For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,119)

वरखा बहार आई........[तुकांत-अतुकांत कविता]

घुमड़-घुमड़ बदरा छाये,

चम-चम चमकी बिजुरियां,छाई घनघोर काली घटाएं,

घरड-घरड मेघा बरसे,

लगी सावन की झड़ी,करती स्वागत सरसराती हवाएं........

लो,सुनो भई,बरखा बहार आई......

तपती धरती हुई लबालव,

माटी की सौंधी खुश्बू,प्रफुल्लित बसुन्धरा से संदेश कहती,

संगीत छेड़ती बूंदों की टप-टप ,

लहराते तरू,चहचहाते विहग,कोयल मधुर गान छेड़ती.......

लो सुनो भई,वरखा बहार आई.......

छटा बिखर गई,मयूर थिरक उठा-सा,

सुनने मिली झींगरों की झुनझुनी,पपीहे…

Continue

Added by babitagupta on June 28, 2018 at 8:30pm — 9 Comments

5 क्षणिकाएं :

5 क्षणिकाएं :

१ 

रात 

रोज मरती है

अपने दोस्त 

दिन के 

इंतज़ार में 

................

२ 

तपते सागर का 

दर्द 

लाते हैं मेघ 

भीग जाती हैं 

वसुधा 

...................

३ 

नैनालिंगन 

मौन अभिनन्दन 

अधर समर्पण 

....................

४ 

ज़िद पर आ जाये 

तो 

पाषाणों को…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 28, 2018 at 4:30pm — 4 Comments

जरा ज़ुल्फें हटाओ....(ग़ज़ल)

जरा ज़ुल्फें हटाओ चाँद का दीदार मैं कर लूँ !

बस्ल की रात है तुमसे जरा सा प्यार मैं कर लूँ !!



बड़ी शोखी लिए बैठा हूँ यूँ तो अपने दामन में !

इजाजत हो अगरतो इनको हदके पार मैंकरलूँ!!



मुआलिज है तू दर्दे दिल का ये अग़यार कहते हैं!

हरीमे यार में खुद को जरा बीमार मैं कर लूँ !!



यूँ ही बैठे रहें इकदूजे के आगोश में शबभर !

जमाना देख ना पाये कोई दीवार मैं कर लूँ !!



तुझे लेकर के बाहों में लब-ए-शीरीं को मैं चूमूँ !

कि होके बेगरज़ अब इकनहीं…

Continue

Added by रक्षिता सिंह on June 28, 2018 at 3:16pm — 11 Comments

सोज़-ए-शहर (लघुकथा)

"इन दरख़्तों के टुकड़े हज़ार हुए कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा; कोई यहां गया, कोई वहां गया !" कटे हुए पेड़ों के शेष ठूंठों और उनकी कराहती जड़ों की ओर निहारते हुए पड़ोसी पेड़ अपनी शाखाओं का रुख़ ज़मीं की ओर करते हुए एक फ़िल्मी नग़में की तर्ज़ पर शोक-गीत गाने लगे।



"ये शहादत खाली नहीं जायेगी! दिल्ली की खिल्ली उड़वा रहे हैं दुनिया में शेख़ चिल्ली!" पास के एक ऊंचे से पेड़ ने अपना अंतिम अट्टाहास करते हुए कहा।



"नये दरख़्त कितने भी कहीं भी लगवा लें, न तो उनके बीज और जड़ों की वह गुणवत्ता…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 28, 2018 at 6:30am — 9 Comments

विषाक्त उजाले :

विषाक्त उजाले :

कितना लालायित था
बाहर की दुनिया से
मिलने के लिए

दम घुटने लगा था मेरा
अंदर ही अंदर
गर्भ के
घुप अँधेरे में
रोशनी से
आलिंगनबद्ध होने के लिए

जब से
गर्भ से निकला हूँ
जी रहा हूँ
अपनी ही अंतस में
चुपचाप सा
यही सोचते हुए
क्या इन्हीं
विषाक्त

उजालों के लिए
जीव
गर्भ के
अन्धकार का
त्याग करता है


सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 27, 2018 at 6:18pm — 6 Comments

कवि (अतुकान्त कविता)

संवेदनाओं की पथरीली चोटी पर बैठकर

अपने रिसते हुए घावों को देखता हुआ

ये कौन है

जो कभी कुत्ते की तरह

जीभ से उन्हें चाटता है

तो कभी मुट्ठी में नमक भर कर

उनमें उड़ेल देता है

और फिर एक तपस्वी की तरह

ध्यान लगाकर सुनता है

अपनी आहों और कराहों को?

पत्थरों को उठा कर

अपने लहू में डुबा कर

भावनाओं की लहरों पर बैठे हुए

कौन लिख रहा है उनसे

अपना मृत्यु लेख?

किसी फन्दे पर लटक कर

एक पल में शान्ति से गुज़र जाने की अपेक्षा…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 27, 2018 at 9:03am — 4 Comments

'नाम के काम, नाम से काम' (अतुकांत कविता)/ छंद-मुक्त कविता

विकास के नाम पर

व्यापार के दाम पर,

धनाढ्य, नेता, मंत्री,

बाबाजी सब काम पर!

इंसानियत होम कर,

अनुलोम-विलोम सा

हेर-फेर कर!

बच्चों, नारी,

ग़रीब, किसान

घेर कर!

पड़ोसियों से बैर कर,

रिश्ते-नातों को

तजकर, बेच कर!

या रिश्तों के नाम

जाम, दाम, नाम

लगाकर,

दूर के आभासी

अनजाने से

रिश्ते थाम कर,

मर्यादाओं को लांघ कर,

मानव-अंग उघाड़ कर,

येन-केन-प्रकारेण

अंग-निर्वस्त्रीकरण कर,

निज-स्वतंत्रता,…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 27, 2018 at 6:00am — 2 Comments

ग़ज़ल

2122 1212 22

गुल जो सूखा किताब में देखा ।

आपको फिर से ख़्वाब में देखा ।।

बारहा चाँद की नज़ाक़त को ।

झाँक कर वह नकाब में देखा ।।

मैकदे में गया हूँ जब भी मैं ।

तेरा चेहरा शराब में देखा ।।

वस्ल जब भी लगा मुनासिब तो।

कोई हड्डी कबाब में देखा ।।

तोड़ पाता उसे भला कैसे ।

हुस्न उसका गुलाब में देखा ।।

डाल कर फूल राह में सबके ।

मैंने पत्थर जबाब में देखा ।।

लुट गईं रोटियां गरीबों…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on June 26, 2018 at 9:43pm — 16 Comments

कविता---बेबस क़लम और हम

क़लम लाचार है

विरोध की तेज़ धार है

घोषणाएँ जारी हैं

ग़रीब का भूखा पेट भी आभारी है

झोंपड़ियों के ऐब सारे ढँक गए

ग़रीब के घर बेबसी की बीमारी है

संसद में भूख का आँकड़ा गरमा रहा है

रहनुमा विकास का तराना गुनगुना रहा है

धर्म के ठेकेदारों की दबंगई है

ईमान की बोली सस्ती लगी है

दहशत में सबकुछ फलफूल रहा है

मदारी ख़ुद झूठ के बाँस पर चल रहा है

बहुत तरक़्की हो चुकी है

चैन की बाँसुरी भी सुर खो चुकी है

सरकार का चरित्र साफ़-साफ़ नज़र आ रहा है…

Continue

Added by Mohammed Arif on June 26, 2018 at 8:30am — 17 Comments

अबला नहिं आज रही महिला

दुर्मिल सवैया

अबला नहिं आज रही महिला, सबला बन राज करे जगती।

मुहताज नहीं सब काज करे, मन ओज अदम्य सदा भरती ।।

धरती नभ नाप रही पल में, प्रतिमान नये नित है गढ़ती।

यह बात सभी जन मान गये, अब नार नहीं अबला फबती।१।

परिधान हरा तन धार खुशी, ललना गल धीरज हार गहा।

सिर बाँध दुकूल उमंग नया, मन केशरिया रँग आज लहा।।

शुभ कंगन साहस हाथ भरा, मुख आस सुहास विराज रहा।

पथ उन्नति एक चुना उसने, बिसरे सब पंथ विराग…

Continue

Added by Satyanarayan Singh on June 25, 2018 at 8:26pm — 13 Comments

फ़ीडिंग और फ़ीडबैक (लघुकथा)

दुकान के चबूतरे पर चारों मित्र एकदम चौंकते हुए खड़े होकर अपने-अपने धर्म के सिखाये मुताबिक़ कुछ उच्चारण करते हुए अर्थी में ले जाये रहे मृतक को नमन कर श्रद्धांजलि देने लगे।



"ओह, इनके घरवालों को यह सदमा बरदाश्त करने की शक्ति दे! इन्हें स्वर्ग में स्थान दे!" अशरफ़ ने आसमान की ओर देखते हुए कुछ ऐसा ही उच्चारित किया।



"अबे, तू तो हमेशा उर्दू-अरबी में कुछ बोलता है न मय्यत पर! जन्नतनशीं और तौफ़ीक़ जैसे लफ़्ज़ों में!" रामलाल ने उसे टोक ही दिया।



"दरअसल तुम्हारे 'स्वर्ग' और…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 25, 2018 at 7:25pm — 6 Comments

ग़ज़ल....दिल जला के रौशनी होती नहीं है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन

दर्द अपना यूँ सर-ए-बाज़ार कर के

क्या मिलेगा वक़्त से तक़रार कर के

कुछ नहीं हासिल,समझते क्यों नहीं हो

गम उठाना आह भरना प्यार कर के

सामने उस मोड़ पर कुछ अनमना सा

शख़्स इक बैठा है सब न्योछार कर के

बन्दगी उल्फत है मैं था इस गुमां में

वो नहीं आया अना को पार कर के

दिल जला के रौशनी होती नहीं है

ये भी 'ब्रज' ने देखा है सौ बार कर के



(मौलिक एवं अप्रकाशित)…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 25, 2018 at 6:00pm — 23 Comments

क्या है कविता?

क्या है कविता?

 

भाव-प्रवण शब्दों का

मोहक जाल

डम-डम, डिम-डिम

ध्वनियों का कमाल

प्रकृति में गुंजायमान,

अनहत नाद?

स्यात, प्रणय का…

Continue

Added by SudhenduOjha on June 25, 2018 at 5:14pm — No Comments

शहीद (लघुकथा)

संसद भवन के बाहर भूख हड़ताल पर बैठे हुए उन युवाओं को दो महीनों से अधिक का समय हो गया था पर न तो किसी अख़बार में इसकी कोई ख़बर थी और न ही न्यूज़ चैनल्स पर चर्चा। 

“इन बेरोज़गार लौंडों के पास अब कोई काम नहीं रह गया है।” बड़ी-बड़ी मूँछों वाले उस स्थानीय बुज़ुर्ग ने अपने पास खड़े अधेड़ से कहा। “कुछ नहीं मिला तो सरकार को ही बदनाम करने में लग गए।”

“कह क्या रहे हैं ये लोग?” अधेड़ ने जिज्ञासा व्यक्त की।

“कह रहे हैं कि जब देश की जनता भूखों मर रही है तो कोई…

Continue

Added by Mahendra Kumar on June 25, 2018 at 4:30pm — 9 Comments

हाइकू

अरण्य घन

सुन स्वर लहरी

मादल थाप

  

पवन मंद

बिखरे मकरंद

नव अंकुर

  

ढीठ हवाएँ

पत्ते बुहार रहीं

पतझड़ में

  

पर्वत नाले

पार करती चली

चंचल नदी

 

 मेघ ढिठौना

तपते आकाश में

बरसेगा क्या

… मौलिक एवं अप्रकाशित

(मादल की थाप का प्रसंग आशापूर्ण देवी जी की कहानी से )

 

 

Added by Neelam Upadhyaya on June 25, 2018 at 3:00pm — No Comments

सुबह जरूर आयेगी  -  लघुकथा   –

सुबह जरूर आयेगी  -  लघुकथा   –

वह रात सूरज और संध्या के जीवन की ऐसी रात थी कि दोनों की ही अग्नि परीक्षा की घड़ी आगयी थी। कौन खरा उतरेगा , यह तो ऊपर वाला ही तय करेगा ।

 दोनों की शादी को जुम्मे जुम्मे आठ दिन भी नहीं हुए थे कि दोनों ने अकेले पिक्चर देखने, वह भी नाइट शो, का प्रोग्राम बना लिया। शहर के बिगड़े माहौल को देखते हुए घर में कोई भी उनके इस फ़ैसले से खुश नहीं था। मगर सूरज की ज़िद और अति आत्मविश्वास के आगे सब चुप थे। क्योंकि वह एक फ़ौज़ी अफ़सर जो था।

फ़िल्म देखकर निकले तो सूरज…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on June 25, 2018 at 12:40pm — 12 Comments

अदेह रूप .....

अदेह रूप ...

सर्वविदित है

देह का शून्यता में

विलीन होना

निश्चित है

मगर

अदेह चेतना

सृष्टि में व्याप्त

चैतन्य कणों से

निर्मित

आदि अंत से मुक्त

अनंत

अभिश्रुति की

अभिव्यंजना है

मुझे तुमसे मिलने के लिए

उन अदृश्य कणों से निर्मित

धागों की अदेह को

अपने चेतन में

अवतरित करना होगा

मैं

मेरी देह सी

अतृप्त नहीं रह सकती

मैं

तुमसे

अवश्य मिलूंगी

अपने

अदेह रूप…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 25, 2018 at 11:59am — 10 Comments

मन का भंवर ...

    अकस्मात मीनू के जीवन में कैसी दुविधा आन पड़ी????जिन्दगी में अजीब सा सन्नाटा छा गया.मीनू ने जेठ-जिठानी के कहने पर ही उनकी झोली में खुशियाँ डालने के लिए यह कदम उठाया था लेकिन...पहले से इस तरह का अंदेशा भी होता तो शायद....चंद दिनों पूर्व जिन ख्यावों में डूबी हुई थी,वो आज दिवास्वप्न सा लग रहा था....

      तेरे पर्दापर्ण की खबर सुन किलकारी सुनने को व्याकुल थे.....तब तेरे अस्तित्व से वो अपरिचित थे तो जिठानी जी की दुःख…

Continue

Added by babitagupta on June 24, 2018 at 3:00pm — 8 Comments

अमर हो गयी .. (लघु रचना )

अमर हो गयी .. (लघु रचना )

स्मृति गर्भ में
एक शिला
साकार हो उठी
भाव अस्तित्व
उदित हुआ
शिला की दरारों से
आसक्ति
अदृश्यता की घाटियों से
प्रवाहित हो
स्मृतियों वीचियों पर
अक्षय पल सी
सुवासित हो
अमर हो गयी

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on June 24, 2018 at 1:27pm — 8 Comments

पास रहते लोग से हम दूर कितने हो गए

2122   2122     2122     212

दूरियां नजदीकियां बन तो गयी हैं आजकल

पास रहते लोग से हम दूर कितने हो गए

 

माँ पिता सारे मरासिम गुम  हुए इस दौर में  

रोटियों के फेर में मजबूर कितने हो गए

 

भूल जाओगे मुझे तुम एक दिन मालूम था

इश्क में मेरे मगर मशहूर कितने हो गए

 

पत्थरों पर सर पटककर फायदा कोई नहीं

उसके दर पर ख्वाब चकनाचूर कितने हो गए

 

रात काली नागिनों सी डस रही है आजकल

हमनशीं थे कल तलक मगरूर…

Continue

Added by Neeraj Neer on June 24, 2018 at 11:35am — 20 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
22 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service