Added by Poonam Shukla on May 7, 2014 at 12:17pm — 10 Comments
१२२२ १२२२ १२२
जमाना अब दीवाना हो रहा है
खुदी से ही बेगाना हो रहा है
जला डाला था जिसने घर हमारा
वही अब आशियाना हो रहा है
जो हमने…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on May 7, 2014 at 11:00am — 20 Comments
" सच! बहुत ही अच्छे इंसान थे बल्लू भैया !! क्षेत्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर होते हुए उन्होंने सभी की बहुत मदद की , जो कोई भी पहचान वाला आकर अपनी समस्या बतलाता , उसे कैसे न कैसे बैंक से आर्थिक मदद दिलवा ही देते थे. आज कई लोग तो उन्हीं की वजह से आबाद हुए बैठे है"
" हाँ भाई..! उनकी माँ के मर जाने के बाद आज उनका अपना कोई भी तो नहीं. देखा न ! पिछले वर्ष जब उनकी माँ की मृत्यु हुई थी तो बल्लू भैया के साथ-साथ सैकड़ों लोग सिर मुंडवाने को आगे आ गये और कहने लगे कि यह हम…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 7, 2014 at 10:58am — 40 Comments
फ़ाएलुन / फ़ाएलुन / फ़ाएलुन / फ़ाएलुन |
212 // 212 // 212 // 212 |
मोतिओं की तरह जगमगाते रहो |
बुलबुलों की तरह चहचहाते… |
Added by SALIM RAZA REWA on May 6, 2014 at 10:00pm — 19 Comments
आदमी में आदमीयत है नहीं
इससे बढ़कर कोई दहशत है नहीं
रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर
इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं
बीज जो बोया वही उग पायेगा
इस जमीं की वो हकीकत है नहीं
काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ
जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं
सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा
ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं
अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे
अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं
भुवन…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on May 6, 2014 at 9:30pm — 14 Comments
नैन समर्पण ....
नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 6, 2014 at 5:30pm — 18 Comments
रोज की है बादलों से छेड़खानी आपने
और गढ़ ली प्यास की कोई कहानी आपने
***
चाह रखते हो भगीरथ सब कहें इतिहास में
पर न खुद से एक दरिया भी बहानी आपने
***
बात करते गाँव की पर कब उसे तरजीह दी
गाँव को तम दे सजाई राजधानी आपने
***
आपको दरिया मिली हर प्यास को सच है मगर
खोद कूआँ कब निकाला यार पानी आपने
***
लाख दुख मैं मानता हूँ आपने झेले मगर
झोपड़ी का दुख न झेला …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2014 at 12:00pm — 14 Comments
माली ऐसा चाहिए, किसलय को दे प्यार
खरपतवारहि छांटके, कलियन देहि निखार.
नित उठ देखे बाग़ को, नैना रहे निहार
सिंचन, खुरपी चाहिए, मन में करे विचार
हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,
दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार
कर्म सबहि तो करत हैं, गर न करे प्रचार
लोग न जानहि पात हैं, जाने बस करतार
दीपक ऐसा चाहिए, घर में करे प्रकाश
तन मन जारे आपनो, किन्तु नेह की आश.
उजियारा लेते…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 11:00am — 20 Comments
किसका साया ……
किसका साया मुझे जीने कि सज़ा देता है
कफ़स में आरज़ू की .रूह को क़ज़ा देता है
पेशानी पे बहारों की .अलम लिखने वाली
कौन मेरी आँखों को नमी की क़बा देता है
थी जब तलक साथ तो ज़िंदगी हसीन थी
अब दर्दे हिज़्र मुझे .हर लम्हा रुला देता है
मेरे ख्वाबों के शबिस्तानों में ..रह्ने वाली
बेवफा लौ मेँ पतंगा .खुद को जला देता है
बेवजह मेरे अश्कों की ..वज़ह बनने वाली
कौन मुझे कफ़न मेँ साँसों की दुआ देता…
Added by Sushil Sarna on May 5, 2014 at 5:36pm — 14 Comments
तुझे अपनी ज़िंदगी में इस तरह शामिल कर लूँ मैं,
कि तू मेरे पास न भी हो तो तेरा दम भर लूँ मैं।।
हर घड़ी रहता है इन आँखों को इन्तज़ार तेरा,
जो तू आये तो तुझे अपनी आँखों में क़ैद कर लूँ मैं।
तेरे तसव्वुर में डूबी हैं तन्हाइयाँ और ज़िंदगी मेरी,
ग़र तुझे पा लूँ तो अपनी हर हसरत पूरी कर लूँ मैं।
तेरी बाँहों में आज पिघल जाने को जी चाहता है,
तेरे सीने से लगकर हमेशा को आँखें बंद कर लूँ मैं। …
Added by Savitri Rathore on May 5, 2014 at 4:26pm — 13 Comments
गोधूली में
बहुत ही कोमल स्वर में
दर्द से भरे हुए,
सूरज जब डूब रहा होता है
मैं जानती हूँ ज़िंदगी!
तुम मेरे लिये गाती हो.
छत से सूखे कपड़े उठाती हुई
बेचैन
मैं ठिठक जाती हूँ.
कुछ पल, कुछ अनबूझे सवाल
मंडराते हैं मेरे आस पास
चिड़ियों की तरह
जो दाना चुगकर, गाना गाकर
लौट जाते हैं अपने घोंसले में.
सांझ
रह जाती है कुँवारी
रात घिर आती है ज़मीं पर
गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध
और-
पसर जाता है सरसों के खेत…
Added by coontee mukerji on May 5, 2014 at 2:00pm — 10 Comments
(बर्फ सी उजली व नीली ऑखों वाली नील मैम को यह कहानी नज़र करता हूं। जो तन व मन से खूबसूरत तो हैं ही, और जिनकी खूबसूरत उंगलियां पत्थरों मे भी जान ड़ाल देती हैं। जिन्हें आज भी कामशेत पूणे की वादियों में देखा जा सकता है। उन्ही की जिंदगी से यह कहानी चुरायी है।’)
आज भी - दिवाकर अपने सातों रंग समेट मेज पे पसरा है । पहाड़ खिला है । हरे, भूरे, मटमैले रंगो मे अपनी पूरी भव्यता के साथ । रोज सा। मानो सातो रंग छिटक दिये गये हों एक एक कर। इंद्र धनुष…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 4, 2014 at 1:30pm — 6 Comments
1212 2212 22 1212
भले नहीं रिश्ता तेरा अब मेरे हाल से
निकाल दूँ कैसे तुझे अपने खयाल से
फकीर जैसा हो गया हूँ तेरे इश्क में
बचा नहीं अब तक कोई भी हुस्न जाल से
कोई नहीं क्या हद कोई इस इन्तजार की
गुजर रहे है दिन महीने जैसे साल से
रकीब की महफिल को जब तूने सजा दिया
तो हो गया सबको अचम्भा इस कमाल से
कहाँ कहाँ ढूँढू तुझे दुनिया की भीड में
जहाँ परेशाँ हैँ यहाँ अब तो सवाल से
उमेश…
ContinueAdded by umesh katara on May 4, 2014 at 12:40pm — 10 Comments
दूर गगन के टिम-टिम तारें,
लुक छिप कर सब करें इशारे।
धरती पर क्षण भंगुर जीवन,
जैसे निश में जुगुनू हारे।।
स्वार्थी मानव लोभ सताए,
दम्भ ज्ञान से मन बहलाए।
अहं द्वेष माया के बन्धन,
जैसे मृग कश्तूरी धारे।।1
देश-गॉंव की बातें करके,
जाति-धर्म को आड़े करके।
स्वार्थ फलित विष तन में बोते,
जैसे राजनीति भिनसारे।।2
भव सागर में कश्ती सारी,
तूफां संग बवन्डर भारी।
उमड़-घुमड़ कर सॉंझ सबेरे,
जैसे वर्षा-सूखा…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 10:53am — 7 Comments
नवगीत...आजाद शुका खूंखार हुआ
छत्तीस गढ़ के दो राहे पर,
तेरा मेरा साथ हुआ।
एक मात्र माशा रत्ती का
जमकर सोलह श्रृंगार हुआ।।
एक-एक मिलकर जो ग्यारह,
वह दो नम्बर व्यवहार करे।
तीन तिकड़मी सी मॅंहगाई,
जीवन भर आघात करे।
तीन-पॉंच मन राजनीति का,
आजाद शुका खूंखार हुआ।।1
चार वेद-ॠतु-वर्ण व्यवस्था,
चारों खाने चित्त हुए जब।
पंच तत्व कण के परमेश्वर-
छिन्न--िभन्न रिश्ते करते अब।
छवों शस्त्र के सात रंग-रस,
स्वर…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 3, 2014 at 9:40pm — 7 Comments
गौरैया
माँ ! आँगन में अपने
अब क्यों नहीं आती गौरैया
शाम सवेरे चीं चीं करती
अब क्यों नहीं गाती गौरैया
फुदक- फुदक कर चुग्गा चुगती
पास जाओ तो उड़ जाती
कभी खिड़की, कभी मुंडेर पर
अब क्यों नहीं दिखती गौरैया
माँ बतला दो मुझ को
कहाँ खोगई गौरैया ?
विकास के इस दौर में,बेटा !
मानव ने देखा स्वार्थ सुनेरा
काटे पेड़ और जंगल सारे
और छीना पंछी का रैन बसेरा
रुठ गई हम से अब हरियाली
पत्थर का…
ContinueAdded by Maheshwari Kaneri on May 3, 2014 at 7:39pm — 10 Comments
क्रिकेट की मंडी भारत है, जहाँ हर क्रिकेटर बिक जाय।
लग जाती है जिसकी बोली, खुश होकर “याहू” चिल्लाय।।
पशु जैसे नीलाम हो गये, धन के आगे सब मजबूर।
क्रेता इन सब का मालिक है, और सभी बँधुवा मजदूर॥
अच्छा है मौजूद नहीं थे, जहाँ हुए थे सब नीलाम।
ठोक बजाकर देखे जाते, नस्ल कौन सी, क्या है दाम।।
इज्ज़त से बढ़कर पैसा है, जो देता ऐश्वर्य तमाम।
खुश दिखते हैं बिकने वाले, नहीं बिके तो, नींद हराम॥
खेल अज़ब है…
ContinueAdded by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on May 3, 2014 at 7:30pm — 12 Comments
ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं
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आज पूजा जा रहा हूँ ।
दूर दूर से आ कर
नत मस्तक हो हज़ारों हज़ारों भक्त
दुआयें मांगते हैं , चढ़ावे चढ़ाते हैं ,
अपनी अपनी मुरादों के लिये ।
उनकी अटूट ,गहरी आस्थाओं ने, विश्वासों ने
सच में ज़िन्दा कर दिया है
मेरे अंदर , ईश्वरत्व ,
वो ईश्वरत्व
जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है ।
पूरी हो रहीं है मुरादें भी,
पर ,
कैसे कहूँ मै शुक्रिया उन…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 3, 2014 at 6:43pm — 19 Comments
स्त्री की ये दुनिया
बहुत सिमटी हुई
बहुत कोमल
ठीक जैसे आईना
जरा सी खरोंच काफी
उसके स्वरूप को
निमिष भर में वीभत्स करने
और
वो खरोंच धीरे-धीरे बढ़ी
तो
आईना चटक जाए
ये अनुभूत सत्य है ,
उस चटक को कई बार
महसूस किया
आईने के सौ -सौ टुकडो को
अश्रू युक्त सिसकियां सुनाते
उम्मीदों के नीड़ को
थरथरा धूलि धूसरित देख
रोम-रोम काँप उठा था
इसीलिए कहती हूँ
लौट जाओ आवारा बादल
किसी के आशियाने…
Added by Deepika Dwivedi on May 3, 2014 at 6:07pm — 9 Comments
मेरे अजीज दोस्त, अमर मै अकबर है तू ।
मै तो तेरे साथ, साथ तो हरपल है तू ।।
रहना हमे सचेत, लोग कुछ हमें न भाये ।
हिन्दू मुस्लिम राग, छेड़ हम को भरमाये ।।
मेरे घर के खीर, सिवइयां तेरे घर के ।
खाते हैं हम साथ, बैठकर तो जी भर के ।।
इस भोजन का स्वाद, लोग वो जान न पाये ।
बैर बीज जो रोप, पेड़ दुश्मनी का लगाये ।। रहना हमे सचेत ....
यह तो भारत देश, लगे उपवन फूलों का ।
माली न बने चोर, कष्ट दे जो शूलों का ।।
रखना हमको ध्यान, बांट वो हमें न…
Added by रमेश कुमार चौहान on May 3, 2014 at 6:00pm — 6 Comments
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