Added by विवेक मिश्र on August 3, 2013 at 3:09pm — 26 Comments
Added by Admin on August 3, 2013 at 12:00pm — 8 Comments
Added by Ashish Srivastava on August 3, 2013 at 11:00am — 4 Comments
बहर : हज़ज मुरब्बा सालिम
१२२२, १२२२
दिवाना दिल जिगर कर दो,
इधर भी तो नज़र कर दो,
फलक से चाँद लाऊं मैं,
इशारा तुम अगर कर दो,
अकेले रास्ता मुश्किल,
सुहाना तुम सफ़र कर दो,
हजारों मैं ग़ज़ल कह दूँ,
सरल थोड़ी बहर कर दो,
पिला दो हाँथ से अपने,
सुधा बेशक जहर कर दो,
मुहब्बत मैं अजय कर दूँ,
कहानी तुम अमर कर दो...
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by अरुन 'अनन्त' on August 3, 2013 at 10:30am — 16 Comments
इस आधुनिक और भागमभाग जिंदगी में यदि किसी चीज़ का अकाल पड़ा है तो वो समय है कोई किसी से बिना मतलब मिलना नहीं चाहता यदि आप किसी से मिलना चाहो तो उसके पास टाइम नही है। और मजबूरी वश या अनजाने में यदि मिलना भी पड़ जायें तो मात्र दिखावटी प्यार व चन्द रटी रटाई बातें करने के बाद मौका मिलते ही “आओ ना कभी ” कह कर बात खत्म करने की कोशिश की जाती है और सामने वाला भी तुरन्त आपकी मंशा समझ कर टाइम ही नही मिलता का नपा तुला जवाब देकर इतिश्री कर लेता है। लगता है जैसे एक…
ContinueAdded by D P Mathur on August 3, 2013 at 9:23am — 13 Comments
किसान हीरा की पत्नी घाट से जो मटका भर कर लाती थी, उसमें छोटा सा छेद हो गया था| उस पर हाथ रखते रखते भी पानी ज़मीन पर गिर ही जाता| जैसे तैसे वो पानी लेकर आती थी|
उसने अपने पति से इस बात की शिकायत की कि, अब इस मटके से पानी भरना संभव नहीं है, आप नया मटका ले आओ| हीरा थोड़ा व्यस्त था, जब तक वो नया मटका खरीदता, तब तक पुराने मटके का छेद काफी बढ़ गया और बहुत सारा पानी तो रास्ते में ही गिर जाता|
नया मटका आते ही पुराना मटका हीरा की पत्नी ने बाहर फैंक दिया, वहां काफी कीचड़ थी,…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 1:00am — 8 Comments
उसके लिए कहना कितना आसान था,
सुखों के लिए बिक रहा मेरा ईमान था |
जो दुखों के पंख लगा के घर में आता है,
उसकी खुशामदीद का क्यों अरमान था |
तय की थीं मंज़िलें जिन्होंने दोस्ती की
वो कह गए कि उनका बड़ा एहसान था |
मैनें खोद के देखा इंसानियत की परतों को
ना तो वहां रूह थी और कहाँ इंसान था |
आओ छुपा दें हर ग़म को आखों में ही
सुख को सुखाना कहां इतना आसान था |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on August 3, 2013 at 12:00am — 10 Comments
सावधान रहो
सतर्क रहो
किस किस से
कब कब
कहाँ कहाँ
हमेशा रहो
हरदम रहो
जागते हुए भी
सोते हुए भी
क्या कहा ?
ख्वाब देखती हो
किसने कहा था
बंद करो
कल्पना की कूची से
आसमान में रंग भरना
उड़ना चाहती हो ?
क़तर डालो पंखो को
अभी के अभी
ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो
अरे तुम तो खिलखिलाती भी…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 2, 2013 at 10:30pm — 43 Comments
प्रथम प्रयास
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1. बंजर हो धरती कितनी पर ये मन उर्वर देश वही है।
शूल गड़े दुखते तन में नित कातरता पर लेश नहीं है।
कौन मुझे समझे,परखे,उलझा अपना चिर वेश वही है।
कुंठित हो कर भी मुझमें कुछ धार अभी तक शेष कहीं है॥
2.
सादर है अधिकार तुम्हें तुम रूप-सुधा अविराम लुटाना।
तारक,हीरक या मणि-कांचन-मंडित जीवन पे इतराना।
यौवन की चिनगी दिखला कर प्रेम-हुताशन भी सुलगाना।
प्यास बुझे न नदी-जल से जब सागर के तट गागर लाना॥…
Added by Ravi Prakash on August 2, 2013 at 8:00am — 11 Comments
वज्न- 2122 1212 112
कब से बेकल है ये बहार बहुत
रोज़ो-शब तेरा इंतज़ार बहुत
इश्क कामिल न हो सका किसी का
आये दुन्या में जाँनिसार बहुत
रंग लायेगा आशिकी का जुनूँ
सुर्ख है अब के रसनो-दार बहुत
आदमीयत से है गुरेज़ जिन्हें
अम्न गुज़रे है…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on August 1, 2013 at 10:00pm — 14 Comments
फूल चम्पा के सब खो गए
जब से हम शह्र के हो गए
रात फिर बेसुरी धुन बजाती रही
दोपहर भोर पर मुस्कुराती रही
रतजगों की फसल
काटने के लिए
बीज बेचैनी के बो गए
प्रश्न पत्रों सी लगने लगी जिंदगी
ताका झाकी का मोहताज़ है आदमी
आयेगा एक दिन
जब सुनेंगे यही
लीक पर्चे सभी हो गए
मौल श्री से हैं झरते नहीं फूल अब
गुलमोहर के तले है न स्कूल अब
अब न अठखेलियाँ
चम्पई उंगलियाँ
स्वप्न आये न फिर जो…
Added by Rana Pratap Singh on August 1, 2013 at 9:23pm — 36 Comments
तुम्हें रोने की आज़ादी
तुम्हें मिल जाएंगे कंधे
तुम्हें घुट-घुट के जीने का
मुद्दत से तजुर्बा है
तुम्हें खामोश रहकर
बात करना अच्छा आता है
गमों का बोझ आ जाए तो
तुम गाते-गुनगुनाते हो
तुम्हारे गीत सुनकर वो
हिलाते सिर देते दाद...
इन्ही आदत के चलते ये
ज़माना बस तुम्हारा है
कि तुम जी लोगे इसी तरह
ऎसे बेदर्द मौसम में
ऎसे बेशर्म लोगों में.....
इसी तरह की मिट्टी से
बने लोगों की खासखास…
Added by anwar suhail on August 1, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
पावस के कुछ दोहे-
तुम तक ले आईं हमें,पकड़ पकड़ कर हाथ
सुधियाँ तो चलतीं गयीं, पुरवाई के साथ.
मैं हूँ तट का बांसवन,तू नादिया की धार
तूफ़ानों ने कर दिए,मिलने के आसार.
सुधियों के उपवन खिले,उस पर बरसा मेह
फागुन फागुन…
Added by राजेश शर्मा on August 1, 2013 at 9:00pm — 16 Comments
प्रिय ! कुछ अव्यक्त पीड़ा
तुम समझ पाते
यदि तुमसे कह दूँ
ये मेरा प्रेम न होगा
अन्तर्मन कर रहा यह
सस्वर करुण पुकार
तुम से छिपा कर
कुछ जख्म सी लिए हैं
कुछ अभी भी बाकी है
स्नेह मरहम रख देते
उन जख्मों पर
सपनों को सँजो लेते
मिल कर बुने थे जो
बनाने को नवनीड़
सुनीड़ दुर्लभ सा
मांग लूँ तुमसे
ये मेरा प्रेम न होगा
प्रिय ! कुछ अव्यकत पीड़ा ......... अन्नपूर्णा बाजपेई
मौलिक…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 1, 2013 at 7:18pm — 10 Comments
मेरे मन का तुम आकर्षण हो
इस ह्रदय का तुम स्पंदन हो
तुम कुमकुम हो तुम चन्दन हो
तुम ताजमहल से सुन्दर हो
बस तुम ही मेरी प्रियतम हो
दुनिया में तुम सुन्दरतम हो
तुम ही हो मेरा प्रेम राग
तुम ही हो मेरी प्रेम आग
मै भ्रमर बना तुम हो पराग
तुम मन मंदिर का हो चिराग
बस तुम ही मेरी प्रियतम हो
दुनिया में तुम सुन्दरतम हो
तुम ध्येय मेरे जीवन का हो
तुम ध्यान मेरे प्रतिपल का…
ContinueAdded by Aditya Kumar on August 1, 2013 at 6:43pm — 5 Comments
| आती है जब ग़म की आँधी , डूबता खुशी का किनारा | |
| मंजिल पाने की चाहत में , कोई जीता या हारा | |
| कुछ सोचें कुछ हो जाता है , मारा जाता है बेचारा | |
| हार जीत के लालच में ही , बस… |
Added by Shyam Narain Verma on August 1, 2013 at 2:26pm — 9 Comments
धन की खटिया छोड़ दे, मोह नहीं रख पास
तन मन चंगा रख सके, मन में भरे मिठास |
समय मौत ग्राहक कभी, आ टपके अनजान
इन्तजार करना नहीं, इनकी फिदरत जान |
मात पिता स्व यौवन का,सदा करे सम्मान,
जाने पर फिर ना मिले,सहजे रखकर ध्यान |
छोडो चिंता अतीत की, चिंतन में हो आज,
समय व्यर्थ गँवाय नहीं, झट निपटावे काज |
उत्तम संग संगीत का, संत संग हो बात,
दोस्त बने सह्रदय के, दुनिया को दे मात |
विद्या…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2013 at 1:30pm — 19 Comments
अजान सुन हामिद की नींद खुली, उसे याद आया कि उसके मालिक ने आज रात वध हेतु एक गाय लाने को कहा है. हामिद मालिक से पैसे ले बाजार से गाय खरीदकर आ रहा था. रास्ते में हामिद कभी गाय को पानी पिलाता तो कभी हरी घास खिलाता । गाय को बृक्ष की छाया में बांध खुद भी आराम करने लगा .थके होने के वजह से उसकी आँख लग गयी. अचानक आँख खुलने पर वह घबरा कर गाय ढूंढने लगा, तभी उसकी नजर मंदिर के अहाते में गाय पर पड़ी. वह गाय को…
Added by shubhra sharma on August 1, 2013 at 11:30am — 25 Comments
ये माना चाल में धीमा रहा हूँ
मगर जीता वही कछुवा रहा हूँ ||
बुझाई प्यास कंकर डाल मैंने
तेरे बचपन का वो कौवा रहा हूँ ||
कभी बख्शी थी मेरी जान उसने
छुड़ाया शेर को,चूहा रहा हूँ ||
कुँये में शेर को फुसला के लाया
बचाई जान वो खरहा रहा हूँ ||
मेरे बचपन न फिर तू आ सकेगा
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ ||
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर…
Added by अरुण कुमार निगम on August 1, 2013 at 8:48am — 12 Comments
"रचा न जिस वास्ते तुझे खुदा ने
उस रंग में कभी खुद को न रंग
दुनियादारी है रवायत दुनिया की
दुनियादार न बन दुनिया के संग
निश्चल ये दिल है ,चंचल जैसे
छलछल कलकल बहता पानी है
थम न जाना किसी मराहिल पे
दरिया की तो रविश ही रवानी है
खिलखिलाते देखता हूँ तुझे जब भी
याद आता है मुझको अपना बचपन
क्या बख्त होगा उस घर आँगन का
तेरे क़दमों से जो हो जायेगा गुलशन
खुदा न बशर ,न हूर न फ़रिश्ता है तू
अन्तर्मन में…
Added by Kedia Chhirag on August 1, 2013 at 8:30am — 2 Comments
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