रंग-बिरंगे मोती एकत्रित हो चुके थे। कुछ पुराने और कुछ नये। कारीगर भी थे और फ़ोटोग्राफ़र भी। शादीशुदा औरतें भी और तलाक़शुदा भी रंग-बिरंगी पोशाकों में। दीग़र ताम-झाम भी इकट्ठे कर लिए गए थे। मंत्री महोदय के पधारते ही सरकार की तारीफ़ में क़सीदे गाये जाने लगे। ख़ास काम निबटा कर मंत्री जी को वापस रवाना होना था।
"कुछ जवान कुंवारी लड़कियों और कुछ जवान तलाक़शुदा औरतों को काम पर बिठा दो!" एक कार्यकर्ता ने दूसरे से कहा।
सिर पर दुपट्टे लपेटे कुछ मुस्लिम लड़कियों और औरतों ने ताने-बाने का सामान…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 10, 2018 at 11:30pm — 14 Comments
१२२२/१२२२/१२२
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ग़लत को गर ग़लत कहना ग़लत है
मेरा दावा है ये दुनिया ग़लत है.
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अगर मर कर मिले जन्नत तो फिर सुन
तेरा इक पल यहाँ जीना ग़लत है.
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हमारी बात का मतलब अलग था,
अगरचे आप ने समझा ग़लत है.
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मुझे है तज़्रबा तुम से ज़ियादा
मेरी मानों तो ये रस्ता ग़लत है.
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कहानी में तो मिल जाते हैं दोनों
हक़ीक़त में जुदा होना ग़लत है.
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कहे नंगे को नंगा एक बच्चा
कहे दरबार वह बच्चा ग़लत है.
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ग़लत साबित मुझे…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 10, 2018 at 10:25pm — 16 Comments
2122 1212 22
जिसको कहते थे बेवफा निकला ।
आदमी फिर वही भला निकला ।।
कोशिशें थीं जिसे मिटाने की ।
शख्स वह दूध का जला निकला ।।
दिल जलाने की साजिशें लेकर ।
घर से वो भी था बारहा निकला ।।
रात भर जो हँसा रहा था मुझे ।
सब से ज्यादा वो ग़मज़दा निकला ।।
दफ़्न कैसे हैं ख्वाहिशें सारी…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on March 10, 2018 at 1:34pm — 10 Comments
जिन्दा इक सवाल है ।
सबका एक ख्याल है ।।
कुछ मंदिर को दो ,
कुछ मस्जिद को दो ..
सब को जरूरत है खुशियों की
ईश्वर भी निढाल है
जिन्दा एक सवाल है
रोटी , कपड़ा , मकान
जरुरत है हर इंसान
वो बंगलों में रख दो
वो झोपड़े में रख दो
कंफ्यूशन , है बवाल है
जिन्दा एक सवाल है।
कमरा बना नहीं पाते
की बच्चे सुरक्षित हों !
मंदिर बनेगा..मस्जिद बनेगी
जमीनें आरक्षित हों ???
कौंधता ,…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2018 at 11:05am — 1 Comment
बह्र -212-221-221
सोंच को इक तीर करती है ।।
कुछ यूँ ये तस्वीर करती है।।
कुछ भी हो की बात कर और।
मन में हलचल पीर करती है।।
दर्द उलफत है ये सायद की।
दिल को रिसता नीर करती है।।
सुन सुनाई दे रहा कुछ यूँ।
ये हवा तपशीर करती हैं।।
बा वफ़ा या बेवफा ना वो।
फैसले तक़दीर करती है।।
जिंदगी भी बाद उलफत के।
पैरों में जंजीर करती है।।
खुद को पत्थर से रगड़ने के।
बाद…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2018 at 10:00am — 2 Comments
२२१२ १२२ २२१२ १२ २
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ईमान छोड दूँ तो क़िरदार मार देगा,
इस पार बच गया तो उस पार मार देगा.
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आदत सी पड़ गयी है अब नफ़रतों की मुझ को
इतना न मुझ को चाहो ये प्यार मार देगा.
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कितना बचाऊँ लेकिन है तज्रबा... मुकद्दर,
इक रोज़ मेरे सर पर दीवार मार देगा.
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ये हक़ बयानी का इक औज़ार था मगर अब,
सच बोल दे कलम गर अख़बार मार देगा.
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कोचिंग की आशिक़ी में वह मुँह चिढ़ाता शनिचर,
लगता था जैसे हम को इतवार मार देगा.
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बोली बढ़ा घटा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 8, 2018 at 9:00pm — 15 Comments
प्रवासी पीड़ा
शहर पराया गाँव भी छूटा
चाँदी के चंद टुकड़ों ने
हमको लूटा-हमको लूटा-हमको लूटा |
भूख खड़ी थी जब चौखट पे
कदम हमारे निकल पड़े थे
मिल गई रोटी शहर में आकर
पर अपनों का अपनेपन का
हो गया टोटा-हो गया टोटा-हो गया टोटा |
माल कमाया सबने देखा
रात जगे को किसने देखा
मेहमां-गाँव से ना उनको रोका
एक कमरे की ना मुश्किल समझी
दिल का हमको
कह दिया छोटा-कह दिया छोटा-कह दिया छोटा…
ContinueAdded by somesh kumar on March 8, 2018 at 6:07pm — 2 Comments
(फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन--फ़ऊलन)
शुरूए इनायात करने चले हैं |
वो लगता है आफ़ात करने चले हैं |
ख़ुदा ख़ैर पाबंदियाँ हैं नज़र पर
मगर वो मुलाक़ात करने चले हैं |
यक़ीं ही नहीं उम्र ढलने का उनको
जो तब्दील मिर आत करने चले हैं |
खिलाना है फ़िरक़ा परस्तों को मुंह की
वो लोगों फ़सादात करने चले हैं |
मुहब्बत के अंजाम से हैं वो ग़ाफ़िल
जो इसकी शुरुआत करने चले हैं |
भला किस तरह कर दें उसको नुमायाँ
सनम से जो हम बात करने चले हैं…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 8, 2018 at 5:00pm — 18 Comments
221 2121 1221 212
दे सोच कर सज़ाएं गुनहगार हम नहीं
ये तू भी जानता है ख़तावार हम नहीं
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जिस पर किया भरोसा वही दे गया दगा
लेकिन किसी भी शख़्स से बे-ज़ार हम नहीं
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दिल तो दिया था जान भी तुझपे निसार की
फिर क्यूँ तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं
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जिनकी खुशी के वास्ते सब कुछ लुटा दिया
उफ़ वो ही कह रहे हैं वफादार हम नहीं
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हैरत है दिल के पास थे जिनके सदा 'रज़ा'
अब तो उन्ही के प्यार के हक़दार हम नहीं
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मौलिक व…
Added by SALIM RAZA REWA on March 8, 2018 at 2:58pm — 15 Comments
"अरे चमनलाल...! आओ-आओ भैया!कितने वर्षों बाद , गांव का रास्ता कैसे भूल गए ? " खुशी से झूमते हुए उसने , उसको कसकर गले लगा लिया।
"बस भैया चले ही आ रहे हैं , अरे...! घर में सन्नाटा सा पसरा है, कोई है नहीं का?" उसने बाखर का सरसरी तौर पर मुआयना करते हुए कहा।
"है ना..., तुम्हारी भाभी हैं भीतर,
अरे सुनती हो! चमनवा आया है ,जरा बढ़िया सी चाय तो बना लाओ दुई कप।"
"और बहुएँ कहाँ हैं ?"
" बड़ी , आंगनबाड़ी में सुपरवाइजर हो गयी है , छोटी तो मास्टरनी थी ही। आती होंगीं समय तो हो…
ContinueAdded by Rahila on March 8, 2018 at 12:30pm — 17 Comments
फूलों में नाज़ुकी कहाँ है अब
थी कभी ताज़गी कहाँ है अब
आज कल इश्क़ तो दिखावा है
आशिक़ी आशिक़ी कहाँ है अब
शक्ल-सूरत तो पहले जैसी है
आदमी आदमी कहाँ है अब
अब नुमाइश है सिर्फ चेह्रों की
हुस्न में सादगी कहाँ है अब
चाँद अब दूधिया नहीं दिखता
रात भी शबनमी कहाँ है अब
लोग बाहर से मुस्कुराते हैं
यार सच्ची हँसी कहाँ है अब
जो समंदर को ढूंढ़ने निकले
ऐसी अल्हड़ नदी कहाँ है अब
छाँव भी बदली बदली लगती है
धूप भी धूप सी कहाँ है…
Added by Saarthi Baidyanath on March 8, 2018 at 11:56am — 3 Comments
ख़बर तो कागज़ों की कश्तियाँ दे जाएँगी मुझको
ये लहरें ही तुम्हारी चिठ्ठियाँ दे जाएँगी मुझको
लिखे थे जो दरख्तों पर अभी तक नाम हैं कायम
ख़बर ये भी कभी पुरवाईयाँ दे जाएँगी मुझको
कभी तो बात मेरी मान जाया कर दिले-नादां
तेरी नादानियाँ दुश्वारियाँ दे जाएँगी मुझको
बिछुड़ जाने का डर मुझको नहीं डर है तो ये डर है
न जाने क्या न क्या रुस्वाईयां दे जाएँगी मुझको
तुम्हीं को भूल जाऊं मैं अजी ये हो नहीं सकता
तुम्हारी यादें आकर हिचकियाँ दे जाएँगी…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on March 8, 2018 at 11:51am — 12 Comments
माता भगिनी संगिनी, सुता रूप में नार
विपदा दुख पीड़ा सहे, बाँटे लेकिन प्यार।१।
रही जन्म से नार तो, सदा शक्ति का रूप
समझे कैसे खुद रहा, मर्द हवस का कूप।२।
जो नारी का नित करें, पगपग पर सम्मान
संतो सा उनका रहा, सचमुच चरित महान।३।
नारी को जो कह गये, यहाँ नरक का द्वार
सब जन उनको जानिए, इस भू पर थे भार।४।
मुझ मूरख का है नहीं, गीता का यह ज्ञान
देवों से बढ़ नार का, कर मानव सम्मान।५।
बन जायेगा सच कहूँ,…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 8, 2018 at 11:30am — 15 Comments
महामूर्ख - लघुकथा –
"दुर्योधन, तुम इस विश्व के सबसे बड़े मूर्ख हो, महामूर्ख"।
"माते, आप यह कैसी भाषा बोल रही हैं? मैं तो सदैव ही आपका सबसे प्रिय पुत्र रहा हूँ"।
"मगर आज तुमने अपने आप को महामूर्ख प्रमाणित कर दिया"।
"माँ, आप इस साम्राज्य की महारानी हैं।मैं आपका अपमान नहीं करना चाहता , लेकिन आपकी यह कटु वाणी मेरी सहनशीलता को धैर्यहीन बना रही है"।
"दुर्योधन, तुमने अपनी माँ के आदेश की अवज्ञा करके अपनी मृत्यु को स्वंय दावत दी है"।
"मैंने जो कुछ भी किया…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on March 7, 2018 at 9:29pm — 16 Comments
दो मित्र आपस में बातें कर रहे थे;एक मानवतावादी था और दूसरा समाजवादी।पहले ने कहा-
अरे भई!वो भी आदमी हैं,परिस्थिति के मारे हुए।बेचारों को शरण देना पुण्य-परमार्थ का काम है।
दूसरा:हाँ तभी तक,जबतक यहाँ के लोगों को शरणार्थी बनने की नौबत न आ जाये।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on March 7, 2018 at 8:25pm — 8 Comments
आदमी और नदी
पहाड़ों से निकलतीं थीं झूम-झूम कर
खो जाती थीं एक-दुसरे में घूम-घूम कर
विशद् धारा बन जाती थी
एक नदी कहलाती थी
समुंदर में जाकर प्रेम करती सुरूप
हो जाती एकरूप |
आदमी भी कुछ ऐसा था
स्वीकारता दुसरे को
चाहे दूसरा जैसा था
आदमी होना प्रथम था
बाद में ज़मीन-पैसा था |
आदमी का मेल-मिलाप /सभ्यता रचता था
इसी तरह एक राज्य/एक देश बसता था |
बाद में नदी को जरूरत के…
ContinueAdded by somesh kumar on March 7, 2018 at 8:00pm — 3 Comments
एक बहुत बड़े जमींदार थे। उनका कुनबा भी बहुत बड़ा था। उनकी जमीन से होकर एक सोता बहता था। सोते के दूसरी तरफ भी कुनबे के कुछ लोग रहते थे। जिनसे यदा कदा ही मिलना हो पाता था।
सरकार ने जब जमींदारी जब्त करनी शुरू की तो जमींदार साहब को अपने धन का अपने लोगों के लिए सदुपयोग करने का उपाय सूझा। उन्होंने सरकार के तय मापदंड के अलावा बचे धन से उस सोते पर एक पुल बनवा दिया। ताकि कुनबे के लोग आपस में मिलते जुलते रहें। जम्हूरियत में संख्या बल का अपना ही महत्व है ये बात वह खूब समझते थे।
पुल…
Added by Kumar Gourav on March 6, 2018 at 10:00pm — 7 Comments
22/ 22/ 22/ 22
ज़ालिम तुझ से डरे नहीं हैं,
हारे हैं .....पर मरे नहीं हैं.
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और कुछ इक दिन ज़ुल्म चलेगा,
अभी पाप-घट भरे नहीं हैं.
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खोट है उस की नीयत में कुछ
पूरे हम भी खरे नहीं हैं.
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कौन सी जन्नत कैसी क़यामात
ये सब मौत से परे नहीं हैं.
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कहते हैं वो अपने मन की
पर मन की भी करे नहीं हैं.
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गर्दभ होते ...घास तो चरते
साहिब.. घास भी चरे नहीं हैं.
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बोल रहे हैं अपने कलम से
“नूर जी” चुप्पी धरे…
Added by Nilesh Shevgaonkar on March 6, 2018 at 9:33pm — 11 Comments
अरकान- 212 212 12 22
बात कहनी थी जो ज़ुबानी में|
लिख रहें हैं ग़ज़ल कहानी में|
फूल-ख़त संग लाख दर्दोगम
उसने हमको दिये निशानी में|
देवता बन के आये हैं मेहमां
कुछ कसर हो न मेज़बानी में |
प्यार रुसवा मेरा भी हो जाता
जिक्र करता अगर कहानी में |
सर्द मौसम में गर गिरा पल्लू
आग फिर तो लगेगी पानी में |
मौलिक व अप्रकाशित
Added by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on March 6, 2018 at 8:30pm — 5 Comments
महाविद्यालयीन कक्षा में छात्रों के अनुरोध पर हिन्दी के शिक्षक उन्हें "भूल, ग़लती, और भूलना" शब्दों में अंतर समझाते हुए बोले - "भूतकाल में अज्ञानता वश किया गया कोई भी कार्य या क्रिया जिसके कारण वर्तमान या भविष्य में हानि उठानी पड़े 'भूल' कहलाती है! 'भूल' का हिन्दी में अर्थ होता है “गलती या दोष”; इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर “चूक” शब्द के साथ किया जाता है!" कुछ उदाहरणों सहित समझाने के बाद शिक्षक ने छात्रों से कुछ और उदाहरण प्रस्तुत करने को कहा। 'भूल' पर कुछ जवाब यूं भी रहे :
"जैसे अमर…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 6, 2018 at 8:30pm — 8 Comments
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