For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बसंत कुमार शर्मा's Blog (114)

आ भी जा चितचोर

उमड़-घुमड़ बदरा नभ छाये,

नाचें वन में मोर.

बाट जोहते भीगीं अँखियाँ,    

आ भी जा चितचोर.

 

तेज हवा के झोंके आकर,

खोल गए खिड़की.

तभी कडकती बिजली ने भी,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2018 at 8:44pm — 10 Comments

कुछ कही कुछ अनकही है

गजल २१२२ २१२२ 
बात जो मन में तही है
कुछ कही कुछ अनकही है
भार ढोती है जगत का
तब धरा यह पुज रही है…
Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2018 at 3:57pm — 20 Comments

गजल - फिर वो’ मंजर ढूँढते हैं

मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२ 

गाँव से आकर नगर में फिर वो’ मंजर ढूँढते हैं

ईंट गारे के महल में गाँव का घर ढूँढते हैं

 

रौशनी देने सभी को मोम पिघला भी, जला भी  …

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 29, 2018 at 4:00pm — 12 Comments

लट जाते हैं पेड़- एक गीत

राह किसी की कहाँ रोकते,

हट जाते हैं पेड़

इसकी, उसकी, सबकी खातिर,

कट जाते हैं पेड़

 

तपन धूप की खुद सह लेते

देते सबको शीतल छाया.

पत्ते, छाल, तना, जड़, सब कुछ,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2018 at 4:00pm — 16 Comments

सूर्य उगाने जैसा हो- गीत

जीवन की सूनी राहों में,

मधु बरसाने जैसा हो.

अबकी बार तुम्हारा आना

सचमुच आने जैसा हो.

 

धूप कुनकुनी खिले माघ में,

भीगा-भीगा हो सावन.

बादल गरजें जिसकी छत पर,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2018 at 10:00am — 20 Comments

गजल- फिर कोई मीठी शरारत हो गई है

मापनी - 2122 2122 2122

 

आपसे इतनी मुहब्बत हो गई है

लोग कहते हैं कि आफत हो गई है

 

नींद मेरी हो न पायी थी मुकम्मल

फिर कोई मीठी शरारत हो गई है

 

ढूँढता है रोज मिलने का बहाना…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 5:00pm — 20 Comments

लिखा बेहतर नहीं जाता- गजल

1222  1222 1222 1222

 

शिकायत है बहुत खुद से कि मैं क्यों कर नहीं जाता  

मुझे जिससे मुहब्बत है, उसी के घर नहीं जाता

 

अगर मिलना है’ उससे तो, तुम्हें जाना पड़ेगा खुद

चला करता है दरिया ही, कहीं सागर नहीं जाता

 

मधुर…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2018 at 3:30pm — 11 Comments

सारी उम्र खटे - एक नवगीत

अंतर्मन में जाने कितने,

ज्वालामुखी फटे.

दूरी रही सुखों से अपनी,

दुख ही रहे सटे.

 

झोंपड़ियों में बुलडोजर के,

जब-तब घाव सहे.

अरमानों की जली चिताएँ,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2018 at 9:29am — 9 Comments

एक गजल- अगर रात है रात कहूँगा

चाहत की परवाज अलग है

उसका हर अंदाज अलग है

ताजमहल की क्या है’ जरूरत  

अपनी ये मुमताज अलग है

 

सुन पाते हैं केवल हम ही

अपने दिल का साज अलग है

 

मन की बातें मन में…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 4:00pm — 9 Comments

अम्बर को पाती भिजवाई -एक गीत

अम्बर को पाती भिजवाई,

व्याकुल होकर धरती ने.

 

सभी जरूरी संसाधन दे,

नर को जीना सिखलाया.

मर्यादा का पालन लेकिन,

कभी कहाँ वह कर पाया.

 

अपने मन की बात बताई,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on June 1, 2018 at 4:01pm — 14 Comments

लल्ला गया विदेश

लल्ला गया विदेश

© बसंत कुमार शर्मा

उसको जब अपनी धरती का,

जमा नहीं परिवेश.

ताक रही दरवाजा अम्मा,

लल्ला गया  विदेश.

खेत मढैया बिका सभी कुछ,

हैं जेबें…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 17, 2018 at 9:12am — 11 Comments

नवगीत- चल दिया लेकर तगारी -बसंत

चल दिया लेकर तगारी

© बसंत कुमार शर्मा

 

सिर्फ रोटी के लिए बस,

खट रही है उम्र सारी.

सूर्य निकला भी नहीं, वह,

चल दिया लेकर तगारी.

 

ठण्ड, बारिश, धूप तीखी,

वार…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2018 at 9:30am — 16 Comments

गीत में ढलता रहा

स्वप्न मनभावन हृदय में,

रात-दिन पलता रहा.

गीत पग-पग साथ मेरे,

हर समय चलता रहा

 

पीर लिख कर कागजों में

रोज दिल अपना दुखाया.

प्रेम के दो शब्द लिखकर,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 10:00am — 10 Comments

हो सके तो वन बचा लो  -नवगीत

हो सके तो वन बचा लो  

 

दे रहे जीवन सभी को,

खेत, वन, उपवन सजा लो.

हैं जरूरी जिन्दगी को,

हो सके तो वन बचा लो.  

 

हो चुके हैं, मत करो इन,

पर्वतों को और…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 7, 2018 at 8:30pm — 18 Comments

कब पटाखे फूट जाएँ

गर्म होती जा रहीं है,

शहर में पागल हवाएँ.

क्या पता इन बस्तियों में,

कब पटाखे फूट जाएँ.

 

ढूँढता अस्तित्व अपना,

सच बहुत बेचैन है.

डस रहा है दिन उसे तो,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 11:16am — 18 Comments

अंगारों का थाल

बेचैनी बढ़ रही धरा की,  

पशु-पक्षी बेहाल

सूरज बाबा सजा रहे हैं,

अंगारों का थाल

 

दिखते नहीं आजकल हमको,

बरगद, पीपल, नीम

आँगन छोड़, घरों में बालक,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on March 31, 2018 at 8:30pm — 10 Comments

आना सावन में

सागर जैसी लहर उठी है,

दिल की धड़कन में.

छलकी है पिय याद तुम्हारी,

मेरे नयनन में

 

तोड़े आम साथ में जाकर,

भायी मन अमराई.

पानी पर कागज की कश्ती,…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on March 27, 2018 at 9:22am — 8 Comments

राम सरीखे बन पाये क्या-गीत

कब निकले बाहर महलों से,

वन में गीत कभी गाये क्या

पूजा करते रहे राम की,

राम सरीखे बन पाये क्या

 

भाई को कब भाई समझा,

हर विपदा में किया किनारा

दीवारों पर दीवारें…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 11:03am — 13 Comments

किसने किया तुझसे मना-गजल

२२१२ २२१२ 

किसने किया तुझसे मना

कर प्रेम की आराधना

 

चारों तरफ ही प्रेम की

मौजूद है सम्भावना

 

हों झुर्रियाँ जिस हाथ में

मौका मिले तो थामना

 

करना किसी…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on March 23, 2018 at 9:30am — 24 Comments

वो चाँद, सितारे कहाँ गए- गजल

मापनी 221 2121 1221  212

 

आँगन, वो’ छत, वो’ चाँद, सितारे कहाँ गए.

वो दिल की’ हसरतों के’ शरारे कहाँ गए.

 

निश्छल सरल वो’ प्रेम के’ किस्से पले जहाँ,

पनघट, नदी  वो’ झील किनारे  कहाँ गए.

 

आये थे’ जिन्दगी में दिखाने…

Continue

Added by बसंत कुमार शर्मा on March 20, 2018 at 9:13am — 16 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
11 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
13 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हाइमन कमीशन (लघुकथा) : रात का समय था। हर रोज़ की तरह प्रतिज्ञा अपने कमरे की एक दीवार के…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। हार्दिक स्वागत आदरणीय विभारानी श्रीवास्तव जी। विषयांतर्गत बढ़िया समसामयिक रचना।"
18 hours ago
vibha rani shrivastava replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
""ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123विषय : जय/पराजय आषाढ़ का एक दिन “बुधौल लाने के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service