इन आँसुओं का कर्ज चुकाने आजा,
बिखरी हूँ मैं यूँ टूटकर उठाने आजा...
दिल से लगाके मुझको, यूँ न दूर कर तू
इक बार फिर तू मुझको सताने आजा....
अब लौट आ तू फिर से, इश्क की गली में
करके गया जो वादे निभाने आजा...
जो वेबजह है दर्मियाँ, उसको भुला दे
इक बार फिर से दिल को चुराने आजा...
सोती नहीं अब रात भर, तेरी फिकर में
इक चैन की तू नींद सुलाने आजा...
थमने लगीं साँसे मेरी, तेरे बिना अब
अरमान है तू दिल से लगाने…
Added by रक्षिता सिंह on June 6, 2018 at 12:39pm — 8 Comments
अंतर्मन में जाने कितने,
ज्वालामुखी फटे.
दूरी रही सुखों से अपनी,
दुख ही रहे सटे.
झोंपड़ियों में बुलडोजर के,
जब-तब घाव सहे.
अरमानों की जली चिताएँ,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 6, 2018 at 9:29am — 9 Comments
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
बहुत दिनों था मुन्तज़िर फिर इन्तिज़ार जल गया।
मेरे तवील हिज्र में विसाल-ए-यार जल गया।
मेरी शिकस्त की ख़बर नफ़स नफ़स में रच गई,
था जिसमें ज़िक्र फ़तह का वो इश्तेहार जल गया।
मैं इंतिख़ाब-ए-शमअ में ज़रा सा मुख़्तलिफ़ सा हूँ,
मेरे ज़रा से नुक़्स से मेरा दयार जल गया।
मुझे ये पैकर-ए-शरर दिया था कैसे चाक ने,
मुझे तो सोज़ ही मिला मेरा कुम्हार जल गया।
पनाह दी थी जिसने कितने रहरवों को…
ContinueAdded by रोहिताश्व मिश्रा on June 5, 2018 at 1:00pm — 10 Comments
जूठन - लघुकथा –
रघुबीर लगभग चालीस का होने जा रहा था पर अभी तक कुँआरा था। इकलौता बेटा था इसलिये माँ को शादी की बहुत चिंता रहती थी। बाप दो साल पहले मर चुका था| माँ अपने स्तर पर बहुत कोशिश कर चुकी थी लेकिन बेटे की छोटी सी नौकरी के कारण बात नहीं बनती थी।
उसकी पड़ोसन ने बताया कि आज अपनी जाति वालों का सामूहिक विवाह सम्मेलन हो रहा है, अतः बेटे को बुला लो,शायद बात बन जाये।
माँ बेटा समय पर तैयार होकर सम्मेलन में शामिल हो गये। रघुबीर देखने में गोरा चिट्टा स्मार्ट बंदा था। इसलिये…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 5, 2018 at 11:33am — 22 Comments
मैं इस देश का नेता हूँ, आपसे कुछ ना लेता हूं।
ख्वाब चाँद के दिखलाता हूँ, विभु स्वप्न भेंट कर देता हूं
मैं इस देश का नेता हूँ, आपसे कुछ ना लेता हूं।
पंचवर्ष सेवा में रहकर, सौ वर्ष के ख्वाब दिखाता हूँ
मैं इस देश का नेता हूँ, आपसे कुछ ना लेता हूं।…
Added by Rohit Dubey "योद्धा " on June 5, 2018 at 11:00am — 4 Comments
2122 2122 2122 212
मुद्दतों के बाद उल्फ़त में इज़ाफ़त सी लगी
। आज फिर उसकी अदा मुझको इनायत सी लगी ।।
हुस्न में बसता है रब यह बात राहत सी लगी ।
आप पर ठहरी नज़र कुछ तो इबादत सी लगी ।।
क़त्ल का तंजीम से जारी हुआ फ़तवा मगर
। हौसलों से जिंदगी अब तक सलामत सी लगी ।।
बारहा लिखता रहा जो ख़त में सारी तुहमतें ।
उम्र भर की आशिक़ी उसको शिक़ायत सी लगी ।।
मुस्कुरा कर और फिर परदे में जाना आपका ।
बस यही हरकत…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 4, 2018 at 11:03pm — 8 Comments
क्या बरखा जब कृषि सुखानी।
ना जाने कब धरती हिल जानी।।
सूख न जाए आंखों का पानी।,
सपने हो गए अच्छे दिन,
याद आ रही नानी.
अबहूँ न आए, कब आएंगे
या करते प्रतीक्षा खप जाएँगे?
इन्तजार करते करते, हो गई कितनी देर
कब आएँगे पता नहीं, कैसे दिनन के फेर?
रामराज सपना हुआ, वादे अभी हैं बाकी
कह अमृत अब पानी भी, नहीं पिलावे साकी!
अब तक तो रखी सब ने, इस सिक्के की टेक
चलनी जितनी चली चवन्नी, फेंक…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on June 4, 2018 at 5:00pm — No Comments
जल्दी चलो माँ,जल्दी चलो बावा,
देर होती हैं,चलो ना,बुआ-चाचा,
बन ठनकर हंसते-मुस्कराते जाते,
परीक्षा फल सुनने को अकुलाते,
मैदान में परिजन संग बच्चों का तांता कतार बद्ध थे,
विराजमान शिक्षकों के माथे पर बल पड़े हुए थे,…
ContinueAdded by babitagupta on June 3, 2018 at 7:33pm — 5 Comments
कलावती से आज मैं पहली बार अकेले नेहरु पार्क में मिल रहा था |इससे पहले उससे विज्ञान मेले में मिला था |वहीं पर उससे मुलकात हुई थी |उसका माडल मेरे माडल के साथ ही था |वह हमेशा खोई-खोई और उदास लगती थी |मैंने ही उससे बात शुरू की और पत्नी द्वारा बनाया गया टिफ़िन शेयर किया |लाख कोशिशों के बाद वह ज़्यादा नहीं खुली पर बात-बात में पता चला की वह अपने पति से अलग अपने बेटे को लेकर मायके में रहती है |उसकी नौकरी पक्की नहीं है और वह अपने और बेटे के भविष्य को लेकर काफ़ी परेशान है |विज्ञान मेले के आखिरी दिन मैंने…
ContinueAdded by somesh kumar on June 3, 2018 at 5:30pm — No Comments
अरकान फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
क्या सबब था,किसलिये दुनिया से मैं डरता रहा
सर झुका कर जिसने जो भी कह दिया करता रहा
सी दिया था मेरे होटों को ज़माने ने मगर
ज़िक्र सुब्ह-ओ-शाम तेरा फिर भी मैं करता रहा
ज़िन्दगी के रास्ते में ज़ख़्म जो मुझको मिले
चुपके चुपके प्यार के मरहम से वो भरता रहा
जाते जाते वो मुझे कह कर गये थे इसलिये
लम्हा लम्हा ज़िन्दगी जीता रहा मरता रहा
सादगी की मैंने ये क़ीमत चुकाई उम्र…
Added by santosh khirwadkar on June 3, 2018 at 4:34pm — 12 Comments
कुछ लोग दार जी के पास चुपचाप बैठे,अफ़सोस जता रहे थे। छोटी बहू हर आने वाले को चाय पानी प्रदान कर रही थी। इस मोहल्ले में दार जी ही पुराने रहने वाले हैं,बाकी लोग यहाँ दंगों के बाद आ कर अस्थाई तौर से रह रहे हैं। मगर मानवता के रिश्ते से अब ये लोग यहाँ आ कर बैठे हैं।
"बाऊ जी अब कैसा महसूस कर रहे हो" राम प्रकाश ने पास बैठते हुए कहा।
“किस के बारे”, दार जी ने कहा।…
Added by Mohan Begowal on June 3, 2018 at 12:00am — 4 Comments
पहाड़ की चोटी पर बैठा हुआ वह युवक अभी भी एंटीने से जूझ रहा था।
आज से कई साल पहले जब गाँव का सबसे ज़्यादा पढ़ा-लिखा युवक शहर से पहली बार टीवी लेकर आया था तो सब लोग बेहद ख़ुश थे। नारियल, अगरबत्ती और फूल-माला से स्वागत किया था सबने उसका। मगर जल्द ही, ‘‘ये टीवी ख़राब है क्या? इसमें हमारी ख़बर तो आती ही नहीं।’’ बुज़ुर्ग की बात से उस युवक के साथ-साथ बाकी गाँव वालों का भी माथा ठनका। ‘‘अरे हाँ! इसमें तो सिर्फ़ शहरों की ही ख़बरें आती हैं, गाँव का तो कहीं कोई नाम ही नहीं।’’ सबने तय किया कि शहर…
ContinueAdded by Mahendra Kumar on June 2, 2018 at 6:00pm — 6 Comments
चाहत की परवाज अलग है
उसका हर अंदाज अलग है
ताजमहल की क्या है’ जरूरत
अपनी ये मुमताज अलग है
सुन पाते हैं केवल हम ही
अपने दिल का साज अलग है
मन की बातें मन में…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2018 at 4:00pm — 9 Comments
जब भी सुरेन्द्र बात करता हौसला उसकी बातों से अकसर झलकता, काम करवाने के लिए जब भी कोई उसके दफ्तर में आता उसी का हो कर रह जाता |
मुश्किल पलों में भी वह मजाक को साथ नहीं छोड़ने देता, और जिन्दगी का हिस्सा बना लिया |
जब सुरेन्द्र सफर में होता तो ऐसा कभी न होता कि सफर करते हुए कोई आकह्त महसूस होती हो उसे, वह तो साथ बैठे से ऐसी बात शुरू करता कि सफर खत्म होने तक वह शख्स उसी का हो जाता |
मगर आज ऐसा नहीं था, बस उस के लिए अनजान सफर में जा रही थी, जिस पर वह सवार था |
जो कुछ…
Added by Mohan Begowal on June 1, 2018 at 8:00pm — 2 Comments
अम्बर को पाती भिजवाई,
व्याकुल होकर धरती ने.
सभी जरूरी संसाधन दे,
नर को जीना सिखलाया.
मर्यादा का पालन लेकिन,
कभी कहाँ वह कर पाया.
अपने मन की बात बताई,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 1, 2018 at 4:01pm — 14 Comments
श्री लता को अचानक ऑय सी यू में भर्ती कराने की ख़बर सुन रानी अपने दफ़्तर से निकल, आनन् फ़ानन में कुछ इस तरह गाड़ी चलाते हुए अस्पताल की तरफ लपकी, जैसे वो अपनी बहन को आखिरी बार देखने जा रही हो। श्री लता कमरा नंबर १० जो की ऑय सी यू वार्ड था में भर्ती थी। दर और घबराहट के साथ रीना रिसेप्शन पर पहुंची और पहुँचते ही उसने डॉक्टर की सुध ली।
मैडम, डॉक्टर साहेब तो जा चुके हैं, आप कल आइएगा।
ये सुनना था कि रानी का कलेजा मुँह को आ गया। मेरी बहन अभी कुछ समय पहले ही ऑय सी यू में भर्ती हुई है, श्री…
ContinueAdded by Usha on June 1, 2018 at 9:34am — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |