(2122 1122 1122 22/112)
उनके ख़्वाबों पे ख़यालात पे रोना आया
अब तो मत पूछिये किस बात पे रोना आया
देखता कौन भरी आँखों को बरसातों में
फिर से आई हुई बरसात पे रोना आया
आप चाहें तो जो दो दिन में सुधर सकते हैं
उन बिगड़ते हुए हालात पे रोना आया
मुद्दतों जिनके जवाबात को तरसा हूँ मैं
आज कुछ ऐसे सवालात पे रोना आया
मुझको मालूम था अंजाम यही होना है
जीत रोने से हुई मात पे रोना आया
दिन…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on July 29, 2020 at 12:00pm — 13 Comments
2122 2122 2122 212
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अपनी धुन में सब मगन हैं किससे क्या चर्चा करें.
किसको अपना दिल दिखायें किसके ग़म पूछा करें.
अब हमारी धडकनों का मोल कुछ लग जाये बस,
चल चलें मालिक के दर पर और कोई सौदा करें.
ज़िन्दगी इस खूबसूरत जाल में लिपटी रही,
रात में लिक्खें ग़ज़ल दिन में तुझे सोचा करें.
दे सके तो दे हमें वो वक़्त फिर मेरे ख़ुदा,
रात भर जागा करें और खत उन्हें लिक्खा करें.
सारा जीवन एक उलझन के भँवर में फँस…
ContinueAdded by मनोज अहसास on July 29, 2020 at 1:30am — 5 Comments
(221 2121 1221 212 )
अपने हिसार-ए-फ़िक्र से बाहर बशर निकल
दुनिया बदल गई है तू भी अब ज़रा बदल
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रफ़्तार अपनी वक़्त कभी थामता नहीं
अच्छा यही है वक़्त के माफ़िक तू दोस्त ढल
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पीछे रहा तो होंगी न दुश्वारियां ये कम
चाहे तरक़्क़ी गर तो ज़माने के साथ चल
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रिश्ते निभाने के लिए है सब्र लाज़मी
रखना तुझे है गाम हर एक अब सँभल सँभल
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तूफ़ान में चराग़ की मानन्द क्यों…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on July 27, 2020 at 10:30pm — 6 Comments
सुनो सखी इस सावन में तो झूलों पर भी रोक लगी
जिससे लगता नेह भरी सब साँसों पर भी रोक लगी।१।
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घिरघिर बदली कड़क दामिनी मन को हैं उकसाती पर
भरी उमंगों से यौवन की पींगों पर भी रोक लगी।२।
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कितने मास करोना का भय देगा कारावास हमें
मिलकर हम सब कैसे गायें गीतों पर भी रोक लगी।३।
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सूखी तीज बितायी सब ने कैसी होगी राखी रब
कोई कहे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 27, 2020 at 1:15pm — 8 Comments
122 / 122 / 122 / 122
मक़ाम ऐसे चाहत में आने लगे हैं
अब उनके सितम दिल को भाने लगे हैं [1]
मज़े वस्ल में पहले आते थे जो सब
हमें अब वो फ़ुर्क़त में आने लगे हैं [2]
उन्हीं का तो ग़म हमने ग़ज़लों में ढाला
ये एहसाँ वो हम पर जताने लगे हैं [3]
नया जौर का सोचते हैं तरीक़ा
वो उँगली से ज़ुल्फ़ें घुमाने लगे हैं [4]
मुझे लोग दीवाना समझेंगे शायद
मेरे ख़त वो सबको सुनाने लगे हैं [5]
हुए इतने बेज़ार ज़ुल्मत से…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on July 27, 2020 at 9:59am — 13 Comments
1222 1222 122
यहाँ तनहाइयों में क्या रखा है
चलो भी गाँव में मेला लगा है
तुझे मैं आज पढ़ना चाहता हूँ
मिरी तक़दीर में अब क्या लिखा है
किनारे पर भी आकर डूब जाओ
नदी है,नाख़ुदा तो बह चुका है
निकलना चाहता है मुझसे आगे
मिरा साया मिरे पीछे पड़ा है
ज़रा आगे चलूँ या लौट जाऊँ
गली के मोड़ पर फिर मैक़दा है
उसी पर मर रहे हैं लोग सारे
जो अपने आप पर कब से फ़िदा है
सितारों चैन से…
ContinueAdded by सालिक गणवीर on July 27, 2020 at 8:00am — 13 Comments
2122 / 1122 / 1122 / 22
उस अधूरी सी मुलाक़ात पे रोना आया
जो न कह पाए हर उस बात पे रोना आया [1]
दूरियों के थे जो क़ुर्बत के भी हो सकते थे
ऐसे खोए हुए लम्हात पे रोना आया [2]
दे गए जाते हुए वो जो ख़ज़ाना ग़म का
जाने क्यूँ उस हसीं सौग़ात पे रोना आया [3]
रो लिए उनके जवाबात पे हम जी भर के
फिर हमें अपने सवालात पे रोना आया [4]
आँख भर आई अचानक यूँ ही बैठे बैठे
क्या बताएँ तुम्हें किस बात पे रोना आया [5]
दिल तो…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on July 26, 2020 at 4:46pm — 11 Comments
लिव इन
सोनल और विकास शुरू से ही साथ पढ़े थे । दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती थी । ये दोस्ती कब प्यार में बदल गयी किसी को पता ही नहीं चला । रिद्धिमा और मनोज भी इन दोनों के दोस्त थे । कॉलेज में ये चारो हमेशा साथ साथ रहते थे । पढ़ाई पूरी करने के बाद रिद्धिमा और मनोज ने शादी कर ली । दोनों की शादीशुदा ज़िंदगी बहुत खुशहाल थी । सोनल शुरू से ही आज़ाद ख्यालों वाली लड़की थी । उसे ज़िम्मेदरियों में बंधकर रहना बिलकुल पसंद नहीं था। संयोगवश सोनल और विकास को मुंबई में नौकरी मिल गई। अब विकास के घर वाले भी…
ContinueAdded by Madhu Passi 'महक' on July 24, 2020 at 1:00pm — 12 Comments
2122 1212 22
खुद को पा लेने की घड़ी होगी,
वो मयस्सर मुझे कभी होगी।
हाथ से हाथ को छू लेने से
दिल की सिलवट भी खुल गयी होगी।
याद लिपटी है उसकी चादर-सी,
देह लाज़िम मेरी तपी होगी।
उसके बिन मैं सँभल चुका हूँ अब,
मस्त उसकी भी कट रही होगी।
बोल ज्यादा मगर सभी मीठे,
आज भी वैसे बोलती होगी?
तब शरारत ढकी थी चुप्पी में,
आज भी उसको ढाँपती होगी।
दिल में कोई चुभन हुई मेरे,…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 24, 2020 at 12:00am — 4 Comments
बहुरूपिया - लघुकथा -----
"अरे अरे उधर देखो, वह कौन आ रहा है। कितना विचित्र पहनावा पहन रखा है। और तो और चेहरा भी तरह तरह के रंगो से बेतरतीब पोत रखा है।चलो उससे बात करते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया।"
"नहीं नहीं, पागल मत बनो। कोई मानसिक रोगी हुआ तो? पता नहीं क्या कर बैठे?"
"तुम तो सच में बहुत डरपोक हो सीमा|"
इतने में पास से गुजरते एक बुजुर्ग ने उन बालिकाओं का वार्तालाप सुना तो बोल पड़े,"डरो नहीं, ये हमारे मुल्क के बादशाह हैं। यह इनका देश की गतिविधियों को जाँचने परखने…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 23, 2020 at 6:16pm — 6 Comments
ठूँठ हुआ पर छाँव में अपनी नन्हा पौधा छोड़ गया
कैसे कह दूँ पेड़ मरा तो मानव चिन्ता छोड़ गया।१।
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वैसे तो था जेठ हमेशा लेकिन जाने क्या सूझी
अब के मौसम हिस्से में जो सावन आधा छोड़ गया।२।
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"दिखे टूटता तो फल देगा", चाहे ये किवँदन्ती पर
आशाओं के कुछ तो बादल टूटा तारा छोड़ गया।३।
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या रोटी की रही विवशता या सीमा की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 23, 2020 at 12:08pm — 6 Comments
1212 1122 1212 22/112
गली से जाते हुए पैरों के निशान मिले
कहीं पे उजड़े हुए-से कई मकान मिले
ये अपने-अपने मुक़द्दर की बात है भाई
मुझे ज़मीं न मिली तुमको आसमान मिले
किसी ज़माने में उनके बहुत क़रीब थे हम
अभी तो फ़ासले ही सिर्फ़ दरमियान मिले
इसे भी बेचने आए थे लोग मंडी में
कहीं पे दीन मिला और कुछ ईमान मिले
मैं चढ़ के आ तो गया हूँ ऊँचाई पर लेकिन
मुझे भी ज़ीस्त में छोटी-सी इक ढलान…
Added by सालिक गणवीर on July 23, 2020 at 8:01am — 4 Comments
आप यूँ ही अगर हमसे रूठे रहे
एक आशिक़ जहाँ से गुज़र जाएगा
ऐसी बातें करोगे अगर आप तो
ग़म का मारा ये दिल कुछ भी कर जाएगा
आप यूँ ही अगर...
कैसी नाराज़गी है ओ जान-ए-वफ़ा
मुझसे क्या हो गई भूल कुछ तो बता
हाय कुछ तो बता
आप ख़ुद ही समझ लेंगे इक रोज़ ये
जब ख़ुमार आपका ये उतर जाएगा
आप यूँ ही अगर...
तेरे वादों पे हम कर यक़ीं लुट गए
तेरी भोली सी सूरत पे क्यूँ मिट गए
हाय क्यूँ मिट गए
मर…
ContinueAdded by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 22, 2020 at 6:30pm — 5 Comments
भारतवर्ष क्रांतिकारी महापुरुषों और वीरांगनाओं से भरा पड़ा है जिनके बारे में जितना पढ़ा जाये कम ही नजर आता है| कभी-कभी तो ऐसा लगता है पता नहीं किस मिट्टी के बने होते होंगे वे लोग जो देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने ले लिए हर वक़्त तैयार रहते थे| इस संघर्ष में उच्च, पिछड़े समाज और दलित समुदायों से आने वाली औरतों के साथ-साथ बहुत सी भटियारिनें या सराय वालियां, तवायफे भी थीं| जिनके सरायों में विद्रोही योजनाएं बनाते थे जाने कितनी तो कलावंत और…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on July 22, 2020 at 5:00pm — 2 Comments
1212 1122 1212 22
न नींद है न कहीं चैन प्यारी आँखों में,
तमाम ख़्वाब पले हैं कुँवारी आँखों में.
शिकार कैसे हुए हम समझ नहीं पाए,
दिखा न तीर न कोई कटारी आँखों में
करीब जा के न कोई भी लौट कर आया,
फँसे पड़े हैं कई इन जुआरी आँखों में
ये दिल हमारा किसी और का हुआ जब से,
तभी से…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 21, 2020 at 8:00pm — 6 Comments
चलो री सखियां,सावन आ गया,
अबकी फिर एक बार,
मनालें तीज का त्यौहार...
हरियाली प्रकृति के जैसे,
हरे कपड़े पहनें आज ,
काजल ,बिंदिया ,चूड़ी आदि से
करके सोलह श्रृंगार।
मनालें तीज...
गोरे- गोरे हाथों में,
अरे ,मेंहदी लगा लें आज।
मिल जुलकर सब झूला झुलें,
गावें गीत मल्हार।।
मनालें तीज...
बागों में जैसे नाचे मोर,
हम भी नाच लें आज।
सखी सहेलियों के संग मिलकर,
धूम मचा लें…
Added by Neeta Tayal on July 21, 2020 at 4:30pm — No Comments
(2122 2122 2122 212)
सोचता हूँ आज तक ग़ज़लों से क्या हासिल हुआ
पहले से बीमार था दिल दर्द भी शामिल हुआ
जब तलक घुटनों के बल चलता रहा था ख़ुश बहुत
आ पड़ा ग़म सर पे जब से दौड़ के क़ाबिल हुआ
ज़िंदगी में तुम नहीं थे इक अधूरापन-सा था
जब से आए हो ये लगता है कि मैं कामिल हुआ
चलते-चलते लोग कहते हैं सफ़र आसान है
ज़िंदगानी में सरकना भी बहुत मुश्किल हुआ
वो शरीक-ए-ग़म है अब मैं क्या कहूँ तारीफ़ में
चोट लगती है मुझे वो…
Added by सालिक गणवीर on July 21, 2020 at 9:30am — 12 Comments
221 1221 1221 122
दीवार से तस्वीर हटाने के लिए आ
झगड़ा है तेरा मुझसे जताने के लिए आ/1
तू वैद्य मुहब्बत का है मैं इश्क़ में घायल
चल ज़ख्म पे मरहम ही लगाने के लिए आ/2
पत्थर हुए जाती हूं मैं पत्थर से भी ज्यादा
तू मोम मुझे फिर से बनाने के लिए आ/3
है आईना टूटा हुआ चहरा न दिखेगा
सूरत तेरी आँखों में दिखाने के लिए आ/4
ये बाज़ी यहाँ इश्क़ की मैं हार के बैठी
तू दर्द भरा गीत ही गाने के लिए आ /5
रुसवाई भी होती है मुहब्बत के सफ़र में…
Added by Dimple Sharma on July 21, 2020 at 6:00am — 11 Comments
एक उम्र भर हम
लोगों को समझते रहे।
हालातों को समझते रहे ,
दोनों से समझौता करते रहे ,
दुनिया में समझदार माने गए।
बस अफ़सोस यह ही रहा ,
हमें कोई ऐसा मिला ही नहीं ,
या नसीब में था ही नहीं ,
जिसे हम भी समझदार मानते
और हम भी समझदार कहते।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on July 20, 2020 at 10:31pm — 2 Comments
भाव अब तो पाप - पुण्यों के बराबर हो गये
देवता क्योंकर जगत में आज पत्थर हो गये।१।
**
थी जहाँ पर अपनेपन की लहलहाती खेतियाँ
स्वार्थ से कोमल ह्रदय के खेत ऊसर हो गये।२।
**
न्याय की जब से हुई हैं कच्ची सारी डोरियाँ
तब से जुर्मोंं के महावत और ऊपर हो गये।३।
**
दूध, लस्सी, घी अनादर का बने पहचान अब
पैग व्हिस्की मय पिलाना आज आदर हो गये।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 20, 2020 at 5:30pm — 10 Comments
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