अपरिचय, संवेदना है, भावना है ,
उसे क्या जो पुष्प से पत्थर बना है !
मिले उनको हर्ष के बादल घनेरे ,
एक बंजर-व्योम तो हम पर तना है !
चित्र है उत्कीर्ण कोई चित्त पर ,
ठहर जाती जहां जाकर कल्पना है !
सूर्य की ये रश्मियाँ बंधक बनीं हैं
एक अंधी कोठरी मे ठहरना है !
रास्ते अब स्वयं ही थकने लगे हैं
पूछता गंतव्य मन क्यों अनमना है ?
_______________________प्रो. विश्वम्भर…
Added by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 30, 2013 at 10:57pm — 22 Comments
कैलकुलेटर
‘’सुनती हो बेगम! सोने का दाम मार्केट में बहुत गिर गया है’’
‘’तो मैं क्या करूँ मियाँ?’’
‘’अजी बेगम जल्दी से तैयार हो जाओ ,मार्केट चलते हैं आज तुम्हें सोने से लाद दूँगा’’
‘’क्या.....?’’ राधा मुँह बाये हाथ में करछी पकड़े पति के पास आयी जो बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा था.
‘’क्या कहा आपने? मुझे सोने से लादोगे? एक जोड़े कंगन के लिये तो सारी जिंदगी तरस गयी.’’ इतना कहकर राधा अपनी नाराज़गी जताती हुई दुबारा रसोईघर में चली गयी.
महिपाल पत्नी को मनाने के लिये उसके…
Added by coontee mukerji on June 30, 2013 at 9:24pm — 16 Comments
जब तू था तो सूनापन नही था
इच्छा थी पर अरमान नही था
अश्कों में भिगो लिया दामन मैंने
प्यासी रहूंगी फिर भी सोचा नही था...
तेरी यादों से दिन बनते थे
और जुदाई से काली रातें
तेरे प्यार से ज़िन्दगी बनी थी
और बेवफाई से उखड़ी सांसे...
तेरे गम से मेरा गम जुदा कब था
तू नही समझा बस यही गम था
छीन लिया समय से पहले रब ने
जुदाई का गम क्या पहले कम था...
"मौलिक व…
ContinueAdded by Aarti Sharma on June 30, 2013 at 7:30pm — 16 Comments
जल बिन सब बेजान हैं ,धरती कहे पुकार
बरखा देखो आ गई ,लेकर सुखद फुहार
घाव धरा के भर गए , ग्रीष्म हो गया लुप्त
जल फैला चहुँ ओर है ,धरा हो गई तृप्त
बरखा लेकर आ गई ,राहत और सुकून
दिल्ली भी अब बन गई ,देख देहरादून…
Added by Sarita Bhatia on June 30, 2013 at 6:00pm — 9 Comments
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 30, 2013 at 12:30pm — 15 Comments
चाँद सितारों संग, महकी बहारों संग,
देखो चुपके से रात चली है ।
गहरी खामोशी में, ऐसी मदहोशी में ,
दिल में फिर तेरी बात चली है ।
चाँद का जब दीदार करूँ तो ।
दिल के झरोखे से प्यार करूँ तो ।
यादों की महकी बारात चली है ।
पूछो ना काटी कैसे तनहाई ।
याद जो आये वो तेरी जुदाई ।
आँखों से मेरे बरसात चली है ।
थाम के बाहें बाहों में ऐसे ।
चले दो राही राहों में ऐसे ।
जैसे संग सारी कायनात चली है ।
प्यार…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on June 30, 2013 at 12:00pm — 15 Comments
वेदियों सा तप्त मन अपने लिए
कर रहा सारे हवन अपने लिए
अपनेपन को छोड़ मतलब साधते
दोस्त का होता चयन अपने लिए
मूढ़ मन में मैल ले गंगा नहा
कर रहा है आचमन अपने लिए
तितलियों को हांक कर भंवरे कहें
फूल कलियाँ हैं चमन अपने लिए
देश की है फ़िक्र किस इंसान को
हर कहीं चिंतन मनन अपने लिए
हिंदियों की नाक ऊँची कर रहा
पश्चिमी का ला चलन अपने लिए
आँख दिखलाता है वो माँ बाप को
संस्कृति का कर हनन अपने लिए…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 30, 2013 at 10:30am — 6 Comments
तेरे अधरों की मुस्कान,
भरती मेरे तन में प्राण.
जीवन की ऊर्जा हो तुम,
साँसों की सरगम की तान.
मैं सीप तुम मेरा मोती ,
मैं दीपक तुम मेरी ज्योति.
कभी पूर्ण न मैं हो पाता ,
संग मेरे जो…
ContinueAdded by Pradeep Bahuguna Darpan on June 30, 2013 at 9:00am — 20 Comments
कल रविवार था ...
फिर उदास, सूनी शाम थी ...
देख रहा था
हल्की बारिश जो
सब कुछ भिगो रही थी
सामने पंछी रोशनदान
मे छिपने का प्रयास कर रहे थे
हवाएँ तेज चल रहीं थी
जो आँधी, रुकने के बाद भी
आँधी चलने का एहसास करा रही थी
मैं खड़ा अपने आपको खोज रहा था
सब कुछ फैला हुआ, तितर बितर था
अतीत के पन्ने अब भी
हवा मे तैर रहे थे
कुछ गीले, कुछ फटे
कुछ बिखरे पड़े थे
सब कुछ ठहर गया…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on June 30, 2013 at 8:00am — 10 Comments
शौक है , अजीब लगता है,
दर्द कोई रकीब लगता है !
रोज तरसा है मुस्कुराने को
चेहरे-चेहरा गरीब लगता है !
ये गम हैं कि छोड़ते ही…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on June 29, 2013 at 7:30pm — 11 Comments
वैसे तो वक्त किसी के लिए ठहरता नहीं,
उसे रोके बिना दिल हमारा भी भरता नहीं|
आने वाले पलों को खुशामदीद आज करलें
यूं ही तो आने वाला वक्त बदलता नहीं|
क़दमों की गर्मी से पहाड़ को बना दें पानी
रंगीनियों में तो बर्फ भी पिघलता नहीं|…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on June 29, 2013 at 6:00pm — 10 Comments
Added by Atendra Kumar Singh "Ravi" on June 29, 2013 at 2:00pm — 4 Comments
मैंने देखा है ज़िन्दगी को पास से
Added by Devendra Pandey on June 29, 2013 at 12:29pm — 12 Comments
Added by Anurag Singh "rishi" on June 29, 2013 at 12:13pm — 13 Comments
जाने क्यो उदास है
मेरा मन
जाने क्यों निराश है
मेरा मन
जाने क्यों हताश है
मेरा मन
अधरों से फूटते नही बोल
घुटन सी होती है इस मन में
चुभन सी होती है इस तन में
चंचलता से भरा मेरा मन
जाने क्यों उदास है
लगता है ऐसे कोई नही
अपना आस-पास है
अपनों को खोजता ये मन
लिए तड़पन, लिए लगन
आँसूओं की धारा में
गुम-सुम हुआ मेरा मन
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 29, 2013 at 11:13am — 15 Comments
होवे हृदयाघात यदि, नाड़ी में अवरोध ।
पर नदियाँ बाँधी गईं, बिना यथोचित शोध ।
बिना यथोचित शोध, इड़ा पिंगला सुषुम्ना ।
रहे त्रिसोता बाँध, होय क्यों जीवन गुम ना ।
अंधाधुंध विकास, खड़ी प्रायश्चित रोवे ।
भौतिक सुख की ललक, तबाही निश्चित होवे ।।
त्रिसोता = गंगा जी
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 29, 2013 at 10:50am — 9 Comments
रिश्ता....
ख्वाब नहीं है
ये मेरा ख्याल नहीं है
ये तेरा सवाल नहीं है
रिश्ता .....
किसी के लिए चाँद है …
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on June 28, 2013 at 10:00pm — 17 Comments
मत की कीमत मत लगा, जब विपदा आसन्न ।
आहत राहत चाहते, दे मुट्ठी भर अन्न ॥
आहत राहत-नीति से, रह रह रहा कराह |
अधिकारी सत्ता-तहत, रिश्वत रहे उगाह ॥
घोर-विपत आसन्न है, सकल देश है सन्न ।
सहमत क्यूँ नेता नहीं, सारा क्षेत्र विपन्न ॥
नेता रह मत भूल में, मत-रहमत अनमोल |
ले जहमत मतलब बिना, मत शामत से तोल ॥
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on June 28, 2013 at 4:44pm — 8 Comments
रूठकर गयी थी सुबह मुझसे
Added by Sumit Naithani on June 28, 2013 at 3:30pm — 16 Comments
प्यासी धरती पर
Added by Sonam Saini on June 28, 2013 at 1:11pm — 12 Comments
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