पटियाला-शांत शहर और दिलवाले लोग (यात्रा वृतांत-१) से आगे …
संगीत-संध्या में धमाल करते-करते और रात्री-भोजन के सुस्वादु व्यंजनों के दौरान भी एक दूसरे की जम कर खिंचाई हुयी और भोजपुरी गाने के बोल पर ठहाके पर ठहाके लगे | आ. बागी जी, आ. सौरभ जी ने कई भोजपुरी-ठुमके वाले…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on October 2, 2014 at 8:30am — 14 Comments
आल्हा छंद
बरसों पहले बंधु बनाकर, चाउ -माउ चीनी मुस्काय।
और उसे हम बड़े प्यार से, भैया कहकर गले लगाय।।
हर आतंकी पाकिस्तानी, चाल चीन की समझ न आय ।
दो मुँह वाला अमरीका है, विकिलीक्स दुनिया को बताय।।
एक ओर है पाक समस्या , और कहीं चीनी घुस जाय ।
*राम -…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 1, 2014 at 3:30pm — 12 Comments
जवान बेटा मरा था उसका I मातम फैला हुआ था परिवार में, परिवार के हरेक सदस्य में, सदस्यों के दिलों में I लेकिन, श्राद्धकर्म तो करना ही पड़ेगा, गाँववासियों को भोज तो खिलाना ही पड़ेगाI
आज उसी का भोज है I लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जले हैं I भोज है, जबकि एक घर शोकाग्नि में तप रहा हैं और इसी तपन पर ऊफन रहा है - चावल, दाल, सब्जी ...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Vivek Jha on October 1, 2014 at 12:30pm — 5 Comments
विश्व गुरु कहलाने वाले भारत की बुनियादी शिक्षा सरकार के हाथों की कठपुतली बनकर रह गयी है। कहते हें बुनियाद जितनी मजबूत होगी, इमारत उतनी ही बुलंद होगी I इसी तरह प्राथमिक शिक्षा का स्तर जितना बेहतर होगा, देश के नौनिहालों का भविष्य उतना ही उज्जवल होगा । आज एक तरफ हम विकास की तमाम राहें क्यू न तय कर रहे हों और देश की तरक्की के लिए विदेशों के साथ दोस्ती का ख्वाब बेशक सज़ा रहे हो, लेकिन दूसरी तरफ इन सबके साथ एक बहुत बड़ा कड़वा सच जो हम अपनी आंखो से देख रहे है वो है प्राथमिक शिक्षा का डगमगाता स्वरूप,…
ContinueAdded by DR. HIRDESH CHAUDHARY on October 1, 2014 at 11:40am — 4 Comments
मिलती है तूँ ख्वाबो में,
अक्सर ऐसा क्यूँ होता है!
तेरी यादों के घेरे में,
ये दिल चुपके से रोता है!
आँखों का भी क्या कहना,
ना जाने कब सोता है!
दीदार तेरे कब होंगे,
सपने यही संजोता है!
मन रहता है विचलित सा,
क्या पाया, क्या खोता है!
तन भी लगता है मैला
पापो की गठरी ढ़ोता है!
खुद की भी परवाह नही,
अब ऐसा क्यूँ होता है!!
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on October 1, 2014 at 10:30am — 6 Comments
माँ
ज़िक्र त्याग का हुआ जहाँ माँ!
नाम तुम्हारा चलकर
आया।
कैसे तुम्हें रचा विधना ने
इतना कोमल इतना स्नेहिल!
ऊर्जस्वित इस मुख के आगे
पूर्ण चंद्र भी लगता धूमिल।
क्षण भंगुर भव-भोग सकल माँ!
सुख अक्षुण्ण तुम्हारा
जाया।
दिया जलाया मंदिर-मंदिर
मान-मनौती की धर बाती।
जहाँ देखती पीर-पाँव तुम
दुआ माँगने नत हो जाती।
क्या-क्या सूत्र नहीं माँ…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on October 1, 2014 at 9:30am — 9 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी के ज्येष्ठ सुपुत्र श्री ऋषि प्रभाकर जी के मंगल विवाह में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ | 25 सितम्बर की शाम को लेडीज संगीत के आयोजन में शामिल होना तय था | हमारी ट्रेन दिल्ली से राजपुरा तक थी वहाँ से हमने बस पटियाला तक की ली फिर पंजाबी यूनिवर्सिटी बस स्टैंड पर हमें प्यारे से रोबिन और मनु जी लेने आ गए | इस बीच में लगातार प्रभाकर सर, आ. गणेश जी बागी से…
Added by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 11:30am — 33 Comments
मंथर गति से
थमा नहि पल कोई सुहाना
बीत सदा जाता है।
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता है।
सींचा एक एक पौधा तब
वन उपवन लहराते।
अनजाने से सन्नाटे ये
चुपके चुपके आते।
बड़ा तिलस्मी मरूथल
पग पग
जीत सदा जाता है
अल सुबहा के स्वपन सजीले
दिन भर धूम मचाते।
ऊषा के स्वर्णिम चंचल रँग
साँझ ढले थक जाते।
श्याम निशा के रँग
से जीवन
भीत सदा जाता है
मंथर गति से घट जीवन का
रीत सदा जाता…
Added by seemahari sharma on September 30, 2014 at 2:00am — 16 Comments
पाँव में खुद के बिवाई हो गयी.
आदमी तेरी दुहाई हो गयी.
वायु पानी भी नहीं हैं शुद्ध अब,
सांस लेने में बुराई हो गयी.
बारिशों का दौर सूखा जा रहा.
मौसमों की लो रुषायी हो गयी.
आपदाएं रोज़ होतीं हर कहीं,
रुष्ट अब जैसे खुदाई हो गयी.
काट डाले पेड़ सब मासूम से,
जंगलों की तो सफाई हो गयी.
काटती है पैर खुद अपने भला,
देखिये आरी कसाई हो गयी.
पेड़ दिखते थे जहाँ पर गाँव…
ContinueAdded by harivallabh sharma on September 30, 2014 at 1:00am — 18 Comments
चार माह की
तपती धरा पर
जैसे ही बारिश की बूँदे बरसी
बो दिये , नन्हे-नन्हे अंकुरों को
कई कतारों में
सभी ने मिलकर
नन्हें -नन्हे से हाथो को
ऊँचा उठाकर
दूर कर दी , मिट्टी की चादर
धीरे से झाँक ने लगे
इस सुंदर सी दुनिया को
दो से चार और फिर छै:
धीरे-धीरे पत्तियां बढ़ने लगी
ढांकने लगी
अपनी ही छाँव से,
नाजुक जड़ों को
धूप में भी बनाये रखी
अपने-अपने हिस्से की नमी
अपनी एकता की…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on September 29, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
लो अब मैं सुधर गया
उनके दिल से उतर गया
याद न आया उनको मैं भी
मेरी कुरबत भी न भा पाई
उनकी सुधियों से गुजर गया
इक पतझड़ सा बिखर गया
मलूल हुआ आनन्द
सोचकर कि वो
इजहारे-वक्त पर मुकर गया
उसूल देखो यार मेरे
साए में…
Added by anand murthy on September 29, 2014 at 7:30pm — 4 Comments
(1)
रे दुराचारी
देख ना आयी शर्म
अबला नारी
(2)
बन सबला
कर नाश दुष्टों का
नारी अबला
(3)
नन्ही सी जान
खिलखिला देती थी
आज बेजान
(4)
मन को भाया
घने धूप में पंथी
वृक्ष की छाया
(5)
सांस की जान
काट रहे नादान
होते बेजान
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Pawan Kumar on September 29, 2014 at 1:00pm — 12 Comments
१.
क्या माली का हो गया, बाग़ों से अनुबंध ?
चित्र छपा है फूल का, शीशी में है गंध |
२.
चूल्हे न्यारे हो गये, आँगन में दीवार
बूढ़ी माँ ने मौन धर, बाँट लिए त्यौहार |
३.
मुल्ला जी देते रहे, पाँचों वक़्त अजान
उस मौला को भा गई, बच्चे की मुस्कान |
४.
एक तमाशा फिर हुआ, इन दंगों के बाद
जिनने फूंकी बस्तियाँ, बाँट रहें इमदाद |
५.
शीशाघर की मीन सा, यारों अपना हाल
दीवारों में क़ैद है, सुख के ओछे ताल…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 29, 2014 at 8:30am — 14 Comments
कौन दे उल्लास मन को ? फिर वसन स्वर्णिम, किरन को ?
हो गये जो स्वप्न ओझल फिर दरस उनके नयन को ?
कोपलों पर पहरुये अंगार धधके धर रहे हैं
साधना कापालिकी उन्माद के स्वर कर रहे हैं
त्राहि मांगें अश्रु किससे, वेदना किसको दिखायें
कौन दे स्पर्श शीतल अग्निवाही इस पवन को ?
कोटि दुःशासन निरंतर देह मथते, मान हरते
द्रौपदी का आर्त क्रंदन अनसुना श्रीकृष्ण करते
नेह के पीयूष से अभिषेक कर फिर कौन दे अब
भाल को सौभाग्य कुमकुम, आलता चंचल चरन को…
Added by Sulabh Agnihotri on September 28, 2014 at 5:20pm — 16 Comments
Added by ram shiromani pathak on September 28, 2014 at 12:30pm — 16 Comments
कपूर साहब कंस्ट्रक्शन कम्पनी के मालिक हैं । उनके संरक्षण में चलने वाली साहित्यिक संस्था सरकारी विभाग के सर्वोच्च अधिकारी वर्मा जी को उनकी लिखी किताब के लिए आज सम्मानित कर रही है । कपूर साहब ने शॉल, स्मृति-चिन्ह और स्वर्ण-पत्र देकर वर्माजी को सम्मानित किया ।
कार्यक्रम समापन के पश्चात कपूर साहब ने वर्मा जी को बधाई देते हुए धीरे से कहा, "सर, जरा उस 200 करोड़ वाले टेंडर को देख…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 28, 2014 at 10:00am — 35 Comments
Added by seemahari sharma on September 28, 2014 at 1:30am — 21 Comments
एक विचार---
तुम महामंत्र पावन सुधा सी,मैं गरल का महानिंदय प्याला
मरते प्राणों की संजीवनी तुम, रूप पल-पल तुम्हारा निराला ॥ [१]
माँ तेरे दिब्य दर्शन में मैने, चाँद तारों का दर्शन किया है,|
तेरे नयनों के काजल ने जग में,रात का रूप धारण किया है ||[२]
मैने हर रूप की चाँदनी में, तेरी करुणा की रातें गिनी है|
मैने हर राग की रागिनी को,शक्ति के गीत गाते सुनी है||[३]
------------k. उमा
Added by uma katiyar on September 27, 2014 at 2:29pm — 2 Comments
खेतों के दरके सीने पर बादल बनकर आ रामा
होठों के तपते मरुथल पर छागल बनकर आ रामा
बोली लगकर बिकता है अब आशीषों का रेशम भी
निर्वसना है श्रध्दा मेरी मलमल बनकर आ रामा
भक्ति युगों से दीवानी है राधा मीरा के जैसी
मन से मन मिल जाये अपना पागल बनकर आ रामा
दीप बुझे हैं आशाओं के रात घनेरी है गम की
प्राची से उजली किरनों का आँचल बनकर आ रामा
छप्पन भोगों के लालच में क्यूं पत्थर बन बैठा है
भूखों की रीती थाली में…
ContinueAdded by khursheed khairadi on September 27, 2014 at 12:30pm — 9 Comments
तेरे बिन अपना हाल ....सखी री तुझे क्या बतलाऊं
गुल बिन ज्यों गुलदस्ता है
भूले को ज्यों इक रस्ता है
कॉपी बिन ज्यों इक बस्ता है
और दाल बिना ज्यों खस्ता है
वसंत...बिना इक साल ......सखी री तुझे क्या बतलाऊं
माँ बिन .. जैसे लोरी है
भ्रात बिना वो डोरी ..सखी
चोर बिना ..ज्यों चोरी है
पनघट है बिन गोरी..सखी
राधा बिन ज्यों गोपाल.......सखी री तुझे क्या बतलाऊं
ज्यों अंगना है बिन नोनी के
ब्रिटेन है..... बिन टोनी…
ContinueAdded by anand murthy on September 27, 2014 at 12:00pm — 2 Comments
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