बिछोह
कभीसोचा न था जो हुआ
कल्पना से परे
ये तुमने किया
यकीन नहीं
होगा भी क्यों
तुम ही तो थी मेरा बिश्वास
दिल के सबसे पास
सांसो में वास
सिर्फ तुम्हारा अहसास
बक्त जो गुजारा हमने
देखे थे सपने
सव नेस्तनाबूद
ख़त्म मेरा बजूद
कहा था तुमने में तुम बनेगें हम
किन्तु सब ख़तम
जरुर छीड़ पड़ी तुम्हारी स्मरण शक्ति
मेरा प्यार भक्ति
तुम वेबफा हो जानता नहीं
तुमने छल किया…
ContinueAdded by Dr.Ajay Khare on January 21, 2013 at 5:45pm — 6 Comments
मत्त गयंद (सवैया):
संजीव 'सलिल'
*
मत्त गयन्द सुछन्द मनोहर, ज्यों गुलकंद मधुर मन भाया
आत्मज सम यश-कीर्ति बढ़ा, कवि-तात का लाड़ निरंतर पाया
झूम उठे थे शेष न शेष रहा धीरज, जब छंद सुनाया.
घबराये नर-नार कहें, क्यों इंद्र ने भू पर वज्र चलाया..
*
Added by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 5:00pm — 3 Comments
सामयिक गीत:
पंच फैसला...
संजीव 'सलिल'
*
पंच फैसला सर-आँखों,
पर यहीं गड़ेगा लट्ठा...
*
नाना-नानी, पिता और माँ सबकी थी ठकुराई.
मिली बपौती में कुर्सी, क्यों तुम्हें जलन है भाई?
रोजगार है पुश्तों का, नेता बन भाषण देना-
फर्ज़ तुम्हारा हाथ जोड़, सर झुका करो पहुनाई.
सबको अवसर? सब समान??
सुन-कह लो, करो न ठट्ठा...
*
लोकतंत्र है लोभतन्त्र, दल दाम लगाना जाने,
भौंक तन्त्र को ठोंकतन्त्र ने दिया कुचल…
ContinueAdded by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 4:00pm — 3 Comments
ख़ुशी का हँसी का ठिकाना ख़तम,
घरों में दियों का जलाना ख़तम,
बड़ों के कहे का नहीं मान है,
अदब से सिरों का झुकाना ख़तम,
कहाँ हीर राँझा रहे आज कल,
दिवानी ख़तम वो दिवाना ख़तम,
नियत डगमगाती सभी नारि पे,
दिलों…
Added by अरुन 'अनन्त' on January 21, 2013 at 11:07am — 2 Comments
मुक्तक
रूप की आरती
संजीव 'सलिल'
*
रूप की आरती उतारा कर.
हुस्न को इश्क से पुकारा कर.
चुम्बनी तिल लगा दे गालों पर-
तब 'सलिल' मौन हो निहारा कर..
*
रूप होता अरूप मानो भी..
झील में गगन देख जानो भी.
देख पाओगे झलक ईश्वर की-
मन में संकल्प 'सलिल' ठानो भी..
*
नैन ने रूप जब निहारा है,
सारी दुनिया को तब बिसारा है.
जग कहे वन्दना तुम्हारी थी-
मैंने परमात्म को गुहारा है..
*
झील में कमल खिल रहा कैसे.
रूप…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 21, 2013 at 9:30am — 3 Comments
शर्म करो ऐ तनिक दरिंदों शर्म करो,
मनुज रूप में तनिक दरिंदों शर्म करो।
दिल्ली की सड़कों पर तुमने यह क्या कर डाला।
बापू औ पटेल की धरती पर क्या रच डाला।
तेरी करतूतों से फिर है देश हुआ गमगीन,
शर्म करो ऐ तनिक दरिंदों शर्म करो....
नारी ही दुर्गा है नारी ही लक्ष्मी बाई,
नारी ही कल्पना हमारी नारी ही माई।
माता के स्वरूप को तुमने ही तिल तिल मारा,
दिल्ली की सड़कों पर तुमने यह क्या कर डाला।
तेरह दिन तक जीवन से भी हार नहीं मानी,
पल-पल जिसने अपनी…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on January 20, 2013 at 9:00pm — 3 Comments
जीवन-मृत्यु
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एक अदृश्य सी रेखा
जीवन मृत्यु के मध्य
चुनना अत्यंत कठिन
दोनों में से एक को
जीवन क्षणभंगुर
अकाट्य सत्य है
मृत्यु भी असत्य नहीं
जान लें इस भेद को
मृत्यु की छाती पर
नर्तन करता जीवन
पकड़ना चाँद लहरों में
बाँधना रेत का कठिन
चेत रे मन होश न खोना
जीवन है अमूल्य खरा सोना
सुन्दर जीवन जिया जाये
होय वही जो पिया मन भाये…
Added by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on January 20, 2013 at 6:30pm — 16 Comments
शीत के मौसम से मच रही गदर है
इक्का-दुक्का ही कोई आता नजर है l
जमी बर्फ जमीं पे खामोश सा शहर है
पंछी ना चहका कोई ठूँठ हर शजर है l
होता बहुत मुश्किल निकलना घरों से
हाथ में दस्ताने और गले में मफलर है l
कांपती सी दिखती हर दूर तक डगर है
लोग बुत से चलते फिसलने का डर है l
बिन फूल-पात दिखते हैं पेड़ नंगे सारे
बस बर्फ के फूलों से ढका हुआ सर है l
दूब पर सफेदी चमकती है रजत जैसी
झुक रहे हैं तरु और धुंधली सी सहर है l
-शन्नो…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on January 20, 2013 at 6:00pm — 10 Comments
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 20, 2013 at 3:06pm — 11 Comments
भूल जा
संजीव 'सलिल'
*
आईने ने कहा: 'सत्य-शिव' ही रचो,
यदि नहीं, कौन 'सुन्दर' कहाँ है कहो?
लिख रहे, कह रहे, व्यर्थ दिन-रात जो-
ढाई आखर ही उनमें तनिक तुम तहो..'
ज़िन्दगी ने तरेरीं निगाहें तुरत,
कह उठी 'जो हकीकत नहीं भूलना.
स्वप्न तो स्वप्न हैं, सच समझकर उन्हें-
गिर पड़ोगे, निराधार मत झूलना.'
बन्दगी थी समर्पण रही चाहती,
शेष कुछ भी न बाकी अहम् हो कहीं.
जोड़ मत छोड़ सब, हाथ रीते रहें-
जान ले, साथ जाता कहीं कुछ…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 20, 2013 at 2:00pm — 6 Comments
खो रहा पहचान आदम,
हो रहा शैतान आदम,
चोर मन ले फिर रहा है,
कोयले की खान आदम,
नारि पे ताकत दिखाए,
जंतु से हैवान आदम,
मौत आनी है समय पे,
जान कर अंजान आदम,
सोंचता…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2013 at 10:59am — 2 Comments
आवाहन
झूमते पत्तों में से छन कर आई मेरे आँगन में
हँसती-हँसती उदभासित किरणों की छाप,
नभ-स्पर्शी हवाएँ तरंगित…
ContinueAdded by vijay nikore on January 19, 2013 at 7:15pm — 15 Comments
शब्दों में एक ज्वाला भर लो ,
लड़ने को अब कमर कस लो !
दुर्दशा पर चटखारे ना ले कोई ,
इतना खुद को सशक्त कर लो !!
शायद डर से गुमराह हो ,
अपना रास्ता खुद ही चुन लो !
इस हाल के ज़िम्मेदार है जो ,
उनसे अब दो दो हाँथ कर लो !!
यदि सहना है उत्पीडन इनका ,
यूँ ही खुद को बदनाम कर लो!
पड़े रहो मुर्दों की तरह,
खुद को इनका गुलाम कर लो!!
लड़ नहीं सकते जब तुम ,
कायर सा फिर जीना क्यूँ !
तिल तिल कर मरने से अच्छा ,
खुद का ही काम तमाम कर लो…
Added by ram shiromani pathak on January 19, 2013 at 1:49pm — 3 Comments
कोई सपना सुहाना चाहता हूँ
बच्चों का डर हटाना चाहता हूँ
तुमने खामोश आँखों से कहा जो
उन शब्दों को चुराना चाहता हूँ
डर ज़ुल्मों का भला क्यों-कर करें हम
जो सच है वो सुनाना चाहता हूँ
जिसने ले ली गरीबों की रोटी भी
फ़ांका उसको कराना चाहता हूँ
उलझे सब नालियों पर और कीचड़
मैं सागर से हटाना चाहता हूँ
नहीं “नादिर” शिकायत ज़िंदगी से
जिम्मेदारी निभाना चाहता हूँ
Added by नादिर ख़ान on January 18, 2013 at 5:00pm — 5 Comments
शंखनाद हो रण का, अब जंग आखिरी हो जाने दो ।
आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।
हमने जिसको अपना समझा, पीठ मे खंजर उसने घोपा है।
आज बता दो उनको की, अब ये आखिरी धोखा है।
अब फूल नही हाथो मे तलवार हमे उठाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो…
Added by बसंत नेमा on January 18, 2013 at 3:30pm — 7 Comments
सर्द रातों का आतंक ,
सबका बुरा हाल हुआ !
रूह कपा देने वाली ठण्ड से ,
खड़ा एक एक बाल हुआ !!
क़यामत की धुंधली रातों में
डरे ,कांपते हुए जो सिमटे है !
उन गरीबों का क्या हाल होगा ,
जो फटे कम्बल में लिपटे है !!
सुख सुविधाओ से परिपूर्ण वो ,
क्या जाने सर्द रातों का स्याह सच !
कैसे ढकता बदन वह ,
एक अधखुला कवच !!
कहर बरसाती ठण्ड रातें ,
बर्फीली हवा झेलते फेफड़े ,
नेता जी कम्बल घोटाला करके ,
कलेजे पे रखते बर्फ के टुकड़े!!
राम…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on January 18, 2013 at 1:43pm — 4 Comments
खरामा - खरामा चली जिंदगी,
खरामा - खरामा घुटन बेबसी,
भरी रात दिन है नमी आँख में,
खरामा - खरामा लुटी हर ख़ुशी,
अचानक से मेरा गया बाकपन,
खरामा - खरामा गई सादगी,
शरम का ख़तम दौर हो सा गया,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 18, 2013 at 11:30am — 10 Comments
मत्तगयंद सवैया :-
================
आदि अनादि अखंड अगॊचर, मॊह न क्षॊभ न काम न माया !!
तॆज त्रि-खंड प्रचंड अलौकिक,ब्याधि अगाधि दुखादि मिटाया !!
संत-अनंत न जानि सकॆ कछु,वारिहि बीच ब्रम्हांण्ड-निकाया !!
भाँषत वॆद पुराण सुधी जनि, पार न काहु रती भर पाया !!
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( मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 18, 2013 at 11:00am — 3 Comments
क्या कहूं मैं किस तरह तकदीर का मारा हुआ
सर्द रातें थीं मगर बिस्तर का बंटवारा हुआ
कहने को तो साथ हैं वो हर कदम ओ हर घड़ी
फिर भी उनकी बेरुखी से दिल ये नाकारा हुआ
यूं तो अपने हर तरफ हैं शबनमी दरिया मगर
जब नजर अपनी पडी पानी सभी खारा हुआ
जिनकी उम्मीदों पे सांसें चल रही थीं आज तक
वो न अपने हो सके, अपना जहां सारा हुआ
हंस…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on January 18, 2013 at 12:30am — 16 Comments
लाख चेहरों को छिपाते हैं, छिपाने वाले,
तू सबको पहचान ही लेता है, बनाने वाले |
कौन ठोकर पे है किसको सलाम करना है,
इल्म हर बात का रखते हैं ज़माने वाले |
जब कही सर भी छिपाने की जगह न मिली,
खूब पछताए मेरे घर को , जलाने वाले |
सच्ची बातें नहीं मरती हैं कभी सच है,
सच्चे इंसान हो पर, सच को, सुनाने वाले |
अपने चेहरे की खो देते हैं वो पहचान "अजय"
हर किसी शख्स को आइना, बनाने वाले |
मौलिक एवं अप्रकाशित …
Added by ajay sharma on January 17, 2013 at 11:00pm — 2 Comments
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