संचालित कर दया करूणा, स्वार्थ पूर्ति का भाव नहीं
खुद को समर्पित तुझको कर दूँ,
इच्छाऐं मेरी खास नहीं ॥
डोली सजा तेरे दर पर आई, उगने वाली कोइ घास नहीं
हाथ उठाने की गलती ना करना,
नहीं सहुंगी वार कोई ॥
तेरे इशारों पर इत-उत डोलूँ, तूँ कोई सरकार नहीं
क्रोध करो मैं थर्र थर्र कांपू,
डरने वाली मैं नार नहीं ॥
तुम जालाओं शमां की महफिल, होके नशे में धुत कहीं
ढूँढ बहाने झूठ भी बोलो
इतना तुम पर ऐतबार…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 21, 2020 at 12:00pm — 2 Comments
समय पास आ रहा है
बहता रहा है समय
घड़ी की बाहों में युग-युग से
पुरानी परम्परा है
घड़ी को चलने दो
समय को बहना है, बहने दो
हँसी और रुदन के बीच भटक-भटक…
ContinueAdded by vijay nikore on January 20, 2020 at 10:30pm — 7 Comments
सम्मान हम किसी का करें कुछ बुरा नहीं
पर आदमी को आदमी समझें, ख़ुदा नहीं।।1
ये सोच कर ही ख़ुद को तसल्ली दिया करें
दुनिया में ऐसा कौन है जो ग़म ज़दा नहीं।।2
बस मौत ही तो आख़री मंज़िल है दोस्तो
इससे बड़ा जहान में सच दूसरा नहीं।।3
हमको तमाम उम्र यही इक़ गिला रहा
चाहा था हमने जिसको हमें वो मिला नहीं।।4
इसको सुनो दिमाग़ से तब आएगा मज़ा
ये शाइरी है यार कोई चुटकुला नहीं।।5
लेती है हर क़दम पे नया इम्तिहान ये…
Added by नाथ सोनांचली on January 20, 2020 at 2:30pm — 10 Comments
मेरी आंखों में बीते कल के सरमाये की छाया है।
तुम्हें ख्वाबों में मैंने खत नया फिर लिखके भेजा है।।
(1)
लिखा है प्यार तुमको ढेर सारा सबसे पहले ही,
तुम्हारी खैरियत पूछी लिखी बातें मोहब्बत की।
फिर उसके बाद तुमको दिल का अपने हाल बतलाया,
लिखा है बिन तुम्हारे जिंदगी का दर्द गहराया।
बता सकता नहीं मैं जाने जां हालत तुम्हें अपनी,
ये जीवन यूं है जैसे पेड़ की लटकी हुई टहनी।
वो रिश्ते जिनकी खातिर तुमको खुद से दूर कर डाला,
उन्हीं सबने मेरे सीने का दर्पण…
Added by मनोज अहसास on January 20, 2020 at 10:18am — 2 Comments
2×15
तदबीर लगाकर कुछ सोचो तहरीरों से बहलाओ मत,
अपने वादे जब याद नहीं तो किस्से नए सुनाओ मत।
लालच पर आधारित निष्ठा दुख देगी निश्चित इक दिन,
झूठी कथा लक्कड़हारे की बच्चों को सिखलाओ मत।
जीना मुश्किल कर देंगे जब होगी इनकी सोच अलग,
सबसे गहरे मित्रों को भी दिल के राज बताओ मत।
सच्चा इतिहास न जाने क्या था न जाने हालात थे क्या,
सदियों पहली बातों पर अब घर में आग लगाओ मत।
तेरा वादा सबको रोटी देने का है ओ मालिक,
चार…
Added by मनोज अहसास on January 20, 2020 at 10:12am — 2 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
जब चाहें तब इश्क़ करें तो कितना अच्छा हो
दुनिया में सब इश्क़ करें तो कितना अच्छा हो
ये दुनिया बेहतर हो दिन भर ऐसे काम करें
फिर सारी शब इश्क़ करें तो कितना अच्छा हो
अट्ठारह घंटे खटते जो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 18, 2020 at 11:25pm — 4 Comments
प्रतीक्षा
आँधी में पेड़ों से पत्तों का गिरना
पेड़ों की शाख़ों के टूटे हुए खण्ड गिनना
उड़ते बिखरे पत्तों से आंगन भर जाना
यह नज़ारा कोई नया नहीं है
फिर भी लगता है हर आँधी के बाद
नदियों पार “हमारे” उस पुल को चूमकर आई
यह आँधी मुझसे कुछ बोल गई
गिरे पत्तों की पीड़ा मुझमें कुछ घोल गई
हर आँधी की पहचान अलग, फैलाव नया-सा
कि जैसे अब की आँधी में नि:संदेह
कुलबुलाहट नई है, कोलाहल कुछ और है
मेरी ही गलती है हर गति…
ContinueAdded by vijay nikore on January 17, 2020 at 2:30pm — 4 Comments
बैंक ने रेहन रखी संपत्तियों की नीलामी की सूचना छपवाई।साथ में फोन पर बात करती किसी लड़की की भी फोटो छप गई। बैंक वाले खुश थे कि इससे नीलामी प्रक्रिया का प्रचार प्रसार होगा,मुफ्त में ।उधर फोटो वाली लड़की आग - बबूला हो रही थी --
' भला ऐसा कैसे कर सकते हैं ये बैंक वाले?'
' कर चुके,' दूसरे ग्राहक ने आं खें मटकाई।
' अरे मैं तो इस ऑफिस में कल पैसे जमा कराने आई थी,जब ये बैंक वाले अपने नोटिस बोर्ड की फोटो ले रहे थे...करम..ज ...ले सब।'
' और संपत्ति विवरण में आपकी भी फोटो…
Added by Manan Kumar singh on January 16, 2020 at 7:00pm — 6 Comments
जिस्म तो नश्वर है, ये मिट जाएगा
प्रेम पर अपना अमर हो जाएगा
सोच मत खोया क्या तूने है यहाँ
एक लम्हा भी दहर हो जाएगा
माना ये छोटा है पर धीरज तो धर
बीज एक दिन ये शजर हो जाएगा
भाग्य में जितना लिखा था मिल गया
अपना इसमें भी गुजर हो जाएगा
जीस्त बेफिक्री में काटी है मगर
मौत का उस पर असर हो जाएगा
तिरगी से डर के क्यूँ रहना भला
आज या फ़िर कल सहर हो जाएगा
सीख कुछ मेरे…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 16, 2020 at 2:30pm — 1 Comment
जो दुनिया को सबका ही घर कहता है
वो क्यों मुझ को रहने से डर कहता है।१।
**
हद से बढ़कर निजता का अभिमान हुआ
अब हर क़तरा खुद को समन्दर कहता है।२।
**
मिट्टी की तासीरें जिस को ज्ञात नहीं
वो लालच में धरती बन्जर कहता है।३।
**
ढोंगी है या फिर कोई अवतार लखन
मालिक बनकर खुद को नौकर कहता है।४।
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जिसके पास नहीं है दाना वो भी अब
मैं दाता हूँ, …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2020 at 5:17am — 12 Comments
Added by विवेक ठाकुर "मन" on January 15, 2020 at 5:19pm — 6 Comments
ना मर्म का मेरे भान किसी को, लेकिन फिर भी जिंदा हूँ
ना औरत, ना पुरुष हूँ, कहने को मैं किन्नर हूँ|
सारा समाज धुत्कार मै खाती, जैसे समाज पे अभिशाप कोई
सोलह शृंगार कर हर दिन सजती, जैसे सुहागिन औरत हूँ |
मात-पिता भी कलंक समझते, बदनामी का उनकी कारण हूँ
दुख-दर्द भी ना कोई पूछता, जैसी उनकी ना मै कोई हूँ |
ना रोजी-रोटी का साधन कोई, मांग…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2020 at 11:56am — 3 Comments
2×16
अशआर की आंखें खुलती है, जब सारा आलम सोता है।
मेरे कमरे में रात गए तंजीम का मौसम होता है।
तकदीर के हाथों सौंप दिया जब तूने मुझे महबूब मेरे,
मेरी हालत को सुनकर क्यों अब तन्हाई में रोता है।
खुशियों से गम का रिश्ता जग में ऐसा लगता है हमको,
कोई हाथों में रसगुल्लें देकर पीठ में कील चुभोता है।
मैंने तो सदा चाहा है यही इस गम को रिहा कर दूं खुद से,
हर और शिकारी बैठा है और ये पिंजरे का तोता है
उसकी मेहनत का फल…
ContinueAdded by मनोज अहसास on January 15, 2020 at 12:38am — 6 Comments
Added by khursheed khairadi on January 14, 2020 at 7:08pm — 5 Comments
अच्छा लगा तेरा प्रेम से मिलना
कुछ अपनी कही, कुछ मेरे सुनना
स्वार्थ से भरी इस दुनियाँ में
सभी के हित की बातें करना ||
वक़्त के संग में तेरा बदलना
हसमुखता को धारण करना
उड़ान भर खुली हवा में
सुंदर, ख्वाबो की माला बनुना ||
हौंसलों भर अपने उर में
भूल के बीती बात को आगे बढ़ना
याद आ जाए कोई भुला-बिसरा
झट से उसका हाल जानना ||
काम, क्रोध और…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 14, 2020 at 5:22pm — 4 Comments
२२२२/२२२२/२२२२/२२२
ये मत समझो मान के अपना गले लगाने आया है
जीवन में खुशियाँ कैसे हैं भेद चुराने आया है।१।
**
अनहोनी सी लगती मुझको अब कुछ होने वाली है
नदिया के तट आज समन्दर प्यास बुझाने आया है।२।
**
जिसके पुरखे भटकाने की रोटी खाया करते थे
वो कहता है आज देश को राह दिखाने आया है।३।
**
जिस बस्ती को दसकों पहले हमने खूब सदाएँ दी
उस बस्ती को सूरज देखो आज जगाने आया है।४।
**
अपने हिस्से तूफाँ तो थे माझी भी क्या खूब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 7:28am — 10 Comments
भ्रम जाल ये कैसा फैला
खुद को खुद ही भूल चुका
ना वाणी पर संयम किसीका
उर में माया, द्वेष भरा |
कोह में अपना विनती भाव भुलाया
जो धैर्य भी से दूर हुआ
गरल इतना उर में भरा है कि
क्षमा, प्रेम करना ही भूल गया |
करुणा दया भी पास नहीं अब
पशुत्व के जैसा बन चुका
भलाई का दामन ओढ़ की जाने
पीठ पीछे चुरा घोप रहा |
आत्महित में अनेत्री बन गए जैसे
भयंकर बैर का…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 13, 2020 at 4:29pm — 4 Comments
प्रकृति-सत्य
मेरे पिछवाड़े के पेड़ों के पत्ते
पतझर में अब पीले नहीं होते
ऋतु परिवर्तन से पहले ही, डरे-डरे
तन-मन हारे मारे-मारे उढ़ते फिरते
कि जैसे यह अकुलाते पत्ते नहीं हैं
हज़ारों घायल पक्षी…
ContinueAdded by vijay nikore on January 13, 2020 at 8:00am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
सब हवाले कर दिया तुझको मसीहा जान कर,
अब कहाँ जायें बता गैरों को अपना मान कर।
मत करो उससे शिकायत अपने घाटे लाभ की,
जिसको तुमने सर चढ़ाया दिल की बातें मान कर।
तेरा उससे प्यार है औरों से नफरत की उपज,
बरसों के रिश्ते भी चल उसके लिए कुर्बान कर।
वक्त का पहिया है ये तो चलना इसका काम है,
आने वाले कल की खातिर आज की पहचान कर।
खुद को उसको सौंपकर निश्चित हुए बैठे हैं हम,
उसको बस इतनी…
Added by मनोज अहसास on January 12, 2020 at 11:00pm — 4 Comments
तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?
ये दुश्चरित्र है तुम्हारा,
सताता मुझे क्यूँ है?
तुम इन्सान ही बुरे हो,
इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है?
तुम्हे इसमें सुकून है बहुत,
ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है?
ये धर्म के ठेकेदार हैं,
फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं?
ये दोषी है समाज…
ContinueAdded by Dr. Geeta Chaudhary on January 12, 2020 at 8:09pm — 4 Comments
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