रफ्ता रफ्ता जिंदगी की आरजू जाती रही ।
दरमियाँ तन्हाइयों के मौत कुछ गाती रही ।।
मत कहो वो बेवफा थी आसनाई में मिरे।
वो खयालो में मेरे यूँ रात भर आती रही।।
बारिशें मुमकिन कहाँ जो भीग जाते हम कभी ।
बनके सावन की घटा ता उम्र वो छाती रही ।।
रोज़ रुसवाई की चर्चा फ़िक्र का अपना शबाब।
मैं जलूँगी ख़ाक होने तक कसम खाती रही ।।
फिर समंदर ने गुजारिश की है लहरो से यहां।
साहिलों की तश्नगी पर जुल्म क्यों ढाती रही ।।…
Added by Naveen Mani Tripathi on May 25, 2015 at 1:30am — 15 Comments
स्वप्न-भाव
मुझको सपने याद नहीं रहते
दर्द की कोख से जन्मे एक सपने के सिवा
आत्मीय पहचान का गहरापन ओढ़े
बार-बार लौट आता है वह
पलकों के पीछे के अंधेरों से धीरे-धीरे
जीवन के अंगारी तथ्यों की…
ContinueAdded by vijay nikore on May 24, 2015 at 8:30pm — 16 Comments
मजदूर कह औरत की तौहीन मत कर,
गम हैं बहुत उसे,और गमगीन मत कर।
उसके आँसू लबरेज हैं तीखी कथाओं से,
अब उन्हें देख,ज्यादा नमकीन मत कर।
खूब धुली अबतक कलम उसकी धार में,
लेखनी को देख,ज्यादा हसीन मत कर।
अर्थ की माफिक उसकी हकीकत कब ?
अर्थ वह खुद, खुद को जहीन मत कर।
नूर बख्शती रही वह ज़माने को कबसे,
छोड़ फिकरे,फिर पर्दानशीन मत कर।
'मौलिक व अप्रकाशित'@मनन(01/05/2015)
Added by Manan Kumar singh on May 24, 2015 at 8:00pm — 6 Comments
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
कहूँ,ओबीओ से में क्या चाहता हूँ
ग़ज़ल की सुहानी फ़ज़ा चाहता हूँ
यही आरज़ू लेके आया हूँ यारो
मैं इस मंच को लूटना चाहता हूँ
ये समझो मुझे कुछ भी आता नहीं है
मैं सब कुछ यहाँ सीखना चाहता हूँ
जुड़े भाई'मिथिलेश' ही सब से पहले
मैं उनसे ग़ज़ल की अदा चाहता हूँ
ये'गिरिराज' तो मेरे हम अस्र ठहरे
मैं उनसे भी लेना दुआ चाहता हूँ
बहुत कुछ मुझे उनसे करना है साझा
मैं 'सौरभ' से इक दिन मिला चाहता…
Added by Samar kabeer on May 24, 2015 at 6:30pm — 67 Comments
Added by Nita Kasar on May 24, 2015 at 4:10pm — 6 Comments
गागा ल/गा लगा/लल गागा/ लगा लगा
कुछ और मुझ में जीने की हसरत बढ़ा गया
वादा किया था आने का, सचमुच में आ गया.
.
इक रोज़ मुझ से कहते हुए “ख़ूब लगते हो”
वो अपनी आँख का मुझे काजल लगा गया.
.
काफ़िर अगर जो मैं न बनूँ और क्या बनूँ ?
दिल के हरम को छोड़ के मेरा ख़ुदा गया.
.
उट्ठा मैं हडबड़ा के टटोला इधर उधर,
ख़्वाबों में कौन आया, जगाया, चला गया.
.
पत्ते झडे जो पक के करे उन का सोग कौन
अफ़सोस है खिज़ा को... कि पत्ता हरा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 24, 2015 at 1:30pm — 22 Comments
तू कितनी अजीज है!(ककिता)
कैसे कहें ये दास्ताँ कि तू कितनी अजीज़ है
क्या पता कबआया दिल आजाने की चीज है
उड़ने लगीं हवाएँ जब तेरी जुल्फों से टकरा
तब लगा हर शय तुम्हारे सामने नाचीज है।
दिल को रहें सँभालते दिललगी से डर जिन्हें
लगता हर बंदा जहाँ में हुश्न का मरीज है।
कितनी कलाएँ चाँद की तेरे मुखड़े की बला,
चूमती हो गैर को,देख मुझको तो खीज है।
गड़ गयीं नजरें जहाँ की देख तेरी हर लहर,
भीड़ से रौंदा गया मैं,फट गयी कमीज है।
'मौलिक व अप्रकाशित'
Added by Manan Kumar singh on May 24, 2015 at 11:00am — 3 Comments
एकाकीपन
उदासियां--!
मन के कोनो अतरों में जीती
सुबह -दोपहर-सायं
एकान्त की काकी, एकाकी
क्यों ? न पालती अपने नौलिहाल
रस-छन्द-अलंकारों को
अलसाई तन्द्रा
इन्द्रधनुषी रंग में रॅगती- कोरी चुनरी
ईर्षा,-द्वेष, छल-कपट से टॉकती
अहं के चमकते सितारे
अति निष्ठुर ।
हथेली की उॅगलियों में फॅसी ध्रुम द-िण्डका
रह-रह कर जलती- बुझती.....कुढ़ती
आवारा काले बादलों सा उगलती ....धुआँं
कलेजों के टुकड़ाें की धौंकनी बढ़ जाती…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 24, 2015 at 9:30am — 5 Comments
जीवन के जिस राग का अनुभव में था ताप l
बिन उसके जीवन वृथा, धन-वैभव या शाप ll
भय वश मैं झिझका रहा प्रेम न फटका पास l
गहरी नदिया पास थी अमिट और भी प्यास ll
मैं क्या जानूं उसे जो, छिप कर करता वार l
जीवन-रस अमृत सही, छलक रहा हो सार ll
कुछ तो फूटा है यहाँ, फैला है अनुराग l
बिन बदली भीगा बदन, ठंढी-ठंढी आग ll
यह सुगंध अनुराग की बढ़ा रही है चाह…
ContinueAdded by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on May 24, 2015 at 6:00am — 8 Comments
गाँव में एक नयी बीमारी का प्रकोप फैला और लगातार कुछ बच्चों की मौत हो गयी । एक तरफ जहाँ लोग भयभीत थे वहीँ दूसरी तरफ ठाकुर के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी ।
अगले दिन उसके कोठी के पास अपनी कोठरी में रहने वाली अकेली विधवा को लोगों के हुजूम ने डायन कह कर गाँव से बाहर खदेड़ दिया ।
बच्चों की मौत का सिलसिला तो नहीं रुका लेकिन वो ज़मीन अब ठाकुर की थी ।
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on May 24, 2015 at 2:34am — 12 Comments
Added by Sahil verma on May 23, 2015 at 11:40pm — 2 Comments
गीतिका छंद......गीतिका छ्न्द में 14-12 के क्रम में कुल 26 मात्राएं होती हैं. इस छंद की प्रत्येक पंक्ति की तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं व चौबिसवी मात्राएं अनिवार्य रूप से लघु ही होती हैंं.
मां सरस्वती - वन्दना
शारदे मां वर्ण-व्यंजन में प्रचुर आसक्ति दो।
शब्द-भावों में सहज रस-भक्ति की अभिव्यक्ति दो।।
प्रेम का उपहार नित संवेदना से सिक्त हो।
हर व्यथा-संघर्ष में भी क्रोध मन से रिक्त हो।।1
वृक्ष सा जीवन हमारा हो नदी की भावना।
तृप्त ही…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 23, 2015 at 11:00pm — 4 Comments
धीरे से कहा जो तुमने,
वो मेरे मन ने सुन लिया।
तुम नहीं थे समीप मेरे,
फिर भी मैंने तुम्हें देख लिया।
अधरों पर थी बात ही और,
जिसका अर्थ हृदय ने समझ लिया।
तुम भूले नहीं थे मुझे,फिर भी
तुमने भूलने का-सा अभिनय किया।
है निवास हृदय में मेरा ही,
किन्तु कुछ और ही दिखला दिया।
सोचा करते हो केवल मुझे,
पर काम कुछ और बता दिया।
कहते हो कि कुछ भी नहीं,
पर अधिकार अपना जता दिया।
मेरी समीपता से ही होते हो
विचलित,स्वभाव इसे…
Added by Savitri Rathore on May 23, 2015 at 7:30pm — 3 Comments
Added by kanta roy on May 23, 2015 at 6:36pm — 15 Comments
Added by मनोज अहसास on May 23, 2015 at 4:30pm — 3 Comments
"ठीक है पिताजी। मान लो आप कि मैं नास्तिक हूँ और रीति रिवाज नही मानता।" बेटे ने सजल आँखो से कहा।
"बेटा। एक तुम्हारे ना मानने से समाज के रिवाज खत्म नही हो जायेगें।" व्यथित मन से पिता ने जवाब दिया।
"जानता हूँ नही खत्म होगें। लेकिन इस कठोर परम्परा के लिए हर दिन पेड़ो से काटी जाने वाली लकड़ी के कारण ठूंठ होते गांव में एक नई परम्परा की शुरूआत तो हो सकती है।" कहते हुये बेटे ने रूंधे लेकिन कड़े मन से गांव में पहली बार मगांयी गयी बिजली शव दाह घर की गाडी में अपनी पत्नि के शव को ले जाने की तैयारी…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 4:18pm — 3 Comments
2122 2122 212
चाँदनी बदली को इतना भा गयी
पगली बदली चाँद को ही खा गयी
जिसको रोता देख हमने की मदद
वो ही बिपदा बन मेरे सर आ गयी
हक़ की मैंने की यहाँ है बात जब
गोली इक बन्दूक की दहला गयी
जिस घड़ी लव पे हँसी आयी मेरे
वो उसी पल अश्क से नहला गयी
जान से मारा मगर जब बच गया
आ मेरे घावों को वो सहला गयी
Added by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2015 at 1:43pm — 12 Comments
"नही! मैं नही करती तुमसे प्यार।" यही कहा था मैंने उस दिन इसी जगह पर, ऐसी ही किसी शाम में।
"करने लगोगी, शादी के बाद।" तुम हॅस पड़े थे।
और फिर चंद हफ्तो बाद ही मैं दुल्हन बनी तुम्हारे घर आ गयी। उसके बाद जब भी तुमने ये सवाल किया मैं चुप रही, अब मन की बात नही बोल सकती थी न। और फिर एक दिन निकल गयी तुम्हारे जीवन से। 'उसी के' साथ जिससे 'मैं' प्यार करती थी।............
..........जल्दी ही लौट आयी थी मैं, उसके प्यार का जहर पीकर पर देर हो चुकी थी उसने मुझसे 'मनचाहा' पा कर मुझे छोड़ दिया…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on May 23, 2015 at 10:00am — 10 Comments
"एइ जे ! हाजरा मोड़ जाएगा ? "
"हाँ साहेब, जाएँगे ।"
"किराया कितना ?"
"बीस टाका !"
"गला काटता है रे ...!! "
"नहीं साहेब , ऑटो तो पचास टाका लेगा ।"
"ओ ले शकता है, पेट्रोल से जो चलता है ना ।"
"ठीक है साहेब ...जो मर्जी दे दीजिएगा ।" पेट्रोल का कीमत सब को पता है, खून का कीमत? सोचता रिक्शा खींचने लगा ।
"बस बस ...! यहीं रोको ...!" दस रूपये रख कर चलता बना ।
जेब से दिन भर की कमाई निकाल कर हिसाब लगा रहा था बुधिया... रिक्शा का किराया देने…
ContinueAdded by sunanda jha on May 23, 2015 at 9:30am — 10 Comments
थोड़ा-थोड़ा तुझसे अटकने लगा हूँ,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं भटकने लगा हूँ।
छोटी-छोटी बातें न समझा कभी,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं समझने लगा हूँ।
गरजा हूँ बहुत पहले बातों पे मैं,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं सरसने लगा हूँ।
बदली वह लदी कब से ढोये चला ,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं बरसने लगा हूँ।
शुकूं में था प्यासा,नजर तेरी पी के ,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं तरसने लगा हूँ।
कहाँ-कहाँ अबतक अटकता रहा था,
थोड़ा-थोड़ा अब मैं झटकने लगा हूँ।
भटकता फिरा हूँ मैं ,तेरी नजर में
थोड़ा-थोड़ा अब मैं…
Added by Manan Kumar singh on May 23, 2015 at 7:00am — 3 Comments
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