“सुनो ! अमर से बात हुई क्या ?”
“नहीं, क्या बात करूँ , कुछ सुनता ही नहीं ,अब तो लगता है दिन में भी पीने लगा है ?”
“पर अमर की माँ मैं तो समझ ही नहीं पा रहा की वो ऐसा क्यों करने लग गया ? बाहर तो लोग उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते !”
“अरे आप भी ना , जानकर भी अनजान क्यों बन जातें हैं ? वही उस लड़की का चक्कर है सारा, मैं कहे देती हूँ, ये लड़का हमारी परम्परा को संस्कारों को मिट्टी में मिला देगा एक दिन, इकलौता ना होता तो कसम से इसका गला दबा देती !”
“कौन, अरे वो बेबी ,…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on May 18, 2015 at 8:44pm — 9 Comments
वो कहना चाहती थी कि वो देवी नही है वो तो मुन्नी है । उसे रानो और शन्नो के साथ खेलने जाना था बाहर ।
"ये लोग चुनरी ओढाय उसे कहाँ बिठाय दिये हैं । माँ , मै देवी नही रे , तेरी मुन्नी हूँ .. काहे ना चिन्हत मोरा के । "
दर्शन की रेलम पेल , मां -बापू चढावे के रकम की खनक समेटने में लगे हैं । गाँव के माइक वाले ,पंडित ,हलवाई सबके भाग सँवर गये ।
"अब तो देवी का समाधिस्थ होना परम जरूरी हो गया है ।" -बिसेसर गहरी सोच में डूबा हुआ था ।
मौलिक और अप्रकाशित
कान्ता राॅय
भोपाल
Added by kanta roy on May 18, 2015 at 5:30pm — 2 Comments
“ओय! रितु.. अब बता कैसी लग रही हूँ...?” सोनिया ने पूरा ट्रडिशनल श्रृंगार करके, अपनी फ्रेंड से पूछा
“अरे! सोनिया. तू तो बिलकुल अबला लग रही है यार. भारतीय नारी..हा हा हा हा”
“हाँ! यार..अबला ही तो दिखना होगा. ऐसा मेरे वकील का कहना है, ताकि कल कोर्ट में जज सहानुभूति के तौर पर जल्दी से मेंटेनेंस बना देगा तो मुझे अपने हसबेंड के घिसे-पिटे विचारों और बूढ़े सास-ससुर की खांसी-खुजली से छुटकारा मिल जाएगा.”
"उफ्फ!! बड़ी दूर की सोच होती है यार, वकीलों की.. अब चल ये पकड़ तेरे जींस-टॉप,…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 18, 2015 at 9:30am — 26 Comments
तेरी चाहत में
सारी उम्र गलाना अच्छा लगा !
ना पा कर भी
तुझे चाहना अच्छा लगा !
लिख लिख के अशआर
तुझे सुनाना अच्छा लगा !
सच कहूँ तो मुझे
ये जीने का बहाना अच्छा लगा !!
दुप्पट्टा खिसका कर
चाँद की झलक दिखाना अच्छा लगा !
पास से निकली तो
हलके से मुड़ के तेरा मुस्कुराना अच्छा लगा !
बदली से निकल कर आज
चाँद का सामने आना अच्छा लगा !!
मिलने नहीं आयी मगर
रात सपनों में तेरा आना अच्छा लगा !
ला इलाज ही सही मगर
प्रेम का ये…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 18, 2015 at 8:04am — 13 Comments
" हेलो , पापा , आप समय से अपनी दवा खा लेना "| बेटी के शब्द सुनकर उन्होंने सुकून की सांस ली | अभी कल ही उसने फोन नहीं किया तो एकदम परेशान हो गए और वापस आते ही पूरा लेक्चर दे डाला |
आज भी हड़बड़ी में वो भूल ही गयी थी पर एक बुज़ुर्ग को सामने देखते ही याद आ गया | पता तो उसको भी है और पापा को भी है , फोन तो सिर्फ बहाना है ये बताने के लिए कि आज भी वो सकुशल पहुँच गयी है |
मौलिक एवम अप्रकाशित
Added by विनय कुमार on May 18, 2015 at 2:04am — 20 Comments
“हैलो माँ ! कैसी हो ? खाना खा लिया ? भाभी का क्या हाल है?” माला ने फ़ोन पर अपनी माँ से सवालों की झड़ी लगा दी.
“कहाँ खाया है बेटा? एक तू है जो रोज़ फ़ोन करके आधा-एक घंटा बात कर मन हल्का कर देती है. वर्ना तेरी भाभी को तो हमसे कोई मतलब ही नहीं. बस लगी रहती है अपने कमरे में.. फ़ोन पर.. जब खाना बन जायेगा तो खा ही लूँगी..”, माँ का शिकायत भरे लहजे में जबाब आया.
“ऐसे थोडे ही चलेगा, माँ !“
तभी अन्दर के कमरे से माला की सास की आवाज आयी, “ बहूऽऽ, दोपहर होने को आयी, सुबह का नाश्ता भी…
ContinueAdded by Shubhranshu Pandey on May 17, 2015 at 11:30pm — 27 Comments
Added by दिनेश कुमार on May 17, 2015 at 9:34pm — 22 Comments
Added by babita choubey shakti on May 17, 2015 at 5:54pm — 3 Comments
२१२२/१२१२/२२ (११२)
जब भी लफ़्ज़ों का काफ़िला निकले
ये दुआ है, फ़कत दुआ निकले.
.
कोई ऐसा भी फ़लसफ़ा निकले
ख़ामुशी का भी तर्जुमा निकले.
.
सुब’ह ने फिर से खोल ली आँखें
देखिये आज क्या नया निकले.
.
हम कि मंज़िल जिसे समझते हैं
क्या पता वो भी रास्ता निकले.
.
लुत्फ़ जीने का कुछ रहा ही नहीं
क्या हो गर मौत बे-मज़ा निकले?
.
रोज़ चलता हूँ मैं, मेरी जानिब
रोज़ ख़ुद से ही फ़ासला निकले.
.
गर है कामिल^,…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2015 at 5:42pm — 25 Comments
न स्याम भई न श्वेत भयी …
न स्याम भई न श्वेत भयी
जब काया मिट के रेत भयी
लौ मिली जब ईश की लौ से
भौतिक आशा निस्तेज भयी
यूँ रंग बिरंगे सारे रिश्ते
जीवन में सौ बार मिले
मोल जीव ने तब समझा
जब सुख छाया निर्मूल भयी
सब थे साथी इस काया के
पर मन बृंदाबन सूना था
अंश मिला जब अपने अंश से
तब तृषा जीवन की तृप्त भयी
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 17, 2015 at 12:30pm — 16 Comments
Added by Samar kabeer on May 17, 2015 at 11:19am — 39 Comments
" साहब , पइसा जमा करना है , पर्ची नाहीं दिखत है | मिल ज़ात त बड़ा मेहरबानी होत ", डरते डरते उसने कहा |
" अब केतना पर्ची छपवायें हम लोग , पता नाहीं कहा चुरा ले जाते हैं सब ", बड़बड़ाते और घूरते हुए हरिराम स्टेशनरी रूम में घुसे | थोड़ी देर बाद जमा पर्ची लाकर उसके सामने पटक दिया और बोले " बस एक ही लेना , कुछ भी नहीं छोड़ते लोग यहाँ "|
पूरे गाँव को पता था , हरिराम के व्यवहार के बारे में लेकिन सब झेल जाते थे | एक ही तो शाखा थी बैंक की वहां और सबको वहीँ जाना होता था | एकाध ने मैनेजर से शिकायत की…
Added by विनय कुमार on May 17, 2015 at 2:48am — 15 Comments
Added by मनोज अहसास on May 16, 2015 at 11:30pm — 8 Comments
हमें ईश से ढेर सारे गिले |
नहीं अब सहारा कहीं पे मिले |
प्रभो शक्ति जितना हमें है दिया |
बड़ी मुश्किलों से सहारा किया ||
प्रकृति की पड़ी मार सबने सहा |
महल स्वप्न का देखते ही ढहा |
छिना छत्र माता पिता का कहाँ ?
बची फ़िक्र भूखी बहन का यहाँ ||
अभी गति हमारी बड़ी दीन है |
बिना नीर जैसे दिखे मीन है |
प्रकृति के कहर से बहन भी डरी |
बड़ी मुश्किलों से डगर है भरी ||
मौलिक व…
ContinueAdded by SHARAD SINGH "VINOD" on May 16, 2015 at 7:47pm — 2 Comments
(१)
दो पहाड़ियों को सिर्फ़ पुल ही नहीं जोड़ते
खाई भी जोड़ती है
- गीत चतुर्वेदी
कोई किसी से कितनी नफ़रत कर सकता है? जब नफ़रत ज़्यादा बढ़ जाती है तो आदमी अपने दुश्मन को मरने भी नहीं देता क्योंकि मौत तो दुश्मन को ख़त्म करने का सबसे आसान विकल्प है। शुरू शुरू में जब मेरी नफ़रत इस स्तर तक नहीं पहुँची थी, मैं अक्सर उसकी मृत्यु की कामना करता था। मंगलवार को मैं नियमित रूप से पिताजी के साथ हनुमान मंदिर में प्रसाद चढ़ाने जाता था। प्रसाद पुजारी को देने के…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 16, 2015 at 6:29pm — 14 Comments
तुम चढ़ान हो जीवन की
मैं उतरान पे आ गया हूँ
चलो मिलकर समतल बना लें
हर अनुभूति
हर तत्व की
मिलकर औसत निकालें
कहीं तुम में उछाल होगा
कहीं मुझमें गहन बहाव होगा
चलो जीवन के चिंतन को
मिलकर माध्य सार बनालें
कभी तुम पर्वत शिखर पर हिम होगी
मैं ढलता सूरज होकर भी
तुम्हें जल जल कर जाऊँगा
चलो मिलकर जीवन को
अमृत धार बनालें
कभी तुम भैरवी सा राग होगी
मैं तुम्हारे सुर के पृष्ठाधार में ताल दूंगा
चलो मिलकर जीवन काया को
समझौतों का एक मधुर…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on May 16, 2015 at 5:50pm — 6 Comments
चुने कंट............शक्ति छंद
दिये से दिये को जलाते चलें।
बढी आग दिल की बुझाते चलें।।
रहे प्रेम का जोश-जज्बा सदा।
चुने कंट सत्यम गहें सर्वदा।।1
नहीं दीन कोई न मजबूर हों।
सभी शाह मन के बड़े शूर हों।।
न कामी न मत्सर सहज प्यार हो।
बहन-भ्रात जैसा मिलन सार हो।।2
यहां सिंधु भव का बड़ा क्रूर है।
लिए तेज सूरज मगर सूर है।।
यहाँ तम मिटा कर खड़ा नूर जो।
बुलाता उन्हे पास, हैं दूर जो।।3
भिगोते रहे अश्रु…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 16, 2015 at 5:00pm — 2 Comments
२१२ २१२२ १२२२
गम नही मुझको तो फ़र्द होने पर (फ़र्द = अकेला)
दिल का पर क्या करूं मर्ज होने पर
उनको है नाज गर बर्क होने पर
मुझको भी है गुमां गर्द होने पर
चारगर तुम नहीं ना सही माना
जह्र ही दो पिला दर्द होने पर
अपनी हस्ती में है गम शराबाना
जायगा जिस्म के सर्द होने पर
डायरी दिल की ना रख खुली हरदम
शेर लिख जाऊँगा तर्ज होने पर
तान रक्खी है जिसने तेरी…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 16, 2015 at 10:30am — 20 Comments
11212 11212 11212 11212
कभी इक तवील सी राह में लगी धूप सी मुझे ज़िन्दगी
कभी शबनमी सी मिली सहर जिसे देख के मिली ताज़गी
कभी शब मिली सजी चाँदनी , रहा चाँद का भी उजास, पर
कभी एक बेवा की ज़िन्दगी सी रही है रात में सादगी
कभी हसरतों के महल बने, कभी ख़ंडरों का था सिलसिला
कभी मंज़िलें मिली सामने , कभी चार सू मिली ख़स्तगी
कभी यार भी लगे गैर से , कभी दुश्मनों से वफ़ा मिली
कभी रोशनी चुभी बे क़दर , तो दवा बनी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 16, 2015 at 9:30am — 17 Comments
सिंदूर की लालिमा (अंतिम भाग )........ गतांक से आगे.......
मेरा मन सिर्फ मनु को सोचता था हर पल सिर्फ मनु की ख़ुशी देखता था हर घड़ी अन्जान थी मैं उन दर्द की राहों से जिन राहों से मेरा प्यार चलकर मुझ तक आया था ! मेरे लिये तो मनु का प्यार और मेरा मनु पर अटूट विस्वास ही कभी भोर की निद्रा, साँझ का आलस और रात्रि का सूरज, तो कभी एक नायिका का प्रेमी, जो उसे हँसाता है, रिझाता है और इश्क़ फरमाता है, कभी दुनियाभर की समझदारी की बातें कर दुनिया को अपने…
ContinueAdded by sunita dohare on May 16, 2015 at 1:30am — 2 Comments
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