Added by amod shrivastav (bindouri) on March 25, 2017 at 12:11pm — 2 Comments
Added by मनोज अहसास on March 25, 2017 at 6:00am — 4 Comments
सुकून .......
ढूंढता हूँ
अपने सुकून को
स्वयं की
गहराईयों में
छुपे हैं जहां
न जाने
कितने ही
जन्मों के जज़ीरे
अंधे -अक़ीदे
तसव्वुर में तैरते
कुछ धुंधले से
साये
साँसों के मोहताज़
अधूरी तिश्नगी के
कुछ लम्हे
ज़िस्म पर आहट देते
ख़ौफ़ज़दा
कुछ लम्स
खो के रह गया हूँ मैं
ग़ुमशुदा दौर के शानों पर ग़ुम
अपने सुकून को ढूंढते ढूंढते
क्या
कर सकूंगा…
Added by Sushil Sarna on March 23, 2017 at 10:00pm — 4 Comments
अरकान- 1222 1222 1222 1222
मुहब्बत में सनम हरदम न मुझको आजमाना तुम|
अकेलापन सताता है कि वापस आ भी जाना तुम|
मुहब्बत खेल है बच्चों का शायद तुम समझते हो,
अगर घुट-घुट के मरना है तो फिर दिल को लगाना तुम,
वतन के नाम कर देना जवानी-ऐशोइशरत औ
कटा देना ये सर अपना मगर सर मत झुकाना तुम|
कफस में डाल के दुश्मन को मौका और मत देना ,
उड़ा के सर ही दुश्मन का धरम अपना निभाना तुम|
मुहब्बत धार है…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on March 23, 2017 at 7:00pm — 5 Comments
22 22 22 22 22 2
हर चहरे पर चहरा कोई जीता है
और बदलने की भी खूब सुभीता है
सांप, सांप को खाये, तो क्यों अचरज हो
इंसा भी जब ख़ूँ इंसा का पीता है
अर्थ लगाने की है सबको आज़ादी
चुप कह के, क़ुरआन, बाइबिल गीता है
भेड़, बकरियों, खर , खच्चर , हर सूरत में
अब जंगल में जीता केवल चीता है
बादल तो बरसा था सबके आँगन में
उल्टा बर्तन रीता था, वो रीता है
फर्क हुआ क्या नाम बदल के सोचो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 23, 2017 at 8:57am — 6 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on March 21, 2017 at 9:00pm — 12 Comments
ई-मौजी ...
आज के दौर में
क्या हम ई-मौजी वाले
स्टीकर नहीं हो गए ?
भावहीन चेहरे हैं
संवेदनाएं
मृतप्रायः सी जीवित है
अब अश्क
अविरल नहीं बहते
शून्य संवेदनाओं ने
उन्हीं भी
बिन बहे जीना
सिखा दिया है
हर मौसम में
सम भाव से
जीने का
करीना सिखा दिया है
अब कहकहा
ई-मौजी वाली
मुस्कान का नाम है
ई-मौजी सा ग़म है
ई-मौजी से चहरे हैं
ई-मौजी से…
Added by Sushil Sarna on March 21, 2017 at 5:30pm — 8 Comments
करेंगें दम से खूब धमाल,
इक दिन आगे पहुंचे ससुराल।
पहली होली संग साली के,
सोच के हो गये गुलाबी गाल।।
हुयी रात जो घोड़े बेचे,
सो गये हम ,चादर को खेंचे।
ले कालौंच,खड़िया और गेरू,
बैठी चौकड़ी,खाट के नीचे।
हो गयी शुरू ,रात से होली ,
इधर अकेले ,उधर हुल्लड़ टोली,
गब्बर सिंह बन,देख के खुद को
भूल गये सब हंसी ठिठोली ।
खूब उड़ा फिर अबीर ,गुलाल
मुंह काला ,अंग पीला लाल,
पकड़ ,पकड़ के ऐसा पोता
उड़ गये तोते देख धमाल।।…
Added by Rahila on March 21, 2017 at 2:00pm — 14 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 21, 2017 at 12:33pm — 7 Comments
22 22 22 22 22 2
छिपे हुये फिर सारे बाहर निकले हैं
फिर शब्दों के लेकर ख़ंज़र निकले हैं
मोम चढ़े चहरे गर्मी में जब आये
सबके अंदर केवल पत्थर निकले हैं
आइनों से जो भी नफ़रत करते थे
जेबों मे सब ले के पत्थर निकले हैं
बाहर दवा छिड़क भी लें तो क्या होगा
इंसाँ दीमक जैसे अन्दर निकले हैं
अपनी गलती बून्दों सी दिखलाये, पर्
जब नापे तो सारे सागर निकले हैं
औंधे पड़े हुये हैं सागर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on March 21, 2017 at 9:48am — 16 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 19, 2017 at 7:30pm — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on March 19, 2017 at 5:23pm — 7 Comments
एक शब्द ....
एक शब्द टूट गया
एक शब्द रूठ गया
एक शब्द खो गया
एक शब्द सो गया
एक शब्द आस था
एक शब्द उदास था
एक शब्द देह था
एक शब्द अदेह था
एक शब्द में अगन थी
एक शब्द में लगन थी
एक शब्द जनम था
एक शब्द मरण था
एक शब्द प्यास था
एक शब्द मधुमास था
एक शब्द चन्दन था
एक शब्द क्रंदन था
एक शब्द मोह था
एक शब्द विछोह था
शब्दों की भीड़ थी
हर शब्द में पीर थी
नीर था शब्दों में
शब्द शब्द…
Added by Sushil Sarna on March 19, 2017 at 4:20pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2017 at 3:25pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2017 at 12:36am — 6 Comments
यादें......
यादें !
आज पर भारी
बीते कल की बातें
वर्तमान को अतीत करती
कुछ गहरी कुछ हल्की
धुंधलके में खोई
वो बिछुड़ी मुलाकातें
हाँ !
यही तो हैं यादें
ये भीड़ में तन्हाई का
अहसास कराती हैं
आँखों से अश्कों की
बरसात कराती हैं
सफर की हर चुभन
याद दिलाती हैं
जब भी आती हैं
ज़ख़्म कुरेद जाती हैं
अहसासों के शानों पर
ये कहकहे लगाती हैं
ज़हन की तारीकियों में…
Added by Sushil Sarna on March 18, 2017 at 9:30pm — 6 Comments
ग़ज़ल (दोस्तों की महरबानी हो गई )
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फ़ाईलातुन--फ़ाईलातुन --फाइलुन
यूँ न उनको बदगुमानी हो गई |
दोस्तों की महरबानी हो गई |
भूल बचपन के गये वादे सभी
उनको हासिल क्या जवानी हो गई |
नुकताची को क्या दिखाया आइना
उसकी फ़ितरत पानी पानी हो गई |
यूँ नहीं डूबा है मुफ़लिस फ़िक्र में
उसकी बेटी भी सियानी हो गई |
अजनबी के साथ क्या कोई गया
ख़त्म उलफत की कहानी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 18, 2017 at 8:48pm — 6 Comments
Added by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 18, 2017 at 7:44pm — 3 Comments
1.प्यासा तालाब
पीपल उदास-सा
गाँव है चुप ।
2.हुक्का , खटिया
चौपाल है गायब
बीमार गाँव ।
3.दहेज प्रथा
परिवर्तित रूप
कैश का खेल ।
4.धरती छोड़
चाँद पर छलांग
पुकारे भूख ।
5.मिलन नहीं
प्यास है बरकरार
है इंतज़ार ।
6.ऐश्वर्य प्रेमी
संत उपदेशक
माया का खेल ।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Mohammed Arif on March 18, 2017 at 7:30pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 17, 2017 at 9:05pm — 2 Comments
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