फूल हमेशा बगिया में ही, प्यारे लगते।
नीले अंबर में ज्यों चाँद-सितारे लगते।
बिन फूलों के फुलवारी है एक बाँझ सी,
भरी गोद में माँ के राजदुलारे लगते।
हर आँगन में हरा-भरा यदि गुलशन होता,
महके-महके, गलियाँ औ’ चौबारे लगते।
दिन बिखराता रंग, रैन ले आती खुशबू,
ओस कणों के संग सुखद भिनसारे लगते।
फूल, तितलियाँ, भँवरे, झूले, नन्हें बालक,
मन-भावन ये सारे, नूर-नज़ारे लगते।
मिल बैठें, बतियाएँ…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on September 27, 2014 at 10:51am — 22 Comments
ये गाथा मजदूर की, जिसके नाना रूप।
पत्थर तोड़े हाथ से, बारिश हो या धूप।।
कड़ी धूप में पिस रही, रोटी की ले आस।
पानी की दो घूँट से, बुझा रही है प्यास।।
सर पर ईंटें पीठ पर, लादे अपना लाल।
मानवता कुछ ढूँढती, लेकर कई सवाल।।
वे भी जन इस देश के, करते हैं निर्माण।
पर खुद जीने के लिये, झोंके अपने प्राण।।
उनको हो सबकी तरह, जीने का अधिकार।
उनके कर्मठ हाथ हैं, विकास का आधार
-मौलिक व…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 27, 2014 at 8:04am — 10 Comments
1212-1122-1212-22
तमाम उम्र जो ज़ेब-ए-पलक रहा होगा
नज़र से गिर के भी कितना चमक रहा होगा
सफ़र अँधेरों का है, फिर भी इक दिलासा है
कोई चराग़ मेरी राह तक रहा होगा
लिखा है शेर मेरा दरमियानी सफ़हे पर
तेरी किताब का तो दिल धड़क रहा होगा
गुलाबी ख़ुशबुओं की बूँदें बादलों की नहीं
वो छत से गीला दुपट्टा लटक रहा होगा
परिंदे शाम को लौटे तो मुझको याद आया
हमारा साथ भी कुछ शाम तक रहा…
ContinueAdded by Zubair Ali 'Tabish' on September 27, 2014 at 12:00am — 7 Comments
रेखागणित क्या है ?
मै नहीं जानता
रैखिक ज्ञान का पारावार है
मान लेता हूँ
मेरे लिए रेखा मात्र रेखा है
सरल या विरल
सरल यानि मिलन से दूर
मिलन के लिए सरलता नहीं
तरलता चाहिए
अकड़ नहीं विनम्रता चाहिए
इसीलिये सरल रेखा
मुड़ कर ही मिल पाती है
वह भी स्वयं से
उसका पोर-पोर ही है मिलन बिंदु
जिसका चरम रूप है वृत्त
वृत्त क्या ? महज एक शून्य
शून्य अर्थात शून्य
स्वयं से मिलन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2014 at 2:57pm — 14 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 26, 2014 at 1:00pm — 19 Comments
2122 2122 2122
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जिंदगी का नाम चलना, चल मुसाफिर
जैसे नदिया चल रही अविरल मुसाफिर /1
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दे न पायें शूल पथ के अश्रु तुझको
जब है चलना, मुस्कुराकर चल मुसाफिर /2
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फिक्र मत कर खोज लेंगे पाँव खुद ही
हर कठिन होते सफर का हल मुसाफिर /3
**
मानता हूँ आचरण हो यूँ सरल पर
राह में मुश्किल खड़ी तो, छल मुसाफिर /4
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रात का आँचल जो फैला है गगन तक
इस तमस में दीप बनकर जल मुसाफिर /5
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है …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 26, 2014 at 12:30pm — 12 Comments
ना रहे जो वक्त तो भी रहेगा वक्त ही
वक्त बेज़ुबां है तो भी कहेगा वक्त ही |
यूं तो गुज़र जाता है जिंदगी की तरह
जिंदगी के बाद तो भी रहेगा वक्त ही |
मैं उसे थामे चलूँ कितनी भी दूर ही
हाथ मेरा थाम तो भी चलेगा वक्त ही |
मेरी हर शै बढे या घटे है हर पल
जितना भी घटे तो भी बढेगा वक्त ही |
जो फैला है मार-काट साथ जिंदगी के
मारो किसी को तो भी कटेगा वक्त ही |
(मौलिक और…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 25, 2014 at 9:30pm — 9 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 25, 2014 at 7:51pm — 8 Comments
2122 1212 22
जबसे मुझसे बिछड़ गया है वो
सबमें मुझको ही ढूढ़ता है वो
मैंने मांगा था उससे हक़ अपना
बस इसी बात पर खफ़ा है वो
मेरी तदवीर को किनारे रख
मेरी तक़दीर लिख रहा है वो
पत्थरों के शहर में जिंदा है
लोग कहते हैं आइना है वो
उसकी वो ख़ामोशी बताती है
मेरे दुश्मन से जा मिला है वो
संजू शब्दिता
मौलिक व अप्रकाशित
Added by sanju shabdita on September 25, 2014 at 5:00pm — 26 Comments
"भईया, तुम ऐसा क्यों करते हो, अब तो मेरी सहेलियाँ भी कहती हैं कि तेरा भाई और उसके दोस्त बड़े गन्दे हैं, रास्ते में भद्दे-भद्दे कमेन्ट्स करते हैं"
सन्ध्या अपने भाई से नाराज होते हुए बोली! रोहन उसकी बात को अनसुना करके चला गया। शाम होते ही फिर वह और उसके दोस्त बस स्टाफ की तरफ निकलें, वहां एक लड़की बस का इन्तजार कर रही थी, चेहरा दुपट्टे से ढका था, उसे देखते ही रोहन कमेन्ट्स करते हुए उसका दुपट्टा खींच लिया, देखा तो अवाक रह गया,…
ContinueAdded by Pawan Kumar on September 25, 2014 at 12:00pm — 16 Comments
1222 1222
वतन की जान है हिंदी
उपार्जित मान है हिंदी
धरा जो गुनगुनाती है
मुक़द्दस गान है हिंदी
हिमालय फ़क्र करता है
अजल से शान है हिंदी
तेरे वर्के तगाफ़ुल पे
नया फ़रमान है हिंदी
इबादत पे सदाक़त पे
सदा कुर्बान है हिंदी
मेरा मजहब मेरी दौलत
मेरा ईमान है हिंदी
हमारी पाक़ संस्कृति में
बसा सम्मान है हिंदी
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 25, 2014 at 11:03am — 30 Comments
221 2121 1221 212
हर सम्त आस पास गुलिस्तान बन गये
ये माहो शम्स गुल मेरी पहचान बन गये
जो लोग शह्र फूँक के नादान बन गये
बदकिस्मती से आज निगहबान बन गये
आँखों में धूल झोंक के लोगों की देख लो
मतलब परस्त मुल्क के सुल्तान बन गये
चमके तो मेह्र बन गये जो आसमान की
वो आँखों में उतरते ही अरमान बन गये
जिनकी ज़बाँ उगलती रही ज़ह्र अब तलक
कैसे ये मान लूँ कि वो इंसान बन गये
सूरत बदल गई…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on September 25, 2014 at 7:54am — 20 Comments
तीर के अपने नियम हैं जिस्म के अपने नियम
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2122 2122 2122 212
तीर के अपने नियम हैं जिस्म के अपने नियम
एक का जो फर्ज़ ठहरा दूसरे का है सितम
कुछ हक़ीक़त आपकी भी सख़्त थी पत्थर नुमा
और कुछ मज़बूतियों के थे हमे भी कुछ भरम
मंजिले मक़्सूद है, खालिश मुहब्बत इसलिए
बारहा लेते रहेंगे मर के सारे फिर जनम
किस क़दर अपनी मुहब्बत मुश्किलों मे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 7:00am — 30 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on September 24, 2014 at 9:00pm — 12 Comments
यदि मैं आज हूँ
आज के बाद भी हूँ मैं
तो वह अवश्य होगा।
यदि जीवन की गूँज
जीने की अभिलाषा
लय भरा संगीत है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि उसमें नदी का
कलकल नाद है
पंखियों का कलरव है
कोयल का कलघोष है, तो
वह अवश्य होगा।
यदि हम उत्तराधिकारी हैं
हमसे वंशावली है
हम योग का एक अंश हैं, तो
वह अवश्य होगा।
ब्रह्माण्ड की धधकती आग से
निकल कर शब्द ब्रह्म का
निनाद यदि है, तो
वह…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 24, 2014 at 8:24pm — 1 Comment
2122 2122 2122 २१२
आज ये महफ़िल सजाकर आप क्यूँ गुम हो गये
हमको महफ़िल में बुलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
पोखरों को पार करना भी न सीखा है अभी
सामने सागर दिखाकर आप क्यूँ गुम हो गये
लहरों से डरकर खड़े थे हम किनारों पर यहाँ
हौसला दिल में जगाकर आप क्यूँ गुम हो गये
तीरगी के साथ में तूफ़ान भी कितने यहाँ
इक दफा दीपक जलाकर आप क्यूँ गुम हो गये
आपकी ये खामुशी चुभती है नश्तर सी हमें
हमको यूं…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 24, 2014 at 3:01pm — 15 Comments
नवगीत..चलता सूरज रहा अकेला
घूमा अम्बर मिला न मेला,
चलता सूरज रहा अकेला.
--
गुरु मंगल सब चाँद सितारे,
अंधियारे में जलते सारे.
बृथा भटकता उनपर क्यों मन,
होगा उनका अपना जीवन.
कोई साथ नहीं देता जब,
निकला है दिनकर अलबेला.
..चलता सूरज रहा अकेला.
--
पीपल के थर्राते पात,
छुईमुई के सकुचाते गात.
ऊषा की ज्यो छाती लाली,
पुलकित हो जाती हरियाली.
सभी चाहते भोजन पानी,
जल थल पर है मचा…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 24, 2014 at 1:19pm — 8 Comments
फुसफुसाने की आवाज सुन काजल जैसे ही पास पहुँची सुना कि -तुम आ गये न, मैं जानती थी तुम जरुर आओगें, सब झूठ बोलते थे, तुम नहीं आ सकते अब कभी|
"भाभी आप किससे बात कर रही हैं कोई नहीं हैं यहाँ"
"अरे देखो ये हैं ना खड़े, जाओ पानी ले आओ अपने भैया के लिय बहुत प्यासे है|"
डरी सी अम्मा-अम्मा करते ननद के जाते ही भाभी गर्व से मुस्करा दी|
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by savitamishra on September 24, 2014 at 11:34am — 19 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 24, 2014 at 9:44am — 23 Comments
1- शत्रु के सत्रह हार
काम1, क्रोध2, मद3, लोभ4, मोह5,
मत्सर6, रिपु के संचार।
द्वेष7, असत्य8, असंयम9, गल्प10,
प्रपंच11, करे संहार12।
स्तेय13, स्वार्थ14, उत्कोच15, प्रवंचना16,
विषधर अहंकार17।
जो धारें ये अवगुण सारे
सत्रहों हैं शत्रु…
ContinueAdded by Dr. Gopal Krishna Bhatt 'Aakul' on September 23, 2014 at 10:01pm — 5 Comments
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