"सूटकेस भी तो ला!"
"सर.. कार में है!"
".. तो और कहां होगा! उसी सूटकेस से तो सरकार बनवाऊंगा न!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 16, 2018 at 6:04pm — 1 Comment
वर्तमान में भागमभाग की जिन्दगी में मनुष्य एक ऐसी मायवी दुनिया में जी रहा हैं जहां ऊपर से अपने आप को दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इन्सान जताता हैं,जबकि वास्तव में वो एक मशीनी जिन्दगी जी रहा हैं,तनावग्रस्त,सम्वेदनहीन,एकाकी हो गया हैं जहाँ सम्वेदनशीलता और सह्रदयता अकेली हो जाती हैं और एक उठला जीवन जीने लगता हैं .ऐसे में उसेइस कोलाहल भरी दुनिया से छुटकारा मिलने का एक मात्र साधन -सात सुरों से सजा संगीत होता हैं.संगीत ही ऐसी औषधि होती हैं जिसमें ह्रदय से बिखरे आदमी को…
ContinueAdded by babitagupta on May 16, 2018 at 6:02pm — No Comments
"हम सबसे बड़े दल हैं!"
"तो दावा करने के बाद साहिब का तो इंतज़ार कर न!"
"क्या करें भाई, हम दलदल में जो हैं!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 16, 2018 at 5:57pm — No Comments
221 2121 1221 212
सब कुछ है मेरे पास मगर बेजुबान हूँ ।
क़ानून तेरे जुल्म का मैं इक निशान हूँ ।।
क्यूँ माँगते समानता का हक़ यहां जनाब ।
भारत की राजनीति का मैं संविधान हूँ ।।
उनसे थी कुछ उमीद मुख़ालिफ़ वही मिले ।
जिनके लिए मैं वोट का ताजा रुझान हूँ ।।
कुनबे में आ चुका है यहाँ भुखमरी का दौर ।
क़ानून की निगाह में ऊंचा मकान हूँ ।।
गुंजाइशें बढ़ीं हैं जमीं पर गिरेंगे आप ।
जबसे कहा…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 16, 2018 at 5:49pm — 2 Comments
हरजाई ....
ये
वो गालियां हैं
जहां
अंधेरों में
सह्र होती है
उजाले उदास होते हैं
पलकों में
खारे मोती
होते हैं
बे-लिबास जिस्म,
लिपे -पुते चेहरे,
शायद
बाजार में
बिकने की
ये पहली जरूरत है
इक रोटी के लिए
सलवटों से खिलवाड़
रौंदे गए जिस्म की
बिलखती दास्ताँ हैं
भोर
एक कह्र ले कर आती है
पेट की लड़ाई
शुरू हो जाती है
दिन ढलने के साथ -साथ…
Added by Sushil Sarna on May 16, 2018 at 11:30am — 2 Comments
(फाइलातुन - - मफा इलुंन - - - फेलुन)
जिस को कुछ ग़म न हो कमाई का |
वो करे काम आशनाई का |
मुझको ले आए ग़म की सरहद तक
शुक्रिया उनकी रहनुमाई का |
झूटी तुहमत पे तैश खाते हो
यह तरीक़ा नहीं सफ़ाई का |
मनज़िले इश्क़ पा सकेगा वही
सह लिया जिसने ग़म जुदाई का |
मैं वफादार था लगा फ़िर भी
मुझ पे इल्ज़ाम बे वफाई का |
ज़ुल्म उस हद तलक रहें मह दूद
आए मौक़ा न जग हँसाई…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 15, 2018 at 8:00pm — 8 Comments
नहीं जानती ...(350 वीं कृति )
नहीं जानती
तुम किस धागे से
रिस्ते हुए ज़ख्मों पर
ख़्वाबों का
पैबंद लगाओगे
नहीं जानती
तुम किस चाशनी में डुबोकर
ज़ख़्मी लम्हों को
मेरी आँखों की हथेली पर
सजाओगे
नहीं जानती
तार तार हुए
ख़्वाबों के लिबास
कैसे बेशर्मी को
नज़रअंदाज़ कर पाएंगे
मगर
जानती हूँ
तुम फिर से
मेरे
संग-रेज़ों में तकसीम ख़्वाबों को
अपने शीरीं…
Added by Sushil Sarna on May 14, 2018 at 5:30pm — 4 Comments
यौवन रुत ...
चक्षु आवरण पर
प्रत्यूष का सुवासित स्पर्श
यौवन रुत की प्रथम अंगड़ाई का
प्रतीक था
आँखों की स्मृति वीचियों पर
अखंडित लालसाओं की तैरती नावें
बहुबंध में सिमटी
अमर्यादित अभिलाषाओं की
प्रतीक थी
मौन अनुबंधों के अंतर्नाद
निष्पंद देह में
उन्माद क्षणों के चरम अनुभूति के
प्रतीक थे
मयंक मुख पे
केश मेघों की अठखेलियाँ
कामनाओं की अनंत तृषा की
प्रतीक…
Added by Sushil Sarna on May 14, 2018 at 4:59pm — 10 Comments
"लोगों की आदत है हर बात, हर घटना में से केवल नकारात्मक बातें ही निकालते हैं!" झूमते हुए दरख़्तों ने कुछ अनुपयोगी पत्तों और डालियों से छुटकारा पाते हुए तेज़ आंधी से कहा- "अब देख, तुझे लोग केवल तबाही और नुकसान के लिए याद करते हैं, जबकि...!"
"क्या जबकि?" तेज़ हवाओं को लपेटती आंधी ने पूछा।
"जबकि आजकल तुझे विश्व स्तर का 'टेलीविजन चैनल कवरेज़' मिल रहा है, तुझ पर 'विडियो क्लिप्स' इंटरनेट पर अपलोड किए जा रहे हैं! तेरे तो जलवे हैं! तरह-तरह से लोगों को 'ठंडक', 'संतुष्टि' और…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 14, 2018 at 11:16am — 8 Comments
ममता का सागर,प्यार का वरदान हैं माँ,
जिसका सब्र और समर्पण होता हैं अनन्त,
सौभाग्य उसका,बेटा-बेटी की जन्मदात्री कहलाना,
माँ बनते ही,सुखद भविष्य का बुनती वो सपना,
इसी 'उधेड़बुन'में,कब बाल पक गये,
लरजते हाथ,झुकी कमर.सहारा तलाशती बूढ़ी…
ContinueAdded by babitagupta on May 13, 2018 at 1:00pm — 5 Comments
उसकी खातिर करो दुआ प्यारे।।
इस तरह से निभा वफ़ा प्यारे।।
जो हो शर्मिंदा अपनी गलती पे।
उसको हर्गिज न दो सजा प्यारे।।
माना पहुँचे हो अब बुलंदी पर।
तुम न खुद को कहो खुदा प्यारे।।
कत्ल करके वो मुस्कुराता है।
कितनी क़ातिल है ये अदा प्यारे।।
जिनको रोटी की बस जरूरत है।
उनपे बेकार सब दवा प्यारे।।
'राम' बुझने को हैं उन्हें छोड़ो।
दें चरागों को क्यूँ हवा प्यारे।।
मौलिक अप्रकाशित
राम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on May 13, 2018 at 11:15am — 8 Comments
था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और
उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और.
.
रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और
शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और
.
ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं
उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?
.
इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम
दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.
.
आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही
होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.
.
करते हैं…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2018 at 9:12am — 13 Comments
घर को घर सा कर रखे, माँ का अनुपम नेह
बिन माँ के भुतहा लगे, चाहे सज्जित गेह।१।
माँ ही जग का मूल है, माँ से ही हर चीज
माता ही धारण करे, सकल विश्व का बीज।२।
सुत के पथ में फूल रख, चुन लेती हर शूल
हर चंदन से बढ़ तभी, उसके पग की धूल।३।
शीतल सुखद बयार बन, माँ हरती सन्ताप
जिसको माँ का ध्यान हो, करे नहीं वो पाप।४।
रखे कसौटी पाँव को, कंटक बो संसार
करे सरल हर …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 13, 2018 at 7:30am — 8 Comments
विधाता छंद
जताएं मातृ दिन पर हम.....
जगत में मात के जैसा,नहीं दूजा दिखा भाई !
कहो माता कहो मम्मी, कहो चाहे उसे माई !
पुकारे बाल माँ जब भी, तुरत वह दौडकर आई !
बुरा माना नहीं उसने, कभी मन बाल रुसवाई …
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on May 13, 2018 at 3:30am — 4 Comments
Added by मोहन बेगोवाल on May 12, 2018 at 6:18pm — 5 Comments
221 2121 1221 212
आया सँवर के चाँद चमन में उजास है ।
बारिश ख़ुशी की हो गयी भीगा लिबास है ।।1
खुशबू सी आ रही है मेरे इस दयार से।
महबूब मेरा आज कहीं आस पास है ।।2
पीकर तमाम रिन्द मिले तिश्नगी के साथ ।
साकी तेरी शराब में कुछ बात ख़ास है ।।3
उल्फत में हो गए हैं फ़ना मत कहें हुजूर ।
जिन्दा अभी तो आपका होशो हवास है ।14
हुस्नो अदा के ताज पे चर्चा बहुत रही ।
अक्सर तेरे रसूक पे लगता कयास है…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 12, 2018 at 11:13am — 1 Comment
'संस्कृति' अपनी 'ऐतिहासिक पुस्तकों' को सीने से लगाए उन जल्लादों के लगभग समीप ही खड़ी थी। 'संस्कार' संस्कृति से नज़रें चुराकर सिर झुकाए नज़ारों पर शर्मिंदा था, पर यहां आदतन साथ खड़े होने पर विवश था। वैश्वीकरण के तथाकथित दौर में धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, व्यावसायिक और सामाजिक धर्म, कर्म, और राजधर्म फ़ांसी के फ़ंदों को निहारते हुए अपनी अपनी दशा और दिशा पर पुनर्विचार तो कर रहे थे, लेकिन चूंकि उनके कैंसर का आरंभिक स्तर डायग्नोज़ हो चुका था, इसलिए उनके इलाज़ में समय, ऊर्जा और धन बरबाद करने के…
ContinueAdded by Sheikh Shahzad Usmani on May 12, 2018 at 9:30am — 3 Comments
मैं
आज से नहीं कहूँगा
तुम्हे साथी, मीत या हमनवां
क्योंकि अब
मैं जान गया हूँ कि
ये शब्द
बौना कर देते है
उन संबंधो
और अहसासों को
जो हमें देते रहे
जाने कब से ?
वे अज्ञात एवं रहस्यमय
अनगिन स्पंदन
जिनमें मैंने पाया
जीवन
और जीवन का अर्थ.
(मौलिक / अप्रकाशित )
Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 12, 2018 at 6:00am — 3 Comments
अरकान:-
मफ़ऊल फ़ाईलात मफ़ाईल फ़ाइलुन
यारों ख़ुदा ये देख के हैरान हो गया,
इंसा जिसे बनाया था हैवान हो गया।।
भेजा था इसको अम्न की ख़ातिर जहान में,
कैसे ख़िलाफ़ अम्न के इंसान हो गया।।
शैतान का भी शर्म से देखो झुका है सर,
इंसान ख़ुद ही आज तो शैतान हो गया।।
चिंता में बेटियों की हर इक बाप है यहाँ,
अब क्या बताऊँ मैं तो परेशान हो गया।।
ढाये यहाँ पे गंदी सियासत ने वो सितम,
लगता है जैसे मौत का सामान हो गया।।…
Added by santosh khirwadkar on May 11, 2018 at 8:30pm — 6 Comments
शहर के बड़े शिवपुरी में उस कि अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी, इस शिवपुरी में मैं कई बार अंतिम संस्कारों में शामिल हो चूका था| मगर जिस तरह का हजूम आज राजेंद्र मास्टर के साथ आया था, ऐसा मैंने कभी नहीं देखा था| सभी आंखें नम थी और इधर उधर चारों तरफ चीकें सुनाई दे रही थी किसी को उसके इस तरह जाने पे यकीन नहीं हो रहा था|
कोई ये कह रहा था, “क्या ऐसा भी हो सकता है, मगर दुर्घटना कब, कहाँ हो जाए कहाँ पता चलता है इसके बारे कोई कुछ नहीं कह सकता”|
“मगर बचातो जा सकता है, इसके लिए प्रबंध तो…
Added by मोहन बेगोवाल on May 11, 2018 at 3:30pm — 4 Comments
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