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ईमानदारी

दिन रात सरकारी सिस्टम और तथाकथित भ्रष्टाचारियों को कोसते कोसते एक दिन कोसू राम भगवान् के घर को विदा हुए जी हाँ जिन्दगी भर ईमानदारी से जिए कोसू राम जी जैसे ही ऊपर पहुंचे, भीड़ लगी हुई थी चौंककर पूछा ये क्या हो रहा है !! आवाज आई पंक्ति में खड़े हो जाओ फिर बताते हैं, कोसू राम जी पंक्ति में खड़े हो गए आगे वाले सज्जन ने बताया वो दरवाजे देख रहे हो उनसे हमें पंक्तिबद्ध अन्दर जाना है शुक्रिया अदा कर कोसूराम जी सोचने लगे, चलिए आज कुछ तो अच्छा हुआ यहाँ कुछ तो ईमानदारी है अपना नंबर आ ही जायेगा । थोड़ी देर…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 12, 2012 at 6:00pm — 1 Comment

दूरियों की दूरी

दूरियों की दूरी

मंज़िल की ओर बढ़ने से सदैव

दूरियों की दूरी ...

कम नहीं होती।

बात जब कमज़ोर कुम्हलाय रिश्तों की हो तो

किसी "एक" के पास आने से,

नम्रता से, मित्रता का हाथ बढ़ाने से,

या फिर भीतर ही भीतर चुप-चाप

अश्रुओं से दामन भिगो लेने से

रिश्ते भीग नहीं जाते,

उनमें पड़ी चुन्नटें भी ऐसे

कभी कम नहीं होतीं।

रिश्तों में रस न रहा जब शेष हो

तो पतझड़ के पेड़ों की सूखी टहनियों की तरह

टूट-टूट जाते हैं वह

ज़मीन पर गिरे सूखे पत्तों की…

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Added by vijay nikore on December 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

मानव धर्म हमारा

समरसता की पले भावना सबका हो यह नारा

यह मानव धर्म हमारा शुभ मानव धर्म हमारा..



जन-जन में फैले विश्व शांति आपस में भाईचारे

मंदिर बांटा मस्जिद बांटी  अब बांटों ना गुरूद्वारे.

राम नाम भव तारेगा सदगुरू का एक इशारा..

यह मानव धर्म हमारा................



सुख दुःख आपस में बांटों बन व्योम,चन्द्र औ तारे

लहर दौड़ समता की जाये बचें कहर से  सारे .

अमन शांति और विश्व एकता यह शुभ कर्म हमारा ..

यह मानव धर्म…

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Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on December 12, 2012 at 5:30pm — 4 Comments

कवि का आक्रोश

कवि का आक्रोश



में भी आप सभी सा हूँ

बस थोडा सा बीसा हूँ

बाहर से में फौलादी हूँ

अंदर से में शीशा हूँ

ह्रदय से में कवि सा हूँ

जन्म हुआ तभी से हूँ

बहर से जुगनू लगता हूँ

अंदर से रवि सा हूँ

मेरी कविताओं में वो दम है 

जो लोहे को पिघला देंगी

मेरी जोशीली रचनाएँ

मुर्दे को जिला देगीं

कविता पाठ से में

धरती को हिला दूंगा

अपने मार्मिक छंदों से,

कुम्भकर्ण को जगा दूंगा

रोक…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 12, 2012 at 4:00pm — 3 Comments

लघु कथा - "हिम्मत"

आज सुबह से सौरभ उदास था, आज कहाँ जाएगा नौकरी के लिए, घर में किसी को पता नहीं था की उसके नौकरी छूट गयी है, माँ, पिता की दवा लानी है आज और जेब पूरी खाली, अगर सौरभ अपने नौकरी छूटने की बात बता दे,,तो शायद घर में बीमारी और बढ़ जायेगी,,,आखिर नयी चिंता का जन्म हो जाएगा...येही सोचते सोचते जाने कबतक सड़क के किनारे वो भ्रमित सा खडा रहा,,उसे कुछ समझ में नहीं…

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Added by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 3:00pm — 13 Comments

हे देह लता

हे देह लता बन शरद घटा

पर देख जरा यह ध्‍यान रहे

पथ है अपार भीषण तुषार

हे पथिक पंथ का ज्ञान रहे

मन भेद भरे नित चरण गहे

तन मूल धूल यह भान रहे

यौवन सम्‍हार छलना विचार

निर्लिप्‍त दीप्‍त बस प्राण रहे

 

यह नृत्‍य गान भींगा विहान

छाया प्रमाण खम ठोंक कहे

'गढ़ नेह-मोह रच दूं विछोह

जो लेश मात्र अंजान रहे'

 

तज दर्प दंभ हैं ये भुजंग

आभा अनूप नित तूम रहे

दस द्वार ज्‍वार करता…

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Added by राजेश 'मृदु' on December 12, 2012 at 2:54pm — 5 Comments

पता तो चले

और कितनी है जुदाई पता तो चले

वो मेरी है या पराई, पता तो चले



यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म

अदा ये किसने सिखाई पता तो चले



कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे

किसने ले ली अंगडाई पता तो चले



ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है

ये कली क्यों बलखाई पता तो चले



चाँद खिलने लगा गुल महक से गये

मेहँदी किसने रचाई पता तो चले



खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये

मौत किसपे है आई पता तो चले



गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई

कुछ उन्हें भी…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on December 12, 2012 at 2:21pm — 10 Comments

विनम्र श्रद्धांजली/ पंडित रवि शंकर

पद्म विभूषण और भारत रत्न से सम्मानित पंडित रविशंकर का बुधवार सुबह अमेरिका के सेन डियागो में निधन हो गया।

विनम्र श्रद्धांजली संगीत जगत के उस चमकते सूर्य को.........

बिखरे सारे राग हैं ,सूना आज सितार

सन्नाटों में गीत है ,सूनी है झंकार

सूनी है झंकार,आँख शब्दों की है नम

खो कर 'रवि' आलोक ,स्तब्ध बैठी है सरगम

कौन किसे दे धीर ,विकल मानस हैं सारे

रोता है संगीत ,तार हैं बिखरे सारे

Added by seema agrawal on December 12, 2012 at 12:30pm — 10 Comments

वृक्षारोपण

वृक्षारोपण

करते हे कद ऊँचा ,बढ़ाते हे शान
गड्ढे में डालते हे ,एक नन्ही जान
खिचती हे फोटो ,तो हाथ जोड़ लेते हे
नन्ही सी जान से ,फिर मुह मोड़ लेते हे
बटते हे समोसे, व् बटती हे चाय
पौधा खा जाती हे, बकरी या गाय
काश पोधे को संवारा होता
तो ऐसा ना, नजारा होता

Dr.Ajay Khare Aahat


Added by Dr.Ajay Khare on December 12, 2012 at 12:00pm — No Comments

मयूर मन का

नील गगन में अम्बुद धवल,

स्नेहरूपी मोतियों समान बूँदों से सींचते

बलवान, योग्य आत्मजों सदृश

फलों से लदे छायादार विटपों से भरी,

उत्साही, सुगन्धित, रंग-बिरंगी पल्लवित

पुष्पों से सजी,

स्वर्ण सरीखी लताओं से जड़ित,

चटख हरे रंग की कामदार कालीन बिछी

धरती को;

मंगलगान गाती कोयलें बैठ डालियों पर,

प्रणय-निवेदनरत मृग युगल,

अमृतकलश सम दिखते सरोवर,

किलकारियों से वातावरण को गुंजायमान

करते खगवृन्द,

परियों जैसी उड़ती तितलियाँ;

ऐसे सुन्दर, मनमोहक, रम्य…

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Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on December 12, 2012 at 11:30am — 12 Comments

दोहे - प्रथम प्रयास

आदरणीय प्राची जी के कहने और भ्राताश्री अम्बरीश जी के द्वारा दिए गए दोहों के नियमों को पालन करते हुए, दोहे लिखने का मेरा प्रथम प्रयास है आप सभी को सादर समर्पित आप सभी के सहयोग की आकांक्षा लिए अरुन शर्मा.

 

आनन फानन में किया, दोहों का…

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Added by अरुन 'अनन्त' on December 12, 2012 at 11:05am — 8 Comments

ग़ज़ल - इतनी शिकायत बाप रे

एक और शुरुआती दौर की ग़ज़ल......

कच्चे अधपके ख्यालात.......

एक दो शेअर शायद आपने सुना हो, पूरी ग़ज़ल पहली बार मंज़रे आम पर आ रही है

बर्दाश्त करें ....




इतनी शिकायत बाप रे  |

जीने की आफत बाप रे  |



हम भी मरें तुम भी मरो,…

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Added by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 3:05am — 16 Comments

लघुकथा: हराम-हलाल

मुझे थोड़ा बुरा तो लगा जब उसकी थाली में खाना परोसते वक़्त उसने मुझसे पूछा 

- ये चिकन किस दूकान से खरीदा था तुमने?

- वही पिकाडेली सर्कस स्टेशन के बाहर निकलते ही सीधे हाथ पर जो शॉप है ना, वहीं से

- ओत्तेरे की! यार मुझे कुछ वेज हो तो खाने को दे दो, वो स्साला गोरा हलाल मीट नहीं बेचता और तुम जानते ही हो कि मैं हराम नहीं खा सकता..

खैर कैसे भी मैंने जल्द-फल्द उसके लिए आलू-मटर की सब्जी तैयार कर दी थी। लेकिन अगले दिन जब ऑफिस में बॉस के गैरहाजिर होने पर उसे कम्प्युटर पर ताश का कोई गेम…

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Added by Dipak Mashal on December 11, 2012 at 10:45pm — 13 Comments

फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते



फूल ताउम्र तो बहारों में नहीं रहते

हम भी अब अपने यारों में नहीं रहते



मुहब्बत है गर तो आज ही कह दो मुझसे

ये फैसले यूं उधारों में नहीं रहते



अब जानी है हमने दुनिया की हकीकत

अब हम आपके खुमारों में नहीं रहते



दिल तोड़ दो बेफिक्र कोई कुछ न कहेगा

ये छोटे से किस्से अखबारों में नहीं रहते



मेरा रकीब भी आज मेरी खिलाफत में है

लोग हमेशा तो किरदारों में नहीं रहते



बस वजूद की ही जंग है महफिलों में बाकी

वो तूफ़ान भी अब आशारों में नही…

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Added by Pushyamitra Upadhyay on December 11, 2012 at 7:38pm — 18 Comments

बढे साँस की पीर

निज मकान प्राप्त करे,कर कर्जे का भार, 

क्रेडिट कार्ड से भी ले,अब आसान उधार।

  

क्रेडिट कार्ड बोझ तले,नित दबता ही जाय ,

इस…

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Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 11, 2012 at 6:30pm — 10 Comments

गीत



प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम

तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम



तेरे बिन दिल को चैन नहीं है

मन कहे मुझसे तू यहीं कहीं है

शब् भर आँखें जाग रहीं है

निन्दिया मुझसे मेरी भाग रही है



वो जो…

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Added by SANDEEP KUMAR PATEL on December 11, 2012 at 4:52pm — 8 Comments

कविता रिमिक्स

कविता रिमिक्स



कविता जन्म लेती हे कवि की सोच से

कवि दवा रहता घरेलू कामों के बोझ से

जब कभी कवि की सोच व् बीबी के आदेश हो जाते मिक्स

बनती हे कविता रीमिक्स

उठो नोजवानो देश को बचाना हे

खोई शौहरत को फिर बापिस लाना हे

बंद करो कविता लिखना क्या ऑफिस नहीं जाना हे

तीन दिनों से नहीं नहाया क्या आज भी नहीं नहाना हे

तुम जाग गए तो देश जाग जायेगा

दूथ जाकर लेलो नहीं तो दूधबाला भाग जायेगा

हम देशवासियों की तुमको आशीष

पापा…
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Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 4:00pm — 1 Comment

रावण संबाद

रावण संबाद



रावण दहन हेतु जेसे ही नेता जी आगे बढे

दशानन बोल पड़े मुझे

मुझे जलाने के लिए क्या उपयुक्त हे

क्या आप बुराई से पूरी तरह मुक्त हे

फिर क्यों कर रहे हे मुझे अग्नि के हबाले

जबकि आपने किये हे कई घपले घोटाले

आपके कारनामे संगीन हे

आप पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लीन हे

राम बनकर हमारी नीतियों पर छलते हे

सफेदपोश बनकर देश को छलते हे

अतः रावण कौन हे पहले हो संज्ञान

फिर कराएँ मुझे अग्नि स्नान

में बुराई का…

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Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 2:00pm — 7 Comments

चमन देखा हे

चमन देखा हे

हमने दुनिया का चमन देखा हे
मुश्किल में अपना बतन देखा

बक्त की मार से हो के तबाह
इन्सान को नगे बदन देखा हे

मतलबी यारी निभाने को
दोस्त दुशमन का मिलन देखा हे

देश की सम्पदा मिटाने को
चोरी से होते खनन देखा हे

हर हुनर से यूँ धन कमाने को
लोगो को करते जतन देखा हे

औरो के लिए मोम सा पिघलते
जीवन को हबन करते देखा हे

सही गलत का भेद मिटाते.
हमने पेसो का बजन देखा हे

डॉ अजय आहत

Added by Dr.Ajay Khare on December 11, 2012 at 1:00pm — 5 Comments

तुमको लिखते हाथ कांपते

तुमको लिखते हाथ कांपते

अक्‍सर शब्‍द सिहरते हैं

तुम क्‍‍या जानो तुमसे मिलकर

कितने गीत निखरते हैं

कर लेना सौ बार बगावत

पल भर आज ठहर जाओ

तेरा-मेरा आज भूलकर

चंदन-पानी कर जाओ

 

तुम बिन मेरा सावन सूखा

बादल खूब गरजते हैं

देख रहे जो झिलमिल लडि़यां

बहते अश्‍क लरजते हैं

 

कैसे लिख दूं बदन तुम्‍हारा

बड़ी कश्‍मकश है यारा

बदनाम चमन अंजाम सनम

कलम बिगड़ती है…

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Added by राजेश 'मृदु' on December 11, 2012 at 12:34pm — 12 Comments

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