भारी भरकम काया,है बड़ी विचित्र माया ,
खुद खाती ठूसकर ,मुझपे चिल्लाती है !
हुआ वजन सौ किलो ,फिर भी दम ना लेती ,
गुंडई तो देखो इसे ,डाइटिंग बताती है !!
खर्राटे जब लेती है,मानो भूकंप आ गया ,
पड़ोसियों की भी तब ,नींद टूट जाती है !
अपने को…
Added by ram shiromani pathak on April 18, 2013 at 4:00pm — 18 Comments
लो पत्थर इश्क़ करना चाहता है
मेरी मानिंद जलना चाहता है
लगा के हौसलों के पर युवा अब
बड़ी परवाज़ भरना चाहता है
फलक में जा भुला बैठा जो सबको
ज़मीं पर क्यूँ उतरना चाहता है
सहारे की ज़रूरत है उसे क्या
जो गिर के अब सँभलना चाहता है
बना हमदाद दुनिया में वही जो
सभी के दिल मे बसना चाहता है
संदीप पटेल "दीप"
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 2:57pm — 7 Comments
एक प्रयास,,आप सबकॆ चरणॊं मॆं सादर समर्पित है,,,
======================================
(१) मदिरा सवैया =
==============
मारति गॆंद गिरी यमुना जल, बीचहिँ धार बहात चली !!
भाषत राज गुनीजन जानहु, मानहुँ कुम्भ नहात चली !!
त्रॆतहिँ कॆवट की तरिनी जसि, राम चढ़ॆ उतिरात चली !!
आनहुँ गॆंद अबै मन-मॊहन, ग्वालन ग्वालन बात चली !!
(२) मदिरा सवैया =
==============
भूल हमारि भई मनमॊहन, खॆल खॆलाइ लियॊ तुम का !!
दाँव हमारि रहै तबहूँ हम, दाँव दिलाय दियॊ…
Added by कवि - राज बुन्दॆली on April 18, 2013 at 2:30pm — 18 Comments
स्वतंत्रता के 66 वर्ष बाद, जन सामान्य को क्या मिला? आज भी सोने की चिड़िया के बचेखुचे पंख, भक्षक बन कर रक्षक ही नोच रहे हैं, अल्पसंख्यकों का एक वर्ग असुरक्षा के नाम पर बहुसंख्यकों पर अविश्वास कर रहा है- राजनेताओं की दादुरनिष्ठाओं से सभी हतप्रभ हैं: - संस्कारहीन समाज अपनी दिशाहीन यात्रा के उन मील के पत्थरों पर नाज कर रहा है जिनके नीचे शोषितों की आहें दफन हैं। ऐसे में, भारतीय लोकतन्त्र का चेहरा किस स्वर्णिम आभा से चमक…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on April 18, 2013 at 1:30pm — 6 Comments
मेरे साजन घर ना आये , सूना सूना लागे | |
जब से छोड़ कर गये विदेश , घर में मन ना लागे | |
दिन में कहीं चैन ना आये , रतिया बीते जागे | |
उनके बिना कुछ ना सुहाये , नैनन निद्रा भागे | |
आकर… |
Added by Shyam Narain Verma on April 18, 2013 at 1:11pm — 3 Comments
नीर के बापू ये तुम ठीक नहीं कर रहे हो एक ही तो रोजी रोटी का सहारा है ये बकरी उसे भी बेचना चाहते हो गोमती ने कलुवे के हाथ से रस्सी छुडाते हुए कहा कलुआ गुस्से में लगभग चीखता हुआ बोला बकरी तो फिर आ जायेगी भागवान देश का इतना बड़ा मंत्री एक गरीब के झोंपड़े में रोज थोड़े ही आता है आएगा तो चार आदमियों के खातिरदारी का बंदोबस्त तो करना ही पड़े है न तभी तो हमारा भी कुछ उद्धार हो पायेगा । अगले दिन सुबह से कलुवे के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे मंत्री जी का स्वागत सजी धजी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 18, 2013 at 12:19pm — 13 Comments
भूत को क्यों याद करूँ
क्यों याद करूँ भूत को,
क्या दिया,
क्या सोचा था मेरे बारे में,
क्या रखा था भविष्य के लिए,
क्या अच्छा किया की,भूत को,
मैं याद करूँ ।
देखूंगा अपने भविष्य को,
सोचूंगा अपने भविष्य को,
कर्म करूँगा भविष्य के लिए,
संघर्ष करूँगा जीवन में,
सफल बनूँगा भविष्य में,भूत को क्यों,
मैं याद…
ContinueAdded by akhilesh mishra on April 18, 2013 at 10:30am — 6 Comments
"शुभ प्रभात"
उदय सूर्य हुआ , नभ मंडल में , सब दुनिया मे उजियारा हो ,
मन भाव उठे , संग शब्द सजे , तब मन का दूर अंधियारा हो .
जब गूँज उठे , शंख मंदिर मे , आह्लाद सा…
Added by अशोक कत्याल "अश्क" on April 18, 2013 at 8:00am — 8 Comments
बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह.बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था. लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भींचने लगीं इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई. ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए. वह चुपचाप एक किनारे हो गया.
तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए. बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह…
ContinueAdded by Kavita Verma on April 18, 2013 at 12:00am — 15 Comments
प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,
बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा,
जग को होगा स्वीकार नहीं, ये अपना मिलन मैं शंकित था,
रिश्तों सा कुछ माँगेगा ये प्रमाण हमसे मैं परिचित था,
पर था मुझको विश्वास कभी छोड़ेगा ये जड़ता अपनी,
लेकिन निकला ये क्रूर बहुत दिखला दी निष्ठुरता अपनी,
तुम क्यों विकल्प हो गयी मेरा तुमको ही क्यों चुनना चाहा,
भावुक मन का मैं बोझ उठा कब तक बोलो चलता रहता,
जो गरल बन गया जीवन रस कब तक बोलो पीता…
ContinueAdded by ajay sharma on April 17, 2013 at 11:30pm — 7 Comments
तोहरे दुआरे मात, खड़े दोउ कर जोरे,
अब तो आप आइके, दरस दिखाइए |
तोहरी शरण आया, तेरा ये कपूत मात,
सेवक को मां अपनी, शरण लगाइए |
इक आस तोरी मात, दूजा को सहाई मोर,
अइसे न आप मोरी, सुधि बिसराइए |…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on April 17, 2013 at 10:30pm — 14 Comments
हे लक्ष्मण तू बड़भागा है श्री राम शरण में रहता है ,
ये भरत अभागा पापी है प्रभु से वियोग जो सहता है !
प्रभु इच्छा से ही संभव है प्रभु सेवा का अवसर मिलना ,
हैं पुण्य प्रताप तेरे लक्ष्मण प्रभु सेवा अमृत फल चखना ,
मेरा उर व्यथित होकर के क्षण क्षण ये मुझसे कहता है !
ये भरत अभागा पापी है प्रभु से…
ContinueAdded by shikha kaushik on April 17, 2013 at 10:00pm — 5 Comments
‘‘गजल‘‘
एक प्रयास के फलस्वरूप प्रस्तुत है।
वज्न......1222 1222 1222 1222
हमारी जिन्दगी का जब सलीका सादगी नम है।
यहां बन्दे कयामत हैं तभी तो बन्दगी कम है।।1
सुना है शाम से पहले बनायें पाक दामन को।
अभी तो आपका *दम बस यहां शर्मिन्दगी गम है।।2......*अहंकार
कहो तो हम वजू करके नमाजी बन करें सजदा।
खुदा को गर गुनाही का बताओ गन्दगी *थम है।।3.....*रूकना
बने हम पन्च वक्ता पीर समझाए मुहम्मद को।
तभी तो…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 7:52pm — 9 Comments
कहने से डरते हैं आशिक चाह छुपाए होते हैं
दिल के इक कोने मे अक्सर आह छुपाए होते हैं
दिखते हैं आज़ाद परिंदे पर लौटें दिन ढलते ही
घर औ बच्चों की वो भी परवाह छुपाए होते हैं
हमको है मालूम जमाना छेड़ेगा इन ज़ख़्मों को
प्यारी सी मुस्कान में उनकी थाह छुपाए होते हैं
मजबूरी में जो तुमसे डंडे खाते हैं मूक बने
भूल नहीं वो तूफ़ानी उत्साह छुपाए होते हैं
दर दर भटके खूब युवा थक हार गये चलते चलते
भ्रष्टाचारी मंज़िल की हर राह…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 2:59pm — 8 Comments
Added by बसंत नेमा on April 17, 2013 at 2:00pm — 6 Comments
जो जग में सब को ले आती , जननी महिमा अपरम्पार | |
जग में यदि माँ ही ना होती , चल ना पाता ये संसार | |
जलचर थलचर या नभचर हो , माँ सबकी है पालनहार | |
जननी से ही ये दुनिया है , ना तो सब कुछ है बेकार |… |
Added by Shyam Narain Verma on April 17, 2013 at 11:41am — 3 Comments
तेरे सपनो की कोई औकात नहीं
मेरे सपने हैं बहुत बड़े
मुझसे जब यह बात कही उसने
मेरे दिल ने बस एक बात कही......
एक बार वो लड़की बनकर तो देखे
खुद- ब- खुद समझ जायेगा मेरी मज़बूरी को
क्यों…
Added by Sonam Saini on April 17, 2013 at 10:30am — 8 Comments
हास्य - व्यंग
"अंगुली पर नचाती थी"
मेरे एक दोस्त ने, किस्सा कुछ यूँ सुनाया ,
एक मामले में बीमा अफ़सर ने , घोटाला था पाया |
बात, इस हद तक थी बिगड़ी ,
इसमें लगी, उन्हें साजिश कुछ तगड़ी |
मामला था, कि एक महिला की अंगुली कटी ,
अंगुली थी मानो , हीरे से पटी |
अंगुली का हुआ लाखों भुगतान…
ContinueAdded by अशोक कत्याल "अश्क" on April 17, 2013 at 8:00am — 8 Comments
हक़ीकत की सफेद दीवार पर
तजुर्बों की भीड़ ने,
अहसास नाम की
नन्हीं सी कील ठोक दी थी.
मैं,
अरमानो की इस टेढ़ी-मेढ़ी गली से
यूँ ही गुजर रहा था –
अटपटा सा लगा
तो सोचा,
क्यों न काँच से मढ़े हुए
इस “ मैं “ को
उस पर टाँग दूँ –
गली में भटकने वालों का
इसे तोड़ने और जोड़ने में
शायद मन बहल जाए.
न जाने उस तसवीर के
कितने ही टुकड़े हो गये होंगे,
कितने ही असावधानी तमाशबीन
उन टुकड़ों की नुकीली धार से,
लहू-लुहान हुए होंगे !
मुझे तो अब…
Added by sharadindu mukerji on April 17, 2013 at 2:44am — 13 Comments
फरमाबरदार बनूँ औलाद या शौहर वफादार ,
औरत की नज़र में हर मर्द है बेकार .
करता अदा हर फ़र्ज़ हूँ मक़बूलियत के साथ ,
माँ की करूँ सेवा टहल ,बेगम को दे पगार .
मनसबी रखी रहे बाहर मेरे घर से ,
चौखट पे कदम रखते ही इनकी करो मनुहार .
फैयाज़ी मेरे खून में ,फरहत है फैमिली ,
फरमाइशें पूरी करूँ ,ये फिर भी हैं बेजार .
हमको नवाज़ी ख़ुदा ने मकसूम शख्सियत…
Added by shalini kaushik on April 17, 2013 at 1:36am — 6 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |