उमड़-घुमड़ बदरा नभ छाये,
नाचें वन में मोर.
बाट जोहते भीगीं अँखियाँ,
आ भी जा चितचोर.
तेज हवा के झोंके आकर,
खोल गए खिड़की.
तभी कडकती बिजली ने भी,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 14, 2018 at 8:44pm — 10 Comments
Added by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2018 at 3:57pm — 20 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
गाँव से आकर नगर में फिर वो’ मंजर ढूँढते हैं
ईंट गारे के महल में गाँव का घर ढूँढते हैं
रौशनी देने सभी को मोम पिघला भी, जला भी …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 29, 2018 at 4:00pm — 12 Comments
राह किसी की कहाँ रोकते,
हट जाते हैं पेड़
इसकी, उसकी, सबकी खातिर,
कट जाते हैं पेड़
तपन धूप की खुद सह लेते
देते सबको शीतल छाया.
पत्ते, छाल, तना, जड़, सब कुछ,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 20, 2018 at 4:00pm — 16 Comments
जीवन की सूनी राहों में,
मधु बरसाने जैसा हो.
अबकी बार तुम्हारा आना
सचमुच आने जैसा हो.
धूप कुनकुनी खिले माघ में,
भीगा-भीगा हो सावन.
बादल गरजें जिसकी छत पर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 18, 2018 at 10:00am — 20 Comments
मापनी - 2122 2122 2122
आपसे इतनी मुहब्बत हो गई है
लोग कहते हैं कि आफत हो गई है
नींद मेरी हो न पायी थी मुकम्मल
फिर कोई मीठी शरारत हो गई है
ढूँढता है रोज मिलने का बहाना…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2018 at 5:00pm — 20 Comments
1222 1222 1222 1222
शिकायत है बहुत खुद से कि मैं क्यों कर नहीं जाता
मुझे जिससे मुहब्बत है, उसी के घर नहीं जाता
अगर मिलना है’ उससे तो, तुम्हें जाना पड़ेगा खुद
चला करता है दरिया ही, कहीं सागर नहीं जाता
मधुर…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 11, 2018 at 3:30pm — 11 Comments
अंतर्मन में जाने कितने,
ज्वालामुखी फटे.
दूरी रही सुखों से अपनी,
दुख ही रहे सटे.
झोंपड़ियों में बुलडोजर के,
जब-तब घाव सहे.
अरमानों की जली चिताएँ,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2018 at 9:29am — 9 Comments
चाहत की परवाज अलग है
उसका हर अंदाज अलग है
ताजमहल की क्या है’ जरूरत
अपनी ये मुमताज अलग है
सुन पाते हैं केवल हम ही
अपने दिल का साज अलग है
मन की बातें मन में…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
अम्बर को पाती भिजवाई,
व्याकुल होकर धरती ने.
सभी जरूरी संसाधन दे,
नर को जीना सिखलाया.
मर्यादा का पालन लेकिन,
कभी कहाँ वह कर पाया.
अपने मन की बात बताई,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 1, 2018 at 4:01pm — 14 Comments
लल्ला गया विदेश
© बसंत कुमार शर्मा
उसको जब अपनी धरती का,
जमा नहीं परिवेश.
ताक रही दरवाजा अम्मा,
लल्ला गया विदेश.
खेत मढैया बिका सभी कुछ,
हैं जेबें…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 17, 2018 at 9:12am — 11 Comments
चल दिया लेकर तगारी
© बसंत कुमार शर्मा
सिर्फ रोटी के लिए बस,
खट रही है उम्र सारी.
सूर्य निकला भी नहीं, वह,
चल दिया लेकर तगारी.
ठण्ड, बारिश, धूप तीखी,
वार…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 13, 2018 at 9:30am — 16 Comments
स्वप्न मनभावन हृदय में,
रात-दिन पलता रहा.
गीत पग-पग साथ मेरे,
हर समय चलता रहा
पीर लिख कर कागजों में
रोज दिल अपना दुखाया.
प्रेम के दो शब्द लिखकर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 10:00am — 10 Comments
हो सके तो वन बचा लो
दे रहे जीवन सभी को,
खेत, वन, उपवन सजा लो.
हैं जरूरी जिन्दगी को,
हो सके तो वन बचा लो.
हो चुके हैं, मत करो इन,
पर्वतों को और…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 7, 2018 at 8:30pm — 18 Comments
गर्म होती जा रहीं है,
शहर में पागल हवाएँ.
क्या पता इन बस्तियों में,
कब पटाखे फूट जाएँ.
ढूँढता अस्तित्व अपना,
सच बहुत बेचैन है.
डस रहा है दिन उसे तो,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on April 4, 2018 at 11:16am — 18 Comments
बेचैनी बढ़ रही धरा की,
पशु-पक्षी बेहाल
सूरज बाबा सजा रहे हैं,
अंगारों का थाल
दिखते नहीं आजकल हमको,
बरगद, पीपल, नीम
आँगन छोड़, घरों में बालक,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 31, 2018 at 8:30pm — 10 Comments
सागर जैसी लहर उठी है,
दिल की धड़कन में.
छलकी है पिय याद तुम्हारी,
मेरे नयनन में
तोड़े आम साथ में जाकर,
भायी मन अमराई.
पानी पर कागज की कश्ती,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 27, 2018 at 9:22am — 8 Comments
कब निकले बाहर महलों से,
वन में गीत कभी गाये क्या
पूजा करते रहे राम की,
राम सरीखे बन पाये क्या
भाई को कब भाई समझा,
हर विपदा में किया किनारा
दीवारों पर दीवारें…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 11:03am — 13 Comments
२२१२ २२१२
किसने किया तुझसे मना
कर प्रेम की आराधना
चारों तरफ ही प्रेम की
मौजूद है सम्भावना
हों झुर्रियाँ जिस हाथ में
मौका मिले तो थामना
करना किसी…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 23, 2018 at 9:30am — 24 Comments
मापनी 221 2121 1221 212
आँगन, वो’ छत, वो’ चाँद, सितारे कहाँ गए.
वो दिल की’ हसरतों के’ शरारे कहाँ गए.
निश्छल सरल वो’ प्रेम के’ किस्से पले जहाँ,
पनघट, नदी वो’ झील किनारे कहाँ गए.
आये थे’ जिन्दगी में दिखाने…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on March 20, 2018 at 9:13am — 16 Comments
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