१२२२ १२२२ १२
जदल से ऊबती मेरी ग़ज़ल
मुहब्बत ढूँढती मेरी ग़ज़ल
कहाँ वो प्यार उल्फ़त का जहाँ
कलम से पूछती मेरी ग़ज़ल
कदूरत के समंदर चार सू
किनारा ढूँढती मेरी ग़ज़ल
न खिड़की है न रोशनदान है
जिया बिन सूखती मेरी ग़ज़ल
सुलगते तल्खियों के अर्श पे
सितारे गूँथती मेरी ग़ज़ल
लिखे हर बार लफड़े रोज के
कसम से टूटती मेरी ग़ज़ल
अमन का रंग गर मिलता यहाँ
दिलों को लूटती मेरी…
ContinueAdded by rajesh kumari on April 4, 2016 at 9:16am — 26 Comments
Added by vijay nikore on April 3, 2016 at 8:00pm — 12 Comments
(१)
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो नफ़रत करते हैं
बेइंतेहाँ नफ़रत
जिनमें प्रेम करने की बेइंतेहाँ क्षमता होती है
उनके पास नफ़रत करने का समय नहीं होता
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं
(२)
तुम्हारी आँखों के कब्जों ने
मेरे मन के दरवाजे को
तुम्हारे प्यार की चौखट से जोड़ दिया है
इस तरह हमने जाति और धर्म की दीवार…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 3, 2016 at 3:01pm — 18 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:35pm — 7 Comments
Added by amod shrivastav (bindouri) on April 3, 2016 at 1:32pm — 6 Comments
1222 1222 1222 1222
उछल कर केंचुए तल से कभी ऊपर नहीं होते
कि दादुर कूप के यारो कभी बाहर नहीं होते ।1
समर्थन पाक को हासिल हमारे बीच से वरना
कभी कश्मीर पर इतने कड़े तेवर नहीं होते।2
पढ़ाते तुम न जो उनको कि भाई भी फिरंगी है
कभी मासूम हाथो में लिए पत्थर नहीं होते।3
बँटे हम तुम न होते गर यहाँ मजहब विचारों में
कभी जयचंद जाफर तब छिपे भीतर नहीं होते।4
समझ थोड़ा अगर रखती हमारे देश की जनता
हमेशा इस सियासत में भरे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2016 at 9:41am — 14 Comments
Added by Rahila on April 2, 2016 at 8:00pm — 15 Comments
रोटी (लघु कथा )
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ऑफिस में लंच का वक़्त होते ही आज़ाद ने खाना खाने के बाद रोज़ की तरह बाहर आकर एक मिट्टी के बर्तन में पानी भरके पास में बाजरे के दाने डाल दिए ,ताकि चिड़ियाँ भी अपनी भूक और प्यास बुझ सकें | सामने दो कुत्ते भी इंतज़ार में खड़े हुए थे , आज़ाद ने बची हुई रोटी के दो टुकड़े करके उनकी तरफ फेंक दिए | ....... अचानक बड़ा कुत्ता एक टुकड़ा मुंह में दबा कर दूसरे टुकड़े की तरफ बढ़ने लगा , यह देख कर छोटा कुत्ता फ़ौरन आगे बढ़ा ,...... देखते ही देखते दोनों कुत्ते आपस में…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 2, 2016 at 12:16pm — 16 Comments
Added by रामबली गुप्ता on April 2, 2016 at 5:32am — 10 Comments
Added by सूबे सिंह सुजान on April 2, 2016 at 12:08am — 4 Comments
ग़ज़ल (क़ियामत से पहले )
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122 --122 --122 --122
जुदा हो गए हैं वो क़ुरबत से पहले |
क़ियामत उठी है क़ियामत से पहले |
तड़प आह ग़म अश्क वह इम्तहाँ हैं
जो होंगे मुहब्बत कि जन्नत से पहले |
कहीं बाद में हो न अफ़सोस तुम को
अभी सोच लो तरके उल्फ़त से पहले |
ख़ुशी ज़िंदगी भर भला किसने पाई
कई कोहे ग़म हैं मुसर्रत से पहले |
न इतराओ करके तसव्वुर किसी का
अभी ख़्वाब…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on April 1, 2016 at 9:35pm — 20 Comments
नव गीत उसने यूँ ही कहा गीत रचता हूँ मैं आप हैं कि मुझे आजमाने लगे
यह हुनर तो मिला है मुझे जन्म से मांजने में इसे पर जमाने लगे
गीत रचना हँसी- खेल सा कुछ नहीं
यह सभी को मिला शाश्वत दंड सा
टूटता है ह्रदय जब सुमन-दंश से
तब महकता है नव-गीत श्रीखंड सा
ताप तुमने विरह का सहा ही नहीं प्रेम का ग्रन्थ मुझको थमाने लगे
नेह की भावना में प्रखर भक्ति हो
एक पूजा उदय हो उदय शक्ति हो
प्यार-व्यापार हो कामना से रहित
ज्योति सी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 1, 2016 at 8:58pm — 13 Comments
पी लेने दो ... (एक प्रयास एक ग़ज़ल )
२२ २२ २२ २२
इक लम्हा तो जी लेने दो
अब जी भर के पी लेने दो !!१!!
एक कतरा है पैमाने में
खो के हस्ती पी लेने दो !!२!!
आये न कभी अब होश हमें
अब लब अपने सी लेने दो !!३!!
दम घुटता है अब यादों का
अब शब को भी जी लेने दो !!४!!
जाने कैसा तूफां है ये
हाँ मिट कर फिर जी लेने दो !!५!!
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on April 1, 2016 at 5:26pm — 10 Comments
हवा का बहता झोका
तन मन को है छूता
मानवता को दर्शाता
मित्र शत्रु को हर्षाता
कोई भेद नहीं करता
बारिस में वर्षा लाता
भूमि की प्यास बुझाता
दुनिया में प्यार बांटता
प्यार में धोखा खाता
हवा बवंडर बन जाता
अपनी दिशा भटकता
समाज में तबाही लाता
जड़ से दरख्त उखाड़ता
जग से अस्तित्व मिटाता
उसे अंबर तक ले जाता
निर्दोषों को देता सजा
वृक्षो की डाली तोड़ता
छीनता पक्षी का…
ContinueAdded by Ram Ashery on April 1, 2016 at 4:00pm — 3 Comments
छक्का मारा आज (16-11 मात्राएँ)
===========
छ वर्षों से बना हुआ है,जो सबका सरताज
ओबीओ के वेब पेज ने, छक्का मारा आज |
उत्सव हम सब मना रहे है,खिले प्रीति के रंग
काव्य सुधा रस मिले जहा पर, करे वहां सत्संग |
जाल बिछाया था बागी ने,योगराज का यत्न,
बिखेर रहे सौरभ भी खुश्बू,मना रहे सब जश्न |
काव्य गजल लघु कथा सभी में,बना दिया प्रतिमान
ज्ञान पिपासू शरण यहाँ ले, बढ़ा रहे सब ज्ञान |
भेद भाव को भूल भाल कर, करते सद्व्यवहार…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 1, 2016 at 11:30am — 6 Comments
शुभ जन्मदिन ओ.बी.ओ.
जन्मदिन फिर से आया है
नए वसंत का हार लिए
कविता, गीत, मुक्तक, ग़ज़ल के
अनुपम सब उपहार लिए.
(2)
कहीं परिचर्चा, कहीं टिप्पणी
कहीं पर मुक्त विचार मिले
यह वह उपवन है जिसमें
शिक्षा का हर फूल खिले.
(3)
मन की भावना व्यक्त करना ही
शब्दों का खेल है
फिर भी देखो विचित्र विचारों का
यहाँ कैसा मेल है.
(4)
यहाँ अग्रज हैं, हैं अनुज भी
कहीं लेखनी साज़…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on April 1, 2016 at 2:49am — 4 Comments
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