शोभना जितनी सुन्दर थी उतनी ही बेबाक और गर्वीली भी थी. वह अमरीका से उच्च शिक्षा प्राप्त थी. होम मिनिस्ट्री में बहुत ही ऊँचे पद पर आसीन थी. उसे शादी नाम से बहुत चिढ़ थी. जब वह पैंतीस साल की हो गयी तो एकदिन उसके पिता ने उससे कहा- “ शोभना ! अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो बता देना मैं तुम्हारी शादी उसीसे कर दूँगा. ”
शोभना ने भी सोचा अब शादी कर ही लेनी चाहिये. अतः अपने पिता से बोली – “ठीक है पिता जी, लेकिन मुझे मेरे ही ग्रेड का वर चाहिये. ’’
शोभना स्वयं अपने वर की तलाश करने लगी.…
Added by coontee mukerji on March 25, 2013 at 9:00pm — 6 Comments
वाणी जब नयनों से छलके
दो दिल में हो एक स्पंदन,
हो केशगुच्छ के अवगुंठन में
अधरों का अधरों से मिलन –
जब अलि के नीरव गुंजन से
सिहरित हो, पुष्पित कोमल तन,
जब भाव बहे सरिता बनकर
भाषा हो मृदुल, मंद समीरण –
प्रिये तभी होता है प्राणों का
जीवन से आलिंगन.
जब पवन चले औ’ किलक उठे
कलियों का दल इठलाकर,
जब तरु की शाखों में जाग उठे
उन कोमल पत्रों का मर्मर,
जब ओस बिंदु को मिलता हो
तृण का कम्पित अवलम्बन –
बंधु तभी मुखरित होता है,
यह जग,…
Added by sharadindu mukerji on March 25, 2013 at 8:44pm — 4 Comments
Added by Neelima Sharma Nivia on March 25, 2013 at 6:31pm — 7 Comments
कटी फसल सा
पड़ा हुआ हूं
मिटा गझिन आकार
परती धरती
धूम धनुष ले
करती तीक्ष्ण प्रहार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
कर्म ताल में
कीच भर गए
यत्न सकल बेकार
मन की घिर्नी
घूम थक चुकी
पंथ मिला ना द्वार
छू लो तुम एकबार -- सुरमयी, छू लो तुम एकबार
जलद पटल
क्या चित्र बनाऊं
किसपर करूं सिंगार
स्वर्णमृग तो
राम साधते
मुझे चापते हार
छू लो तुम एकबार --…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 25, 2013 at 12:24pm — 4 Comments
मंच के सामने आठ दस लोग कुर्सियों पर बैठे थे। सफेद झक कुर्ता पायजामा पहने छरहरे बदन का एक युवक मंच पर खड़ा भाषण दे रहा था, ‘आज हमारे देश को भगत सिंह के आदर्शों की जरूरत है……..।‘ भाषण खत्म होने पर संचालक ने घोषणा की, ‘थोड़ी ही देर में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रारम्भ होंगे।‘
कुछ देर बाद एक युवती रंग बिरंगी वेशभूषा में मंच पर आयी और उसने एक गीत पर नृत्य आरंभ कर दिया ‘……चिकनी चमेली……’
भीड़ धीरे…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on March 25, 2013 at 10:00am — 32 Comments
दस फागुनी दोहे " 2013 "
तेरी ही खातिर सजे रंग अबीर के थाल ,
तेरे आने से हुई मेरी होली लाल ।
रंग पर्व में घुल गए इंतज़ार के रंग ,
होली सच में शोभती अपनों के ही संग ।
सरसों टेसू और पलाश हैं बसंत के दूत ,
रंग रूप से कर रहे मादकता आहूत ।
लज्जा तेरा रंग है मेरा रंग संकोच ,
ऐसे में…
Added by Abhinav Arun on March 25, 2013 at 9:30am — 14 Comments
कुछ ख़ास लिए आई होली
Added by Lata R.Ojha on March 24, 2013 at 11:30pm — 9 Comments
रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ सखि !
मेरा घर सूना , आंगन सूना ,
बाग बगीचे , पेड़ पात सूना
दिन रात सूना, सूना मेरा आंचल,
पिया परदेश , संसार मेरा सूना.
होली रंगों की थाल लिये
द्वार खड़ी हँस रही , क्या करूँ सखि !
उदासी मेरा रूप श्रृंगार, हाय !
नौकरी बनी सौतन मेरी.
बिन बादल बरसात होती नहीं,
डाल पर मैना अब गाती नहीं -
उड़ता है रंग हर कहीं,
कोई रंग मुझको भाता नहीं.
फूलों की बरसात हो रही,
मेरे जूड़े में फूल लगता नहीं -
अंतहीन…
Added by coontee mukerji on March 24, 2013 at 7:16pm — 5 Comments
"मैं हूं मौन!"
मैं कौन हूं ?
मैं हूं मौन!
महिलाओं की चैन लुटती रही
सरे राह।
दामिनी-दिल्ली की अस्मिता बनी
लाचारी।
सड़क पर बिफर गई
बेचारी।
और मैं मोमबत्ती जलाकर देखता रहा!
मैं कायर हूं ? नहीं!
कायरता नहीं मुझमें!
बस उन अबलाओं और अपने घरों की सुरक्षा में
सेंध देखता रहा !
और मैं मौन रहा।1
पुलिस की घूस, ठूंस, लाठी
बेवजह चलते रहे
अविराम!
नौकरशाही घोटाले…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 24, 2013 at 4:35pm — 14 Comments
(पति पत्नी में मंहगाई को लेकर होली पर नोकझोक)
बलम ना करो बलजोरी
अबके फागुन खेलूंगी ना
तोरे संग मैं होरी .
बलम ना करो बलजोरी .
मेरी बात माने नाहीं
मैं ना मानूंगी तोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
बलम ना करो बलजोरी.
चांदी की पिचकारी लाओ,
लाओ रंग गुलाबी लाल,
जयपूर से लंहगा लाओ
तब जाकर छुओ गाल.
***********
मंहगाई की मार ने गोरी
जीना किया मुहाल.
पिचकारी मंहगी…
ContinueAdded by Neeraj Neer on March 24, 2013 at 11:44am — 8 Comments
मै हूँ धरती
आसमान पे चाँद
साथ साथ है
....................
शीतल तन
लहराती चांदनी
छटा बिखरी
...................
ठंडी हवाएं
जल रहा बदन
तड़पा जाती
.................
स्नेहिल साथ
अंगडाई प्यार की
बहार आई
..................
रात की रानी
दुधिया चांदनी है
महके धरा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Rekha Joshi on March 23, 2013 at 11:21pm — 4 Comments
Added by Vindu Babu on March 23, 2013 at 11:11pm — 8 Comments
गंगा, (ज्ञान गंगा व जल गंगा) दोनों ही अपने शाश्वत सुन्दरतम मूल स्वभाव से दूर पर्दुषित व व्यथित, हमारे काव्य नायक 'ज्ञानी' से संवादरत हैं।
प्रस्तुत…
ContinueAdded by Dr. Swaran J. Omcawr on March 23, 2013 at 1:30pm — 2 Comments
लाल ललाम ललाट लिए,
ललि लागत है ललना अति गोरी,
गाल गुलाल गुबार गुमा,
गम गौण गिनावत है यह होरी,
नाच नचावत नाम…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on March 22, 2013 at 10:44pm — 7 Comments
1.किरीट सवैया
कोमल कोपल आमन बीचल, बैठि गयी धुन ताल सुनावत !
आय गयो फिर पीत बसन्तम, प्यार रसाल अलाप लुभावत!!
बागन बीच उड़े तितली मधु, बालक भांवर सो इतरावत !
फूल हँसे विहसे तन औ मन,‘सत्यम‘ ज्ञान विराग लुटावत!!
2.दुर्मिल सवैया
जब कन्त नहि हमरे घर मा, यहु बैरन कोकिल छेड़ रही !
फल फूल फले बगिया वनमा, पिक काक तिलेर चिढाये रही!!
ऋतुराज भले तुम जार मरो, वन .केसर. टेसु जलाय रही!
फिर काम रती धनुवा न चलो, महदेव उमा समुझाय रही!!…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 22, 2013 at 8:12pm — 6 Comments
होली के शुभ कामनाओं और बधाई सहित
रंग की उमंग में है या है भंग की....... तरंग,
मौसम की चाल में है लहरें...........गज़ब की…
Added by seema agrawal on March 22, 2013 at 7:46pm — 11 Comments
हल्की फुलकी ग़ज़ल पेश है दोस्तों
बर्फ दिल में जब जमी होती,
तभी आँखों में नमी होती।
धुँआ उठता जब आग जलती,
हवा चलती कब थमी होती।
फकत मिलते हाथ हाथों से,
दिलों में दूरी बनी होती।
हसीं मौसम देख मत इतरा,
ख़ुशी गम की भी सगी होती।…
Added by rajinder sharma "raina" on March 22, 2013 at 5:30pm — 2 Comments
कपोल पुष्प
अधर पंखुडियां
मनमोहिनी
तोतली बोली
नटखट,चंचल
मन मोहक
खिलखिलाता
बिगड़ता बनाता
बच्चे प्यारे है…
Added by ram shiromani pathak on March 22, 2013 at 5:04pm — 1 Comment
याद है
वो अपना दो कमरे का घर
जो दिन में
पहला वाला कमरा
बन जाता था
बैठक !!
बड़े करीने से लगा होता था
तख्ता, लकड़ी वाली कुर्सी
और टूटे हुए स्टूल पर रखा…
Added by Amod Kumar Srivastava on March 22, 2013 at 4:30pm — 4 Comments
काग़जी
सारी कवायद
बोल में
रेशम-तसर है
*गुंजलक में
कै़द वादों
से हकीकत
मुख्तसर है
खोखले नारे उठाए ...............
*कर्दमी
लोबान जलते
टापता
दूभर डगर है
बेरूखी
कहती हवा की
फाग कितना
बेअसर है
खोखले नारे उठाए ...............
स्तब्ध
चंपा, नागकेसर
बर्खास्त सेमल
की बहर है
बिलबिलाते
नीम, बरगद
*भवदीय भौंरा
ही निडर…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on March 22, 2013 at 1:43pm — 5 Comments
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