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राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६५

२१२२ २१२२ २१२२

---------------------------

आ गया है जेठ, गर्मी का महीना

अब समंदर को भी आयेगा पसीना //१



उम्र भी अब तो सताने लग गई है

डूबता ही जा रहा है ये सफ़ीना //२



सोचता हूँ जिंदगी भी क्या करम है

उफ़ ! ये मरना और यूँ मर मर के जीना //३



ज़िंदगानी के तराने गा रहे सब

हैं दिवाने सैकड़ों और इक हसीना //४…

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Added by राज़ नवादवी on November 3, 2018 at 7:00am — 16 Comments

कहीं हद तोड़ कर तट भी अगर मझधार हो जाता - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२



किसी की बद्दुआ  से  गर  कोई  बीमार हो जाता

दुआ सा आखिरी वो भी बड़ा हथियार हो जाता।१।



ललक से धन की थोड़ा भी कहीं दो चार हो जाता

कसम से आईना भी तब महज अखबार हो जाता।२।



घड़ी भर को ही हमदम का अगर दीदार हो जाता

सुकूँ से मरने  का  यारो  तनिक  आधार हो जाता।३।



कहानी प्यार की  अपनी  किनारे  लग कहाँ पाती

कहीं हद तोड़ कर तट भी अगर मझधार हो जाता।४।…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 3, 2018 at 6:00am — 20 Comments

'तू मेरा क्या लागे?' (लघुकथा)

"देख, अब भी समय है! संभाल ले, अनुशासित कर ले अपने आप को!"

"अपनी थ्योरी अपने ही पास रख! ... देख, रुक जा! ठहर जा! रोक ले समय को भी! उसे और तुझे मेरे हिसाब से ही चलना होगा!"

"तो तू मुझे अपनी मनचाही दिशा में धकेलेगा! अपनी मनचाही दशा बनायेगा! 'देश' और 'काल' की गाड़ी की मनचाही 'स्टीअरिंग' करेगा!

"बिल्कुल! ड्राइवर, कंडक्टर, सब कुछ मैं ही हूं और हम में से ही हैं हमारे देश की गाड़ी चलाने वाले! तुम.. और समय .. तुम दोनों तो बस क़िताबी हो; बड़ी ज़िल्द वाली बड़ी-बड़ी क़िताबों में रहकर…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on November 3, 2018 at 12:29am — 5 Comments

ग़ज़ल नूर की- सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे

.

सोचिये फिर डूबने में कितनी आसानी रहे

उनकी आँखों में जो मेरे वास्ते पानी रहे.

.

मैं किसी को जोड़ने में घट भी जाऊँ ग़म न हो

ज़िन्दगानी के गणित में इतनी नादानी रहे.

.

क़त्ल होते वक़्त भी मैं मुस्कुराता ही रहूँ

ताकि क़ातिल को मेरे ता-उम्र हैरानी रहे.

.

क़ाफ़िला यादों का गुज़रे रेगज़ार-ए-दिल से जब

आँखों में लाज़िम है सारी रात तुग़्यानी रहे.

.

क्यूँ भला सोचूँ वो दुश्मन है मेरा या कोई दोस्त

मैं रहूँ…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on November 2, 2018 at 6:45pm — 29 Comments

काँच पत्थर से भले टकरा गया। (ग़ज़ल- बलराम धाकड़)

2122 2122 212

काँच पत्थर से भले टकरा गया।

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा समझा गया।

फ़िर सियासत में हुई हलचल कहीं,

मीडिया के हाथ मुद्दा आ गया।

सारी दुनिया एक कुनबा है अगर,

आयतन रिश्तों का क्यों घटता गया?

इक बतोलेबाज की डींगें सुनीं,

आदमी घुटनों के ऊपर आ गया।

फिर किसी औरत का दामन जल…

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Added by Balram Dhakar on November 2, 2018 at 3:30pm — 19 Comments

मंदिर की घंटी :हरि प्रकाश दुबे

सुदूर पहाड़ी पर एक प्रसिध्द ‘माँ दुर्गा’ का एक मन्दिर था, जिसका संचालन एक ट्रस्ट के हाथ में था। उसमे पुजारी, आरती करने वाला, प्रसाद वितरण करने वाला, मंदिर की सफाई करने वाला, मंदिर की आरती के समय घंटी बजाने वाला आदि सभी लोग ट्रस्ट द्वारा दी जाने वाली दक्षिणा एवम भोजन पर रखे गए थे।

आरती खत्म हो जाने के बाद जहाँ अन्य लोग चढ़ावे को इक्कठा कर कोष में जमा कराने में तत्पर रहते थे वही घंटी बजाने वाला ‘घनश्याम’ आरती के समय भाव के साथ इतना भावविभोर हो जाता था कि होश में ही नही…

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Added by Hari Prakash Dubey on November 1, 2018 at 10:09pm — 3 Comments

गजल- नहीं आती

मापनी - २१२२ 12 1222 

चाहते हैं मगर नहीं आती

हर ख़ुशी सबके’ घर नहीं आती  

 

दिल में’ थोड़ी सी’ गुदगुदी कर दे  

आजकल वो खबर नहीं आती  

 

मैं इधर जब उदास होता हूँ  

नींद उसको उधर नहीं…

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Added by बसंत कुमार शर्मा on November 1, 2018 at 5:30pm — 30 Comments

बैसाखियाँ (लघुकथा)

बैसाखियाँ

 

वे अचानक आसमान से टपके या ज़मीन से निकले, पता ही न चला। देश के उन वीर सपूतों के नारे यदि देश के दुश्मन सुन लें तो हमारी ओर आंख उठाकर देखने की हिम्मत ही न करें। लेकिन इस वक्त उनकी बहादुरी और देशभक्ति का शिकार था वह जो, राष्ट्रगान के समय खड़ा नहीं हुआ था। उसे उसकी सज़ा तो मिलनी ही थी।

उसे जब होश आया तो वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा मुश्किल से सांस ले रहा था। उसका एक हाथ हथकड़ी के सहारे पलंग से जकड़ा हुआ था, और बाहर एक पुलिस का सिपाही पहरे पर था कि देश का मुजरिम…

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Added by Mirza Hafiz Baig on October 31, 2018 at 11:23pm — 5 Comments

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ज़िन्दगी खत्म तो नहीं होगी

रूह भी जिस्म में कहीं होगी 

धड़कनें दिल मे ही बसी होगी

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

ये शब ओ रोज़ यूं ही गुज़रेंगे

चाँद सूरज भी पाली बदलेंगे

धूप होगी और चांदनी होगी

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

वक़्त मुझे भूलना सिखा देगा

फिर कोई आएगा, हंसा देगा 

बाद तेरे भी हर ख़ुशी होगी 

बस तेरी थोड़ी सी कमी होगी

याद धुँधली तो हो ही जाएगी

वो…

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Added by saalim sheikh on October 31, 2018 at 10:51pm — 3 Comments

लौहपुरुष

लौहपुरुष

( आल्हा-वीर छन्द )

लौहपुरुष की अनुपम गाथा,दिल से सुने सभी जन आज

दृढ़ चट्टानी हसरत वाले,बचा लिये भारत की लाज

धन्य हुई गुजराती गरिमा,जहाँ जन्म पाए सरदार

अखंड भारत बना गए जो,सदा करूँ उनकी जयकार

पिता झवेर लाडबा माता,की पटेल चौथी सन्तान

सन अट्ठारह सौ पचहत्तर,पैदा हुए हिन्द की शान

इकतीस अक्टूबर हिन्द में,हम सबका पावन दिन खास

भारतरत्न हिन्द की हस्ती,कण कण को आ किये उजास

खेड़ा जनपद गाँव करमसद,लेवा कृषक एक…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 31, 2018 at 1:05pm — 8 Comments

"जा..जा..जा!" (लघुकथा)

"सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु । ... सर्वेषां शान्तिर्भवतु । ... सर्वेषां पूर्नं भवतु । ... सर्वेषां मड्गलं भवतु ॥" इस 'वैश्विक-प्रार्थना' के स्वर जब उसने सुने तो उसकी आंखों में आंसू आ गए।

"तुम कौन हो? इतने भव्य मुकाम पर चमकते हुए भी यूं क्यूं रो रहे हो" उसके कंधे पर स्वयं को संतुलित करते हुए 'प्रार्थना' गाने वाले 'शान्ति' के प्रतीक ने कहा।

"मैं... मैं हूं विश्व की सबसे ऊंची मूर्ति.. सुनहरी मूर्ति.. सरदारों की सरदार! .. पर तुम अपने काम छोड़कर यहां कैसे?" आंखों से कुछ और अश्रु लुढ़काते…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 31, 2018 at 6:30am — 5 Comments

जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे। ( ग़ज़ल- बलराम धाकड़)

चन्द अश्आर मेरे अश्क़ से बहकर उतरे।

जो पसीने में हुए तर, वही बेहतर उतरे।

तेरी यादों के यूँ तूफ़ां हैं दिलों पे क़ाबिज़,

जैसे बादल कोई पर्बत पे घुमड़कर उतरे।

स्याह रातों में तेरा ऐसे दमकता था बदन,

जिसतरह चाँद पिघलकर किसी छत पर उतरे।

मैं तुझे प्यार करूँ, और बहुत प्यार करूँ,

ऐसे जज़्बात मेरे दिल में बराबर उतरे।

ऐसी ज़ुल्मत…

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Added by Balram Dhakar on October 30, 2018 at 11:47pm — 20 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६४

2212 1212 2212 12



दिल क्या लगे किसी का जब कोई न काम हो

इससे भला तो ग़ैब के घर में क़याम हो //1



कोशिश तो कर कि मुफ़लिसी मेरी न आम हो

मेरे दिवारो दर पे भी कोई तो बाम हो //2



इतना तो मेरी ख़्वाहिशों का एहतराम हो

गर हो न मय जो हल्क़ में, हाथों में जाम हो //3



कब तक हवाओं के फ़क़त बिखराव में जिऊँ

मेरे लिए भी ऐ ख़ुदा कोई निज़ाम हो…

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Added by राज़ नवादवी on October 30, 2018 at 8:30pm — 14 Comments

कोई ले गया मेरा चाँद है मेरे आसमाँ से उतार कर

11212 11212. 11212. 11212

हुई तीरगी की सियासतें उसे बारहा यूँ निहार कर ।

कोई ले गया मेरा चाँद है मेरे आसमाँ से उतार कर ।।

अभी क्या करेगा तू जान के मेरी ख्वाहिशों का ये फ़लसफा । जरा तिश्नगी की खबर भी कर कोई शाम एक गुज़ार कर ।।

मेरी हर वफ़ा के जवाब में है सिला मिला मुझे हिज्र का । ये हयात गुज़री तड़प तड़प गये दर्द तुम जो उभार कर ।।

ये शबाब है तेरे हुस्न का या नज़र का मेरे फितूर है ।

खुले मैकदे तो बुला रहे तेरे तिश्ना लब…

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Added by Naveen Mani Tripathi on October 30, 2018 at 12:30pm — 1 Comment

कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२२/१२२२/१२२२/१२२२

सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा

वफा  तुझ में  नहीं  बाकी  बताना  हो  गया टेढ़ा।१।



मुहर मुंसिफ  लगा  बैठे  सही  अब बेवफाई भी

कि बन्धन सात  फेरों  का निभाना हो गया टेढ़ा।२।



कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है

किसी  को  आईना  जैसे  दिखाना  हो  गया  टेढ़ा।३।



बुढ़ापा गर धनी हो  तो निछावर हुस्न है उस पर

हुनर  से …

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 30, 2018 at 5:30am — 20 Comments

कसमों की डोरी ....

कसमों की डोरी ....

चलो

कोशिश करते हैं

जीवन को

कसमों की डोरी में

रस्मों की गंध से

अलंकृत कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

हिना के रंग को

स्नेह अभिव्यक्ति के

अनमोल पलों से

अमर कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

अपरिचिति श्वासों को

हवन कुंड की अग्नि के समक्ष

एक दूजे में समाहित कर

सृष्टि की पावनता को

श्रृंगारित कर दें

चलो

कोशिश करते हैं

लकीरों में छुपे

अपने…

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Added by Sushil Sarna on October 29, 2018 at 7:44pm — 10 Comments

2 क्षणिकाएं - शान्ति/होड़

शान्ति :

बहुत आज़मा लिया
शान्ति के लिए
युद्ध को
एक बार तो
प्यार को भी
आज़माया होता
शान्ति के लिए

...............................

होड़ ... 

बारूद के धुऐं में
झुलस गई
ज़िंदगी
सो गए
सीमाओं पर
गोलियों के बिछौने पर
खामोशियों का
कफ़न ओढ़े
पथराये से
खामोश रिश्ते
जाने क्या पाने की होड़ में
सीमा पर

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on October 29, 2018 at 4:34pm — 12 Comments

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (वो मेरे साथ था, मेरा शिकार होने तक)

1212, 1122, 1212, 22

अजीब बात है, दुश्मन से यार होने तक,

वो मेरे साथ था, मेरा शिकार होने तक।

उबलते खौलते सागर से पार होने तक,

ख़ुदा को भूल न पाए ख़ुमार होने तक।

हमें भी कम न थीं ख़ुशफ़हमियां मुहब्बत में,

हमारा दर्द से अव्वल क़रार होने तक।

तुम्हारा ज़ुल्म बढ़ेगा, हमें ख़बर है ये,

तुम्हारे हुस्न का अगला शिकार…

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Added by Balram Dhakar on October 29, 2018 at 1:40pm — 20 Comments

निर्जला व्रत -लघुकथा -

निर्जला व्रत -लघुकथा -

सूरज तीन महीने बाद अमेरिका से लौटा तो सामान पटक कर सीधा अपने बचपन के मित्र रघु को सरप्राइज़ देने उसके घर जा धमका। रघु की शादी में वह विदेश दौरे के कारण शामिल नहीं हो सका था। इसलिये माफ़ी भी माँगनी थी।बदले में दोनों को ढेर सारे उपहार भी देने थे।

लेकिन यह क्या सूरज तो खुद चकित हो गया जब रघु का लटका हुआ उदास चेहरा देखा।"क्या हुआ दोस्त, क्या शादी रास नहीं आई।"

"छोड़ यार तू सुना, कब आया, कैसा रहा टूर?"

"यार बात को घुमा मत। भाभी कहाँ है?"

"छोड़…

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Added by TEJ VEER SINGH on October 29, 2018 at 11:08am — 14 Comments

गजल(उठे हैं.....)

122 122  122 12

उठे हैं किसी को गिरा के मियाँ

चले पाग सर पे सजा के मियाँ।1

कहा था, डरेगा न कोई यहाँ

रहे खुद को हाफ़िज बना के मियाँ।2

रहेगा न सूखा शज़र एक भी--

कहें नीर सारा सुखा के मियाँ।3

मिटी भूख उनकी हुए सब सुखी

चहकते चले माल खा के मियाँ।4

किये लाख सज़दे, मिले कब सनम?

गये थे कभी सर नवा के…

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Added by Manan Kumar singh on October 29, 2018 at 7:15am — 10 Comments

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