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महंगाई

महंगाई 

महंगाई ने कुछ ऐसा रंग दिखाया है 

आम सी दाल को भी खास बनाया है

जो दाल रोटी खा प्रभु के गुण गाते थे 

प्रभु को भूल आज,वो दाल की पूजा कर जाते हैं 

फास्ट फ़ूड खाने वाला आज दाल भी शौक से खाता है 

सूट पहनकर इतराता हुआ खुद के रौब दिखाता है 

धरती की दाल को आसमान…

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Added by Ranveer Pratap Singh on October 17, 2012 at 10:44pm — 4 Comments

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देखा है कई बार

अनीति के बढ़ते क़दमों को

शिखर तक जाते हुए

देखा है कई बार

दुष्टों को....सूर्य पर मंडराते हुए



किन्तु कभी नहीं सोचा

कि होकर शामिल उनमें

मैं भी पाऊं सामीप्य गगन का/



ना ही सोचा कि मैं छोडूं

धरा नीति की

और विराजूं उड़ते रथ में/

है भीतर कुछ ऐसा बैठा

देता नहीं भटकने पथ में/

हे ईश् मेरे कहीं वो तुम तो नहीं



देखा है कई बार

सत्य को युद्धरत/

क्षत विक्षत...आहत/

सांस तक लेने के…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on October 17, 2012 at 10:23pm — 4 Comments

ग़ज़ल

चारागर की ख़ता नहीं कोई.

दर्दे-दिल की दवा नहीं कोई.



आप आये न मौसमे-गुल में,

इससे बढ़कर सज़ा नहीं कोई.



ग़म से भरपूर है किताबे-दिल,

ऐश का हाशिया नहीं कोई.



देख दुनिया को अच्छी नज़रों से,

सब भले हैं बुरा नहीं कोई.



सच का हामी है कौन पूछा तो,

वक़्त ने कह दिया नहीं कोई.



है सफ़र दश्ते-नाउम्मीदी का,

मौतेबर रहनुमा नहीं कोई.



अपने ही घर में हैं पराये हम,

बेग़रज़ राबता नहीं कोई.



इस…

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Added by लतीफ़ ख़ान on October 17, 2012 at 6:00pm — 8 Comments

मलाला को समर्पित एक रचना

कुहरीले जंगल में हंसती

हरी हवा सी चलती हूं

मुक्‍त  गगन से गिरी ओस हूं

तृण टुनगों पर पलती हूं

 

हू हू करता आंख दिखाता

रे तमस किसे भरमाता है

देख मेरा बस एक नाद ही

कैसे तुझे जलाता है

 

अभी जरा निष्‍पंद पड़ी हूं

कहां अभी तक हारी हूं

भूल न करना मरी पड़ी हूं

अबला,बाल,बेचारी हूं

 

अरे कुटिल यह चाप तुम्‍हारा

वृथा चढ़ा रह जाएगा

तेरा ही तम कहीं किसी दिन

तुझको भी डंस…

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Added by राजेश 'मृदु' on October 17, 2012 at 5:02pm — 3 Comments

जनता का संयम

हमने चुना था सोंचकर, इनमे उनके वंश का ही खून है 

वे स्वर्ग से बहाते आंसू, लजाया इसने मेरा ही खून है |

 
हमने चुना था सुनकर, उनने किये थे जो पक्के वादे,
हमें क्या पता था मन में,उनके थे कुछ और ही  इरादे|…
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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 17, 2012 at 4:51pm — No Comments

यह मेरा दर्द है

यह मेरा दर्द है
 

यह मेरा दर्द है,आँखों से छलक आता है

यूँ ही पैमाना,बदनाम हुआ जाता है



लाख कह ले यह ज़माना,न जीना आया हमें

वक़्त अच्छा हो बुरा हो,गुज़र तो जाता है



सबको हँसता हुआ देख लूँ,मैं चला जाऊँगा

यूँ भी "दीपक" जलनें से कहाँ बच पाता है



मैं न अपनों को याद आऊँ,न गैरों को

प्यार उस हद तक मेरा मुझको,नज़र आता है…

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Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 1:00pm — 3 Comments

गायत्री छंद 'सिर्फ एक प्रयोग' गायत्री मंत्र की तरह

================गायत्री छंद=====================



यह इस छंद पर सिर्फ एक प्रयोग है अंतरजाल के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार

२४ वर्णों के इस छंद में इसमें तीन चरण होते हैं

इस छंद का इक विधान जो गायत्री मंत्र की तरह ही है

विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 12:00pm — No Comments

मेरे हमसफर

ओ मेरे  हमसफर ओ हमदम मेरे 
मेरी आँखों में देख तस्वीर अपनी 
जो बन चुकी है अब तकदीर मेरी 
बह चली मै अब बहती हवाओं में 
उड़ रही हूँ हवाओं में संग तुम्हारे 
इस से पहले कि रुख  हवाओं का 
न बदल जाये कहीं थाम लो मुझे  
कहीं ऐसा न हो शाख से टूटे हुये
पत्ते सी भटकती रहूँ दर बदर मै
जन्म जन्म के साथी बन के मेरे 
ले लो मुझे आगोश में तुम अपने 
ओ…
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Added by Rekha Joshi on October 17, 2012 at 11:57am — 7 Comments

रक्षक ही भक्षक

रक्षक ही भक्षक 
जांच अगर हो कायदे से 
कोई बच न पाए
भारत में बच्चे से बूढ़ा
घूसखोर  नज़र आए
बड़े बड़े घोटाले यहाँ पर
मामूली सा खेल है
बच्चे को जब तक दो न चॉकलेट
वह भी स्कूल न जाए
कब तक लड़ेंगे अन्ना हजारे
कब तक केजरी वाल 
हर शाख पे उल्लू बैठा…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 11:44am — 3 Comments

वही हँसाता है हमें, वही रुलाता है

वही हँसाता है हमें, वही रुलाता है

गम ओर ख़ुशी देकर आज़माता है

 

अपनों की अहमियत भी सीखाता है

बिछुडों को फिर वही मिलाता है

 

यकीं खुदा का तो बड़ा सीधा है

मारता है वही,वही जिलाता है

 

इसका उसका क्या है जग में

सबका हिस्सा तो वही बनाता है

 

नेमतें उसकी तो बड़ी निराली है

छीनता है कभी,कभी  दिलाता है

 

मेरे घर में कभी तुम्हारे घर में

खुशियाँ भी तो वही पहुँचाता है

 

आखिर भूले…

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Added by नादिर ख़ान on October 17, 2012 at 11:15am — No Comments

छुपा सकता है

छुपा सकता है 
 

यह हिन्दोस्तान है प्यारे 

यहाँ कुछ भी हो सकता है
ख़ाली जगह में स्थापित मूर्ति पर 
बोर्ड प्राचीन मंदिर का लग सकता है
आस्था के नाम पर 
यहाँ बहुत कुछ होता है
हर एक तिलकधारी 
बाबा नहीं होता है 
जिसमें दम हो वह जहाँ चाहे 
कब्ज़ा जमा सकता है
इन्हीं धर्मस्थलों की आड़ में 
अपने कुकर्म छुपा सकता…
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Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 17, 2012 at 10:52am — No Comments

"गायत्री छंद" आप सभी को शारदीय नवरात्र की अनेकानेक शुभकामनाएं



आप सभी को शारदीय नवरात्र की अनेकानेक शुभकामनाएं

"गायत्री छंद"

विधान -\\१ भगण १रगण १ मगण १ तगण......१ भगण १ यगण १ रगण १ जगण\\

२ १ १ -  २ १ २  - २ २ २  - २ २ १     ,     २ १ १  - १ २ २  - २ १ २   - १ २ १



माँ कमला सती दुर्गा दे दो भक्ति, हो तुम अनंता माँ महान शक्ति ||…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 17, 2012 at 10:30am — No Comments

लेख: हमारे सोलह संस्कार --संजीव 'सलिल'

लेख:

हमारे सोलह संस्कार

संजीव 'सलिल'

*

अर्थ:

'संस्कारो हि नाम संस्कार्यस्य गुणकानेन, दोषपनयेन वा' अर्थात गुणों के उत्कर्ष तथा दोषों के अपकर्ष की विधि ही संस्कार है।

शंकराचार्य के ब्रम्ह्सूत्र के अनुसार किसी वस्तु, पदार्थ या आकृति में गुण, सौंदर्य, खूबियों को आरोपित करना / बढ़ाना  तथा उसकी त्रुटियों, कमियों, दोषों को हटाने / मिटने का नाम संस्कार है।

संस्कृत भाषा में प्रयुक्त क्रिया (धातु) 'कृ' के पूर्व सम उपसर्ग तथा पश्चात् 'आर' कृदंत के संयोग से बने इस शब्द…

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Added by sanjiv verma 'salil' on October 16, 2012 at 10:09pm — 1 Comment

रख गया कोई

आँखों मे उम्मीदों के चिराग रख गया कोई

फिर जलने का असबाब रख गया कोई

 

पकड़कर मेरा चोरी से देखना उसको

राज़-ए-दिल बेनकाब रख गया कोई

 

करके वादा सफर मे साथ देने का

हौसले बेहिसाब रख गया कोई

 

झुकाकर शर्म से अपनी पलकें

मेरे सवाल का जवाब रख गया कोई

 

मेरी नींदों से महरूम आँखों मे

जिंदगी के ख्वाब रख गया कोई

 

शरद 

Added by शरद कुमार on October 16, 2012 at 3:29pm — No Comments

ग़ज़ल "बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़"

==========ग़ज़ल===========

बहरे - रमल मुसम्मन मह्जूफ़

वज्न- २ १ २ २- २ १ २ २ - २ १ २ २- २ १ २



पीर है खामोश भर के आह चिल्लाती नहीं

वो सिसकती है ग़मों में नज्म तो गाती नहीं



बाद दंगों के उडी हैं इस कदर चिंगारियाँ

आग है सारे दियों में तेल औ बाती नहीं



जिन सफाहों पर गिराया हर्फे-नफ़रत का जहर

हैं सलामत तेरे ख़त वो दीमकें खाती नहीं



चाँद को पाने मचलता जब समंदर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on October 16, 2012 at 2:00pm — 14 Comments

हाईकु

जिम्मेदारियाँ

हो राज या समाज

धर्म निभाना

 

जिम्मेदारियाँ

खुद का आंकलन

जाँच परख

 

जिम्मेदारियाँ

जब भी हो चुनाव

खरा ही लेना

 

जिम्मेदारियाँ

धरती या आकाश

प्यार ही बाँटे

Added by नादिर ख़ान on October 16, 2012 at 12:44pm — 3 Comments

आओ उस जिंदगी के लिए दुआ करें।।।

हाइकु ..सन्दर्भ ,' मलाला '

* * * * * * * * * * * * * * * 

रखे सहेज 
स्त्री शिक्षा अभियान 
रौशनी तेज। 
--------
हटायें पर्दा 
रौशनी स्कूलों वाली 
घूँघट-पर्दा।।
--------
मंत्रोच्चार हो 
पढ़ी-लिखी नार हो 
अधिकार…
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Added by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:00am — 15 Comments

जीवन में अधिकार मिले कम-

मत्तगयन्द सवैया

नारि सँवार रही घर बार, विभिन्न प्रकार धरा अजमाई ।

कन्यक रूप बुआ भगिनी घरनी ममता बधु सास कहाई ।

सेवत नेह समर्पण से कुल, नित्य नयापन लेकर आई ।

जीवन में अधिकार मिले कम, कर्म सदा भरपूर निभाई…

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Added by रविकर on October 16, 2012 at 9:45am — 9 Comments

नवरात्रि उत्सव.

नव रात्री नव रात है,नव जीवन संदेश/

तन मन भवन शुद्ध रखो,आये माँ किस भेष//

भक्तगण नव रात्री में,रखते हैं उपवास/

कन्या पूजन भी करें,माँ का यही निवास//

देखो कैसे सज रहा,माता का दरबार/

माँ के दर्शन को लगी,लम्बी बहुत कतार//

जयकारों से मात के,गूंज रहा दरबार/

माता का आशीष ले,पायें शक्ति अपार//

गरबा रमती मात है,चहुँ दिसि उत्सव होय/

भक्त यहाँ सुख पात हैं,सबके मंगल…

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Added by Ashok Kumar Raktale on October 16, 2012 at 7:59am — 11 Comments

नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती

देख-देख दुनिया हँसी, मन ही मन में कोसती |

नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

कैसा गड़बड़झाल ये, जाने कैसा खेल है,

लोटे औ जलधाम का, होता कोई मेल है |

आ जाएगा घूम के, सबकी खोपड़ सोचती,

नन्हा सा पौधा चला, पेड़ से करने दोस्ती ||

पौधा है नवजात ये, कोमल इसकी डाल है,

हट्टा-कट्टा पेड़ तो, मानो गगन विशाल है |

बुढ़िया काकी…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 7:27am — 12 Comments

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