For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,126)

मत्तगयन्द संग होरी.

लाल ललाम ललाट लिए,

ललि लागत है ललना अति गोरी,

 

      गाल गुलाल गुबार गुमा,

      गम गौण गिनावत है यह होरी,

 

            नाच नचावत नाम…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on March 22, 2013 at 10:44pm — 7 Comments

छन्द

1.किरीट सवैया



कोमल कोपल आमन बीचल, बैठि गयी धुन ताल सुनावत !

आय गयो फिर पीत बसन्तम, प्यार रसाल अलाप लुभावत!!

बागन बीच उड़े तितली मधु, बालक भांवर सो इतरावत !

फूल हँसे विहसे तन औ मन,‘सत्यम‘ ज्ञान विराग लुटावत!!

2.दुर्मिल सवैया



जब कन्त नहि हमरे घर मा, यहु बैरन कोकिल छेड़ रही !

फल फूल फले बगिया वनमा, पिक काक तिलेर चिढाये रही!!

ऋतुराज भले तुम जार मरो, वन .केसर. टेसु जलाय रही!

फिर काम रती धनुवा न चलो, महदेव उमा समुझाय रही!!…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 22, 2013 at 8:12pm — 6 Comments

मनहरण घनाक्षरी /होली

होली के शुभ कामनाओं और बधाई सहित 

रंग की उमंग में है या है भंग की....... तरंग,

मौसम की चाल में है लहरें...........गज़ब की…

Continue

Added by seema agrawal on March 22, 2013 at 7:46pm — 11 Comments

बर्फ (ग़ज़ल)

हल्की फुलकी ग़ज़ल पेश है दोस्तों



बर्फ दिल में जब जमी होती,

तभी आँखों में नमी होती।



धुँआ उठता जब आग जलती,

हवा चलती कब थमी होती।



फकत मिलते हाथ हाथों से,

दिलों में दूरी बनी होती।



हसीं मौसम देख मत इतरा,

ख़ुशी गम की भी सगी होती।…

Continue

Added by rajinder sharma "raina" on March 22, 2013 at 5:30pm — 2 Comments

"प्यारे बच्चे "

कपोल पुष्प 

अधर पंखुडियां

मनमोहिनी 

तोतली बोली

नटखट,चंचल

मन मोहक

खिलखिलाता 

बिगड़ता बनाता 

बच्चे प्यारे है…

Continue

Added by ram shiromani pathak on March 22, 2013 at 5:04pm — 1 Comment

"बैठक"

याद है

वो अपना दो कमरे का घर

जो दिन में

पहला वाला कमरा

बन जाता था

बैठक !!

बड़े करीने से लगा होता था

तख्ता, लकड़ी वाली कुर्सी

और टूटे हुए स्टूल पर रखा…

Continue

Added by Amod Kumar Srivastava on March 22, 2013 at 4:30pm — 4 Comments

खोखले नारे उठाए/भागता जाता शहर है (राजेश झा)

काग़जी

सारी कवायद

बोल में

रेशम-तसर है

*गुंजलक में

कै़द वादों

से हकीकत

मुख्‍तसर है

खोखले नारे उठाए ...............

*कर्दमी

लोबान जलते

टापता

दूभर डगर है

बेरूखी

कहती हवा की

फाग कितना

बेअसर है

खोखले नारे उठाए ...............

स्‍तब्‍ध

चंपा, नागकेसर

बर्खास्‍त सेमल

की बहर है

बिलबिलाते

नीम, बरगद

*भवदीय भौंरा

ही निडर…

Continue

Added by राजेश 'मृदु' on March 22, 2013 at 1:43pm — 5 Comments

मन ना कभी उदास होगा, हरदम रहेगा वहाँ सवेरा।

(मौलिक और अप्रकाशित रचना)



पूरब से उदित हुआ, दिनकर सबका जीवनदाता।

अंगङाई लेते पक्षी जागे, कोई सो न रहता।।



अरुण की लालिमा फैली, तम तज धरा भागा।

मुर्गा बोला तजो बिस्तर, कर्म प्रवृत हों सब जागा।।



गोरैया चहकी लगी फुदकने, आँगन में वो आकर।

टुकुर-टुकुर ताके वो, माँ के हाथ के दानों पर।।



रोज आना नियम उसका, नहीँ कभी वो भूलती।

इंतजार अगर करना पङे उसको, शोर मचाती हुई चीखती।।



दाना चुगती रोटी खाती, मजे से फिर वो खेलती।

पेट भर जाता… Continue

Added by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 22, 2013 at 11:49am — No Comments

गज़ल/ अनजान रहा अक्सर

दीदार का बस तेरे अरमान रहा अक्सर

इस प्यार से तू मेरे अनजान रहा अक्सर

 

बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती है

तेरे हबीबों में भी धनवान रहा अक्सर

 

जिस वक्त दुनिया में था घनघोर कहर बरपा

उस…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 22, 2013 at 11:29am — 12 Comments

फा+गुन का मौसम

फा+गुन का मौसम

 

फा=फाल्गुन खेलते

गुन=गुनगुनाने का मौसम

-लक्ष्मण लडीवाला                   

 

ऋतुओं में ऋतू राज बसंत,

बसंत में फाल्गुन मास-

माह में भी होली ख़ास,  

गाँव गाँव खिलते, महकते 

चहुँ ओर खेतो…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 22, 2013 at 10:00am — 12 Comments

ग़ज़ल : अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

बहर : २१२२ ११२२ ११२२ २२

 ----------------------------------------------

भिनभिनाने से तेरे कौन बदल जाता है

अब तो मक्खी यहाँ कोई भी निगल जाता है

 

यूँ लगातार निगाहों से तू लेज़र न चला

आग ज्यादा हो तो पत्थर भी पिघल जाता है

 

जिद पे अड़ जाए तो दुनिया भी पड़े कम, वरना

दिल तो बच्चा है खिलौनों से बहल जाता है

 

तुझ से नज़रें तो मिला लूँ प’ तेरा गाल मुआँ

लाल अख़बार में फौरन ही बदल जाता है

 

थाम लेती है…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 22, 2013 at 12:14am — 8 Comments

‘‘मैं बाहर थी”

जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,

मै जल रही थी.

मैं जल रही थी  पेट की भूख से,

मैं जल रही थी माँ की बीमारी के भय से,

मैं जल रही थी बच्चों की स्कूल फीस की चिंता से .

जब तुम बुझा रहे थे अपनी आग,

मै जल रही थी.

*******

मैं बाहर  थी

जब तुम मेरे अंदर प्रवेश कर रहे थे

मैं बाहर  थी

हलवाई की दुकान पर.

पेट की जलन मिटाने के  लिए

रोटियां खरीदती हुई.

मैं बाहर  थी ,

दवा की दुकान पर

अपनी अम्मा के…

Continue

Added by Neeraj Neer on March 21, 2013 at 10:31pm — 10 Comments

मृत्यु प्रिया

नश्वर जग
तुम नित्य सदा से
मैंने ये पाया
------------
तुम निष्पक्ष
आज अराजक है
ये जग जब
------------
दयावान तू
उबे,थके,दुखी के
कर गहती
------------
छिद्र बहुत
जग ने कर डाले
गले लगा ले
-------------
नौका पाई थी
भव से तरने को
इसे नसाया
-------------
ये रिश्ते नाते
हैं लक्ष्य मे बाधक
तू मिलवा दे
------------
तुझे दुलारूं
मृत्यु प्रिया जाने क्यूं
सब डरते
-विन्दु

Added by Vindu Babu on March 21, 2013 at 10:13pm — 12 Comments

ग़ज़ल : जी रहे

दोस्तों देखिये ग़ज़ल का मिजाज 

जी रहे डरते डरते,

थक गये मरते मरते।

बात किस्मत की है,

हम गिरे चढ़ते चढ़ते।

खत्म अक्सर होता है,

आदमी लड़ते लड़ते।

है तमन्ना मरने की,

काम कुछ करते करते। 

झड़ गये इक दिन सारे,

बाल ये झड़ते झड़ते।

जिन्दगी इक पुस्तक है,

याद हो पढ़ते पढ़ते।

डूब जाते सागर में,

हम कभी बढ़ते बढ़ते।

वक्त लग जाता…

Continue

Added by rajinder sharma "raina" on March 21, 2013 at 7:30pm — No Comments

हाइकू/ बसंत

1

ऋतु बसंत

उत्सव व उल्लास

मन अनंत।

 

2

अबीर मला

क्लेष की आहुति हो

गुलाल उड़ा।…

Continue

Added by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:30pm — 10 Comments

ओ कनहइया

ओ कनहइया
----------------

घोर कलियुग आ गया 

बाप बड़ा न भइया 
सारे जग को नाच नचाये 
काला  सफ़ेद रुपइया 
वक्त कभी था जगह जगह 
ज्ञान की बातें होती 
लुटती अस्मत बीच सड़क 
ममता घर घर रोती 
कब बदलेगा ये चलन 
जब' भाई ' बनेंगे भइया
सारे जग को नाच नचाये 
काला  सफ़ेद रुपइया 
हरी भरी  धरती थी अपनी 
कल कल…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 21, 2013 at 5:26pm — 2 Comments

ब्रज की होली

ब्रज की होली
---------------

भोला संग चली भवानी 

देखन ब्रज की होली 
नंदी थिरके सब गन थिरके 
देख राधा भोली 
देख राधा भोली भैया देख राधा भोली 
प्रेम से  सब कोई  खेलो 
 है ये ब्रज की होली 
भोला संग चली भवानी 
देखन ब्रज की होली 
संग बाराती जा पहुंचे 
यमुना तट पे भोला 
होली का हुडदंग मचा 
घोंट रहे भंग…
Continue

Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 21, 2013 at 3:58pm — 6 Comments

चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- द्वितीय खंड (1)

व्यथित  गंगा ज्ञानि से संबोधित है.

गंगा की व्यथा ने  ज्ञानि के हृदय को झजकोर दिया है. गंगा उसे बताती है मनुष्य की तमाम विसंगतियों, मुसीबतों, परेशानियों   का कारण उस का ओछा ज्ञान है जिसे वह अपनी तरक्की का प्रयाय मान रहा है.

इस ज्ञान ने उसे…

Continue

Added by Dr. Swaran J. Omcawr on March 21, 2013 at 1:30pm — 7 Comments

"होड़"

लूट अकूत मची सगरे अरु ,छोड़त नाहि घरै अपना !
आपस में झगड़ाइ रहे सब ,पावत कौन रहा कितना !!
खीचत छीनत मारत पीटत,धो रहे जइसे पिटना!
होड़ मची इक दूसर से बस ,कौन बनावत है कितना !!

राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on March 21, 2013 at 12:52pm — 8 Comments

सार/ललित छंद

सार/ललित छंद (16+12मात्रायें:- छन्नपकैया की जगह "आई होली छाई होली," का प्रयोग)



आई होली छाई होली, पवन चली मतवारी

रंग लगाते झूम झूम के, मस्त हुए नर नारी



आई होली छाई होली, रंग उड़े सतरंगी

भंग चढ़े है सर पे सबके, होती है हुड़दंगी



आई होली छाई होली, बुरा कोई न माने

रंगों का मौसम ये प्यारा, आता प्रीत बढ़ाने



आई होली छाई होली, भर भर के पिचकारी

कान्हा रंगों को बरसाते, भीगे राधा प्यारी



आई होली छाई होली, यौवन की ले हाला

रंग चटक… Continue

Added by SANDEEP KUMAR PATEL on March 21, 2013 at 12:43pm — 6 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
7 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service