32 वर्णो का डमरू दण्डक ‘‘ल सब‘‘ अर्थात इसके बत्तीसों वर्ण लघु होते है।
‘‘कमल नमन कर तमस शमन कर, उजस उरन भर हरष सकल नर।
अपजस हर मन सब रस तन भर, कलश सगर सम हृदय तरल कर।।
हलधर मत कह जन मन भय डर, भग कर लठ लय तड़ तड़ तब मर।
हलधर जय जय भगवन छत धर, मन भय हर-हर भजन करत तर।।‘‘
भावार्थ- कमल आदित्य के समान ही समस्त तिमिर को नष्ट करने वाला, हृदयों मे उल्लास, ओज और सभी प्राणियों में हर्ष का संचार करके दुःखों और सारी विकृतियों को दूर करने वाला है। यह शुभ…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 8, 2013 at 8:00am — 12 Comments
ईश्वर ने चाहे मुझको
खुशियाँ कम दे दी ,
मगर अच्छा किया कि
हाथ में मेरे कलम दे दी .
जब भी आँसू बहे आँखों से
शब्द बन के उतर जाते .
होती न गर कलम हाथ में
कैसे ग़म ये निकल पाते ,
थोड़ी सी मिली खुशियों में
ज़हर बनके घुल जाते .
हम घुट-घुट कर कबके
यहाँ पर मर जाते ,
इतना सारा ज़हर पीके हम
भला कैसे फिर जी पाते .
इसी कलम ने ज़हर निकाला
जब-जब दर्द ने डंक मारे ,
इसी कलम की…
Added by POOJA AGARWAL on May 7, 2013 at 9:30pm — 8 Comments
यह रोज़ ही की बात है
जब रात गए,
शबनम की बरसात हुआ करती है-
पात पात रात भर
वात बहा करती है,
चोरी छिपे मैंने भी देखा है
दोनों को,
जब रात से प्रभात की
मुलाक़ात हुआ करती है -
मैं तो बस दर्शक हूँ
यह एक तसवीर है.
(2)
रात की लज्जा,
चहारदीवारी के साये में,
मेरे आंगन में छुपे
कलियों के आंचल में
सिमट-सिमट जाती है -
लेकिन वह सूरज
अनायास मेरे घर की
प्राचीर को लांघ…
ContinueAdded by sharadindu mukerji on May 7, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
मेरे प्राणेश-
यह आखिरी शाम,
और वह भी ,बीत गयी।
तुम्हारी वह, खामोशी,
आज फिर से, जीत गयी।
कुछ भी तो मुझे न मिला,
न राधा का अभिमान,
न मीरा का सतीत्व।
फिर कैसे मिलता,
मेरे यौवन को व्यक्तित्व।
क्योंकि सागर की, बाहों में हीं,
नदी पाती है अस्तित्व।
काश! तुम समझ…
Added by Kundan Kumar Singh on May 7, 2013 at 9:00pm — 9 Comments
माँ
Added by Usha Taneja on May 7, 2013 at 8:30pm — 14 Comments
क्या करें,
इतनी मुश्किलें हैं फिर भी
उसकी महफ़िल में जाकर मुझको
गिडगिडाना नहीं भाता.....
वो जो चापलूसों से घिरे रहता है
वो जो नित नए रंग-रूप धरता है
वो जो सिर्फ हुक्म दिया करता है
वो जो यातनाएँ दे के हंसता है
मैंने चुन ली हैं सजा की राहें
क्योंकि मुझको हर इक चौखट पे
सर झुकाना नहीं आता...
उसके दरबार में रौनक रहती
उसके चारों तरफ सिपाही हैं
हर कोई उसकी इक नज़र का मुरीद
उसके नज़दीक…
ContinueAdded by anwar suhail on May 7, 2013 at 8:21pm — 7 Comments
कालाबाजारी ,भ्रष्टाचार , दरिंदगी ,व्यभिचार ,
बेशर्मी ,बेहूदगी ,बेचारगी ,बेरहमी ,बेहयाई ,
आतंकवाद ,जातिवाद ,भाई-भतीजावाद ,परिवारवाद ,
सब राजनीति में रास्ते हैं ,
पर क्या करें ,सरकार की मजबूरी है ,इन रास्तों से गुजरना पड़ता है .
हमें पता है पडौसी ,निर्दोष जनता में आतंक फैला रहा है ,…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on May 7, 2013 at 6:39pm — 5 Comments
माँ का पल्लू
मेरा छोटा भाई हमेशा मेरी माँ का पल्लू थामे रहता .माँ जहाँ भी जाती वह पल्लू पकड़े साथ साथ चलता . कभी कभी तो माँ को जब बाथरूम जाना होता तो और मुश्किल में पड़ जाती. कभी माँ खीज कर कहती – छोड़ो पल्लू बेटा ! इतना अपशकुन क्यों करते हो ? अगर मैं मर गयी तो क्या करोगे ?
अबोध बालक तो कुछ नहीं समझ पाया कि मृत्यु क्या…
Added by coontee mukerji on May 7, 2013 at 6:00pm — 9 Comments
माँ ... श्रध्दांजलि !
(पावन माँ दिवस पर)
मैं प्राण-स्वपन तुम्हारा, तुमने सर्जन किया था मेरा,
कभी मैंने जन्म लिया था तुम्हारे पावन-अंदर,…
ContinueAdded by vijay nikore on May 7, 2013 at 3:30pm — 26 Comments
बहरे हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222
..............................................................
हुआ पैदा जो अंधा वो खड़ा राहें दिखाता है।
फटी आवाजवाला रोज अब गाने सुनाता…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 7, 2013 at 1:11pm — 23 Comments
बस पांच मिनट का पड़ाव
Added by rajesh kumari on May 7, 2013 at 11:58am — 18 Comments
तपती धुप धूप में
छाँव हो तुम
मेरे लिए
बहुत खास हो तुम
तुम्हारे एहसास भर से
दूर हो जाती है हैं मेरी…
Added by Sonam Saini on May 7, 2013 at 11:00am — 22 Comments
तमाम विसंगतियों के विरोध में एक ताज़ा ग़ज़ल .....
दिल से दिल के बीच जब नज़दीकियाँ आने लगीं
फैसले को ‘खाप’ की कुछ पगड़ियाँ आने लगीं
किसको फुर्सत है भला, वो ख़्वाब देखे चाँद का
अब सभी के ख़्वाब में जब रोटियाँ आने लगीं
आरियाँ…
Added by वीनस केसरी on May 6, 2013 at 9:30pm — 52 Comments
॥ मेरा साथ निभाना तुम ॥
मै बसंत हूँ , मेरी बहार बन जाना तुम ।
मै सूरज बनूँ तुम्हारा, मेरी किरण बन जाना तुम । …
ContinueAdded by बसंत नेमा on May 6, 2013 at 12:30pm — 9 Comments
Added by यशोदा दिग्विजय अग्रवाल on May 6, 2013 at 11:00am — 13 Comments
सांप नाथ -नाग नाथ उवाच
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सुनो सांप नाथ जी
कहो नागनाथ जी
बिजली आती है
हाँ जी आती है
कैसे आती है
खून बहे रक्त नली में
तारे टिमके जैसे जमी पर
प्रेमियों को भाती है
बिजली आती है
हाँ जी आती है
सुनो सांप नाथ जी
कहो नागनाथ जी
--------------------
न आये तो क्या हो करते
रात गुजर कैसे करते
जनता त्राहि त्राहि करती
खेती किसानी करते…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 6, 2013 at 10:04am — 14 Comments
कहता है नर सदियों से
‘’ हे नारी !
पड़े सागर तल में
सीप में जो मोती द्वय
या – तुम्हारे दो नयन हैं ! .
तुम रूपजाल हो या –
तुम्हारे अंग – अंग में
प्रकृति अटकी हुई है .’’
नारी कहती है
हे नर !
‘’ मैं ही अक्ष हूँ .
मैं ही आँसू
मोती भी
और सीप भी हूँ -
तुम्हारे लिये ही
मैं रोती हूँ, हँसती हूँ,
सजती हूँ, गाती हूँ
समझो न मुझे तुम रूपजाल
मैं प्रकृति की छाया हूँ
मही मेरी जननी है ‘’
( नर-नारी…
Added by coontee mukerji on May 6, 2013 at 10:00am — 8 Comments
!!! मेरे घर आई एक नन्हीं परी !!!
(आ0 गनेशजी सर जी को सादर शुभकामनाओ सहित समर्पित।)
चतुर्दश चन्द्र रूप सुखं। दिव्य तेज मुखारविदं।।
कर क्रीडति किन किन धुनं। किलकत मंद मंद हॅसं।।
सुख पाय तके छवि बलं। रवि रश्मि रति सरस मनं।।
जय हो श्री गनेशजी शुभं। जय हो श्री गनेशजी शुभं।।
के0पी0सत्यमध् मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 6, 2013 at 9:15am — 4 Comments
जिंदगी के सफर में हजारों- लाखों मुसाफिर मिलते है. इन मुसाफिरों में ही आपके दोस्त छिपे होते है. इनमें से जिनकी बातें आपको प्रभावित करती है या आपकी बातें जिनको प्रभावित करती है, वह आपके दोस्त बन जाते है. बाकी फिर वैसे ही छूट जाते है अजनबियों की तरह. यहां पर गौर करने की बात है कि आपके दोस्त भले ही अजनबियों की तरह हजारों-लाखों की भीड़ में छिपे होते है, पर आपका दुश्मन आपके दोस्तों में ही छिपा हुआ होता है. बस जरूरत होती है उसको पहचानने की. अनजाने लोग आपके दोस्त तो हो सकते है, पर आपके दुश्मन नहीं.…
ContinueAdded by Harish Bhatt on May 5, 2013 at 8:44pm — 9 Comments
एक बीते वक़्त सा
कुछ भूल जाना अच्छा होगा
जिसके दामन में दुःख के सिवा
मन को भिगोते
गलतफहमियो के घने बादल,
शिकायतों की बिजलियां
गरजते - गडगडाते काले
शक के भरे बरसने को
बेकाबू सवालों के मेघ
और कुछ डरावनी रातें होंगी;
भूल जाना कुछ कड़वे शब्द
उनकी तपिश आँखों को
और कभी जो दिल को
जलाती रही ओस से भीगी,
ठंडी रातों में भी और
दर्द देती रही मेरे शांत पड़े
कानो को जो अकसर,
दर्द से कराह…
ContinueAdded by Priyanka singh on May 5, 2013 at 5:23pm — 27 Comments
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