आँखों के सावन में ......
ओ ! निर्दयी घन
जाने कितनी
अक्षत स्मृतियों को
अपनी बूँदों में समेटे
तुम फिर चले आये
मेरे हृदय के उपवन में
शूल बनकर
क्यों
मेरे घावों की देहरी को
अपनी बूँदों की आहटों से
मरहम लगाने का प्रयास करते हो
बहुत रिस्ते हैं
ये
जब -जब बरसात होती है
बहुत याद आते हैं
मेरे भीगे बदन से
बातें करते
उसके वो मौन स्पर्श
वो छत की मुंडेर से
उसकी आँखों का…
Added by Sushil Sarna on June 27, 2020 at 8:42pm — 8 Comments
Added by Sushil Sarna on June 26, 2020 at 8:30pm — 8 Comments
रघुनाथ ट्यूर से लौटा तो पिताजी दिखाई नहीं दिये। वे बरामदे में ही बैठे अखबार पढ़ते रहते थे। उनके कमरे में भी नहीं थे।रघुनाथ का नियम था कि वह कहीं से आता था तो पिता के चरण स्पर्श करता था।
"शीला, पिताजी नहीं दिख रहे। कहीं गये हैं क्या?"
"मुझे कौनसा बता कर जाते हैं? तुम हाथ मुंह धोलो। चाय पकोड़े लाती हूँ।" शीला के लहजे से रघुनाथ को कुछ शंका हुई।
इतने में उसका सात वर्षीय बेटा बिल्लू भी आगया।
"बिल्लू, बाबा तुम्हारे साथ गये थे क्या?"
"बाबा तो गाँव वापस चले…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 26, 2020 at 9:00am — 6 Comments
वह मिट्टी खोदता,ढेर लगाता। समझा जाता,राजा मिट्टी को उपजाऊ बना रहा है।समय गुजरता गया।कालांतर में नेवला राजा बना।खुदी हुई मिट्टी की सुरंगों से बाहरी अजगर आने लगे। आते पहले भी थे।डंसते,निकल जाते। अब नेवला उन्हें खा जाता।इलाके में ' हाय दैया 'मचाई गई कि अजगर ने इसे डंसा,तो उसे डंसा।कितने अजगर तमाम हुए,यह बात गौण थी।
पुराना राजा: राजा कर क्या रहा है?ये अजगर आ कैसे रहे हैं?
रा,जा:'उन्हीं सुरंगों से,जो तुमने…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on June 26, 2020 at 8:30am — 4 Comments
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मी बाई की के साथ झलकारी बाई का नाम भी बड़ी सम्मान के लिए जाता है | एक वही थी जिन्होने रानी का हर कदम पर साथ दिया और उनकी कदकाठी कुछ मेल खाती थी |इनके बलबूते ही रानी लक्ष्मी बाई संग्राम में अंग्रेज़ो की आखों में धूल झोंकने में सफल रही | लेकिन इसे विडम्बना ही कहेंगे की सक्षम होने के बावजूद भी इतिहासकारों ने उसे वो सम्मान नहीं दिया जिसकी वह हकदार थी | जाति व्यवस्था में दबे होने के कारण हमारे देश के बहुत से वीर-वीरांगनाए इसी सोच में दबकर गुमनाम हो गए जीने…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on June 25, 2020 at 4:30pm — 2 Comments
ग़ज़ल ( 1222 1222 1222 1222 )
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वफ़ा के देवता को बेवफ़ा हम कैसे होने दें
बताओ ग़ैर का तुमको ख़ुदा हम कैसे होने दें
नहीं क़ानून की दफ़्आत में कुछ ज़िक्र उलफ़त का
मुहब्बत में क़ज़ा की हो सज़ा हम कैसे होने दें
बिठा कर तख़्त पर हमने रखा है ताज तेरे सर
हमीं पर ज़ुल्म की बारिश बता हम कैसे होने दें
किसी को आसरा गर दे नहीं सकते ज़माने में
किसी को जानकर बे-आसरा हम कैसे होने दें
नतीज़ा ख़ूब भुगता है मरासिम में मसाफ़त…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 25, 2020 at 3:30pm — 6 Comments
कितने सालों से सुनें
शान्ति - शान्ति का घोष
अपने ही भू- भाग को
खो बैठे , बेहोश
जब दुश्मन आकर खड़ा
द्वार , रास्ता रोक
क्या गुलाम बन कर रहें ?
करें न हम प्रतिरोध
ज्ञान - नेत्र को मूँद लें
खड़ा करें अवरोध
गीता से निज कर्म - पथ
का , कैसै हो बोध ?
ठुकराते ना सन्धि को
कौरव कर उपहास
कुरूक्षेत्र का युद्ध क्यों ?
फिर बनता इतिहास
सोलह कला प्रवीण…
ContinueAdded by Usha Awasthi on June 25, 2020 at 10:30am — No Comments
मगर, तुम न आए ....
मैं ठहरी रही
एक मोड़ पर
अपने मौसम के इंतज़ार में
तड़पती आरज़ूओं के साथ
भीगती हुई बरसात में
मगर
तुम न आए
गिरती रही
मेरी ज़ुल्फ़ों पर रुकी हुई
बरसात की बूँदें
मेरे ही जलते बदन पर
थरथराती रही मेरे लबों पर
शबनमी सी इक बूँद
तुम्हारे स्पर्श के इंतज़ार में
मगर
तुम न आए
अब्र के पैरहन से
ढक गया आसमान
साँझ की सुर्खी से
रंग गया आसमान
आँखों में लेटी रही
ह्या
अपने…
Added by Sushil Sarna on June 23, 2020 at 9:19pm — 2 Comments
2122 2122 2122 212
आदमी को आदमी से डर के बचता देखकर
अपना चेहरा ढक रहे हैं शहर ठहरा देखकर
ढूंढ कर ला दे कोई मुझको मेरे वो आइने
जिनमें तुझको देखता था अपना चेहरा देखकर
इससे बेहतर ज़िन्दगी का और क्या मकसद रहे
आदमी ज़िंदा रहे दुनिया को हँसता देखकर
हाथ को छूकर निकल जाता है मेरे हाथ से
मेरा मन घबरा गया है बहता दरिया देखकर
आपकी बातों पे मुझको अब यकीं बिल्कुल नहीं
आग को झुठला रहे हैं घर भी जलता…
Added by मनोज अहसास on June 23, 2020 at 11:32am — 4 Comments
बड़े-बड़े देखे यहाँ
कुटिल , सोच में खोट
मर्यादा की आड़ ले
दें दूजों को चोट
ऐसे भी देखे यहाँ
सुन्दर, सरल , स्वभाव
यदि सन्मुख हों तो बहे
सरस प्रेम रस भाव
कलियुग इसको ही कहें
चाटुकारिता भाय
तज कर अमृत का कलश
विष-घट रहा सुहाय
गिनें , गिनाएँ , फिर गिनें
नित्य पराए दोष
एक न अपने में दिखे
खो बैठे जब होश
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Usha Awasthi on June 23, 2020 at 1:00am — 6 Comments
Added by Anvita on June 22, 2020 at 9:58pm — 4 Comments
सुलेखा दौड़ती हांफ़ती घर में घुसी।
"क्या हुआ बिटिया? क्यों ऐसे हांफ़ रही हो?"
"कुछ नहीं पापा। एक कुत्ता पीछे लग गया था।"
"तो इसमें इतने परेशान होने की क्या बात है? तुम तो मेरी बहादुर बेटी हो।"
"पापा आप नहीं समझोगे।ये दो पैर वाले कुत्ते बहुत गंदी फ़ितरत वाले होते हैं।"
"दो पैर वाले कुत्ते? तुम ये क्या ऊल जलूल बोल रही हो।"
तभी सुलेखा का भाई सूरज हाथ में हॉकी लेकर बाहर की ओर लपका,"अरे बेटा सूरज इतनी रात को यह हॉकी लेकर.......?"
"पापा मैं उस कुत्ते को…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 22, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
बहुत चहल पहल थी आज, अमूमन सप्ताहांत में थोड़ी भीड़ होती है लेकिन ऐसी भीड़ साल में दो ही दिन देखने को मिलती है, एक आज के दिन और एक मदर्स डे पर. शर्माजी एक कुर्सी पर बैठे हुए कुछ हमउम्र बुजुर्गों को देखते हुए सोच रहे थे, कुछ के चेहरे पर ख़ुशी, कुछ पर उम्मीद तो कुछ चेहरे निराश भी थे. कुछ लोग बाहर भी गए थे, उनके बच्चे ले गए थे आज के दिन को यादगार बनाने के लिए. अब बिना सेल्फी या साथ फोटो लिए भला कैसे सोशल मीडिया पर फादर्स डे मनता।
एक कार बाहर रुकी, मल्होत्रा जी उससे बाहर निकले और खड़े हो गए.…
Added by विनय कुमार on June 22, 2020 at 7:18pm — 4 Comments
देश पर मुझको है अभिमान
जय गणतंत्र जय संविधान
धर्म निरपेक्ष है देश हमारा
सुंदर प्यारा देश महान ||
हर संस्कृति को करता स्वीकार
अमन चैन में है विश्वास
धर्म-जाति का भेद नहीं
अधिकार दिलाता सबको समान ||
शत्रु को भी मित्र समझता
सबका करता है कल्याण
शरणार्थियों को शरण दिलाता
सबसे बड़ा हिन्द संविधान ||
नर-नारी सब एक समान
हर क्षेत्र में उनका योगदान
सारी दुनियाँ में…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on June 22, 2020 at 2:00pm — 1 Comment
एक महान राजा के राज्य में एक भिखारीनुमा आदमी सड़क पर मरा पाया गया। बात राजा तक पहुंची तो उसने इस घटना को बहुत गम्भीर मानते हुए पूरी जांच कराए जाने का हुक्म दिया।
सबसे बड़े मंत्री की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई जिसने गहन जांच कर अपनी रिपोर्ट पेश की। राजा ने उस लंबी-चौड़ी रिपोर्ट को देखा और आंखें छोटी कर संजीदा स्वर में कहा, "एक लाइन में बताओ कि वह क्यों मरा?"
सबसे बड़े मंत्री ने अत्यंत विनम्र शब्दों में उत्तर दिया, "हुज़ूर, क्योंकि वह भूखा था।"
सुनते ही राजा की आंखें चौड़ी…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 22, 2020 at 12:30pm — 5 Comments
पितृ दिवस पर चंद दोहे :
छाया बन कर धूप में,आता जिसका हाथ।
कठिन समय में वो पिता,सदा निभाता साथ।।1
बरगद है तो छाँव है, वरना तपती धूप।
पिताहीन जीवन लगे, जैसे गहरा कूप ।।2
घोड़ा बन कर पुत्र का, खेलें उसके साथ।
मेरे पापा ईश से, बढ़कर मेरे नाथ।।3
प्राणों से प्यारी लगे, पापा को संतान।
जीवन के हर मर्म का, दे वो सच्चा ज्ञान।।4
पिता सारथी पुत्र के, बनते सदा सहाय।
हर मुश्किल का वो करें , तुरंत उचित…
Added by Sushil Sarna on June 21, 2020 at 10:31pm — 3 Comments
22 22 22 22 22 22
ज्यादा चिंता से भी आखिर क्या होता है
जो सोचा,अक्सर उसका उल्टा होता है
कह देने से दर्द कहाँ हल्का होता है
कमजोरी का लोगों में चर्चा होता है
शाम ढले तो सब चीज़े धुंधली लगती हैं
सूरज फिर भी अगले दिन उजला होता है
जीवन का चक्कर चलता रहता है यों ही
हरियाली के बाद खेत सूखा होता है
कोई कहता रहता है मन की सब बातें
और किसी का दर्द सदा गूंगा होता है
पीड़ा के लम्हों में…
ContinueAdded by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:36pm — 5 Comments
22 22 22 22
रोज नए ढंग की उलझन है
सुलझाने का पूरा मन है
सबपे भारी बीसवाँ सन है
बच जाने का रोज जतन है
मेरे गीतों में ग़ज़लों में
तेरी यादों की कतरन है
मानव की ताकत की हक़ीक़त
गलियों का ये सूनापन है
सालों पहली कुछ बातों से
अब तक सीने में तड़पन है
मुझको जो उनसे कहना है
उनकी नज़र में पागलपन है
असली चेहरा ढक रक्खा है
सब चीजों पे रंग रोगन है
इन मिसरों के…
ContinueAdded by मनोज अहसास on June 21, 2020 at 3:33pm — 2 Comments
भारत वर्ष की भूमि महापुरुषों की ही नहीं बल्कि देवी रूप में देश के लिए बलिदान, त्याग और अपनी जान को न्यौछावर करने वाली नारियों से भी भरी पड़ी है| जिन्होने अपनी हर हद से उठ कर अपने देश की रक्षा के लिए मान मर्यादा को ध्यान में रखते हुए सब कुछ कर गुजरने के साहस की मिशाल पेश की | कुछ इतिहासकारों के अनुसार रानी अवंतीबाई लोधी भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली महिला के रूप में जाना है। जिसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रामगढ़ के रेवांचल प्रदेश में हुए मुक्ति आंदोलन की मुख्य सूत्रधार और…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on June 21, 2020 at 3:30pm — 2 Comments
मेरे पिता
पिता शब्द स्वयं अपने आप में बजनदार होता हैं। हाथ की दसों उंगलियों की तरह हर पिता का व्यक्तित्व अलग होता हैं। पिता को परिभाषित किया जा सकता हैं, उपमानों से अलंकारित किया जा सकता हैं पर रेखांकित नही किया जा सकता।बस,उम्मीद की जा सकती हैं कि हमारे पिता बहुत अच्छे हैं, बस थोड़े-से ऐसे और होते। सभी बच्चों के पिता उनके हीरो होते हैं। ऐसे ही मेरे पिता मेरे किसी सुपरमेन से कम नहीं हैं, हरफनमौला हैं। बचपन से मैंने उनका सख्त चेहरा,कठोर अनुशासनबद्ध,जुझारूपन देखा हैं। मितभाषी हम सब के…
ContinueAdded by babitagupta on June 21, 2020 at 3:03pm — 1 Comment
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