आज
बहुत दिनों बाद आया गांव
अपना गांव
जहां हुआ करते थे
महुआ, कटहल, आम
एक बाग भी।
खेलते थे गुल्ली डंडा
कभी कभी क्रिकेट भी।
अब वहां बाग नहीं…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on June 6, 2013 at 10:32pm — 40 Comments
दान का माहात्म्य
मैं बचपन से अपनी माँ के साथ प्रवचन संकीर्तन में जाती थी . वहाँ दान की महिमा खूब गहराई से
समझायी जाती थी . मुझे ईश्वर भक्तों पर अपार श्रद्धा होती . बड़ी होकर जब मैं कमाने योग्य हुई तब अपने वेतन के पैसों का एक हिस्सा दान कर देती . बहुत जल्द ही मैं मशहूर हो गयी . आये दिन भक्तों का मेला मेरे घर में लगा रहता . उनकी सेवा कर मैं धन्य हो जाती .
मेरे गाँव में ISKCON ने भव्य मंदिर के साथ एक आश्रम बनाया . उसमें बहुत सारे भक्त रहने लगे . वहाँ दान की प्रक्रिया खूब चलती .…
Added by coontee mukerji on June 6, 2013 at 10:05pm — 8 Comments
Added by भावना तिवारी on June 6, 2013 at 7:30pm — 15 Comments
भक्ति में शक्ति है1 ईश्वर की भक्ति जीवन का अंतिम लक्ष्य है1 योग साधना है1योग हो या भक्ति दोनों ईश्वर तक पहुँचने का माध्यम हैं1योग हमारे शरीर, मन –मस्तिष्क को स्वस्थ रखता है और इस साधना के बगैर भक्ति संभव नही1 हम बहुत सौभाग्यशाली हैं कि हमें मनुष्य जीवन मिला1 हम जन्म से लेकर मृत्यु तक सांसारिक बंधनों में लिप्त रहतें हैं1 बल्कि हमारा उदेश्य तो सांसारिकता को छोड़कर ईश्वरीय अराधनाओं में होना चाहिए वही तो सच्चा ज्ञान है1जब तक हम शिक्षित नही होंगे पहचानेगें कैसे कि सच क्या है? हमें इस जीवन का…
ContinueAdded by Pragya Srivastava on June 6, 2013 at 5:35pm — 5 Comments
आज बढ़ सकते हैं दाम
हाय राम, आम तो आम
बढ़ सकते हैं गुठलियों के भी दाम
ये महँगाई सुरसा के मुहँ की तरह
बढ़ती ही जा रही है
अपनी हरकतों से बाज नही आ रही है
सरकारी नीति यही समझा रही है
जनसंख्या वृद्धि को रोकने मे
महँगाई बहुत बढ़ी भूमिका निभा रही है
भूखे मरेंगे लोग
तरसेगें पीने के लिए जल
आज नही तो कल
जनसंख्या वृद्धि जैसी समस्या का
अपने आप निकल जाएगा हल
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on June 6, 2013 at 5:12pm — 12 Comments
बेटियों पे कब तलक बस यूँ ही लिखते जाओगे,
कब हकीकत की जमीं पर आ के उन्हें बचाओगे...
क्यों नहीं उठते हाथ और क्यों न करते सर कलम,
और कितनी दामिनीयों के लिए मोमबतियां जलाओगे...
आज कहते हो की प्यारी होती है सब बेटियां,
खुद मगर कब बेटों की चाह से निजात पाओगे...
जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर,
जिस्म मानव का है पर कब इंसानी रूह लाओगे...
छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां,
इस जमीं को कब उसके चलने लायक…
Added by Roshni Dhir on June 6, 2013 at 4:46pm — 32 Comments
मेरे अपने कब थे तुम
Added by Anjini Rajpoot on June 6, 2013 at 3:51pm — 13 Comments
ये आदत अच्छी नही तुम्हारी
मेरा दिल जलाने की
तुम्हारा ही घर जलता है
आदत से बाज आ जाओ ....
न सुनते हो न समझते हो
बिना बात के मुझ पर बरसते हो
तुम्हारा ही चैन खोता है
आदत से बाज़ आ जाओ…
Added by Sonam Saini on June 6, 2013 at 2:20pm — 16 Comments
एक मीन गंदा करती है , पर सारे होते बदनाम | |
सच्चाई कोई ना जानें , लग जाता सब पर इलजाम | |
नकली ही बन जाता असली , झूम कर घूमे खुलेआम | |
पुलिस वाले ढूढते रहते , असली का ना… |
Added by Shyam Narain Verma on June 6, 2013 at 12:30pm — 12 Comments
जिंदा है आदमी यहाँ उम्मीदों के सहारे
मझधार फंसी कश्ती भी लगती है किनारे
देखे नहीं गए हैं कभी मुझसे दोस्तों
यारों की आँखों बहते हुए अश्कों के धारे
पागल भी, शराबी भी, दीवाना…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on June 6, 2013 at 12:27pm — 11 Comments
किसी की याद आने का,कोई मौसम नहीँ होता,
अश्क फुरकत मेँ बहाने का,कोई मौसम नहीँ होता!
कौन जाने कब वफा से,बेवफा हो जाये को
फ़रेब इश्क मेँ खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!
राहे उल्फ़त मेँ देखा है,हमने आसियां बनाकर,
दिल पे चोट खाने का,कोई मौसम नहीँ होता!
उम्र भर का निभाई साथ कोई,यह ज़रुरी तो नहीँ,
पल मेँ बिछड़ जाने का,कोई मौसम नहीँ होता!
अजनबी सी राहोँ मेँ हमसफर मिल जाते…
ContinueAdded by Abid ali mansoori on June 6, 2013 at 11:30am — 22 Comments
Added by अरुण कुमार निगम on June 6, 2013 at 9:30am — 16 Comments
Added by रविकर on June 6, 2013 at 8:30am — 8 Comments
हरी भरी धरती मन मोहती है ,
चहुं ओर फैली हरियाली मोहती है ,
मुसकुराते खिले कुसुम मोहते हैं,
झूमते पेड़ पौधे मन मोहते है ।
अद्भुत है धरती का सौंदर्य ,
कल कल करती नदिया बहती ,
चम चम करते पोखर तालाब ,
अद्भुत अनुपम धरा है दिखती।
किन्तु .....................
ऐ! धरती पुत्र आज तो ,
धरती माँ न ऐसी दिखती है,
टप टप गिरते आँसू बस रोती है,
मेरा श्रंगार करो बस ये ही कहती है।
किन्तु आज…
ContinueAdded by annapurna bajpai on June 6, 2013 at 8:00am — 18 Comments
दोस्तो, एक और ग़ज़ल जो होते होते मुकम्मल हुई है, आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ जैसी लगे वैसे नवाजें ....
ऐ दोस्त ! खुशतरीन वो मंज़र कहाँ गए
हाथों में फूल हैं तो वो पत्थर कहाँ गए
डरता हूँ मुझसे आज के बच्चे न पूछ लें
तितली कहाँ गईं हैं, कबूतर कहाँ गए…
Added by वीनस केसरी on June 6, 2013 at 12:30am — 34 Comments
हार जीत का खेल अजब है , यारों निराश ना होना | |
मेहनत से कभी ना डरना , देखो साहस ना खोना | |
बिना पसीना खेती ना हो , फिर बदले मौसम का रोना | |
बिना पसीना खेती ना हो , … |
Added by Shyam Narain Verma on June 5, 2013 at 6:01pm — 5 Comments
दोहन करते प्रकृति का, बड़े बड़े विद्वान्
चला चला बस योजना, बनते खूब महान
बनते खूब महान , हरे जंगल कटवाते
दूषित कर परिवेश, कारखाने बनवाते
धरा बचाने आज, नहीं आने मनमोहन
अब तो कर दो बंद, लोगो प्रकृति का दोहन
संदीप पटेल “दीप”
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on June 5, 2013 at 5:55pm — 13 Comments
Added by दिव्या on June 5, 2013 at 5:00pm — 24 Comments
परिचय करते वक्त ही, पहले पूछे नाम,
परिचय सुद्रड़ हो तभी, करे बात की काम॥
परिचय देवे पेड़ का, बच्चे को बतलाय,
इनके क्या क्या नाम है,अच्छे से समझाय
कन्द मूल खाकर रहे, वन में सीता राम,
चौदह वर्षों तक किया,…
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 5, 2013 at 4:30pm — 15 Comments
बहर --रमल मुसद्दस सालिम
2122 2122 2122
उम्र जितनी तेज़ बढती जा रही है
वो खुदाया पास मेरे आ रही है
राह में किस मोड़ पर हो जाए मिलना
जिन्दगी ये सोचती सी जा रही है
क्या किसी तूफ़ान का संकेत है ये
रेत में बुलबुल नहा कर जा रही है
जानते हैं भाग्य अपना पीत पत्ते
फ़स्ल देखो पतझड़ों की आ रही है
खुल गयीं हैं जुल्फ उसकी आज शायद
वादियों…
ContinueAdded by rajesh kumari on June 5, 2013 at 3:30pm — 33 Comments
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