ये जो चलते फिरते मशीनी
पुतले हो गए हैं हम ।
अंधेरे जलसों के धुएँ
में खो गए हैं हम ।
किसी के अश्क़ को पानी
सा देखने लगे हैं,
किसी की सिसकियों को
अभिनय कहने लगे है।
ये जो चलते फिरते मशीनी
पुतले हो गए हैं हम ,
संवेदनाओं से मीलों
दूर ,हो गए हैं हम ।
.
मौलिक व अप्रकाशित"
Added by S.S Dipu on August 13, 2020 at 8:00pm — 4 Comments
भारत वर्ष के इतिहास में नारियों की उपलब्धियों की जितनी बातें की जाये उतनी ही कम है| भारत के एक वीर नारी के बारे में पढ़ो तो दूसरी के बारे में अपने आप ही उत्सुकता जाग जाती है| उन महान योद्धाओं के व्यक्तित्व, साम्राज्य, युद्ध रणनीति और उनके कौशल को अधिक से अधिक जानने का मन करता है| वर्तमान में औरंगज़ेब लगभग समूचे उत्तर भारत को जीतने के पश्चात दक्षिण में अपने पैर जमा चुका था| अब उसकी इच्छा थी कि वह पश्चिमी भारत को भी जीतकर…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on August 13, 2020 at 7:30pm — 4 Comments
प्रश्नों का प्रासाद है, जीवन की हर श्वास ।
मरीचिका में जी रहा, कालजयी विश्वास । ।
प्रश्नों से मत पूछिए, उनके दिल का हाल ।
उत्तर के नखरे बड़े, करते बहुत सवाल ।।
बिन उत्तर हर प्रश्न ज्यूँ, बिना पाल की नाव ।
इक दूजे को दम्भ का, दोनों देते घाव ।।
प्रश्न अगर हैं तीक्ष्ण तो , उत्तर भी उस्ताद ।
बिन उत्तर के प्रश्न का, बढ़ जाता अवसाद ।।
उत्तर से बढ़कर नहीं, प्रश्नों का अस्तित्व।
इक दूजे में है निहित, दोनों का…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments
2122 1122 1122 22
जिसको हम ग़ैर समझते थे हमारा निकला
उससे रिश्ता तो कई साल पुराना निकला (1)
हम भी हरचंद गुनहगार नहीं थे लेकिन
बे-क़ुसूरों में फ़क़त नाम तुम्हारा निकला (2)
हम जिसे क़ैद समझते थे बदन में अपने
वक़्त आया तो वो आज़ाद परिंदा निकला (3)
जान पर खेल के जाँ मेरी बचाई उसने
मैं जिसे समझा था क़ातिल वो मसीहा निकला (4)
दोस्तो जान छिड़कता था जो कल तक मुझ पर
आज वो शख़्स मेरे ख़ून का प्यासा निकला…
Added by सालिक गणवीर on August 13, 2020 at 4:00pm — 10 Comments
मापनी
१२२ १२२ १२२ १२
कई ख़्वाब देखे मचलते हुए.
तुम्हीं आये हरदम टहलते हुए.
तबस्सुम के पीछे छिपे कितने ग़म,
कभी मोम देखो पिघलते हुए.
जहाँ भी हमें सत्य…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 12, 2020 at 7:17pm — 8 Comments
212 212 212 212
नाज़ नख़रों का अंदाज़ अच्छा लगा
इस मुहब्बत का आग़ाज़ अच्छा लगा-1
सोचा था हम न देखेंगे मुड़ के कभी
पर बुलाने का अंदाज़ अच्छा लगा-2
बेदख़ल दिल से हमको न करना कभी
धड़कनों का तेरा साज़ अच्छा लगा-3
मेरी ख़ालिस मुहब्बत को ठुकरा…
ContinueAdded by Sarfaraz kushalgarhi on August 12, 2020 at 4:30pm — 15 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
पूछो न आप गाँव को क्या क्या हैं डर दिये
खेती को मार खेत जो सेजों से भर दिये।१।
**
पाटे गये वो ताल भी पुरखों की देन जो
रख के विकास नाम ये अन्धे नगर दिये।२।
**
आँगन वो चौड़ा खेत के छूटे रहट वहीं
दड़बों से आगे कुछ नहीं जितने भी घर दिये।३।
**
वो भी धरौंदे तोड़ के हम से ही थे गहे
कहकर सहारा आप ने तिनके अगर दिये।४।
**
कोई चमन के फूल को पत्थर बना रहा
कोई था जिसने शूल भी फूलों से कर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2020 at 6:30am — 5 Comments
मोहब्बत क्या है .......
तुम समझे ही नहीं
मोहब्बत क्या है
मेरी तरह
कुछ लम्हे
तन्हा जी कर देखो
दीवारों पर अहसासों के अक्स
रक्स करते नज़र आएंगे
दर्द के सैलाब
आखों में उतर आएंगे
लबों के साहिल पर
अलफ़ाज़ कसमसायेंगे
अंधेरों के कहकहे
रूह तक पसर जाएंगे
तब तुम जानोगे
मोहब्बत क्या है
उलझी लटों को सुलझाना
मोहब्बत नहीं है
ज़िस्मानी गलियों से गुजर जाना
मोहब्बत नहीं है
हिर्सो-हवस के पैराहन
पहने रहना
मोहब्बत नहीं…
Added by Sushil Sarna on August 11, 2020 at 4:56pm — 2 Comments
३ क्षणिकाएँ : याद
आँच
सन्नाटे की
तड़पा गई
यादों का शहर
.......................
एक टुकड़ा
चमकता रहा
ख़्वाब का
मेरी खामोशियों में
तुम्हारी याद का
..........................
पिघलती रही
यादों की बारिश
बंद आँखों की
झिर्रियों से
दर्द बनकर
उल्फ़त का
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 11, 2020 at 4:50pm — 6 Comments
221 2121 1221 212
रस्ते की बात है न ये रहबर की बात है
पा लेना मंज़िलों को मुक़द्दर की बात है
ये बोरिया की है मिरे बिस्तर की बात है
फूलों की सेज मिलना मुक़द्दर की बात है
उस वाक़िआ का ज़िक्र मुनासिब नहीं यहाँ
चल घर पे चलके बात करें घर की बात है
कब कौन किसके शाने पे चढ़ जाए क्या पता
ऊपर पहुँचना भी तो सुअवसर की बात है
सब की क़लम से एक ही क़िस्सा निकलता था
आज़ादी छिन गई थी पिछत्तर की बात…
Added by सालिक गणवीर on August 10, 2020 at 11:30pm — 12 Comments
उसकी ना है इतनी सी औकात मगर हड़का रहा है
झूठे में ही खा जाएगा लात मगर हड़का रहा है
औरों की बातों में आकर गाल बजाने वाला बच्चा
जिसके टूटे ना हैं दुधिया दाँत मगर हड़का रहा है
जिसके आधे खर्चे अपनी जेब कटाकर दे रहे हैं
अबकी ढँग से खा जायेगा मात मगर हड़का रहा है
आदर्शों मानवमूल्यों को छोड़ दिया तो राम जाने
कितने बदतर होंगे फिर हालात मगर हड़का रहा है
उल्फत की शमआ पर पर्दा डाल रहा है बदगुमानी
कटना मुश्किल है नफरत की रात…
Added by आशीष यादव on August 10, 2020 at 6:36pm — No Comments
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
मेरे ही प्यार में पगी आई.
पास जब मेरी ज़िन्दगी आई.
उनके हिस्से में कुछ नहीं आया,
जिनको करना न बंदगी आई.
न किसी से लगा…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on August 10, 2020 at 11:03am — 10 Comments
22 / 22 / 22 / 22 / 22 / 22
एक नया दस्तूर चलाया जा सकता है
ग़म को भी महबूब बनाया जा सकता है [1]
अपने आप को यूँ तड़पाया जा सकता है
बीती बातों पर पछताया जा सकता है [2]
यार की बाँहों में अब दम घुटता है मेरा
जन्नत से भी तो उकताया जा सकता है [3]
आशिक़ सा मासूम कहाँ पाओगे जिस से
अपना कह कर सब मनवाया जा सकता है [4]
पहली बार महब्बत छूती है जब दिल को
उस लम्हे को कैसे भुलाया जा सकता है [5]
जीत…
ContinueAdded by रवि भसीन 'शाहिद' on August 9, 2020 at 12:42pm — 17 Comments
अपना क्या है इस दुनिया में है जो कुछ भी धरती का
आग, हवा ये, फूल, समन्दर, चिड़िया, पानी धरती का।१।
**
क्या सुन्दरवन क्या आमेजन कोलोराडो क्या गौमुख
ये हरियाली, रेत के टीले, सोना, चाँदी धरती का।२।
**
हिमशिखरों की चमक चाँदनी बारामूदा का जादू
पीली नदिया, हरा समन्दर ताजा बासी धरती का।३।
**
बाँध न गठरी लूट धरा को अपना माल…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 9, 2020 at 4:20am — 7 Comments
लंबे अंतराल के बाद एक ग़ज़ल के साथ
2122 1212 22
चाँद के चर्चे आसमानों में
और मेरे सभी फसानों में
अय हवा बख्श दे अभी ये लौ
हैं अँधेरे गरीबखानों में
हम सुख़नवर से पीर ज़िंदा है
दर्द का मोल क्या दुकानों में
आँखों में आँसुओं का डेरा है
ख्वाब हैं क़ैद मर्तबानों में
पंछियों के लिए सदा रखना
कोई उम्मीद आबदानों में
दिल जला 'ब्रज' जरा सुकूँ आये
रौशनी भी रहे मकानों में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 8, 2020 at 3:16pm — 2 Comments
2122 2122 2122
मूंदकर आंखें अंधेरा वह कहेगा
भौंकना तारी नहीं वह चुप रहेगा।1
आदमी को बांटता है आदमी से
बर्फ की माफिक हमेशा वह ढहेगा।2
आप शीतल होइए, उसको नहीं गम
आग का दरिया बना वह, फिर बहेगा।3
नाज़ नखरे आपने उसके सहे हैं
जुंबिशें कुछ आपकी वह क्यूं सहेगा?4
खा रहा कबसे मलाई मुफ्त की वह
आपका मट्ठा अभी भी वह महेगा।5
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on August 8, 2020 at 10:23am — 3 Comments
221 2121 1221 212
क्या है मेरे होठों की दुआ मैं भुला चुका.
किस तरह मानता है ख़ुदा मैं भुला चुका.
मेरे सभी गुनाहों को अब तू भी भूल जा,
तुझसे हुई है जो भी खता मैं भुला चुका.
असली खुशी दबी पड़ी है गर्त में कहीं,
अब उसको ढूंढने की अदा मैं भुला चुका.
नज़दीक से गुज़र के मेरे देख ले कभी,
वो तेरी रहबरी की हवा मैं भुला चुका.
मुझको पुकार ने की तो आदत सी हो गई,
पर किसको दे रहा हूँ सदा मैं भुला…
Added by मनोज अहसास on August 8, 2020 at 9:30am — No Comments
" काल सुबह कु तैयार हो जाना! हमलोगा को लेने बस आवेगी।"
" किधर कु जाना है? मुकादम जी!"
" अरे! उवा पिछली बेर गए थे न, मकान बनाने..."
" ओह! उधर कु तो मेरी लुगाई नही जावेगी।"
"कीयों?"
" बस ! मेरी मरजी... मेरी लुगाई है ... वो हरामी ठेकेदार और वाके आदमी... मेरी लुगाई पर..."
"अबे साले! तू क्या खुद को सलमान खान समझता है? तेरी लुगाई को संग लाना होगो वरना..." मुकादम ने जर्दा थूकते हुए अपने करीब खड़े अपने दोस्त से कहा," साला! हरामी! समझता नही यह, इसको…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 7, 2020 at 12:20pm — No Comments
जमाने की नजर में यूँ बताओ कौन अच्छा है
भले ही माँ पिता के वास्ते हर लाल बच्चा है।१।
**
हदों में झूठ बँध पाता नहीं है आज भी लोगों
जुटाली भीड़ जिसने बढ़ लगे वो खूब सच्चा है।२।
**
लगे बासी भरा जो भोर को घर में जिन्हें सन्ध्या
मगर बोतल में जो पानी कहा करते वो ताजा है।३।
**
महज चाहत का रिस्ता है यहाँ हर चीज से मन का
सुना है नेह से मिलता …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 6, 2020 at 5:11pm — 2 Comments
2×15
एक ताज़ा ग़ज़ल
लाखों ग़म की एक दवा है, सोचो ! कुछ भी याद नहीं.
कोई शिकायत करने आए,कह दो कुछ भी याद नहीं.
हमने उसकी यादें जीकर उसकी याद के गीत लिखे,
उसने पढ़कर लिख भेजा है, उसको कुछ भी याद नहीं.
मेरी कहीं इक बात पे मेरा साथी रूठ गया मुझसे,
मैंने वफ़ा की याद दिलाई,वो तो कुछ भी याद नहीं!
मेरी तड़प तो भूलना बेहतर था तेरे जीने के लिए,
तुमने काटी थीं जो रातें रो-रो,कुछ भी याद नहीं?
सारे कागज़ के…
ContinueAdded by मनोज अहसास on August 6, 2020 at 12:12am — 2 Comments
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