचकर अब सौगंवार…

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Added by umesh katara on June 11, 2014 at 2:00pm — 19 Comments

गजल-पीठ पर वो बार करने का हुनर

आँसुओं से हम गजल लिखते रहे

कागजों में दर्द बन बिकते रहे

वो पराये हो चुके थे अब तलक

और हम अपना समझ झुकते रहे

पीठ पर वो बार करने का हुनर

उम्र भर हम याद ही करते रहे

हद से ज्यादा हम हुये जब गमजदा 

बारबा वो खत तेरा पढ़ते रहे 

तू गया कितने जलाकर आशना

आशना वो आज तक जलते रहे

हम समझ कर आदमी को आदमी

साथ हम शैतान के चलते रहे

उमेश कटारा

मौलिक व अप्रकाशित…

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Added by umesh katara on June 7, 2014 at 3:00pm — 14 Comments

निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से

1212 2212   22  1212

भले नहीं रिश्ता तेरा अब मेरे हाल से

निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से

फकीर जैसा हो गया हूँ तेरे इश्क में

बचा नहीं अब तक कोई भी हुस्न जाल से

कोई नहीं क्या हद कोई इस इन्तजार की

गुजर रहे है दिन महीने जैसे साल से

रकीब की महफिल को जब तूने सजा दिया

तो हो गया सबको अचम्भा इस कमाल से

कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में

जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से

उमेश…

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Added by umesh katara on May 4, 2014 at 12:40pm — 10 Comments

कविता--मैं आज भी खडा हूँ उसी मोड़ पर

कभी जिस जगह हम मिले थे

जहाँ फूल मुहब्बत के खिले थे

मैं आज भी खड़ा हूँ उसी मोड़ पर

जहाँ तुम गये थे मुझे छोडकर

हँसी से कोई ऱिश्ता नहीं है

खुशी से दूर तक वास्ता नहीं है

जमाने की कितनी परवाह थी मुझे

अब जमाने की भी कोई परवाह नहीं है

गुजरते हैं लोग इस चौरेहे से

तेरी चर्चा करते हुये

मैंने बहुत को देखा है 

तेरे लिये आह भरते हुये

लेकिन उनकी आह भरने पर

मुझे तरस जरूर आता है

किआज भी हर कोई शख्स

तुझे…

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Added by umesh katara on April 29, 2014 at 8:05am — 15 Comments

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