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पूनम का रजनीश लजाया-रामबली गुप्ता

मत्तगयन्द सवैया



सूत्र=211×7+22; सात भगण+गागा



सुंदर पुष्प सजा तन-कंचन केश-घटा बिखराय चली है।

हैं मद पूरित नैन-सरोवर, ओष्ठ-सुधा छलकाय चली है।।

अंग सुगंध लिए सम चंदन मत्त गयंद लजाय चली है।

लूट लिया हिय चैन सखे! कटि यूँ गगरी रख हाय! चली है।।1।।



यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट और सुवासित कंचन काया।

भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम नीरद-छाया।।

देख छटा मुख की अति सुंदर, पूनम का रजनीश लजाया।

ओष्ठ-खिली कलियाँ अति कोमल, देख हिया-अलि है… Continue

Added by रामबली गुप्ता on November 23, 2017 at 6:30am — 5 Comments

ग़ज़ल--बह्र फेलुन×5+फा

कुछ भूला कुछ पहचाना सा लगता है
कोई मुझको दीवाना सा लगता है ।

थोड़ी उलझन थोड़े आँसू जैसा वो
जीवन का ताना बाना सा लगता है ।

ग़ुरबत में देखा जो मुझको यारों ने
बोले कोई अंजाना सा लगता है ।

वक़्त बदलते देर नहीं लगती भाई
अपना होकर बेगाना सा लगता है ।

शाइर बनकर घूम रहा है देखो तो
'आरिफ़'कोई दीवाना सा लगता है ।

मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Added by Mohammed Arif on November 23, 2017 at 12:02am — 23 Comments

ग़ज़ल -आग हम अंदर लिए हैं

2122 2122 2122 2122

वो किसी पाषाण युग के वास्ते अवसर लिए हैं ।

देखिये कुछ लोग अपने हाथ मे पत्थर लिए हैं ।।



है उन्हें दरकार लाशों की चुनावों में कहीं से ।

अम्न के क़ातिल नए अंदाज में ख़ंजर लिए हैं ।।



जो बड़े मासूम से दिखते ज़माने को यहां पर ।

हां वही नेता सुरक्षा में कई नौकर लिए हैं ।।



अब कहाँ इस दौर में जिंदा बची इंसानियत है ।

मुजरिमों को देखिये अब देह पर खद्दर लिए हैं।।



सुब्ह वो देते नसीहत भ्रष्टता से दूर रहिये ।

बेअदब होकर… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 23, 2017 at 12:00am — 4 Comments

प्रश्न तुमसे है

ओ साहब!!!

क्या तुम आधुनिक लोकतंत्र को

लूटने वाले नेता हो!

या रईसी के दम पर बिकने वाले

अभिनेता हो!

क्या तुम वास्तविकता से अंजान

बड़े पद पर बैठे अधिकारी हो!

या मानवता की दलाली करने वाले

शिकारी हो!

क्या तुम भ्रष्टाचार में सिंके हुए

गुर्दे हो!

या विधानालय में वास करने वाले

मुर्दे हो!

तुम जो भी हो !!

मेरा प्रश्न है कि

अपनी बेटी की आबरू लूटने वाले के प्रति

तुम क्या सोचते?

तुम मौन हो!

पर मुझे मालूम है…

Continue

Added by Manoj kumar shrivastava on November 22, 2017 at 10:30pm — 8 Comments

अजल की हो जाती है....

अजल की हो जाती है....



ज़िंदगी

साँसों के महीन रेशों से

गुंथी हुई

बिना सिरों वाली

एक रस्सी ही तो है

जिसकी उत्पत्ति भी अंधेरों से

और विलय भी अंधेरों में होता है



ज़िंदगी

लम्हों के पायदानों पर

आबगीनों सी ख़्वाहिशों को

छूने के लिए

सांस दर सांस

चढ़ती जाती है

मौसम

अपने ज़िस्म के

इक इक लिबास को उतारते

ज़िंदगी को

हकीकत के आफ़ताब की

तपिश से रूबरू करवाने की

हर मुमकिन कोशिश करते हैं

मगर अफ़सोस…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 22, 2017 at 12:00pm — 12 Comments

एक कोशिश

फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन

ये जो राबिता है अपना फ़क़त एक शे'र का है।

कोई इक रदीफ़ है तो कोई उसका क़फ़िया है।

है अजीब ख़ाहिश-ए-दिल कि रहूँ गा साथ ही में,

मैं हबीब हूँ हवा का मेरा आश्ना दिया है।

कभी मुझ से आके पूछो सर-ए-शाम बुझ गया क्यों,

कभी उस तलक भी जाओ कि जो दिन में भी जला है।

कभी कश्तियों को छोड़ो दिले आबजू में उतरो,

मेरे पास आके देखो मेरे दिल में क्या छिपा है।

मेरा क्या है मेरी मंज़िल मुझे ढूँढ…

Continue

Added by रोहिताश्व मिश्रा on November 22, 2017 at 11:30am — 4 Comments

तेरे प्यार में दिल को बेक़रार करते हैं - सलीम रज़ा रीवा

212 1222 212 1222

तेरे प्यार में दिल को बेक़रार करते हैं

रात - रात भर तेरा इंतज़ार करते हैं

-

तुमको प्यार करते थे तुमको प्यार करते हैं

जाँ निसार करते थे जाँ निसार करते हैं

-

ख़ुश रहे हमेशा तू हर ख़ुशी मुबारक हो

ये दुआ खुदा से हम बार - बार करते हैं

-

उँगलियाँ उठाते हैं लोग दोस्तों पर भी

हम तो दुश्मनों पर भी ऐतबार करते हैं

-

वादा उसका सच्चा है लौट के वो आएगा

इस उमीद पर अब भी इंतज़ार करते…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on November 22, 2017 at 8:30am — 6 Comments

क्यों की तुमने आत्महत्या

जब तुमने की होगी आत्महत्या,

तब कितना कठोर किया होगा मन,

कितनी सही होगी वेदना,

संभवतः तुम्हारे अंगों ने भी,

तुमसे कहा होगा कि,

‘एक बार फिर सोच लो‘,

परंतु तुमने निष्ठुरता का

प्रमाण देते हुए,

अनदेखा कर दिया होगा,

कदाचित तुमने यह भी

नहीं सोचा होगा कि,

तुम्हारे मृत शरीर को

देखकर अवस्थाहीन

हो जाएगी तुम्हारी ‘जननी‘,

जिसका अंश है तुम्हारा शरीर,

तब, चहुंदिशि होगी,

करूणा और क्रंदन

जो चीख-चीख कर

कह रहे होंगे-‘‘आखिर

क्यों की…

Continue

Added by Manoj kumar shrivastava on November 22, 2017 at 7:30am — 4 Comments

ग़ज़ल - कोई आँचल उड़ान चाहता है

1222 1222 122

तपन को आजमाना चाहता है ।

समंदर सूख जाना चाहता है ।।



तमन्ना वस्ल की लेकर फिजा में।

कोई मुमकिन बहाना चाहता है ।।



जमीं की तिश्नगी को देखकर अब ।

यहाँ बादल ठिकाना चाहता है ।।



तसव्वुर में तेरे मैंने लिखी थी।

ग़ज़ल जो गुनगुनाना चाहता है ।।



मेरी चाहत मिटा दे शौक से तू ।

तुझे सारा ज़माना चाहता है ।।



मेरी फ़ुरक़त पे है बेचैन सा वो ।

मुझे जो भूल जाना चाहता है ।।



चुभा देता है जो ख़ंजर खुशी से… Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on November 21, 2017 at 11:00pm — 8 Comments

" शायरी "

वजन - 212 212 212 212



..... " शायरी " .........



मेरे रुख़ की हँसी कौन है , शायरी .....

मेरी जां जिंदगी कौन है , शायरी ....



बेवफ़ाओं के पत्थर दिलों में यहाँ

कील बनकर चुभी कौन है , शायरी.......



ऊँचे उड़ते दिखे है परिंदे , मगर

इन से ऊँची उड़ी कौन है , शायरी ...



मैं अकेला नहीं जागता रातभर

संग फिर जागती कौन है , शायरी ....



ग़म भरे तम दिलों में मेरे दोस्तों

दीप बनकर जली कौन है , शायरी ....



अपने है , दोस्त… Continue

Added by पंकजोम " प्रेम " on November 21, 2017 at 7:12pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आइना जब क़ुबूल कहता है (ग़ज़ल 'राज')

२१२२ १२१२ २२

कोंचती है ये धूल कहता है

किस नफ़ासत से फूल कहता है

 

मख़मली ये लिबास चुभते हैं

रास्ते का बबूल कहता है

 

जिन्दगी से निबाह करती हूँ

आइना  जब क़ुबूल कहता है

 

अपने दम पे मक़ाम हासिल कर  

मुझसे मेरा उसूल कहता है 

 

चाहो मंजिल तो आबले न गिनो  

हर कदम पे रसूल कहता है

 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Added by rajesh kumari on November 21, 2017 at 11:46am — 25 Comments

खामोश आखें

खामोश आखें

होली आयी और चली गयी,
पिछले साल से भली गयी,
पर किसी ने देखा!
किसका क्या जला?
मैंने देखा,
’उसकी डूबती खामोश आॅंखें’
और भीगी पलकों को,
और वह खड़ा,
एकटक देख रहा था,
’होली को जलते’
जैसे उसे मालूम न हो,
अपनी ‘आॅंखों ’ के कारनामे

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Manoj kumar shrivastava on November 20, 2017 at 10:00pm — 5 Comments

मज़ाहिया ग़ज़ल

गर कुँवारे ही मरे क्या ताज्रीबा ले जाएँगे

साथ बस मैरीज ब्योरो का पता ले जाएँगे



रोज ही मिलते रहे कपड़ो पे लम्बे बाल जो

इक न इक दिन आप तो घर से निकाले जाएँगे



बात दिल की कह न पाए वक़्त पर जो आप तो

दूसरे ही उनको फिर दुल्हन बना ले जाएँगे



करके गलती आँख से आँसू गिराना सीख लो

मार से बेगम की ये आँसू बचा ले जाएँगे



मेकअप से खा गए धोका अगर जो आप भी

फिर तो लैला की जगह मम्मी भगा ले जाएँगे



खटमलों को जाँच लो सोने से पहले नाथ… Continue

Added by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 5:40pm — 20 Comments

ग़ज़ल -राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया : आन ,रदीफ़ : है

बह्र : २२१  २१२१  १२२१  २१२

राजाधिराज का गिरा’ दुर्जय कमान है

सब जान ले अभी यही’ विधि का विधान है |

अदभूत जीव जानवरों का जहान है

नीचे धरा, समीर परे आसमान है |

संसार में तमाम चलन है ते’री वजह

हर थरथरी निशान ते’री, तू ही’ जान है |

जो भी जमा किये यहाँ’ रह…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on November 20, 2017 at 3:37pm — 9 Comments

ग़ज़ल- अभी तक शख्स वो जिन्दा है साहब

मफाईलुन मफाईलुन फऊलुन

1222 1222 122





अभी तक शख्स वो जिन्दा है साहब।

निडर होकर जो सच कहता है साहब।



सभी हैं अपनी अपनी जिद पे कायम,

किसी की कौन अब सुनता है साहब



झगड़ने का कोई मुद्दा नहीं है,

यहाँ बेबात का झगड़ा है साहब।



बचाने को हमें ठिठुरन से सूरज,

बहुत दिन बाद फिर निकला है साहब।



ग़रीबी मुल्क से जायेगी अब तो,

सभी अखबार में चर्चा है साहब।



बुजुर्गों से बहुत आगे हैं बच्चे,

जमाना कुछ न कुछ बदला है… Continue

Added by Ram Awadh VIshwakarma on November 20, 2017 at 2:53pm — 5 Comments

बंद किताब ...

बंद किताब ...

ठहरो न !

थोड़ी देर तो रुक जाओ

अभी तो रात की स्याही बाकी है

सहर की दस्तक से घबराते हो

प्यार करते हो

और शरमाते हो

कभी नारी मन के

सागर में उतर के देखो

न जाने कितने गोहर

सीपों में

किसी के लम्स के मुंतज़िर हैं

देहाकर्षण के परे भी

एक आकर्षण होता है

जहां भौतिक सुख के बाद का

एक दर्पण होता है

नशवरता से परे

अनंत में समाहित

अमर समर्पण होता है

पर रहने दो

तुम ये…

Continue

Added by Sushil Sarna on November 20, 2017 at 1:30pm — 14 Comments

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे - सलीम रज़ा रीवा

212 212 212 212

छोड़कर दर तेरा हम किधर जाएँगे

बिन तेरे आह भर-भर के मर जाएँगे

 -

चाँद भी देख कर उनको शरमाएगा 

मेरे महबूब जिस दम संवर…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on November 20, 2017 at 10:00am — 15 Comments

चरित्र गिर रहा है

मन में आत्मा में आॅंखों में,

मीठी-मीठी बातों में,

चरित्र गिर रहा है,

मत गिरने दो।

स्नेह में ममत्व में भावनाओं में,

मूल्यों में सम्मान में दुआओं में,

हर क्षेत्र हर दिशाओं में,

चरित्र गिर रहा है,

मत गिरने दो।

वादों में इरादों पनाह में,

विश्वास में परवाह में,

वांछितों की चाह में,

चरित्र गिर रहा है,

मत गिरने दो।

आवाज में अंदाज में,

प्रजा में सरताज में,

कल में आज में,

हर रूप में हर राज में,

चरित्र गिर रहा…

Continue

Added by Manoj kumar shrivastava on November 19, 2017 at 9:30pm — 14 Comments

परित्यागी (कविता)राहिला

ना हम तुम से कोई प्रश्न करें।।

न तुम हम से कोई सवाल करो ,

ना हम तुमसे कोई शिक़वा करें।।

ना तुम हम से कोई मलाल रखो।



तुम मन चाहा पथ चुन ही लो,

फिर मेरी राह ना आन धरो।।

तुम मन चाहा स्वप्न बुन ही लो,

फिर मेरे दर ना कान धरो।



जब अंध अहं सीमा लांघे,

जब मेरा वजूद ख़ाक करो ,

तब स्वयं स्वतंत्र कर मेरा मन

तुम मुझ पर अहसान करो।।



जाओ ,जहाँ तुम्हें छाँव मिले,

जाओ, वहाँ जहां दिल खिले,

जाओ,सत्य स्वीकार किया,

तुम अपना… Continue

Added by Rahila on November 19, 2017 at 6:39pm — 6 Comments

जग में करूँ प्रसार (गीत) - रामानुज लक्ष्मण

मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,

माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||

माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।

मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।

किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद 

स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।

माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।

मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।

ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||

वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2017 at 7:30am — 14 Comments

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