ग़ज़ल (गुलशन के लिए )
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2122 --2122 --212
जो चुने तिनके नशेमन के लिए ।
जल गए वह रात गुलशन के लिए ।
ख़ार मुरझाते नहीं गुल की तरह
क्यों नहीं चाहूँ मैं दामन के लिए ।
उनको ही शायर समझता है जहाँ
जिन के ईमां बिक गए धन के लिए ।
रास्ते तन्हा कभी कटते नहीं
लाज़मी साथी है जीवन के लिए ।
क्या पता कब दिल पे कर जाए असर
मैं वफ़ा रखता हूँ दुश्मन के लिए…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on May 16, 2016 at 9:28pm — 6 Comments
आवारगी – ( लघुकथा ) -
मुंबई जाने वाली एक्सप्रेस गाडी में टिकट चैक करने पर टी सी गोस्वामी जी को दो लडके बारह तेरह साल की उम्र के बिना टिकट मिले!
"कहां जा रहे हो"!
"शहर"!
"कौनसे शहर"!
"मालूम नहीं, जहां तक गाडी लेजाय"!
"टिकट क्यों नहीं लिया"!
"साब टिकट के पैसे नहीं थे!तीन दिन से कुछ खाया भी नहीं है!गॉव में सूखा और अकाल है!भुखमरी फ़ैली है!सोचा था शहर जाकर कहीं ढावा या होटल में वर्तन धोने का काम कर लेंगे तो रोटी तो मिलती रहेगी"!
"अब बिना…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on May 16, 2016 at 7:06pm — 16 Comments
ग़ज़ल2122-1212-22
अब तो चेहरा गुलाब लगता है
ना पढ़ी वो किताब लगता है
दर से तेरे खुदा असर पाया
रात दिन अब सबाब लगता है
जब से डूबी है सोहनी इसमें
मुझको कातिल चिनाब लगता है
खुश वो दिखता बहुत है अब सबको
जख्म गहरा जनाब लगता है
प्यार के नाम पर करे झगड़ा
सोच के ही इताब लगता है
मुनीश 'तन्हा'....नादौन...9882892447
मौलिक व अप्रकाशित
Added by munish tanha on May 16, 2016 at 6:04pm — 2 Comments
फ़रेबी रात …
छोडिये साहिब !
ये तो बेवक्त
बेवजह ही
ज़मीं खराब करते हैं
आप अपनी अंगुली के पोर
इनसे क्यूं खराब करते हैं
ज़माने के दर्द हैं
क्योँ अपनी रातें
हमारी तन्हाई पे खराब करते हैं
ज़माने की निगाह में
ये नमकीन पानी के अलावा
कुछ भी नहीं
रात की कहानी
ये भोर में गुनगुनायेंगे
आंसू हैं,निर्बल हैं
कुछ दूर तक
आरिजों पे फिसलकर
खुद-ब-खुद ही सूख जायेंगे
हमारे दर्द हैं
हमें ही उठा लेने दीजिये…
Added by Sushil Sarna on May 16, 2016 at 4:31pm — 6 Comments
2122 1212 22
बेअसर हो गईं दवाएँ क्यूँ
काम आईं नहीं दुआएँ क्यूँ
हम ग़लत फ़हमियों में आएँ क्यूँ
दोस्त है वो तो आज़माएँ क्यूँ
आँख तक आँसुओं को लाएँ क्यूँ
ज़ब्त की एहमियत गिराएँ क्यूँ
साँस दर साँस एक ही सरगम
दूसरा गीत गुनगुनाएँ क्यूँ
जिसके सीने में दिल हो पत्थर का
उसकी चौखट पे गिडगिडाएँ क्यूँ
वक्त आने पे जान जाएगा
इश्क़ क्या है उसे बताएँ क्यूँ
हो गईं क्या समाअतें कमज़ोर
कोई सुनता नहीं सदाएँ…
Added by Rahul Dangi Panchal on May 16, 2016 at 12:00am — 12 Comments
Added by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 15, 2016 at 9:57pm — 8 Comments
2122 2122 2122 212
हो बड़े मगरूर अपनी जीत मेरी हार में
हम लुटा देते हैं हस्ती प्रेम के व्यापार में
भूख के चर्चे हुये हैं मुफलिसी की बात है
वांच ली सारी किताबें क्या रखा है सार में
गीत बैठे तक रहे हैं झनझनाहट तार की
क्या जुगलबंदी हुई है राग सुर औ प्यार में
बाँध कर सिर पे कफ़न हैं चल पड़े कुछ…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2016 at 8:30pm — 10 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 15, 2016 at 7:00pm — 6 Comments
Added by kanta roy on May 15, 2016 at 11:39am — 9 Comments
वो लम्हे विरह गीत न बन जाये
लौट आओ साजन सावन के पहले
पपिहा पीऊ पीऊ आवाज लगाये
पेडो पर पड गये झुले
कजरी लागे मोहे सौतन
बदरा की बुन्दे जलये तन मन
लगी है प्रित मेरी अब अशुअन से
लौट आओ साजन सावन के पहले
जोगन न बन जाये कही ये बिरहन
लौट आओ साजन सावन के पहले
मुख मलिन , जैसे काली बदरिया
पनघट पे ना रिझाये कोइ सवरिया
सुनी सुनी पडी है पुरी डगरिया
आंगन सुना, सुना भयॊ मेरे मन का…
ContinueAdded by arunendra mishra on May 14, 2016 at 7:30pm — 3 Comments
"राजू बेटा, क्या कर रहा है! मेरी दवा खत्म हो गयी है! मेरी डायरी ले जा और मेरी दवाइंयॉ ले आ"!
"मॉ, आज क्लब में हम लोग मदर्स डे मना रहे हैं! मुझे क्लब का सैक्रेटरी होने के नाते मदर्स डे के ऊपर एक भाषण देना है! अपनी सोसाइटी में काम करने वाली बाइयों एवम अन्य महिला कर्मचारियों को वस्त्र, मिठाईयां और दबाईयां वितरण करनी हैं! अतःउसी की रूप रेखा तैयार कर रहा हूं! आज तो बहुत मुश्किल है! "!
“तो बेटा ऐसा कर कि उसी महिलाओं की लिस्ट में मेरा भी नाम लिख ले”!
मौलिक व अप्रकाशित
Added by TEJ VEER SINGH on May 14, 2016 at 1:00pm — 12 Comments
अंधेरे में रोशनी,
जीवन का सहारा ।
शाम को बिछड़ती,
जब सुबह निहारा ।
इधर जब पौ फटी,
तो देखो लो नजारा।
क्या जानवर, पक्षी,
सब दिखे बे सहारा।
कोई रहम न करता ,
क्या कानून निराला ।
भूखे इंसान की रोटी,
बेटी हजम कर डाला।
रोशनी की आस दिखती,
परंपरा का डर दे डाला ।
तन मन पर हजारों पीड़ा,
सहन करके भी जी लेता ।
अपनों का पेट भरता ,
अतीत को भूल जाता ।
मानवता को कलंकित…
ContinueAdded by Ram Ashery on May 14, 2016 at 1:00pm — 3 Comments
2222 2222 2222 222
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यौवन भर देखी है हमने कैसी कैसी छाँव घनी
कहने से भी मन डरता अब मिलती थोड़ी छाँव घनी।1
धूप अगर होती राहों में तो साया भी मिल जाता
लेकिन अपने पथ में यारो मंजिल तक थी छाँव घनी।2
हमको तो आदत सहने की सर्दी गर्मी बरखा सब
दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी।3
छाया अच्छी तो है लेकिन बढ़ने से जीवन जो रोके
कड़ी धूप से भी बदतर है यारो ऐसी छाँव घनी।4
फसलों…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2016 at 10:51am — 6 Comments
Added by Meena Pathak on May 14, 2016 at 8:54am — 3 Comments
Added by Rahila on May 13, 2016 at 4:24pm — 14 Comments
आज सबके मन का उल्लास देखते ही बनता था। सभी के हाथ में पिचकारी व रंग की बाल्टी थी जिससे वे सभी राहगीर और परिचितों को सराबोर कर रहे थे। रास्ते से गुजरने वाले उधर जाने से डर रहे थे कि जाने कब बच्चों की पार्टी उन्हें देख ले और उन पर रंगों की बौछार कर दे। सभी प्रसन्न चित हो घूम रहे थे। रामू ने देखा कि एक आदमी तेजी से उस तरफ चला आ रहा है। वह बगैर इधर-उधर देखे चला आ रहा था लगता था कि उसे बड़ी जल्दी थी। वह जब नजदीक आया तो रामू ने अपने हथियार संभाले और प्रहार की तैयारी की निशाना लगा ही रहा था कि तब…
ContinueAdded by indravidyavachaspatitiwari on May 13, 2016 at 6:00am — 3 Comments
ख्वाब-ऐ-बशर ...
आज फिर
किसी का चूल्हा
उदास ही
बिन जले सो गया।
आज फिर
सांझ के दामन पे
भूख लिख गया कोई।
आज फिर
पेट की आग
झूठी आशा की बर्फ से
ठंडी कर
सो गया कोई।
आज फिर
कटोरे से
सिक्कों की आवाज़
रूठी रही।
आज फिर
खारा जल
पकी दाढ़ी को
धोता रहा।
आज फिर
निराशा का कफ़न ओढ़े
बिन साँसों के
सो गया कोई।
आज फिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 12, 2016 at 2:47pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 12, 2016 at 9:53am — 6 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 12, 2016 at 8:46am — 5 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on May 11, 2016 at 8:57pm — 7 Comments
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