Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 10:22pm — 5 Comments
========ग़ज़ल=======
संदली सा बदन है क्या कहिये
फूल जैसी छुअन है क्या कहिये
जल उठा है बदन तुझे छूकर
हुश्न है या अगन है क्या कहिये
सर से पा तक तुझे वो छूता है
आपका पैरहन है क्या कहिये
तीर…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 2, 2013 at 3:47pm — 16 Comments
"समीकरण"
कागज़ पर
दिल के समीकरणों से उलझा
सिद्ध क्या करना है ???
मुहब्बत
नफरत
आज़ादी
या बंदिशें
क्या हल होगा ??
कर्म करो फल बाद में देखेंगे
किन्तु आगाज कहाँ से करूँ
दिल से
या दिमाग से ???
लीजिये बन गया न
समीकरण
एक वाक्य
हमारे बड़े बड़े शाश्त्र कहते हैं
प्रेम अनंत है
अर्थात
प्रेम बराबर अनंत
अनंत अर्थात
अर्थात
हाँ गगन
तो प्रेम बराबर गगन
अर्थात प्रेम
गगन के समतुल्य है…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 31, 2013 at 4:23pm — 5 Comments
वो जो कहते थे के चाहत बुरी है
दिवाने हो गए हालत बुरी है
बना अंधा फखत मगरूर कर दे
बढे गर इस कदर ताकत बुरी है
पचा पाए नहीं खैरात की जो
वही कहते हैं के दावत बुरी है
गँवा चैनो सकूँ ईमान अपना
पता पड़ता है के दौलत बुरी है
कहो मत बेबफा हमको हमनवा
क़ज़ा दे दो न ये जिल्लत बुरी है
उसे लगता है दिल्लगी हँसना
मेरे हँसने की यूँ आदत बुरी है
कतारों में खड़े रहना है…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 10:06pm — 6 Comments
जुरत-आमोज मेरे दिल ये क्या किया तूने
खगूर-ए-हम्द से भी कर लिया गिला तूने
फ़िक्रे-फ़र्दा न कोई गम कभी रहा हमको
कजा से संग दिल मेरे बचा लिया तूने
सुखन में आ गए हो ऐब ढूँढने लेकिन
हमनवा ये बता कितना जहर पिया तूने
अजल से चल रहा है क्या कभी ये सोचा है
रिवाजो रस्म क्या सब कुछ बदल दिया तूने
खुदा से मांग लो अब गैर के लिए भी कुछ
जिया अपने लिए तो "दीप" क्या जिया तूने ??
संदीप पटेल "दीप"
जुरत-आमोज - साहस सिखाने…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 29, 2013 at 9:09pm — 14 Comments
बिन बुलाये आ जाती हैं
कहने पर कहाँ जाती हैं
और हम भी दिन- रात
सोते- जागते
उठते-बैठते
उन्ही को याद करते हैं
उन्ही के बारे में सोचते हैं
उनके बिन जैसे जीना मुहाल है
हमारे पास वक़्त नहीं है
और वो ठहरे फ़ुरसतिया
फिर भी कौन ऐसा है
जो नहीं करता उनकी खातिर
आखिर हैं तो अपनी ही न
छोड़ भी तो नहीं सकते
जीने के लिए वही तो वजह है
.
.
.
.
.
कितनी अजीज होती हैं न !
ये "परेशानियाँ"
संदीप पटेल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 27, 2013 at 8:42pm — 5 Comments
============ग़ज़ल =============
उड़ा कर छत हवा जब जब करे जाया पसीने को
गरीबी कोसती फिरती है तब सावन महीने को
बफा करने के बदले बेबफाई जब मिली यारो
बढ़ा दर्द-ए जिगर हद से नहीं आराम सीने को
मेरे हमराज मुझको इक शराबी मान बैठे हैं
सजा कर रख लिया हमने जो खाली आबगीने को
इलाहबाद जाकर पापियों ने पाप यूँ धोये
हुई गंगा वहाँ मैली बचा पानी न…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 22, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
======ग़ज़ल========
बहरे हजज मुसद्दस् महजूफ
वजन-1222/1222/122
दियों में तेल हम भरने लगे हैं
अंधेरों को बहुत खलने लगे हैं
नहीं रूकती हमारी हिचकियाँ भी
हमें वो याद यूँ करने लगे हैं…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 16, 2013 at 3:30pm — 11 Comments
==========ग़ज़ल========== …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 8:00pm — 11 Comments
==========दोहे===========…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on January 15, 2013 at 3:30pm — 14 Comments
=========ग़ज़ल=========
बहरे जदीद मुसद्दस महजूफ मक्फूफ़ मुतव्वी
वजन - 212 2121 2112
बात करना बड़ी बड़ी ही सही
झूठ हो या सही सही ही सही
इश्क के हर कदम पे वादे हों
तब तो करना है दोस्ती ही सही
गरचे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 12, 2013 at 6:25pm — 5 Comments
===========ग़ज़ल=============
बहर-ए-हजज मुसम्मन सालिम
वजन- 1222 / 1222 / 1222 / 1222
गरीबों का दमन करके जो सीना तान बोलेंगे
झुकाए सर उन्ही को आप तुर्रम खान बोलेंगे
सिपाही काठ के पुतले बने फिरते हैं राहों में
कसम खाई वो करने जो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 11, 2013 at 3:30pm — 8 Comments
==========ग़ज़ल===========
कभी तो पास में आकर सदा सुनो दिल की
ज़रा सी चाह और ये इल्तजा सुनो दिल की
कहीं भी आप रहो हो न कोई दर्दो गम
जुबाँ से मेरे निकलती दुआ सुनो दिल की
छलक गए है जो प्याले निगाह मिलते ही
यूँ ले रही है नज़र क्या रजा सुनो दिल की
ग़ज़ब हुनर जो लिए खेलते हो तुम दिल से
कभी कभी ही सही बेबफा सुनो दिल की
अगर मगर तो हमेशा बजूद में होगा
कभी तो "दीप" यूँ ही बेवजा सुनो दिल की
संदीप पटेल"दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 9, 2013 at 4:27pm — 7 Comments
सुन ले कायर पाकिस्तान
नहीं झुकेगा हिन्दुस्तान
बात से पहले समझायेंगे
तुम क्या हो ये बतलायेंगे
भारत के वीरों का गहना
संयम शांति जतलायेंगे
अगर समझ फिर भी न पाया
मारें थप्पड़ खींचें कान .......................
गीदड़ की न चाल चलो तुम
छुप छुप कर न वार करो तुम
शेरों से लड़ने के खातिर
कुछ हाथी तैयार करो तुम
बच्चा बच्चा वीर यहाँ का
हमको है खुद पर अभिमान .................................
घुसपैठी को आज तजो…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 9, 2013 at 3:54pm — 7 Comments
वो दिन कितने प्यारे थे
गाँव गाँव और
शहर शहर में
प्रेम पगे गलियारे थे ......
स्वार्थ नहीं
इक अपनापन था
परहित में
जीवन-यापन था
अमन चैन के
रंग में रंगे
आलोकिक भुनसारे थे ..........
कोई बुराई
नहीं करता था
अविश्वास
सदा मरता था
दोस्त दोस्त से
आस लगाये
राग द्वेष अंधियारे थे ............
इक होती थी
सबकी राय
कोई अपनी
नहीं चलाय
संग में
जब तब
होती मस्ती …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 5, 2013 at 3:30pm — 6 Comments
एक दिन तुम देखना
एक दिन तुम देखना
खौफ और आतंक ऐसे
बढ़ रहा है आज कैसे
लाज लुटती राह में यूँ
लगता अंधा राज जैसे
संस्कृति के जो हैं भक्षक सब बनेंगे सरगना ...........................
मान मर्यादा मिटाई
नींव रस्मों की हिलाई
अपने में सीमित हुई है
आजकल की ये पढ़ाई
बदलो ये सब अब नहीं तो होगा खुद को कोसना ..............................
शून्य ही बस अंक होगा
पोखरों में पंक होगा
शुष्क होंगे वन और पर्वत …
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 4, 2013 at 3:58pm — 10 Comments
आधा सुन के खूब सुनाये
अधजल गगरी छलकत जाए
धैर्य नहीं इक पल भी रखना
चाहे मूरख सब कुछ चखना
क्या है मीठा क्या है खारा
नहीं भा रहा उसे परखना
अंतर में रख घोर अन्धेरा
बाहर बाहर दीप जलाए....................
सुने नहीं वो बात बड़ों की
आंके बस औकात बड़ों की
दिन को देख के नहीं सोचता
गुजरे कैसे रात बड़ों की
बिन अनुभव के बड़ा न कोई
कौन भला इसको समझाए ........................
जो चाहूँ मैं अभी बनालूं
कच्ची माटी ऐसे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 3, 2013 at 3:41pm — 9 Comments
मुल्क की इस पाक माटी को मुबारक हो ये साल
संग सी वीरों की छाती को मुबारक हो ये साल
चल पडा है कारवाँ अधिकार अपने मांगने
इस बगावत करती आंधी को मुबारक हो ये साल
आग हर दिल में जला दी फूंक के डर का कफ़न
हो चली रुखसत जो बेटी को मुबारक हो ये साल…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 1, 2013 at 4:00pm — 7 Comments
मुल्क में कोहराम कैसा है
या खुदा ये निजाम कैसा है
बाद दंगों के क्या दिखा तुमको
कैसा अल्लाह राम कैसा है
हाथ जोड़े थे वोट लेने को
देखना अब के काम कैसा है
खातिरे हक़ चली ये आंधी को
रोकने इंतजाम कैसा है
बादशा से सवाल करता जो
बेअदब ये गुलाम कैसा है
मूक अंधी बधिर ये सत्ता से
जो मिला ये इनाम कैसा है
हुक्मरानों के शहर में देखो
भीड़ कैसी ये जाम कैसा है
कह रहा "दीप" देश की हालत
आप कहिये कलाम…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 25, 2012 at 11:00am — 8 Comments
==========ग़ज़ल===========
भेडियों के राज में शेरों की हस्ती देखिये
फिर रहे डंडा दिखाते सरपरस्ती देखिये
राजधानी में लगी यूँ आग गर्मी आ गयी
हो रही सड़कों में अब पानी से मस्ती देखिये
वो बुरा कहते नहीं सुनते नहीं देखें नहीं
खामखा ही…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 23, 2012 at 8:29pm — 11 Comments
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