Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 16, 2016 at 1:55pm — 2 Comments
शिक्षा की जब ज्योति जले, विकसित होवे लोग।
समाज को जब पंख मिले, खुशियाँ भोगें लोग ॥
भूख गरीबी जीत के, निर्भर हुआ अब देश ।
बोए बीज अब प्रेम के, प्रगति कर चला देश ॥
गलत इरादे दुश्मन के, बढ़ा रहे अब क्लेश ।
हम रखवाले वतन के, जग को दे दो संदेश ॥
परचम ऊंचा हो तभी, फैले चारों ओर ।
आन मान सम्मान सभी, करें साथ गठजोर ॥
करुणा सबके मन जगे, कोई दुखी न होय ।
हृदय से सब गले मिले, नफरत दूरी होय ॥
आतंकवाद के कष्ट को, जल्दी करेगे…
ContinueAdded by Ram Ashery on January 15, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
सुजाता इस रोज़ रोज़ के झगड़ों से तंग आ चुकी थीI शादी के लगभग तीन साल बाद भी हर काम में सास की टोका टाकी अब उसकी बर्दाश्त से बाहर होती जा रही थीI छोटी-छोटी बात पर उसका अपमान करना, रसोई और सफाई को लेकर गलतियाँ निकालना, बात बात पर ताने देने सास का हर रोज़ का काम बन चुका थाI किन्तु अब उसने भी पक्का निश्चय कर लिया था कि वह भी सास को ईंट का जवाब पत्थर से देगीI आज जब वह सफाई कर रही थी तो हर रोज़ का सिलसिला फिर से शुरू हो गया I
"इतनी धूल काहे उड़ा रही है? ज़रा ध्यान से मार झाड़ूI तेरी माँ ने…
Added by योगराज प्रभाकर on January 15, 2016 at 3:30pm — 8 Comments
दाँस्ता- आज के इंसान की
मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो
स्वार्थी चाहे दम्भी बोलो
अहंकारी, कुकर्मी बोलो
जो भी बोलो सोच के बोलो
मेरा व्यक्तित्व क्या है बोलो
स्वार्थसिद्धि की, ताक की में रहता
क्षणभर की ना देरी करता
भिन्न भिन्न अपने वेश बदल के
जन भावना की बातें करता
कौन हूँ मैं, तुम कुछ तो बोलो
जो भी बोलो सोच के बोलो
रोते को, मैं खूब…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2016 at 9:55am — 2 Comments
दकियानूस - ( लघुकथा ) –
मनोहर की मृत्यु को आज तेरह दिन हो गये थे!उसके कर्मों का लेखा जोखा देख कर उसे स्वर्ग में ही एक सीट मिल गयी थी!यमराज़ उसकी डायरी देख बेहद प्रभावित थे!यमराज़ ने मनोहर की पीठ थपथपा कर शाबाशी दे डाली!मनोहर रोमांचित हो गया!यमराज़ का अच्छा मूड देख कर मनोहर ने एक इच्छा ज़ाहिर कर दी,
"आज मेरी तेरहवीं हो रही होगी,आपकी इज़ाज़त हो तो क्या मैं एक बार उस मौके को देख कर आ सकता हूं, थोडी तसल्ली कर लेना चाहता हूं कि कितने ज़ोर शोर से मेरा तेरहवॉ हो रहा है! "!
"देख भाई…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 14, 2016 at 6:43pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 14, 2016 at 2:45pm — 10 Comments
आज के अखबार में छपी एक छोटी सी खबर ने उसे बेचैन कर रखा था| खबर थी कि ज़ल्लाद नहीं होने से कई खूंख्वार सज़ायाफ्ता फाँसी पर नहीं चढ़ाये जा रहे| उसे पिछली कई घटनाएँ याद आने लगीं, उसके शहर में घटे उस जघन्य बलात्कार के अपराध में मौत की सजा पाये अपराधी अभी भी कालकोठरी में पड़े थे, कुछ आतंकवादी भी जिन्हें बहुत पहले ही इस दुनियाँ से चले जाना चाहिए था, वो भी किसी अप्रत्याशित रिहाई की आस लगाये पड़े हुए थे|
अचानक उसे उस ज़ल्लाद का चैहरा भी याद आ गया जिसे उसने कभी अखबार में देखा था और उसके चेहरे को देखकर…
Added by विनय कुमार on January 14, 2016 at 2:41pm — 9 Comments
2122 2122 2122 212
हमने किस किस से न पूछा ज़िन्दगी तेरा पता ।
हमको ले आया ग़मों में ऐ ख़ुशी तेरा पता ।
ऐ मुहब्बत दूर मुझसे अब न तू जा पाएगी ,
दे रहा है अब मुझे ये दर्द भी तेरा पता ।
हाथों में दीपक बुझा था दूर तारे थे बहुत ,
जुगनुओं से हमने पूछा रौशनी तेरा पता ।
माना ढलती उम्र में चाहत भी तेरी ढल गयी ,
ढूंढता है इक दीवाना आज भी तेरा पता ।
उनसे नज़रें क्या मिलीं दिल शायराना हो गया ,
आशिकी…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on January 14, 2016 at 2:00pm — 17 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on January 13, 2016 at 9:06pm — 4 Comments
लेखक उसके हर रूप पर मोहित था, इसलिये प्रतिदिन उसका पीछा कर उस पर एक पुस्तक लिख रहा था| आज वो पुस्तक पूरी करने जा रहा था, उसने पहला पन्ना खोला, जिस पर लिखा था, "आज मैनें उसे कछुए के रूप में देखा, वो अपने खोल में घुस कर सो रहा था"
फिर उसने अगला पन्ना खोला, उस पर लिखा था, "आज वो सियार के रूप में था, एक के पीछे एक सभी आँखें बंद कर चिल्ला रहे थे"
और तीसरे पन्ने पर लिखा था, "आज…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 13, 2016 at 5:46pm — 6 Comments
सुबह उठने के बाद रमेश की पत्नी ने कहा कि क्या दूध वाला चला जायेगा तभी जाओगे। यह सुनते ही वह तुरन्त उठ कर दूध लाने के लिए तैयार होकर जब वह बाहर आया तो अभी प्रातः काल की सुहानी हवा चल रही थी। वह धीरे-धीरे चलते हुए सामने के दूध वाले के पास पहुंचा जहां कि दूध के बर्तन लिए काफी संख्या में मुहल्ले वाले उपस्थित थे। भैंसे दूही जा रही थी। पास ही चैकी पर दूध की बड़ी सी बाल्टी रखी थी। जिसमें से ग्वाला दूध नाप कर दे र हा था।
रमेश के प हुंचते ही माना काकी ने पूछा कि रमेश देर से क्यो आये यहां तो…
Added by indravidyavachaspatitiwari on January 13, 2016 at 4:33pm — 2 Comments
सुना तो यह गया है, वह पत्थर की देवी थी। पत्थर की मूर्ति। संगमरमर का तराशा हुआ बदन। एक - एक नैन नक्श, बेहद खूबसूरती से तराशे हुए। मीन जैसी ऑखें ,सुराहीदार गर्दन, सेब से गाल। गुलाब से भी गुलाबी होठ। पतली कमर। बेहद खूबसूरत देह यष्टि। जो भी देखता उस पत्थर की मूरत को देखता ही रह जाता। लोग उस मूरत की तारीफ करते नही अघाते थे। सभी उसकी खूबसूरती के कद्रदान थे। कोई ग़ज़ल लिखता कोई कविता लिखता। मगर इससे क्या। . .. ? वह तो एक मूर्ति भर थी। पत्थर की मूर्ति।
सुना तो यह भी गया था, कि वह हमेसा से…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on January 13, 2016 at 1:00pm — 7 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 13, 2016 at 11:20am — 11 Comments
गुल्लक - (लघुकथा ) –
"क्या कमला,तूने तो परेशान करके रख दिया!आज तीन दिन बाद शक्ल दिखाई है"!
"मैम साब, मैं क्या करूं,आप ही बताओ,मेरा बेटा अस्पताल में भर्ती है,मुझे दो हज़ार रुपये चाहिये"!
"कमला,तू पहले ही दो महीने की पगार एड्वांस ले चुकी है"!
" एक एक पैसा चुका दूंगी ,मैम साब"!
"कमला, इस बार तो तू मुझे माफ़ कर दे, मेरे पास नहीं है इतने पैसे"!
सुनीता की सात साल की बेटी मिनी यह वार्तालाप सुनकर अपने कमरे में से बाहर निकली,
"कमला काकी, यह लो सत्रह सौ…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 13, 2016 at 8:47am — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 12, 2016 at 10:50pm — 8 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
माँगते इंसाफ़ किस से बिस्मिलों के वास्ते
अदलिया थी दिल बिछाए क़ातिलों के वास्ते.
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रास्ते आपस में उलझे, मंजिलें पिन्हा हुईं,
रास्ते गरचे बने थे मंज़िलों के वास्ते.
.
साहिलों पर कश्तियाँ महफूज़ रहती हैं मगर
कश्तियाँ कब थी बनाईं साहिलों के वास्ते.
.
इक निगाहे-शोख से हम ने लड़ाई थी नज़र
चंद क़िस्से छोड़ आए महफ़िलों के वास्ते.
.
कुछ तेरा ग़म और कुछ अग्यार की तंज़-ओ-निगाह
और भी आसाँ हुए हम मुश्किलों के…
Added by Nilesh Shevgaonkar on January 12, 2016 at 7:30am — 12 Comments
1222 1222 1222
बजाहिर जो लगे हैं ग़मगुसार अपना
छिपा लाये हैं फूलों में वो ख़ार अपना
बहुत गर्मी यहाँ मौसम ने दी हमको
जिधर ग़ुज़रे उधर बांटे बुखार अपना
जो लूटे हैं वो वापस क्या हमें देंगे
चलो हम ही कहीं खोजें करार अपना
ज़रा रुकना, उन्हें गाली तो दे आयें
नहीं अच्छा रहे बाक़ी उधार अपना
बुढ़ापा बोलता तो है , सहारा ले
मगर अब भी उठाता हूँ,मैं भार अपना
मै सीरत…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 12, 2016 at 7:30am — 19 Comments
नेताजी – ( लघुकथा )
"दादीजी, आज सारे गॉव की गलियों में सफ़ाई और पानी का छिड्काव हो रहा है!पंचायत घर में भी लाउड्स्पीकर बज रहा है!लोग वहां फ़ूलों की मालायें लिये खडे हैं!कोई नेताजी आ रहे हैं क्या"!
"हां मेरी बच्ची, भविष्य के नेताजी आ रहे हैं"!
“भविष्य के नेताजी, दादीजी, मैं कुछ समझी नहीं"!
"प्रधान जी का बेटा आरहा है शहर से,इस बार वही प्रधानी का चुनाव लडेगा, इसलिये इतना प्रचार किया जा रहा है"!
"यह तो अच्छी बात है,नया खून आगे आयेगा तो विकास तेज़…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 11, 2016 at 10:38am — 20 Comments
ए सी केब से उतर कर कैमरा,जूम लैंस,बाईनाकुलर सम्हाल भरतपुर बर्ड सेंचुरी में दस दिन बिताने का प्रोग्राम..
"यह क्या भाई सा ? कोई चहल पहल नहीं, बंद है क्या?"
"नहीं तो लोग आते है,दो घंटे में देख कर चले जाते हैं।"
"दो घंटे में तो अंदर झील तक ही नहीं पहुंच पायेंगे।"
"कहां की झील,सब सूखा पड़ा है।"
"यें... कहाँ गए वे दरख्त, घास के हरे भरे मैदान, झील पानी और कलरव।"
"सब झुलस गऐ, सूख गऐ, पिछली साल जो पंछी बचे थे, गर्मी में पेड़ों से पके फलों की तरह टपक गऐ, साइबेरियन क्रेन…
Added by Pawan Jain on January 11, 2016 at 8:30am — 8 Comments
Added by Samar kabeer on January 11, 2016 at 7:52am — 28 Comments
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