अब भगवान पैदा कर...
मेरा कहना अगर मानो तो,
एक इन्सान पैदा कर.
सम्हाले डोलती नैया,
बना बलवान पैदा कर.
तुम्हारे ही इशारे पर,
सभी ये दृश्य आते हैं.
हमारी प्रार्थना तुमसे…
ContinueAdded by R N Tiwari on June 9, 2011 at 8:00am — 2 Comments
Added by Chandraprakash Jha on June 8, 2011 at 10:00pm — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on June 8, 2011 at 2:44pm — 1 Comment
Added by rajkumar sahu on June 8, 2011 at 1:34am — 1 Comment
Added by shalini kaushik on June 8, 2011 at 12:14am — 1 Comment
Added by Noorain Ansari on June 7, 2011 at 11:00am — No Comments
मे ये नही जानता शायरी क्या होती है, ग़ज़ल क्या होती है. गीत क्या होता है. सिर्फ़ मे वो लिखता हू जो मे महसूस करता हू. अपने एहसासो को कागज पर लिख के पोस्ट कर रहा हू. तकनीकी ग़लतियो के लिए माफी चाहता हू और आदरणीय योगराज जी, अंबरीषजी,धर्मेन्द्र जी और तिलक राज जी,गणेश जी से ये मेरी गुज़ारिश है की, वो अपने कीमती समय का कुछ पल मेरी इन पंक्तियो को दे कर तकनीकी ग़लतिया मुझे बताए.....इसके अलावा हिन्दी लिखने के Tool से मे पूरी तरीके से परिचित नही हू इसलिए जानकर् भी अपनी…
ContinueAdded by Tapan Dubey on June 6, 2011 at 3:00pm — 2 Comments
Added by डॉ. नमन दत्त on June 6, 2011 at 9:30am — 6 Comments
मेरे अग्रज कवि केदारनाथ अग्रवाल का व्यक्तित्व
पत्रों के आइने में ॰॰॰॰
[महेंद्रभटनागर]
महेंद्र के नाम केदार की पाती
संदर्भ : …
ContinueAdded by MAHENDRA BHATNAGAR on June 6, 2011 at 9:30am — No Comments
उनको हरजाई बताऊँ तो बताऊँ कैसे !
Added by Hilal Badayuni on June 6, 2011 at 1:41am — 9 Comments
Added by Saurabh Pandey on June 6, 2011 at 1:20am — 6 Comments
भ्रष्टाचार के विरोध में हम भी खड़े हैं इस छोटी सी कविता के साथ
विरोध कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
कि कायम रहे
अणुओं का कंपन
अणुओं का कंपन कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
विद्रोह का तापमान
वरना ठंढा होते होते
हर पदार्थ
अंततः विरोध करना बंद कर देता है
और बन जाता है अतिचालक
उसके बाद
मनमर्जी से बहती है बिजली
बिना कोई नुकसान झेले
अनंत काल तक
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on June 5, 2011 at 10:19pm — 4 Comments
मंज़र खींचातानी का
अनशन है बाबा जी का
राहुल बाबा गायब हैं
लगता सब फीका फीका
गायब है चालीस खरब
सवा अरब की कंट्री का
काला धन आये वापस
मुंह काला हो दोषी का
दस मारो और एक गिनो
नशा हिरन हो लोभी का
Added by वीनस केसरी on June 4, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
गजल-
सोच समझकर कदम उठाना।
कहीं ऐसा न हो पडे पछताना।।
यह दुनियां इतनी गोल है दोस्तों।
कोई न यहां अटल ठहराना।।
जिसने गम को खा लिया।
उसे क्या खाना औ खिलाना।।
जिनको कोई समझ नहीं हैं।
मुश्किल हैं उनको समझाना।।
हुक्म देना आसाँ होता हैं लेकिन।
मुश्किल हैं करना औ करवाना।।
अभी आज कल या बरसो बाद।
आखिर इक दिन सबको जाना।।
नसीब में लिखा ही मिलता हैं।
सबको यहां पे आबो-दाना।।
हम तो तेरे हो…
Added by nemichandpuniyachandan on June 4, 2011 at 12:30pm — No Comments
Added by योगराज प्रभाकर on June 4, 2011 at 8:30am — 5 Comments
गाँधीवादी गुण्डों ने ही लूट लिया गाँधी का देश
जात पात मजहब पंथों में फूट लिया गाँधी का देश॥
रघुपति राघव राजाराम मंदिर के कारण बदनाम,
ईश्वर या अल्लाह का नाम अब करवाता कत्ले-आम।
सत्य प्रेम की पगडंडी से छूट लिया गाँधी का देश॥
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई बन बैठे हैं आज कसाई,
चंगुल में हैवानों के मानवता बकरी सी आयी।
कर हलाल हैं रहे हाय! अब टूट लिया गाँधी का देश ।।
गाँधी जी का धर्म अहिंसा, इनका है…
ContinueAdded by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on June 3, 2011 at 8:28am — 2 Comments
गजल
आंखों में उल्फत का अंजन लगाईए।
टूटते हुए रिश्तों पे बंधन लगाईए।।
गर जज्बातो में नफरत की बू आये तो।
ऐसे सवालातों पे मंजन लगाईए।।
जब कभी जुल्मो-सितम हद से गुजर जाये।
तब अम्न के लिये जानो-तन लगाईए।।
लेने के बदले कुछ देना भी सिखिये।
हर जगह मुफ्त का ना चंदन लगाईए।।
जब रंजों-गम से दिल चंदन बेकरार हो जाये।
तब अंतस में धुन अलख निरंजन लगाईए।।
Added by nemichandpuniyachandan on June 2, 2011 at 12:00pm — 3 Comments
Added by neeraj tripathi on June 2, 2011 at 11:48am — 5 Comments
Added by Pallav Pancholi on June 2, 2011 at 12:30am — 2 Comments
Added by Neet Giri on June 1, 2011 at 6:30pm — 4 Comments
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