Added by sanjiv verma 'salil' on January 14, 2013 at 12:00pm — 10 Comments
मकर संक्रांति पर्व है,बीस तेरहा साल,
संगम घाट प्रयाग का,बजे शंख अरु थाल/
शाही सवारी चलती,होती जय जयकार,
चलते साधू संत है, करें अजब श्रृंगार/
प्रथम शाही स्नान करे, महाकुम्भ शुरुआत,
साधू संत नहा रहे,क्या दिन अरु क्या रात/
भीड़ भरे पंडाल हैं,गूंजे प्रवचन हाल,
श्रोता शिक्षा पा रहे,झुका रहे हैं भाल/
जुटे कोटिशः जन यहाँ,लेकर उर आनंद,
पाय रहे प्रसाद सभी, खाएं परमानंद/
Added by Ashok Kumar Raktale on January 14, 2013 at 9:00am — 16 Comments
मकर संक्रान्ति का पर्व हिन्दुओं के अन्यान्य बहुसंख्य पर्वों की तरह चंद्र-कला पर निर्भर न हो कर सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है. इस विशेष दिवस को सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं.
पृथ्वी की धुरी विशेष कोण पर नत है जिस पर यह घुर्णन करती है. इस गति तथा पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर वलयाकार कक्ष में की जा रही परिक्रमा की गति के कारण सूर्य का मकर राशि में प्रवेश-काल बदलता रहता है. इसे ठीक रखने के प्रयोजन से प्रत्येक…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on January 14, 2013 at 4:00am — 45 Comments
ज़माने को सरल सीधे , नहीं चेहरे सुहाते है
हैं अब दर्पण वही जिनको , नहीं श्रृंगार भाते हैं
Added by ajay sharma on January 13, 2013 at 11:51pm — 7 Comments
शिक्षित बनो ,
शिक्षा का विस्तार करो !
परतंत्रता के जंजीरों से मुक्त हो ,
नए विचारों का स्वागत करो !
सृष्टि का मूल हो तुम ,
अपना महत्व समझो ,जानो !
मूक बन अब न सहो
उठो, बोलो
विश्व को अपने विचारों से अवगत करो !
इस विश्व के…
ContinueAdded by Anwesha Anjushree on January 13, 2013 at 9:38pm — 10 Comments
उड़ेल दिए क्या नमक के बोरे ,या चाँदी की किरचें बिछाई
लटके यहाँ- वहां रुई के गोले क्या बादलों की फटी रजाई
मति मेरी देख- देख चकराई |
डाल- डाल पर जड़े कुदरत ने जैसे धवल नगीने चुन- चुन कर
लगता कभी- कभी जैसे धुन रहे …
ContinueAdded by rajesh kumari on January 13, 2013 at 7:08pm — 14 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 13, 2013 at 4:00pm — 3 Comments
Added by ram shiromani pathak on January 13, 2013 at 4:00pm — 6 Comments
समय के इस कशाकश में, बदलना सीख जायेंगे
गिरेंगे फिर उठेंगे, खुद ही चलना सीख जायेंगे ।
नदी नालों ने ली है जान कुछ लाचार धारों की
करो मजबूत पैरों को, ये पलना सीख जायेंगे ।
कटे पंखों से उडती है जिगर वाली वो गौरेया,
नये मौसम में पर फिर से निकलना सीख जायेंगे ।
नहीं पहचानते बच्चे अभी तक लाल अंगारा,
हथेली पर रखेंगे तो ये जलना सीख जायेंगे ।
'सलिल' छोड़ो ये वैशाखी चलो थामो कलम-कागज,
सियासत डगमगायेगी, बदलना सीख जायेंगे ।
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 13, 2013 at 3:26pm — 10 Comments
आज मुहल्लेवालों ने राष्ट्रीय युवा दिवस मनाने के लिये एक कार्यक्रम का आयोजन किया था. लाला भाई के प्रयास से ही आज का आयोजन सम्भव हो पाया था इसलिये वे बहुत ही प्रसन्न दिख रहे थे. कार्यकारिणी के सभी सदस्यों के अनुरोध पर कार्यक्रम के मुख्य वक्ता लाला भाई को ही बनाया गया था.
इस वर्ष ठंढ ने न्यूनतम होने के कई सारे रिकार्ड तोड दिये थे. मैं भी शरीर पर कई तह में कपडे तथा सिर पर कनटोप और मफ़लर के साथ जमा था. कडाके की ठंढ आदमी को प्याज के छिलकों की तरह वस्त्र पहनने को विवश कर देती है. तीन-चार…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on January 13, 2013 at 12:30am — 13 Comments
माँ तुमसॆ बलिदान माँगती है :--
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भारत कॆ सैनिकॊं की हत्या पर, इंद्रासन हिला नहीं,
प्रलयं-कारी शंकर का क्यॊं, नयन तीसरा खुला नहीं,
शॆष अवतार लक्ष्मण जागॊ, मत करॊ प्रतीक्षा इतनी,
मर्यादाऒं मॆं बंदी भारत माँ,दॆ अग्नि-परीक्षा कितनी,
हॆ निर्णायक महा-पर्व कॆ, तुम फिर सॆ जयघॊष करॊ,
युद्ध-सारथी बन भारत कॆ, जन-जन मॆं जल्लॊष भरॊ,
भारत माँ की बासंती चूनर,तुमसॆ नया बिहान माँगती है !!
महाँकुम्भ मॆं महाँ-युद्ध कर, यॆ रक्तिम स्नान माँगती…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 12, 2013 at 10:30pm — 12 Comments
पाठकनामा:
संजीव 'सलिल'
*
गत दिनों बेनजीर भुट्टो की लिखी पुस्तक मेरी आपबीती पढ़ी. मेरे पिता की हत्या, अपने ही घर में बंदी, लोकतंत्र का मेरा पहला अनुभव, बुलंदी के शिखर छूते ऑक्सफ़ोर्ड के सपने, जिया उल हक का विश्वासघात, मार्शल लॉ को लोकतंत्र की चुनौती, सक्खर जेल में एकाकी कैद, करचे जेल में- अपनी माँ की पुरानी कोठारी में बंद, सब जेल में अकेले और २ वर्ष, निर्वासन के वर्ष, मेरे भाई की मौत, लाहौर वापसी और १९८६ का कत्ले-आम, मेरी शादी, लोकतंत्र की नयी उम्मीद, जनता की जीत,…
Added by sanjiv verma 'salil' on January 12, 2013 at 8:00pm — 6 Comments
=========ग़ज़ल=========
बहरे जदीद मुसद्दस महजूफ मक्फूफ़ मुतव्वी
वजन - 212 2121 2112
बात करना बड़ी बड़ी ही सही
झूठ हो या सही सही ही सही
इश्क के हर कदम पे वादे हों
तब तो करना है दोस्ती ही सही
गरचे…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on January 12, 2013 at 6:25pm — 5 Comments
मकर संक्रांति पर्व है, चौदह जनवरी जान
उत्तरायण सूर्य का है, देख शास्त्रीय विज्ञान
पित्त कफ़ वायुप्रकोपहै,शुष्क ठण्ड के रोग .
ओजस्वी उर्जावान सूर्य किरणे करे निरोग
छत पर, खुले में जा लोग पतंग खूब उड़ाते
दूर उडती पतंग निहार नयन ज्योति बढ़ाते
मानसिक संतोष,औ तंदुरस्ती चाहे बढ़ाना
गरीब औ अनाथ को ठण्ड में वस्त्र…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 12, 2013 at 2:00pm — 12 Comments
मान है सम्मान गर दौलत नगद है .. हद है,
लोभ बिन इंसान कब करता मदद है .. हद है,
हाल मैं ससुराल का कैसे बताऊँ सखियों,
सास बैरी है बहुत तीखी ननद है .. हद है,
स्वाद चखते थे कभी हम स्नेह की बातों का,
आज जहरीली जुबां कड़वा शबद है .. हद है,
कौन…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on January 12, 2013 at 11:00am — 10 Comments
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 12, 2013 at 11:00am — 36 Comments
एक.
अपने सुख की खोज में,सब जा रहे विदेश।
वहां जा कर पता चला, कितना अच्छा देश।।
दो-
सब बदलने की कोशिश,करते हैं सब आज।
आदमी वहीं का वहीं, बदला नहीं समाज।।
Added by सूबे सिंह सुजान on January 12, 2013 at 10:57am — 7 Comments
घटना ऐसी घटित हो गयी सुनकर भारत रोया है,
वीर सपूतो को फिर से इस मात्रभूमि ने खोया है.
छल कर गया पड़ोसी उसने अपनी जात दिखा डाली,
सोते सिंहो पर हमला अपनी औकात दिखा डाली.
खून हमारा उबल उठा है पाक तेरी नादानी से,
दिल्ली कैसे सहन कर गयी सोंचू मै हैरानी से.
आज हमारी सहनशक्ति का बाँध तोड़ डाला तूने,
सोये सिंह जगाकर अपना भाग्य फोड़ डाला तूने.
अरे भेंड़िये कायरपन पर बार-बार धिक्कार तुझे,
हिन्दुस्तानी बच्चा-बच्चा देता है ललकार तुझे.
कूटनीति अपनाने वाले…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on January 12, 2013 at 9:30am — 12 Comments
टूटती सी ताल है ,भेड़िये की खाल है ..
चीख भी न सुन सके ,कानों का ये हाल है।।
बात तो तपाक सी ,गंदली नापाक सी ..
रोम रोम जल उठे ,'तीन पात ढाक' सी ..
गंगा निर्मल कहाँ ,प्रण में अब बल कहाँ ..
स्वच्छ जलधार हो ,कोई भी हल कहाँ?
स्वदेश है पुकारता ,स्वजनों से हारता ,
हिन्द के लिए कहाँ ,स्वयं कोई वारता ?
कुर्सी में गोंद है, उठना मोहाल है …
Added by Lata R.Ojha on January 12, 2013 at 3:00am — 10 Comments
ककहरा
क- काले दिल कपड़े सफ़ेद
ख- खादी की नियत में छेद
ग- गद्दार देश को बेच रहे
घ- घर को रहे भालो से भेद
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
च- चिड़िया थी जो सोने की
छ- छलनी है आतंक की गोली से
ज- जहां तहां है ख़ून खराबा
झ- झगड़े, जात-धर्म की बोली से
इसके बाद कुछ नहीं
मानो हुआ कुछ नहीं…
ट - टंगी है आबरू चौराहे पे माँ की
ठ - ठगी सी आंसू बहाती है
ड - डरी हुयी है बलात्कारियों से
ढ - ढंग से जी नहीं…
Added by Ranveer Pratap Singh on January 11, 2013 at 11:30pm — 11 Comments
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