काश कहीं से मिल जाती इक जादू की हाथ घड़ी
मैं दस साल घटा लेता तू होती दस साल बड़ी
माथे से होंठों तक का सफर न मैं तय कर पाया
रस्ता ऊबड़-खाबड़ था ऊपर से थी नाक बड़ी
प्यार मुहब्बत की बातें सारी भूल चुका था मैं
किस मनहूस घड़ी में…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 12, 2020 at 11:29pm — 1 Comment
रोज़ सितम वो ढाते देखो हम बेबस बेचारों पर
कोई अंकुश नहीं लगाता इन सरमाया दारों पर।
मजदूरों का जीवन देखो कितना मुश्किल होता है
बिस्तर पास नहीं जब होता सो जाते अख़बारों पर।
भूक ग़रीबी ज्यों की त्यों क्यों तख़्त नशीं कुछ तो बोलो
दोष मढ़ोगे कब तक आख़िर पिछली ही सरकारों पर।
वक़्त नहीं है पास किसी के सबको अपनी आज पड़ी
दौर पुराना ख़्वाब लगे जब भीड़ जुटे चौबारों पर।
बच्चे झुककर बात करेंगे घर के सारे लोगों से
आईने जब लग जाएँगे घर…
Added by नाथ सोनांचली on July 12, 2020 at 12:59pm — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 12, 2020 at 8:30am — 2 Comments
रोटी का जुगाड़
कोरोना काल में
आषाढ़ मास में
कदचित बहुत कठिन रहा
आसान जेठ में भी नहीं था.
पर, प्रयास में नए- नए मुल्ला
अजान उत्साह से पढ रहे थे...
दारु मृत संजीवनी सुरा बन गयी थी
सरकार के लिए भी,
कोरोना पैशैन्ट्स के लिए भी
और, पीने वालों का जोश तो देखने लायक था,
सबकी चाँदी थी...!
आषाढ़ तो बर्बादी रही..
इधर मानसून की बारिश
उधर मज़दूरो की भुखमरी
और, बेरोज़गारी.....
सच, मानो कलेजा मुुँह
को आ गय़ा...!…
Added by Chetan Prakash on July 11, 2020 at 1:00pm — No Comments
था सब आँखों में मर्यादा का पानी याद है हमको
पुराने गाँव की अब भी कहानी याद है हमको।
भले खपरैल छप्पर बाँस का घर था हमारा पर
वहीं पर थी सुखों की राजधानी याद है हमको
वो भूके रहके ख़ुद महमान को खाना खिलाते थे
ग़रीबों के घरों की मेज़बानी याद है हमको
हमारे गाँव की बैठक में क़िस्सा गो सुनाता था
वही हामिद के चिमटे की कहानी याद है हमको
सलोना और मनभावन शरारत से भरा बचपन
अभी तक मस्त अल्हड़ ज़िंदगानी याद है…
Added by नाथ सोनांचली on July 11, 2020 at 12:00pm — 14 Comments
(221 2121 1221 212)
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो
आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा
आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो
वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने
हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो
जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो
अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ
किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो
बाज़ार में तो…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on July 11, 2020 at 7:30am — 8 Comments
जीवित रहने के लिए जीव,
रहता है जिस पर निर्भर।
आटे से बनती है जो और
गोल गोल जिसकी सूरत।।
सही पहचाने नाम है उसका,
कहते हैं सब रोटी।
मम्मी के हाथों की रोटी,
बड़े स्वाद की होती।।
भूखे को मिल जाए जो रोटी,
तो त्रप्ति उसको होती।
आत्मनिर्भर बनने के लिए,
कमानी पड़ती है रोजी रोटी।।
भूल ना जाना तुम ये बात,
जब भी पकाओ तुम रोटी।
सबसे पहले गाय की रोटी,
और अंत में कुत्ते की रोटी।।
मानव की मूल…
ContinueAdded by Neeta Tayal on July 11, 2020 at 6:36am — 2 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२१/२
लिखना न मेरा नाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में
आयेगा कुछ न काम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।१।
**
सबको पता है धूल से बढ़कर न मैं रहा कभी
ऊँचा भले ही दाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।२।
**
सूरज न उगता भोर का तारों भरी न रात हूँ
ढलती हुई सी शाम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।३।
**
रावण बना दिया है मुझे प्यास ने हवस की यूँ
करना न मुझको राम तेरे ख्वाहिशों के शह्र में।४।
**
चाहत न कोई नाम की रिश्ता अगर बना कोई
चलना मुझे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2020 at 6:45am — 13 Comments
नेह बदरिया नीर नदी बन
आंखों आंखों स्वप्न सधे हैं
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
नख बन भाव कुरेदें बातें
यादें मोहक धूमिल छवि की
टूट रहे पतवार हृदय के
तूफानी लय है सांसों की
पर्वत से तटबंध दिलों पर
सकुचाते उदगार बंधें हैं।
काजल की काली रेखाएं
सरिता पर ज्यूँ बांध बांधें हैं।
मुनरी कंगन छागल बिछुए
सबकी सबसे रार हुई है
गजरे की अनबन बालों से
अबकी पहली बार हुई है
आतुर है श्रृंगार…
ContinueAdded by Neelam Dixit on July 9, 2020 at 11:26pm — 2 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२
इस जिग़र में प्यास बाकी है बुझाने की कहो,
झूमती काली घटा से छत पे आने की कहो.
है मधुर आवाज़ उसकी और चेहरा खूबसूरत,
गीत सावन के सुहाने आज गाने की कहो.
देखना गर चाहते हो इस जहाँ को ख़ुशनुमा, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 9, 2020 at 8:44pm — 8 Comments
2122 2122 2122
अपनी रानाई पे तू मग़रूर है क्या ।
बेवफ़ाई के लिए मज़बूर है क्या ।।
कम न हो पाये अभी तक फ़ासले भी ।।
तू बता उल्फ़त की दिल्ली दूर है क्या ।।
दूर तक चर्चा है क़ातिल के हुनर की ।
वो ज़रा सी उम्र में मशहूर है क्या ।।
तोड़ देना दिल किसी का बेसबब ही ।
शह्र का तेरे नया दस्तूर है क्या ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on July 9, 2020 at 3:00pm — 3 Comments
सत्य सुनावै मनई कोउ
भरि साँसैं जमुहाईं
झूठि जहाँ पर चलि रहा
हुइ चैतन मुसुकाहिं
बहुतै मजा मिलै जहाँ
चुगली खावैं लोग
नमक, खटाई, मिरचि जब
चटकि , तबहिं मन मोद
का कलजुग ना दिखावै
सत्पथ धरहि जो पाँव
तपति मरूथल रेत जसि
दीखै कहूँ न छाँव
मौनी अब तौ साधिहौं
वाहै मा आनन्द
ई सांसारिक जालि मा
उरझै कवनेउ मंद
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on July 8, 2020 at 6:28pm — 3 Comments
रात दिन तुमको पुकारा,
किन्तु तुम अब तक न आए !
चित्र मेरी कल्पना के,
मूर्तियों में ढल न पाए !
चिर प्रतीक्षित आस के संग, प्यार अपना बाँट लूँगी ।
उम्र आधी कट गई है, उम्र आधी काट लूँगी !!
प्रेम तुमसे ही तुम्हारा,
किस तरह आखिर छिपाऊँ ?
और कह भी दूँ, कहो यह,
रीत फिर कैसे निभाऊं ?
गूँजते हो धड़कनों की,
थाप पर अनुनाद बन कर !
मौन मन की सिहरनों में,
घुल चुके आह्लाद बन कर…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on July 8, 2020 at 4:30pm — 6 Comments
बह्रे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
2122 / 2122 / 2122 / 212
जिस तरफ़ देखूँ है तन्हाई किसे आवाज़ दूँ
हर मसर्रत दिल की गहनाई किसे आवाज़ दूँ
ना-उमीदी दिल पे है छाई किसे आवाज़ दूँ
दौर-ए-ग़म से रूह घबराई किसे आवाज़ दूँ
बंद है हर दर यहाँ तो हर गली वीरान है
ज़िन्दगी मुझको कहाँ लाई किसे आवाज़ दूँ
कोई भी ऐसा नहीं जो दर्द-ओ-ग़म समझे मेरा
हर तरफ़…
Added by रवि भसीन 'शाहिद' on July 8, 2020 at 2:01pm — 7 Comments
सखी री, जे कोरोना लै गयौ,
सावन की बहार।
ना उमंग के बादल घुमड़ें,
ना उत्साह की फुहार।।
अब के सावन ऐसे लागै,
बिन शक्कर की चाय।
ना बागों में झूले पड़ रहे,
ना सेल कौ परचम लहराऐ।।
तीज त्यौहार अबके सावन के,
सब फीके फीके लागैं।
सखी री, अब तोसे मिलने कूं,
जियौ मेरौ तरसो जावै।।
भाई बहन राखी त्यौहार अब,
पहले जैसौ कैसे मनावें?
हरियाली तीज पर सखियां अब,
गीत मल्हार भी कैसे गावें?
अपने कान्हा के दर्शन कूं,
मेरौ…
Added by Neeta Tayal on July 8, 2020 at 10:00am — 3 Comments
ग़ज़ल (1222 1222 1222 1222 )
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मुहब्बत कीजिए यारो सदा दिलदार की सूरत
भरोसा कीजिए मज़बूत इक दीवार की सूरत
**
रहें कुछ राज़ अपनी ज़िंदगी के राज़ ही बेहतर
नहीं अच्छा कि हो ये ज़िंदगी अख़बार की सूरत
**
ख़ुशी के चंद पल ही ज़िंदगी में दोस्त मिलते हैं
मगर आते हैं ग़म अक्सर सबा-रफ़्तार की सूरत
**
भले पैदा हुए हैं आप मुफ़लिस कीजिए कोशिश
न समझें आप ख़ुद को…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 7, 2020 at 6:30pm — 5 Comments
शायद अब इच्छाओं का अंत हो रहा है
यह सीमित शरीर अब अनंत हो रहा है
रे मन अचानक तुझे ये क्या हो गया है
खिलखिलाता था तू अब कुमंत हो रहा है
खुशियां बहुत सी बटोरी थी हमने भी
हर यादगार लम्हा अब अश्मंत हो रहा है
करीबी रिश्तों का मेरे मन के साथ सजाया
हर विचार शायद अब उमंत हो रहा है
करंड की भांति हर शरीर धरा पर मेरा भी
शहद या धार चली गई अब अस्वंत हो रहा है
मेरा चंचल मन जो नरेश था मेरे निर्णयों…
ContinueAdded by Vinay Prakash Tiwari (VP) on July 7, 2020 at 10:00am — 1 Comment
1222 1222 122
सफलता के शिखर पर वे खड़े हैं
सदा कठिनाइयों से जो लड़े हैं
बताओ नाम तो उन पर्वतों के
हमारे हौसलों से जो बड़े हैं
नहीं हैं नैन ये गर सच कहूँ तो
सुघर चंदा में दो हीरे जड़े हैं
जो प्यासी आत्मा को तृप्त कर दें
नहीं हैं होंठ, वे मधु के घड़े हैं
ये सच है कर्मशीलों के लिए तो
सितारे भूमि पर बिखरे पड़े हैं
ये दिल के घाव अब तक हैं हरे क्यों
यकीनन शूल शब्दों के गड़े…
Added by रामबली गुप्ता on July 6, 2020 at 11:37pm — 12 Comments
नगर खिन्न हो देखता, खुश होता देहात
हरियाली उपहार में, देती है ब रसात।१।
**
हलधर सोया खेत में, तन पर ओढ़े धूल
रूठी बदली देखिए, जा बैठी किस कूल।२।
**
धरती के दुख से हुई, अँधियारी हर भोर
बादल बिजली चीखते, मत आना इस ओर।३।
**
जब से आयी गाँव में, फिर रिमझिम बरसात
सौंधी मिट्टी की महक, उठती है दिन-रात।४।
**
वसन धरा के जो सुना, तपन ले गयी चोर
बौराए घन नापते, पलपल नभ का छोर।५।
**
मेंढक जी तो हैं सदा, बरखा के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2020 at 10:51pm — 4 Comments
आज पर कुछ दोहे :
झूठ सरासर भूख से, तन बनता बाज़ार।
उजले बंगलों में चलें, कोठे कई हजार।।
नज़रें मंडी हो गईं, नज़र बनी बाज़ार।
नज़र नज़र में बिक गया, एक तन कई बार।।
नज़रों में है प्यार का, झूठ भरा संसार।
प्यार ओट में वासना, का होता व्यापार।।
कलियों का तन नोचतीं, वहशी नज़रें आज।
रक्षक भक्षक बन गए, लज्जित हुआ समाज।।
हुई पुरातन सभ्यता, नव युग हुआ महान।
बेशर्मी पर आज का, गर्व करे इंसान।।
सुशील…
ContinueAdded by Sushil Sarna on July 6, 2020 at 9:46pm — 4 Comments
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