आँगन के ऊपर बना ,सरिया का आकाश
दाना नीचे है पड़ा खा पाती मैं काश ॥
अंबर पर उड़ते मिले ,चतुर सयाने बाज
जीवन कितना है कठिन ,हम जैसों का आज ॥
सूरज दादा भी तपें ,करें गज़ब का खेल
सूख गए वन बावड़ी,बची न कोई बेल ॥
एक दिवस में क्या मिले,कैसे रखलूँ धीर
सोच सोच ये बात को,मन में उठती पीर ॥
मन करता है आज भी,आँगन फुदकूँ जाय
झूला झूलूँ तार पर......मुन्नी लख हर्षाय ॥
अप्रकाशित व मौलिक
कल्पना मिश्रा…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on March 21, 2015 at 12:00am — 13 Comments
Added by Samar kabeer on March 20, 2015 at 10:56pm — 28 Comments
212 212 212 212
आज दिल की कहानी छुपा ले गयी
आँख से नींद, यादें चुरा ले गयी
कैस खुद को भुलाए कोई तू बता
फिक्र तेरी ज़हन को बहा ले गयी
तू नहीं जिंदगी में ये ग़म है मुझे
दूरियां दर्द का भी मजा ले गयी
शीत की ये लहर टीस बन कर उठी
हाय दिल की अगन को बढ़ा ले गयी
हसरतें अब ये दिल से जुदा हो न हो
मौत की ये रवानी खुदा ले गयी
वक्त की चाल का क्या पता ऐ “निधी”
आस जीवन…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 3:30pm — 10 Comments
व्यथित है पतितपावनी
अपनी दशा पर आज
प्रश्न पूछती यही सबसे हजार बार
की है किसने दुर्गति ये
कौन है इसका जिम्मेदार ?
राजा, रंक हो या संत
दिया सबको समान अधिकार
सिंचित कर धरा को
भरा संपदा जिसने अपार
विष भर उसकी रगों में फिर
धकेला किसने उसे मृत्यु के द्वार ?
स्नान आचमन से जिसके देव प्रशन्न होते हैं
मुख में इक बूँद ले लोग
स्वर्ग गमन करते हैं
आँचल में उसी के शवों को छुपा
ढेरों मैल बहाया है
दामन पर…
Added by Meena Pathak on March 20, 2015 at 3:24pm — 18 Comments
प्रधान मंत्री का कारवाँ चला जा रहा था कि बीच में एक जंगल से गुजरते हुए साइड विंडो से अचानक दिखाई दिया, कुछ स्त्रियाँ सिर पर लकड़ियों की गठरिया लिए जा रही थीं उनमे एक वृद्धा जो पीछे रह गई थी अभी गठरिया बाँध ही रही थी कि प्रधान मंत्री जी ने गाड़ी रुकवाई और उस वृद्धा से बातचीत करने पंहुच गए.|
“किस गाँव की हो माई? इस उम्र में ये काम!.. तुम्हारे बच्चे’?
“क्यूँ नहीं साब जी, एक बिटवा है जो फ़ौज में है, पोता है, बहू है” वृद्धा बोली.
“बेटा पैसा तो भेजता होगा”? “हाँ जी, जब से…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 20, 2015 at 11:20am — 39 Comments
डगर कठिन है
मंजिल से पहले पग रुकता है
फिर हौसलों के सहारे
एक-एक पग आगे बढता हूँ
गिरता हूँ, संभलता हूँ
क्या?
मंजिल भी
मेरे इस परिश्रम को देख रही होगी
क्या?
वह भी जश्न मनायेगी
मेरे वहाँ पहुँचने पर
कभी-कभी
ये उत्कण्ठा भी उत्पन्न हो जाती हैं
फिर विचार आता है!
मंजिल जश्न मनाये या ना मनाये
उसे पा तो लूँगा, उसे चुमूँगा
दुनिया को दिखाउँगा कि
इसी के लिए मैने अथक प्रयास किया है
और अनवरत ही चलता रहता हूँ
इक-इक पग बढाते…
Added by Pawan Kumar on March 19, 2015 at 7:20pm — 8 Comments
पुरवा बयार सी
मद भरे ज्वार सी
फूलो में जवा सी
स्पर्श में हवा सी
महुआ की गंध सी
पाटल सुगंध सी
आमों की बौर सी
करौंदे की झौर सी
नीम की महक सी
पलाश की दहक सी
टूटे मोर पंख सी
पूजागृह के शंख सी
मंदिर के दीप सी
मोती भरी सीप सी
जल भरे डोल सी
विद्युत् कपोल सी
लहराते व्याल सी
दृप्त इंद्रजाल सी
पावस की धार सी
राधा के प्यार सी
पतझड़ के अंत सी
सौरभ बसंत…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 19, 2015 at 6:30pm — 25 Comments
Added by दिनेश कुमार on March 19, 2015 at 5:00pm — 16 Comments
ए-हुस्न-जाना..
दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...
अब मुझको आया कुछ आराम है।
कि तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
दिल अब तुझसे बेजार है..
हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।
हूँ जिसका मै सिपहसलार बेकार वो दिल का रोजगार है।
ए-हुस्न-जाना..
दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...
मालूम मुझको तेरा मकाम है।
के तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 19, 2015 at 4:00pm — 24 Comments
2122 1212 22
ज़िन्दगी दी ख़ुदा ने प्यारी है
चाहतें पर बहुत उधारी है
इस तरफ़ हम खड़े उधर अरमाँ
बेबसी बस लगी हमारी है
ख़्वाब तो रोज़ ही बुनें, लेकिन
हर हक़ीकत लिये कटारी है
ख़र्च का क़द बढ़ा है रोज़ मगर
रिज़्क की शक़्ल माहवारी है
रिश्ते बदशक़्ल हो गये अपने
पेट की आग सब से भारी है
फुनगियों में लटक रहे अरमाँ
कोई सीढ़ी नहीं , न आरी है
तिश्नगी अश्क़ भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 19, 2015 at 2:00pm — 29 Comments
2122 2122 2122 212
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जब धरा पर रह न पाये जो कभी औकात से
चाँद पर पहुँचो भले ही क्या भला इस बात से
****
मुफ्तखोरी की ये आदत यार चोरी से बुरी
चोर भी समझा रहा ये बात हमको रात से
****
बाँटने में हर हुकूमत, व्यस्त है खैरात ही
देश का, खुद का भला कब, हो सका खैरात से
*****
हो न पाये कौवे शातिर, लाख कोशिश बाद भी
बाज आयी कोयलें कब, दोस्तों औकात से
*****
प्यार होना भी …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 19, 2015 at 11:29am — 26 Comments
1222---1222---1222---1222 |
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ग़लतफ़हमी कि पोखर साफ़ पानी का बना होगा |
कमल खिलता हुआ होगा तो कीचड़ से सना होगा। |
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सुख़नवर ने सुखन की बाढ़ ला दी क्या कहे… |
Added by मिथिलेश वामनकर on March 19, 2015 at 10:30am — 49 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on March 19, 2015 at 9:43am — 19 Comments
गौर से देखो रेगिस्तान को
मीलों दूर तक
बिखरा पडा है
अपनी सुन्दरता सँवारे हुये
कितनी सदियों से
आँधी तूफानों से
अनवरत लडा है
कई बार साजिशें हुयीं है
सहरा की धूल को
दूर उडा ले जाने की
इसके अस्तित्व को
हमेशा के लिये
मिटाने की
पानी के लिये
प्यासा ही जी रहा है
पानी ने भी कसर नहीं छोडी है
इसे बहाकर दूर ले जाने में
कई बार गुजरा है
इसके वक्ष स्थल से होकर
मगर रेगिस्तान का
स्वाभिमान तो…
Added by umesh katara on March 19, 2015 at 8:00am — 22 Comments
2122 2212 1222
लोग मिलते हैं अक्सर यहाँ मुहब्बत से
दिल हैं मिलते यारब बड़े ही मुद्दत से।
आज कल शामें हैं उदास बेवा सी
याद आये है कोई खूब सिद्दत से।
कोई होता है किस कदर अदाकारां
हम रहे इक टक देखते सौ हैरत से।
उसने मुझको यूँ शर्मसां किया बेहद
पेश आया मुझसे बड़े ही इज्जत से।
लबसे तेरे हय शोख़ गालियाँ जाना
बस रहे हम ता-उम्र सुन…
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 18, 2015 at 4:30pm — 19 Comments
2122 1212 112/22
जब ज़माना मेरा मुशीर हुआ
लोग हाकिम तो मैं असीर हुआ
तुझपे पत्थर अगर बरसने लगे
ये समझना तू बेनज़ीर हुआ
जा ब जा बेख़याल फिरता हूँ
ये खबर है कि मैं फकीर हुआ
बेखबर दिल निगाहे क़ातिल तेज़
सो निशाने पर अब के तीर हुआ
तंग हाली ज़बाँ से झाँके है
कौन कहता है वो अमीर हुआ
(मुशीर-सलाहकार, असीर-कैदी, बेनज़ीर-लाजवाब)
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on March 18, 2015 at 3:32pm — 26 Comments
बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
रूह को सब चाहते हैं जिस्म दफ़नाने के बाद
दास्तान-ए-इश्क़ बिकती खूब दीवाने के बाद
शर्बत-ए-आतिश पिला दे कोई जल जाने के बाद
यूँ कयामत ढा रहे वो गर्मियाँ आने के बाद
कुछ दिनों से है बड़ा नाराज़ मेरा हमसफ़र
अब कोई गुलशन यकीनन होगा वीराने के बाद
जब वो जूड़ा खोलते हैं वक्त जाता है ठहर
फिर से चलता जुल्फ़ के साये में सुस्ताने के बाद
एक वो थी एक मैं था एक दुनिया जादुई
और क्या कहने को रहता है…
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 18, 2015 at 2:30pm — 32 Comments
212 212 212 212
कैसे कमसिन उमरिया जवां हो गयी
दिल से दिल की मुहोबत बयां हो गयी
ख्वाब आँखों से अब मत चुराना कभी
नींद सपनों पे जब मेहरबां हो गयी
फूल बन के खिली गुलबदन ये कली
आरजू फिर महक की जवां हो गयी
प्यार की बात हमने छुपाई बहुत
लोग सुनते रहे दासतां हो गयी
होंठ जबसे मिले होंठ ही सिल गए
कैसे चंचल जुबां बेजुबां हो गयी
दोस्त आगोश में आशना ऐ “निधी”
आज मन की…
ContinueAdded by Nidhi Agrawal on March 18, 2015 at 1:30pm — 32 Comments
आवरण कितने गाढ़े ,कितने गहरे
कई कई परतों के पीछे छिपे चेहरे
नकाब ही नकाब बिखरे हुए
दुहरे अस्तित्व हर तरफ छितरे हुए
कहीं हँसी दुख की रेखायें छिपाए है
तो कभी अट्टहास करुण क्रन्दन दबाए है
विनय की आड़ लिये धूर्तता
क्षमा का आभास देती भीरुता
कुछ पर्दे वक़्त की हवा ने उड़ा दिये
और न देखने लायक चेहरे दिखा दिये
आडम्बर को नकेल कस पाने का हुनर
मुश्किल बहुत है मगर
कुछ चेहरों में फिर…
ContinueAdded by Tanuja Upreti on March 18, 2015 at 1:30pm — 2 Comments
मन के कमरे में कैद हमारे भाव विचार
बने वाणी के मोती ,कलम की बहती धार
सुवासित हो फ़िज़ा ,पढ़े सुने संसार
बुने सतरंगी सपने,बरसे प्यार की फुहार
डूबे खुश्बुओं में ,सुगन्धित हो बहार
खुशिओं के फूटे झरने ,भीगें बार -बार
मिले जीने की उमंग,सपना हो साकार
भूल सारे गम ,नव अंकुर का आधार
चाहतों की संतुष्टि ,आशीष से सरोबार
खुले परिचय के द्वार ,जुड़ा नया परिवार
धन्य हो गए हम ,दिलों के जुड़े तार
भूल जोड़ बाकी का गणित ,मिला जीने का…
ContinueAdded by Shyam Mathpal on March 18, 2015 at 11:50am — 12 Comments
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