अश्क आँखों में औ
तबस्सुम होठो पे है
सूखे गुल की दास्ताँ
अब बंद किताबो में है
बीते वक़्त का वो लम्हा
कैद मन की यादों में है
दिल में दबी है चिंगारी
जलती शमा रातो में है
चुभन है यह विरह की
दर्द कहाँ अल्फाजों में है
नश्वर होती है रूह
प्रेम समर्पण भाव में है
अविरल चलती ये साँसे
रहती जिन्दा तन में है
खेल है यह तकदीर का
डोर…
Added by shashi purwar on July 3, 2013 at 10:30pm — 8 Comments
एक ताज़ा ग़ज़ल ...
चुप तो बैठे हैं हम मुरव्वत में
जाएगी जान क्या शराफत में
किसको मालूम था कि ये होगा
खाएँगे चोट यूँ मुहब्बत में
पीटते हैं हम अपनी छाती…
ContinueAdded by वीनस केसरी on July 3, 2013 at 9:30pm — 40 Comments
कि इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं
हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं
बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं
नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते
मिरे वतन के फौज़ियों सलाम है मेरा
तुझी से मान है तुझी पे नाज़ करते हैं
संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
Added by sanju shabdita on July 3, 2013 at 9:00pm — 24 Comments
ये सच है पुराना जाता नहीं
तो नया आता नहीं
पर पुराना जब
टूट कर जाता है
तो उसे बहुत याद आता है
कल तक जिस टहनी पर
वह इतना इतराता था
इतना ईठलाता था
आज बेबस पड़ा है
सड़कों पर आ खड़ा है
जरा सी हवा आई
और उड़ा ले गई
कल तक जो हवा अपने
आँचल सहलाती थी
आज वही हवा
उसे दर-बदर कर रही है
तकदीर बदलते
देर नहीं लगती
कल तक हरा
आज धूप मे पड़ा
खड़खड़ा रहा…
ContinueAdded by Amod Kumar Srivastava on July 3, 2013 at 9:00pm — 6 Comments
!!! अभिनव प्यार !!!
प्रिया! जब तुम भूली,
तो मैं क्या लिखता ?
जब तुम थीं सब मेंरा था,
मैं याद भला क्या करता ?..... प्रिया! जब......
अब तुम नहीं पर प्यार तेरा,
मुझे बार बार दोहराता।
मैं भूल चला जीवन के पथ को,
स्मृति रोशन क्या करता ?...... प्रिया! जब...
पूर्ण अंधकार में इक जुगुनू,
इस झिलमिल जीवन को-
या अपनों से भूले रिश्तों का,
पथ प्रदर्शन क्या करता ?....... प्रिया! जब...
इस अभिनव प्यार संग,…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 3, 2013 at 7:52pm — 17 Comments
कुछ झोपड़ों को रोंद के जो घर बना रहा
इस दौर में वो सख्स ही मंजिल को पा रहा
जितना नहीं है पास में उतना लुटा रहा
कितना अमीर है ग़मों में मुस्कुरा रहा
अपनी ही गलतियों के हैं कांटे चुभे हमें
वरना सफर तो जिन्दगी का गुलनुमा रहा
कहने का शौक औ जुनूं उसका न पूछिए
बेबह्र भी कही ग़ज़ल वो गुनगुना रहा
शायद शहद झड़े है उसकी बात से यहाँ
इक झुण्ड मक्खियों सा क्यूँ ये भिनभिना रहा
जब मुल्क में…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on July 3, 2013 at 5:46pm — 7 Comments
सुप्रभात दोहों से मैं, करती हूँ आगाज |
अधर पर मुस्कान लिए,सरिता बोले आज||
नई सवेर ले आए ,रोज सुखद सन्देश |
पूरी हो हर कामना ,संकट हरे गणेश||
आये कोई विघ्न ना ,सर पर रखना हाथ|
पूरी करना कामना ,हे नाथों के नाथ||
चूम उठाया भोर ने ,ख़ुशी से झूमा दिल|
सुबह संदेश आपका ,गया जैसे ही मिल||
बन जायेंगे आपके, सारे बिगड़े काम |
थके बिन बढते रहना, मन में धारे राम||
सुबह सुहानी ले आई बरसात की फुहार |…
Added by Sarita Bhatia on July 3, 2013 at 3:30pm — 9 Comments
बदी की राह से अब तो निकाल दे मुझको
खुदाया जब भी दे रिज्के हलाल दे मुझको
नहीं मैं राई को पर्वत, न तिल को ताड़ कहूं
ज़ुबान साफ़ औ' सादा ख़याल दे मुझको .
तेरे लिए भी ये आसां नहीं है फिर भी कभी
तू आके चुपके से हैरत में डाल दे मुझको
जुनूने इश्क़ कहीं कुफ्र तक न पहुँचा दे
तू अपने गोशाये दिल से निकाल दे मुझको
मुझे भी पी के बहकना कभी गंवारा नहीं
मगर जो गिरने पे आऊँ, संभाल दे…
ContinueAdded by Sushil Thakur on July 3, 2013 at 3:00pm — 12 Comments
बिछड़ा था हमसफ़र मेरा
Added by Sumit Naithani on July 3, 2013 at 2:00pm — 12 Comments
नियमों की सरहदें
उलझी हुई मानवीय अपेक्षाओं से अनछुआ
तुम्हारे लिए मेरा काल्पनिक अलोकित स्नेह
किसी सांचे में ढला हुआ नहीं था,
और न हीं वह पिंजरे में बंद पक्षी-सा
कभी सीमित या संकुचित था लगा।
एक ही वृक्ष पर बैठे हुए हम
दो उन्मुक्त पक्षिओं-से थे,
कभी तुम चली आई उड़ कर पास मेरे,
और मैं गद-गद हो उठा, और कभी मैं
हर्षोन्माद में आ बैठा डाल पर तुम्हारी।
शैतान हँसी की हल्की-सी फुहार…
ContinueAdded by vijay nikore on July 3, 2013 at 1:00pm — 27 Comments
उड़न -खटोले पर चढ़े, आये 'प्रभु' निर्दोष,
अपनी निष्क्रिय फ़ौज में जगा गए कुछ जोश !
राहत की चाहत जिन्हें उन्हें न पूछे कोय ,
इधर-उधर घूमे फिरे और गए फिर सोय !
भटक रहे विपदा पड़े, ढूंढ रहे हैं ठांव ,
ये अपने सरकार जी कब बांटेंगे छाँव ?
विपदा खूब भुना रहे सत्ता का सुख भोग,
भूखे,नंगे ,काँपते इन्हें न दिखते लोग !
श्रेय कौन ले जाएगा मची हुई है होड़,
जोड़-तोड़ के खेल…
ContinueAdded by प्रो. विश्वम्भर शुक्ल on July 2, 2013 at 11:15pm — 18 Comments
नजारा पहाड़ों का क्या हो गया ये |
गावों का देखो निशाँ खो गया है||
जो मुझको थे प्यारे कहाँ खो गये वो|
अभी तक थे जागे कहाँ सो गये वो||
मौतों का थमता न क्यों सिलसिला है|
ये देवों की भूमि में क्यों जलजला है||
जहाँ कल तक था जीवन अब मृत्यु खड़ी है|
जिधर जाती नजरें बस लाशें पड़ी हैं||
ये मानव की करनी कहाँ लेके आई|
अपनी ख़ुशी को ये दुनिया मिटाई||
पहाड़ों से चीखे बेबस जिंदगी …
ContinueAdded by Harish Upreti "Karan" on July 2, 2013 at 11:05pm — 12 Comments
मेरा है तू दास रे जोगी
तेरे क्या है पास रे जोगी।
मौत हुई मेरी यहाँ पर क्यों
गहरा है ये राज़ रे जोगी।
शाम हुई मदहोश आज यहाँ
जैसे हो कुछ खास रे जोगी।
रहती है मेरी नज़र में तू
आँखों की इक प्यास रे जोगी।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Ketan Parmar on July 2, 2013 at 9:00pm — 13 Comments
मंजिल को पाने की चाह में
इस कदर हम खो गए
मंजिल मिली मगर
तन्हा हम हो गए
रास्ते चलते रहे
फांसले बढ़ते गए
छूटते इस साथ को
हमने कभी चाहा था बहुत
वो हमारे थे मगर
अब किसी और के हो गए
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Pragya Srivastava on July 2, 2013 at 5:30pm — 9 Comments
सार/ललित छंद १६ + १२ मात्रा पर यति का विधान, पदांत गुरु गुरु अर्थात s s से,, छन्न पकैया पर प्रथम प्रयास / क्रिकेट विषय
छन्न पकैया छन्न पकैया, टॉस करेगा सिक्का
कौन चलेगा पहली चाली, हो जायेगा पक्का ।। १
छन्न पकैया छन्न पकैया, कंदुक लाली लाली
इक निशानची ठोकर मारे, गिल्ली भरे उछाली।। २
छन्न पकैया छन्न पकैया, बादल छटते जाये
आँखों में है धूर…
ContinueAdded by वेदिका on July 2, 2013 at 5:30pm — 39 Comments
याद दिन हम को सुहाने आ रहे हैं
फिर से उन यादों के बादल छा रहे हैं
हमने घर अपनें बनाये रेत पर जब
याद वो बचपन के मंजर आ रहे हैं
कोयलों नें धुन सुरीली छेड़ दी है
गीत भी दीवानें भौंरे गा रहे हैं
कर दिया है आज टुकड़े टुकड़े दिल
छोड़ कर हम बज्म सारी जा रहे हैं
माल पूआ खाए मुद्दत हो गयी थी
ख्वाब में देखा अभी हम खा रहे हैं
आशु ये महफ़िल हसीनो से भरी…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on July 2, 2013 at 5:00pm — 13 Comments
मौसम की मनमानी है
सब आँखों में पानी है।
छाया बादल ये कैसा
दर्द दिया रूहानी है।
पावन है जग में सबसे
गंगा का ही पानी है।
जगती है आंखे तेरी
शब को यूं ही जानी है।
तुझको पाने की ख्वाहिश
हमने मन में ठानी है।
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by Ketan Parmar on July 2, 2013 at 4:30pm — 15 Comments
हो जाती कुदरत खफा, देती मिटा वजूद ।
उलथ उत्तराखंड ज्यों, होय नेस्तनाबूद ।।
क्या मूरख मानव चेता ।।
विस्फोटों से तोड़ते, ऊंचे खड़े पहाड़ ।
हाड़ कुचलते शैलखंड, अपना मौका ताड़ ।।
ऐसे ही बदला लेता ।।
सरिता-झरना का करे, मनुज मार्ग अवरुद्ध ।
कुछ वर्षों में ही मगर, कर दे वर्षा शुद्ध ।।
जीव-जंतु घर बार समेता ॥
विजय होय बहु-गुणों से, किन्तु चेतना सून।
मार जाय लाखों मनुज, ज्यों तेरह का जून ॥
धिक्कारो ऐसा…
ContinueAdded by रविकर on July 2, 2013 at 11:11am — 11 Comments
मेरे पिया गए परदेश रे
ना मनवा लागे रे
सावन आया
ददुरबा बोले
ददुरबा बोले ददुरबा बोले
बादल गरजे तेज रे
ना मनवा लागे रे
चिठ्ठी आयी ना
पाती आयी
ना आया कोई सन्देश रे
ना मनवा लागे रे
सोलह श्रृंगार
ना मन को भाये
मन को भाये न मन को भाये
भाये ना ये देश रे
ना मनवा…
Added by Devendra Pandey on July 2, 2013 at 11:00am — 13 Comments
वजन : 2122 1212 22
वक़्त किसका गुलाम होता है
कब कहाँ किसके नाम होता है
कल तलक जिससे था गिला तुमको
आज किस्सा तमाम होता है
खास है जो मुआमला अपना
घर से निकला तो आम होता है
आज जग में सिया नहीं मिलती
औ’…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 2, 2013 at 11:00am — 48 Comments
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