Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 22, 2013 at 11:49am — No Comments
दीदार का बस तेरे अरमान रहा अक्सर
इस प्यार से तू मेरे अनजान रहा अक्सर
बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है
तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर
जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा
उस…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 22, 2013 at 11:29am — 12 Comments
फा+गुन का मौसम
फा=फाल्गुन खेलते
गुन=गुनगुनाने का मौसम
-लक्ष्मण लडीवाला
ऋतुओं में ऋतू राज बसंत,
बसंत में फाल्गुन मास-
माह में भी होली ख़ास,
गाँव गाँव खिलते, महकते
चहुँ ओर खेतो…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2013 at 10:00am — 12 Comments
बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२
----------------------------------------------
भिनभिनाने से तेरे कौन बदल जाता है
अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है
यूँ लगातार निगाहों से तू लेज़र न चला
आग ज्यादा हो तो पत्थर भी पिघल जाता है
जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना
दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है
तुझ से नज़रें तो मिला लूँ प’ तेरा गाल मुआँ
लाल अख़बार में फौरन ही बदल जाता है
थाम लेती है…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 22, 2013 at 12:14am — 8 Comments
जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,
मै जल रही थी.
मैं जल रही थी पेट की भूख से,
मैं जल रही थी माँ की बीमारी के भय से,
मैं जल रही थी बच्चों की स्कूल फीस की चिंता से .
जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,
मै जल रही थी.
*******
मैं बाहर थी
जब तुम मेरे अंदर प्रवेश कर रहे थे
मैं बाहर थी
हलवाई की दुकान पर.
पेट की जलन मिटाने के लिए
रोटियां खरीदती हुई.
मैं बाहर थी ,
दवा की दुकान पर
अपनी अम्मा के…
ContinueAdded by Neeraj Neer on March 21, 2013 at 10:31pm — 10 Comments
Added by Vindu Babu on March 21, 2013 at 10:13pm — 12 Comments
दोस्तों देखिये ग़ज़ल का मिजाज
जी रहे डरते डरते,
थक गये मरते मरते।
बात किस्मत की है,
हम गिरे चढ़ते चढ़ते।
खत्म अक्सर होता है,
आदमी लड़ते लड़ते।
है तमन्ना मरने की,
काम कुछ करते करते।
झड़ गये इक दिन सारे,
बाल ये झड़ते झड़ते।
जिन्दगी इक पुस्तक है,
याद हो पढ़ते पढ़ते।
डूब जाते सागर में,
हम कभी बढ़ते बढ़ते।
वक्त लग जाता…
ContinueAdded by rajinder sharma "raina" on March 21, 2013 at 7:30pm — No Comments
Added by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
घोर कलियुग आ गया
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 21, 2013 at 5:26pm — 2 Comments
भोला संग चली भवानी
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 21, 2013 at 3:58pm — 6 Comments
व्यथित गंगा ज्ञानि से संबोधित है.
गंगा की व्यथा ने ज्ञानि के हृदय को झजकोर दिया है. गंगा उसे बताती है मनुष्य की तमाम विसंगतियों, मुसीबतों, परेशानियों का कारण उस का ओछा ज्ञान है जिसे वह अपनी तरक्की का प्रयाय मान रहा है.
इस ज्ञान ने उसे…
ContinueAdded by Dr. Swaran J. Omcawr on March 21, 2013 at 1:30pm — 7 Comments
लूट अकूत मची सगरे अरु ,छोड़त नाहि घरै अपना !
आपस में झगड़ाइ रहे सब ,पावत कौन रहा कितना !!
खीचत छीनत मारत पीटत,धोइ रहे जइसे पिटना!
होड़ मची इक दूसर से बस ,कौन बनावत है कितना !!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on March 21, 2013 at 12:52pm — 8 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 21, 2013 at 12:43pm — 6 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 21, 2013 at 12:42pm — 5 Comments
वातायन निर्वाक प्रहरी था,
बाहर मस्त पवन था
अंदर तो ‘बाहर’ निश्चुप था,
अंतर में एक अगन था.
कितने ही लहरों पर पलकर,
कितने झोंके खाकर
कितने ही लहरों को लेकर,
कितने मोती पाकर –
मैं आया था शांत निकुंज में.
मैं आया था शांत निकुंज में,
एक तूफ़ाँ को पाने
एक हृदय को एक हृदय से,
एक ही कथा सुनाने.
पर निकुंज की छाया में
थी तुम बैठी उद्भासित सी,
थोड़ी सी सकुचायी सी
और थोड़ी सी घबरायी सी.
स्तब्ध रहे कुछ पल
हम दोनों, पलकों…
Added by sharadindu mukerji on March 21, 2013 at 3:47am — 11 Comments
लुढ़क के वहीं आ खड़ी हुई ज़िंदगी
जहाँ थे कभी खड़े,
कदम थे कितने नपे तुले
किस राह पर , कहाँ फिसल के रह गये.
मुड़कर देखना क्या ?
सोच के पछ्ताना क्या ?
हवा भी कुछ ऐसी बही,
चट्टान ढलान में ठहरता क्या ?
दूर दूर तक था रेगिस्तान
नैनों में कितने रेत पड़े,
आँसू किसके बहकर रहे
अतीत के या आने वाले कल के.
फूलों पर चलते थे कभी -
कब पंखुड़ियाँ रह गये मुरझा के,
एक शुष्क पात भी नहीं रहा
देखूँ जिसे कभी नज़र भर के.
जिधर भी गये हाथ…
ContinueAdded by coontee mukerji on March 20, 2013 at 9:50pm — 7 Comments
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।
दिल में ज़ख्म बनकर हँसते हैं आँसू।।
ग़म से जब दिल बेज़ार होता है,
ऐसे हाल में मुस्कुराना भी बेकार होता है,
तभी मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
बुरे वक़्त का दर्द सीने में छुपाया नहीं जाता,
क्या करें,जब किसी को ये बताया नहीं जाता,
यही दर्द के मोती बनकर चमकते हैं आँसू।
आँखों से मेरी छलक पड़ते हैं आँसू।।
इस दर्द को सीने में संभालना होता है मुश्किल,
इस बाढ़ को बढ़ने से रोकना होता है…
Added by Savitri Rathore on March 20, 2013 at 8:57pm — 13 Comments
!!जय हिन्द!!
दुइ-दुइ आॅख करो तो करो तुम
कायरता में छिपाओ नहिं
नजरिया।
दुइ-दुइ हाथ करो तो करो तुम
घमण्ड में सुनाओ नहिं
बड़बतिया।
दुइ-दुइ कृपाण रखो तो रखो तुम
दो धार रखाओ नहिं
कटरिया।
इक-इक कदम बढ़ो तो बढ़ो तुम
गुमराह कर दिखाओ नहिं
चैारहिया।
सत्यम इक धर्म चलो तो चलो सब
वतन खिलाफ बढ़ाओ नहिं
मजहबिया!
के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 20, 2013 at 8:36pm — 5 Comments
( ये कविता सूरज को दीपक दिखाने के बराबर है फिर भी मेरी तरफ से ओबीओ के सम्मान मे एक तुच्छ सी भेट, )
खुली किताब ( OPEN BOOK )
ये खुली किताब है बडी अनोखी, है गद्य-पद्य रचना की…
Continueमौसम में भी मच रही, फागुन की अब धूम|
झूमें हँस-हँस मंजरी, भँवरे जाते चूम||
डाल-डाल पर खिल रहे,केसर टेसू फूल|
आपस में घुल मिल गए ,बैर भाव को भूल||
महकी डाली आम की,मादक-मादक भोर|
लिखती पाती प्रेम की,होकर मस्त विभोर||
कान्हा को फुसला रही,फागुन प्रीत बयार|
राधा जी को भा रही,स्नेहिल रंग फुहार||
चन्दा ने फैला दिया,चाँदी भरा रूमाल|
सूरज ने बिखरा दिया,पीला ,लाल गुलाल||
क्यारी-क्यारी दे…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 20, 2013 at 4:32pm — 10 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |