22 22 22 22
तिरछी हो जाती नजरें हैं
अश्कों की कटती फसलें हैं।1
धड़कन माफिक साँसें चलतीं
प्यास बनी ये दो पलकें हैं।2
लहराती बदली-बाला तू,
उड़ जाती, फिर सपने टें हैं।3
खूब जमाये रंग सभी ने
अल्फाजी उनकी फजलें हैं।4
लोग लिये हैं संग विधाएँ
अपने पास महज गजलें हैं।5
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मौलिक व अप्रकाशित@
Added by Manan Kumar singh on January 14, 2017 at 10:30am — 13 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2017 at 7:42am — 21 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२
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गुनगुनाकर देखिएगा आप भी यह गीत मेरा ।।
दोपहर की धूप में आभास होगा नव सवेरा ।।
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,
तप्त सूरज शीश पर जब अग्नि वर्षा कर रहा हो,
ऊष्णता के हृदविदारक तीर तरकस भर रहा हो,
तब प्रभाती गीत की तुम छाँव में करना बसेरा ।।(1)
दोपहर की धूप में,,,,,,,,,,,,,
गुनगुनाकर देखिएगा,,,,,,,
कोकिला के कण्ठ से माँ भारती का गान सुनना,
व्योम में प्रतिध्वनित होती सप्त सरगम…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 13, 2017 at 7:30pm — 7 Comments
शामिल हुआ
मौसम की दौड़ में
नव वर्ष भी।
चंचल नदी
उछली कहीं गिरी
बहती चली।
जीवन सांझ
यादों में डूबा मन
खुला झरोखा।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Neelam Upadhyaya on January 13, 2017 at 1:00pm — 11 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on January 12, 2017 at 10:04pm — 9 Comments
स्मृति के आँगन में ...
तुम सवालों को
सवाल क्योँ नहीं रहने देती
अपनी मौनता से
तुम नैन व्योम में बसी
अतृप्त तृष्णा से
अपने कपोलों पर
क्योँ गीले काजल से श्रृंगार
कर अनुत्तरित प्रश्नों का
उत्तर चाहती हो
क्योँ सुरभित मधु पलों को
अपने गीले आँचल में लपेट कर
स्मृति अंकुरों को
प्रस्फुटित होने का अवसर
देना चाहती हो
क्योँ मृदु चांदनी में
उदास निशा से
टूटे तारे से माँगी इच्छा के…
Added by Sushil Sarna on January 12, 2017 at 1:00pm — 10 Comments
122 122 12 2 122
जिधर भी मैं जाऊँ डगर आपकी है
हवा मे फज़ा में ख़बर आपकी है
महज़ रात थी आपके हक़ में लेकिन
सुना है कि अब हर पहर आपकी है
हरिक पुत्र को मुफ़्त मिलती है ममता
तो, ममता भी अब उम्र भर आपकी है
रपट कौन लिक्खे सभी आपके हैं
कि सरकार भी मोतबर आपकी है
ज़ियारत करें ना करें आप लेकिन
सियासत पे टेढ़ी नज़र आपकी है
नज़ीर आपकी अब मैं दूँ भी तो कैसे
हरी-सावनी सी नज़र आपकी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 12, 2017 at 10:30am — 13 Comments
वज़्न : 1222 1222 1222 1222
मिलेंगी कुर्सियाँ लेकिन सियासी फ़न ज़रूरी है ।।
जुटाना है अगर बहुमत लचीलापन ज़रूरी है ।।(1)
कई पतझड़ यहाँ आके गये अफ़सोस मत करिये,
बहारों के लिए हर साल में सावन ज़रूरी है ।।(2)
हवाओं नें कसम खा ली जले दीपक बुझाने की,
उजाला ग़र बचाना है खुला दामन ज़रूरी है ।।(3)
वफ़ा की बात करते हो मियाँ इस दौर में तुम भी,
जहाँ शतरंज की बाज़ी बिछी हो धन ज़रूरी है ।।(4)
अगर कोई कहे तुमसे बताओ प्यार के मानी,…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 11, 2017 at 11:30pm — 12 Comments
Added by Abhishek kumar singh on January 11, 2017 at 10:12pm — 12 Comments
उफ़! करो कोई न हलचल,
शांत सोया है यहाँ जल ।
नींद गहरी, स्वप्न बिखरे आ रहे जिसमें निरंतर।
लुप्त सी है चेतना, दोनों दृगों पर है पलस्तर।
वेदना, संत्रास क्या हैं? कब रही परिचित प्रजा यह?
क्या विधानों में, न चिंता, बस समझते हैं ध्वजा यह।
कौन, क्या, कैसे करे? जब,
हो स्वयं निरुपाय-कौशल।
पीर सहना आदतन, आनंद लेते हैं उसी में।
विष भरा जिस पात्र में मकरंद लेते हैं उसी में।
सूर्य के उगने का रूपक, क्या तनिक भी ज्ञात…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on January 11, 2017 at 3:00pm — 27 Comments
Added by नाथ सोनांचली on January 11, 2017 at 2:30pm — 14 Comments
221 2121 1221 212
सारे जहाँ को आप तो नादाँ समझते हैं
हद ये है अपने आप को इंसाँ समझते हैं
अह्ल ए अदब जो चमके है औरों के ताब से
खुद को मगर वो लाल ए बदख़्शाँ समझते हैं
आमाल में हमारे ही कमियाँ न हों जनाब
शैतान को भी लोग मुसलमाँ समझते हैं
बातों से जब न बात बनी, सर झुका लिया
धोखे में हैं जो उसको पशेमाँ समझते हैं
फिरती है वो हलक में लिए जान, और आप
कुत्तों के बीच जीने को आसाँ समझते…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on January 11, 2017 at 11:40am — 12 Comments
ये दुनिया है भूलभुलैया
रची भेड़ियों ने
भेड़ों की खातिर
पढ़े लिखे चालाक भेड़िये
गाइड बने हुए हैं इसके
ओढ़ भेड़ की खाल
जिन भेड़ों की स्मृति अच्छी है
उन सबको बागी घोषित कर
रंग दिया है लाल
फिर भी कोई राह न पाये
इस डर के मारे
छोड़ रखे मुखबिर
भेड़ समझती अपने तन पर
खून पसीने से खेती कर
उगा रही जो ऊन
जब तक राह नहीं मिल जाती
उसे बेचकर अपना चारा
लायेगी दो…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 10, 2017 at 8:13pm — 6 Comments
"सर, मिश्राजी का फोन आया था, थोड़ी देर में किसी के साथ आ रहे हैं", जैसे ही वह ऑफिस में आया, सेक्रेटरी ने आकर बताया|
"ठीक है, अंदर भेजने से पहले एक बार मुझसे पूछ लेना", उसने कहा लेकिन उसके चेहरे पर थोड़ी तिक्तता फ़ैल गयी| मिश्राजी उसके अध्यापक थे, जब वह हाई स्कूल में था और पिछले महीने ही वह उनसे मिला था| इस नए स्थान पर पोस्टिंग के समय तो उसे उम्मीद भी नहीं थी कि इस तरह से कोई पुराना परिचित मिल जायेगा, लेकिन मिश्राजी को उसने देखते ही पहचान लिया था| दो बार पहले भी वह आ चुके थे यहाँ लेकिन कभी…
Added by विनय कुमार on January 10, 2017 at 7:58pm — 16 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on January 10, 2017 at 6:24pm — 7 Comments
अधूरी प्रीत से ....
लब
खामोश थे
पलकें भी
बन्द थीं
कहा
मैंने भी
कुछ न था
कहा
तुमने भी
कुछ न था
फिर भी
इक
अनकहा
नन्हा सा लम्हा
आँखों की हदें तोड़
देर तक
मेरी हथेली पे बैठा
मुझे
मिलाता रहा
मेरे अतीत से
अधूरी तृषा में लिपटी
अधूरी प्रीत से
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 10, 2017 at 2:22pm — 4 Comments
Added by Arpana Sharma on January 10, 2017 at 2:03pm — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on January 10, 2017 at 6:16am — 12 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on January 10, 2017 at 1:30am — 9 Comments
Added by दिनेश कुमार on January 9, 2017 at 10:00pm — 9 Comments
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