दोहे
भिड़े प्रहरी न्याय के, लेकर निज अभिमान
मुसमुस जनता हँस रही, ले इस पर संज्ञान।१।
खाकी का ईमान क्या, बिकता काला कोट
वह नेता भी भ्रष्ट है, जन दे जिसको वोट।२।
लूट पीट जन आम को, करें न्याय का खून
खाकी, काला कोट खुद, बन बैठे कानून।३।
खाकी, काले कोट को, है इतना अभिमान
आम नागरिक कब भला, हैं इनको इन्सान।४।
रहा न जिनका आचरण, जैसा सूप सुभाय
वही सुरक्षा माँगते, वही कह रहे न्याय।५।
काली वर्दी पड़ गयी,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 7, 2019 at 8:09pm — 12 Comments
1222×4
ग़ज़ल में अपने माज़ी के कई लम्हात लाया हूँ,
परेशानी की हालत में इन्हीं से जा लिपटता हूँ.
एक ऐसा रास्ता जो देर तक खाली नहीं रहता,
मैं ऐसे रास्ते पर देर से खामोश बैठा हूँ.
लगी है आग वो घर में बुझाई ही नहीं जाती,
मैं दुनिया भर की कितनी उलझनें सुलझाता रहता हूँ.
गली के मोड़ से छुपकर तमाशा देखने वालो,
वतन का खून हूं मैं सूखकर मिट्टी से चिपका हूँ.
मुझे इससे बड़ी राहत जमाने में भला क्या माँ,
मैं…
Added by मनोज अहसास on November 6, 2019 at 11:52pm — 2 Comments
चहेरे पर मुस्कान को रख
कुछ नया करने की चाहत रख
स्वयं पर दृढ़ विश्वास को रख
आगे बढ़ बस आगे बढ़ता चल ||
सहयोग बलिदान की भावना रख
जिम्मेदारियों ना तू डर
टीम वर्क पर विश्वास जता
हौंसले संग तू आगे बढ़ ||
नामुमकिन कुछ नहीं है जग में
मन में थोड़ा धैर्य रख
असफलताओ से सीख ले
मुकाम को अपने हासिल कर ||
कहने वाले कहते हैं
उनकी बातों पर ध्यान ना धर
कठिन पर अडचने…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on November 6, 2019 at 5:00pm — 2 Comments
1212 1122 1212 22/112
न पूछिये कि वो कितना सँभल के देखते हैं ।
शरीफ़ लोग मुखौटे बदल के देखते हैं ।।
अज़ीब तिश्नगी है अब खुदा ही खैर करे ।
नियत से आप भी अक्सर फिसल के देखते हैं ।।
पहुँच रही है मुहब्बत की दास्ताँ उन तक ।
हर एक शेर जो मेरी ग़ज़ल के देखते हैं ।।
ज़नाब कुछ तो शरारत नज़र ये करती है ।
यूँ बेसबब ही नहीं वो मचल के देखते हैं ।।
गुलों का रंग इन्हें किस तरह मयस्सर हो…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on November 6, 2019 at 2:51pm — 2 Comments
2×15
कोई दरिंदा घात लगाकर जब घर में ही बैठा हो,
सहमी हुई मासूम कली का कितना बड़ा दुपट्टा हो.
अपनी बीवी के अश्कों की वो भी कद्र नहीं करता,
जिसने मम्मी को बचपन में रोज सिसकते देखा हो.
वक्त जरूरत पर ये दुनिया बेपर्दा हो जाती है,
दुनिया वाले तू भी मुझ पर थोड़ा सा बेपर्दा हो.
मेरे बच्चों में इक बच्चा ऐसा भी हो मेरे ख़ुदा,
मेरे जैसा दिल हो उसका ,उसके जैसा दिखता हो.
हमने कल्पना ऐसी बगिया की जाने क्योंकर कर ली,…
ContinueAdded by मनोज अहसास on November 6, 2019 at 12:13am — 2 Comments
कुछ हाइकु :
लोचन नीर
विरहन की पीर
घाव गंभीर
कागज़ी फूल
क्षण भर की भूल
शूल ही शूल
देह की माया
संग देह के सोया
देह का साया
झील का अंक
लहरों पर नाचे
नन्हा मयंक
यादों के डेरे
ख़ुशनुमा अँधेरे
भूले सवेरे
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on November 4, 2019 at 7:27pm — 10 Comments
ठण्डी गहरी चाँदनी
चिंताओं की पहचानी
काल-पीड़ित
अफ़सोस-भरी आवाज़ें ...
पेड़ों से उलझी रोशनी को
पत्तों की धब्बों-सी परछाई से
प्रथक करते
अब महसूस यह होता है
सपनों में
सपनों की सपनों से बातें ही तो थीं
हमारा प्यार
या उभरता-काँपता
धूल का परदा था क्या
विश्वासों में पला हमारा प्यार
आईं
व्यथाओं की ज़रा-सी हवाएँ
धूल के परदे में झोल न पड़ी
वह तो यहाँ वहाँ
कण-कण जानें…
ContinueAdded by vijay nikore on November 4, 2019 at 5:15pm — 12 Comments
जिंदगी जीने का मौक़ा ,
भीड़ से निकल कर मिलता है ,
माहौल कुछ इस कदर
असर करता है।
अकेले हों तो ख़ुद से बात
करने का मौक़ा मिलता है l
भीड़ में तो आदमी बस
दूसरों की सुनता है।
हर आदमी कोई न कोई
सवाल लिए मिलता है ,
आपको अपनी सुनाता है ,
फिर भी आपके जवाब
को कौन सुनता है ?
शायद इसीलिये अकेलापन
आपको बहुत कुछ सीखने
समझने का मौक़ा देता है।
जिंदगी जीने का मौक़ा तो
भीड़ से निकल कर ही मिलता है।
मौलिक…
ContinueAdded by Dr. Vijai Shanker on November 4, 2019 at 4:57pm — 14 Comments
काम(लघुकथा)
***
"हम तुम्हें मुफ्त में सबकुछ देंगे", नेताजी ने एलान किया।
"मुफ्त में सबकुछ?" भीड़ से आवाज आई।
"हां। क्यों भरोसा नहीं तुमलोगों को?"
"अरे दे सको,तो काम दो सबको।"भीड़ से आवाज आई।
"हां, हां। काम चाहिए,काम।जैसे तुम्हे रोजगार मिले,औरों को भी दोगे,ऐसा बोलो।"भीड़ फिर से चिल्लाई।
"हम भी तो कुछ देने ही आए हैं।"
"जब सब कुछ देना ही है,तो फिर कुछ क्यों?हम बाद में ही मांगेंगे।तुम्हारा इस्तीफा भी,ज़रूरी हुआ तो।"
"ऐं?"नेताजी बगलें झांकने लगे।
"…
ContinueAdded by Manan Kumar singh on November 3, 2019 at 7:50pm — 5 Comments
कहने को मजदूर पर, नहीं आज मजबूर।
अपनी ताकत से सदा, करे दुखों को दूर।।
काम करे डटकर सदा, नहीं कभी आराम।
इसके श्रम से ही बने, महल अटारी धाम
जंगल या तालाब हो, रुके न फिर भी पाँव।
करता श्रम दिन-रात वो, देखे धूप न छाँव।।
कंकड़ पत्थर जोड़कर, देता उसको रूप।
निज तन चिंता छोड़कर, खाता दिन भर धूप।।
राह बनाता वो यहाँ, दुष्कर गिरि को काट।
अपने भुजबल से करे, सुंदर सरल ये बाट।।
मन निर्मल है तन कड़ा, लौह बना है…
ContinueAdded by Vivek Pandey Dwij on November 3, 2019 at 4:11pm — 7 Comments
अर्चन करने सूर्य का, चले व्रती सब घाट
छठ माँ के वरदान से, दमके खूब ललाट
दमके खूब ललाट, प्रकृति से ऊर्जा मिलती
हो निर्जल उपवास, मगर मुख आभा खिलती
शाम सुबह देें अर्घ्य, करें यश बल का अर्जन
चार दिनों का पर्व, करें सब मन से अर्चन।।
पूजा दीनानाथ की, डाला छठ के नाम
अस्त-उदय जब सूर्य हों, करते सभी प्रणाम
करते सभी प्रणाम, पहुँच कर नदी किनारे
भरकर दउरा सूप, अर्घ्य दें हर्षित सारे
प्रकृति प्रेम का पर्व, नहीं है जग में दूजा
अन्न…
Added by नाथ सोनांचली on November 2, 2019 at 10:00pm — 6 Comments
याद बीते कल का वो सुख क्यों करें
ऐसे दूना अपना ही दुख क्यों करें।१।
पंक की कर मन्च से आलोचना
और गँदला बोलिए मुख क्यों करें।२।
छोड़ दुत्कारों से आये तब भला
उनके घर की ओर आमुख क्यों करें।३।
एक भी छाता न हो जिस शह्र में
बारिशें उस शह्र का रूख क्यों करें।४।
इसकी उनके पास में जब ना दवा…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 2, 2019 at 5:07pm — 2 Comments
काव्य-रुपी शब्दों का विनम्र समर्पण कविवर सुमित्रानंदन प॔त जी की कविता "कहो, तुम रूपसी कौन?" से प्रेरित हो मेरे द्वारा उनके सम्मान में किया गया एक प्रयास।
कहो, तुम पुरुष कौन?
निशक्त बतलाओ तो, क्या नाम दूँ तुम्हें ?
जान लो, पहचान लो, स्मरण कर लो,
प्रभावशाली, विराट, अखंडित,
अजेय एवं समृद्ध तुम।
हर क्षण रहे सुदृढ़, मजबूत और कर्मठ,
कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर।
प्रत्येक क्षण, रहे करनी सुदृढ़ व मजबूत,
कुछ नहीं नामुमकिन, कठिन, दुष्कर…
Added by Usha on November 2, 2019 at 11:16am — 7 Comments
मैं बीज पड़ा तेरे आँगन में
तेरी आर्द्रता से अंकुरण है
ये तन पौध बना फिर देख बढ़ा
तेरा होना मेरा सर्जन है।
कल-कल बहती हैं नदियाँ तुझ पर
मीठे-मीठे गीत सुनातीं हैं
जीवन को सींच रही हैं पल-पल
हरियाली को लेकर आतीं हैं
नित चलती पथ पर ये बिना रुके
आगे को ही बढ़ती जातीं हैं
बाधाओं को पार करें कैसे
ऐसा सबको पाठ पढ़ातीं हैं।
फिर मीत सिंधु के जा साथ मिलें
दिख जाता क्या प्रेम समर्पण है?
ये तन पौध बना फिर देख बढ़ा…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on November 2, 2019 at 11:00am — 2 Comments
स्मृति शेष, बनी विशेष।
कभी शूल सी चुभती हैं,
कभी बन प्रसून महकती हैं।
कभी अश्रु बन छलकती हैं,
कभी शब्दों में ढलती हैं।
स्मृति शेष, बनी विशेष।
अशेष, अन्नत प्रवाह पीड़ा का,
बिसराये ना बिसरती हैं।
सब छूट गया सब टूट गया,
शेष स्मृति का अटूट बंधेज।
स्मृति शेष, बनी विशेष।
कुछ…
Added by Dr. Geeta Chaudhary on November 2, 2019 at 7:30am — 4 Comments
आता है जब न्यूज़ में, होता कष्ट अपार
रख आश्रम माँ बाप को, बेटा हुआ फरार
बेटा हुआ फरार, तनिक भी क्षोभ न जिसका
होगा वह भी वृद्ध, कभी पर भान न इसका
रिश्तों का इतिहास, स्वयम् को दुहराता है
ख़ुद पे गिरती गाज़, समझ में तब आता है।।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by नाथ सोनांचली on November 1, 2019 at 11:11am — 9 Comments
ट्रेन समय की
छुकछुक दौड़ी
मज़बूरी थी जाना
भूल गया सब
याद रहा बस
तेरा हाथ हिलाना
तेरे हाथों की मेंहदी में
मेरा नाम नहीं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 31, 2019 at 8:07pm — 11 Comments
घने-काले बादलों से निकल बूंद, जब
सपनों में, अनगिनत खो जाती है
कहाँ गिरूंगी कैसे गिरूंगी
सोच-सोच घबराती है ||
क्या गिरूंगी, फूल पराग में
या धुल संग मिल जाऊँगी
कहीं बनूँगी, ओस का मोती
और मनमोहकबन जाऊँगी ||
कहीं बनूँ, जीवन आधार मैं
जीव की प्यास बुझाऊंगी
या जा गिरूंगी धधकती ज्वाला
क्षणभर में ही जल जाऊँगी…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on October 31, 2019 at 4:55pm — 6 Comments
चंद क्षणिकाएँ :जीवन
बदल गया
जीवन
अवशेषों में
सुलझाते सुलझाते
गुत्थियाँ
जीवन की
आदि द्वार पर
अंत की दस्तक
अनचाहे शून्य का
अबोला गुंजन
अवसान
आदि पल की
अंतिम पायदान
प्रेम
अंतःकरण की
अव्याखित
अनिमेष
सुषमा रशिम
ज़माने को
लग गई
नई नेम प्लेट
बदल गई
घर की पहचान
शायद चली गई
थककर
दीवार पर टंगे टंगे
पुरानी
नेम…
ContinueAdded by Sushil Sarna on October 30, 2019 at 5:14pm — 10 Comments
1-
जितना जब भी जो बचा, खाया सबके बाद।
फिर भी उसने की नहीं, जीवनभर फरियाद।।
जीवनभर फरियाद, नहीं करती यह नारी।
किंतु वृद्ध असहाय, वही अपनों से हारी।।
कहते कवि हरिओम,ध्यान रखना बस इतना।
माँ का प्रेम अनंत, गहन सागर के जितना।।
2-
जिनके जीवन में करे, माँ खुशियाँ अपलोड।
वृद्धावस्था में वही, बदल रहे हैं मोड।।
बदल रहे हैं मोड, मगर माँ तो माँ होती।
करके उनको याद, बैठ आश्रम में रोती।।
कोई कर दे क्लीन, वायरस अब तो इनके।
माँ ने कर अपडेट,…
Added by Hariom Shrivastava on October 29, 2019 at 10:51pm — 3 Comments
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