For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)


सदस्य कार्यकारिणी
फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है (फिलब्दीह ग़ज़ल 'राज')

बेवजह बात जिरह करके बढाता क्यूँ है                                                                                                                             एक मासूम पे इल्जाम लगाता क्यूँ है

 

खोल देती हैं सभी राज पनीली आँखें                                                                                                                               फिर जमाने से बशर दर्द छुपाता क्यूँ है

 …

Continue

Added by rajesh kumari on January 24, 2016 at 6:03pm — 7 Comments

सम्मान हो इनाम(lलघुकथा)

मिन्दो बस्ती की अकेली लडकी, जिस ने सिलाई कड़ाई के काम में सिखलाई प्राप्त कर घर में काम शुरू किया, मगर उतना काम न मिलता कि गुजरा हो सके, तभी उसने रविन्द्र की फैक्टरी में काम पर रखने के लिए विनती की, तो रविन्द्र ने उस से कुछ बातें की और उसे सिलाई के काम पर रख लिया I बाप तो बचपन में ही उन्हें छोड़ कर कहीं चला गया था I शुरू में तो उसे उनके मुताबिक काम करने व् समझने में समस्या आई, मगर जल्दी ही उसने खुद को बाकी लोगों के साथ अडजस्ट कर लिया और धीरे धीरे उसकी काम में दिलचस्पी बढने लगी तो उस ने…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on January 24, 2016 at 2:00pm — 4 Comments

//माँ भारती पुकारे// (सार छंद)

जागो जागो वीर सपूतो. माँ भारती पुकारे ।

आतंकी बनकर बैरी फिर. छुपछुप है ललकारे ।।

उठो जवानो जाकर देखो. छुपे शत्रु पहचानो ।

मिले जहाँ पर कायर पापी. बैरी अपना मानो ।।

काट काट मस्तक बैरी के. हवन कुण्ड पर डालो।

जयहिन्द मंत्र उद्घोष करो. जीवन यश तुम पा लो ।।

जिनके मन राष्ट्र प्रेम ना हो. बैरी दल के साथी ।

स्वार्थी हो जो चलते रहते. जैसे पागल हाधी ।।

छद्म धर्म जो पाले बैठे . जन्नत के ले चाहत ।

धरती को जो दोजक करते. उनके बनो महावत ।।

बैरी के तुम छाती… Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on January 24, 2016 at 10:14am — 4 Comments

उल्टी गंगा (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"मम्मा, छोड़ो भी अब यह सब! देशभक्त सैनिकों की तस्वीरें दिखाने, उनकी दिलेरी के किस्से सुनाने और देशभक्ति गीत और भाषण सुनाने से भी मुझ पर कोई असर नहीं पड़ने वाला!" -आदित्य ने ध्वज फहराते सैनिक पिता की तस्वीर एक तरफ रखकर अपनी माँ से कहा।



"तो तुम अपने पापा और दादा जी के सपने पूरे नहीं करोगे?"



"नहीं, मुझे नहीं रही कोई रुचि सैनिक जीवन में! क्या मिला है मुझे? न दादा जी का प्यार, न पापा का और न ही बड़े भाई का? सैनिकों की शहादत और सम्मानों से उनके परिजनों को प्यार नहीं, सिर्फ कुछ… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 23, 2016 at 12:29pm — 7 Comments

आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है / गजल

आ जाओ कि शाखों पे बहार आने लगी है

इक आस शगुन बन के मेरे दिल से उठी है



ये रात जुदाई की है लम्बी मेरे महबूब

हर एक घड़ी इसकी मेरी जाँ पे बनी है



इक जुर्म-ए- मोहब्बत में जमाना है मुख़ालिफ़

ये कैसी सज़ा है कि जो क़िस्मत में लिखी है



आँखें मेरी खुशीयों के कई जाम उंडले साहिब

बस फिक्र है इतनी ये गली तेरी गली है



शबनम ने भिगोया है समाँ चारो तरफ से

बाँहों में जो महबूब के इक रात मिली है



बातों में वफ़ादारी की छलका दे… Continue

Added by kanta roy on January 23, 2016 at 10:34am — 7 Comments

देखो कानून की परिभाषा कैसे बदल जाती है,

देखो कानून की परिभाषा कैसे बदल जाती है,

नेताओं को बेल और गरीब को जेल हो जाती है ।

यहाँ धनवानों का  सारा ऋण माफ हो जाता है,

किसान की ज़िंदगी ऋण में ही साफ हो जाती है ।

किसी बात पर यूं ही कभी इतबार मत करना,

घट जाए कोई घटना तो तकरार मत करना ।

विश्वास और धोखा एक ही सिक्के दो पहलू है,

एक जीने का मकसद और दूसरा छीन लेता है ।

चंदा और रोशनी एक दूजे के संग में घूम रहे ,

पर दिन में  एक दूसरे के विरुद्ध जंग लड़ रहे ।

गरीब का आरक्षण कुछ…

Continue

Added by Ram Ashery on January 22, 2016 at 10:30pm — 1 Comment

रूक जा ओ कामिनी

रूक जा ओ कामिनी , मृदुला सयानी

हम है पियासे राधे , पिला दे पानी ।



चाँदनी गमकत प्रिय , तोहर नव देह

निवेदन मोरा मानू , जोरू सिनेह ।



सुनु हे माधव प्रिय , आजु एक बात

मोन में राखह सखा ,मोन केर बात ।



हम धनि सुबधि , चेतन परनारी

प्रेम भरल बतिया , लागे मोरा गारी ।



तोहे सद्पुरूष , वचन दीजे मोरे

मान मोरा राखह , शपथ सिनेहे ।



हे गुणवंती राधे , चलू यमुना किनारे

तोहर नाम बंसी , लय लय पूकारे ।



गजमोती माँग तोहर , यही… Continue

Added by kanta roy on January 22, 2016 at 9:51pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आग की रस्मो-राह पानी से- शिज्जु शकूर

2122 1212 22/112



आग की रस्मो-राह पानी से

खूब निकली ख़बर कहानी से



शहर का शहर जल गया साहिब

बोलिए किसकी मेह्रबानी से



बात कुछ और है, वगरना इश्क़!

वो भी इक मुद्दई-ए-जानी से?



ध्यान मुद्दों से क्यों भटकने लगा

ये न उम्मीद थी जवानी से



दिख रहा है असर उपेक्षा का

रंग धूसर हुआ है धानी से



तेरी बातों के हैं कई मतलब

मा’ने क्या निकले तरज़ुमानी से



मीडिया जैसे चल रही है ‘शकूर’

बस हरे और जाफ़रानी… Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on January 21, 2016 at 11:13pm — 13 Comments

हो जाते हैं हाथ दूर- गीत

(आदरणीय सौरभ पाण्डेय के पितृ-शोक  पर एक हार्दिक  संवेदना )

पहले संदर्भ प्रसंग सहित इस जगती में परिभाषित कर 

फिर हो जाते हैं हाथ दूर जीवन का दीप प्रकाशित कर

.

देते  हैं  वे  सन्देश  हमें

हर दीपक को बुझ जाना है

पर ज्योति-शेष रहते-रहते

शत-शत नव दीप जलाना है

फैलायी जो रेशमी रश्मि उसको अब रंग-विलासित कर

पहले संदर्भ प्रसंग सहित......

.

है  सहज  रोप  देना पादप

तप है उसको जीवित रखना

करना…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 21, 2016 at 10:00pm — 4 Comments

किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी (एक ग़ज़ल एक प्रयास ).....

किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी (एक ग़ज़ल एक प्रयास )

२१२ x ४

रदीफ़=हो गयी

काफ़िया=आ

किस लिए वो हसीं बेवफा हो गयी

जान हम से हमारी जुदा हो गयी !!१!!

अब गिला आसमां से नहीं है हमें

बे-असर अब हमारी दुआ हो गयी !!२!!

हाल अपना सुनायें किसे हम भला

लो मुहब्बत हमारी खता हो गयी !!३!!

रात भर करवटों में वो लिपटी रही

याद उनकी हमारी क़ज़ा हो गयी !!४!!



दिल भला या बुरा समझता है कहाँ

ये मुहब्बत सुल्ह की रज़ा हो गयी…

Continue

Added by Sushil Sarna on January 21, 2016 at 8:57pm — 6 Comments

एक फ़ौज़ी की मौत – ( लघुकथा ) –

एक फ़ौज़ी की मौत – ( लघुकथा ) –

 "क्या हुआ नत्थी राम, किस बात पर कर ली आत्म हत्या तुम्हारे लडके ने,कोई चिट्ठी छोडी क्या"!

"थानेदार साब,वह आत्म हत्या नहीं कर सकता,वह तो एक फ़ौज़ी था,उसे मारा गया है"!

"पर उसका शरीर तो गॉव के बाहर पेड पर लटका मिला था"!

"यह सब साज़िश है,उसे मार कर लटका दिया गया"!

" ऐसा कैसे कह रहे हो, क्या तुम्हारी  दुश्मनी थी किसी से "!

"दरोगा जी, मैं तो सीधा सादा आदमी हूं!  मेरा बेटा शादी के लिये तीस दिन की छुट्टी ले कर आया था!जिस दिन वह…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on January 21, 2016 at 6:39pm — 10 Comments

विद्वान बढ़ते जा रहे हैं

168
विद्वान बढ़ते जा रहे हैं
=============
जनगोष्ठियों या जन सभाओं में,
वक्ता अगण्य होते हैं।
कुर्सियाॅं सब भरी होती हैं पर, श्रोता नगण्य होते हैं।
प्रायोजित की गई भीड़ में
स्वयं थपथपाते वक्ता अपनी पींठ,
होड़ रहती है अधिकाधिक बोलने की।
इसलिये,
सुनना अनसुना कर अन्य सभी सोते हैं।
पुराणकार ‘व्यासजी‘, जब ज्ञान बघारने पहुॅंचे भीड़ में,
तो उन्हें किसी ने…
Continue

Added by Dr T R Sukul on January 21, 2016 at 5:36pm — 2 Comments

वफ़ादार झूठ - डॉo विजय शंकर

सच किस कदर लड़ता है ,
छटपटाता है सामने आने को ,
उठने नहीं देता झूठ उसे
अपना चेहरा भर दिखाने को।
झूठ कुछ नहीं होता
कोई असलियत नहीं होती उसकी ,
फिर भी हरेक झूठ दूसरे झूठ के प्रति
वफादार बड़ा होता है
एक झूठ की मदद के लिए देखिये
सौ झूठ खड़ा होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on January 21, 2016 at 9:51am — 8 Comments

ग़ज़ल -- ज़िन्दगी मैंने गुज़ारी ख़्वाब में। ( दिनेश कुमार )

2122--2122--212



हौसले जिनके बहे सैलाब में

उम्रभर फिर वे रहे गिर्दाब में



हो मुबारक चापलूसी आपको

अपनी दिलचस्पी नहीं अलक़ाब में



ढो रहें हैं बोझ हम तहज़ीब का

गर्मजोशी अब कहाँ आदाब में



कुछ अधूरे ख़्वाब, आहें और अश्क

बस यही है अब मेरे असबाब में



कौन करता रौशनी की कद्र अब

ढूँढ़ते हैं दाग़ सब महताब में



गीत ग़ज़लें छन्द मुक्तक हम्द नात

क्या नहीं है शायरी के बाब में



इसकी ख़ुशहाली का कारण ये भी… Continue

Added by दिनेश कुमार on January 21, 2016 at 7:27am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर

2122—1122—1122—22

 

दिल तो है पास, तेरा सिर्फ़ है आना बाक़ी

और ये बात जमाने से छुपाना बाक़ी

 

ज़िंदगी इतनी-सी मुहलत की गुज़ारिश सुन लो…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2016 at 8:41pm — 30 Comments

कुएं में लोकतन्त्र

एक कुआं था

बहुत बड़ा कुआं

शीतल जल से पूर्ण

वहाँ रहते थे अनेकों मेढक

कुएं के मालिक ने कुएं में

डाल दिये कुछेक साँप

एवं फूंका मंत्र

जिससे उस कुएं में कायम हो गया लोकतन्त्र

एक मोटा मेढक बना उसका प्रधान

उसने कराया कुएं में सर्वे

और पाया कि साँपों की संख्या वहाँ है कम

मोटा मेढक और उसके चमचे हुए बहुत हैरान

उन्होने बनाया एक नियम

जिससे हो सके साँपो का उत्थान

सभी साँपो को मिले एक मेढक खाने को रोज

ऐसा हुआ प्रावधान

कहा गया बहुत…

Continue

Added by Neeraj Neer on January 20, 2016 at 8:13pm — 10 Comments

ग़ज़ल

इश्क़ करता है कोन दुनिया में

दिल से मरता है कोन दुनिया में

मुफ़्त शेखी बगारने वाले

तुझसे डरता है कोन दुनिया में

महवे हैरत है आसमां मुझ पर

आहें भरता है कोन दुनिया में

आईना बन गए हैं हम लेकिन

अब संवरता है कौन दुनिया में

सबको करना है कूच दुनिया से

कब ठहरता है कौन दुनिया में

अब न मुंसिफ़ कोई उमर जैसा

अद्ल करता है कौन दुनिया में

दिल की गहराई से तुझे हसरत

याद करता है कौन…

Continue

Added by SHARIF AHMED QADRI "HASRAT" on January 20, 2016 at 5:00pm — 5 Comments

सीमा उल्लंघन (लघुकथा)

"दुश्मन के सैनिक जैसे ही आने वाले होंगे, मैं उस झाड़ी में पत्थर फैंक कर इशारा करूंगा, तीन मिनट में टुकड़ी नंबर एक तैनात हो जायेगी और उनके सामने आते ही गोलीबारी शुरू कर देनी है| किसी को कोई शक?" सरहद पर लेफ्टिनेंट साहब ने आदेश दिया|

 

"उनके इरादों की भनक पहले ही लग जाने से हमने सैनिकों की इतनी भर्ती कर दी है कि इस सख्त दीवार को तोड़कर दुश्मन हमारे मुल्क का एक पत्ता भी नहीं ले जा सकता है|"…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on January 20, 2016 at 1:00pm — 4 Comments

बरसात के पानी ने -ग़ज़ल (लक्ष्मण धामी मुसाफिर' )

2211     2222     2112            22

*************************************



हर हद को ही  तोड़ा है  बरसात के पानी ने

किस बात  को माना  है बरसात के पानी ने /1



उस वक्त तो सूखा था जीवन क्या हरा होता

अब  गाँव  डुबाया  है  बरसात  के पानी ने /2



ये  जश्न  की  बेला  है  सूखे  की  विदाई की

नदिया को भी  न्योता है बरसात के पानी ने /3



मत खेत की  बोलो तुम भाग्य ही ऐसा  था

घर  द्वार भी  रौंदा है  बरसात  के पानी ने /4



कल रात…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 20, 2016 at 7:00am — 14 Comments

बिचार (लघुकथा)

बिचार (छुआ-छूत विषयाधारित कथा)

मेज पर कहीं से परोसा आया रखा था..

“ये कहाँ से आया अम्मा?” भोजन सूघतें हुए मयंक ने पूछा.

“अरे वो पड़ोस से आया है सेठ जी की बरसी थी ना..”माँ ने बताया.

“मैं खा लूँ?”मयंक ने पूछा.

माँ के उत्तर देने से पहले दादी बोल उठी,

“राम राम, ‘उन लोगों’ के घर का खायेगा जिनके यहाँ आज भी जूते गांठे जाते हैं.”

“दादी उनके यहाँ लघु-उद्योग कारखाना है जूते नहीं गांठे जाते.”

मंयक ने खाना परोसते हुए कहा.

“तो…

Continue

Added by Seema Singh on January 19, 2016 at 6:00pm — 8 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Monday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"धन्यवाद आ. चेतन जी"
Sep 28
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें गुणीजनों की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service