सुर है लेकिन ताल नहीं है बाबाजी
पॉकेट है पर माल नहीं है बाबाजी
क्योंकर कोई चूमे हमको सावन में
अपने चिकने गाल नहीं है बाबाजी
दर्पण से उनको नफ़रत हो जाती है…
Added by Albela Khatri on July 20, 2012 at 12:00am — 32 Comments
सत्य जानकर नहीं मानता, उहापोह में मन जी लेता
अमिय चाहता नहीं मिले तो, खूं के आँसू ही पी लेता..
अलकापुरी न जा पायेगा, मेघदूत यह ज्ञात किन्तु नित-
भेजे पाती अमर प्रेम की, उफ़ न करे लब भी सी लेता..
सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...
आसों की…
Added by sanjiv verma 'salil' on July 19, 2012 at 9:00pm — 8 Comments
लहू से लतपथ, उम्मीदों का कोना है,
कि मैं घडी भर हूँ जागा, उम्र भर सोना है,
मिला लुटा हर लम्हा, जीवन का तिनका सा,
लबों पे रख कर लफ़्ज़ों को, जी भर रोना है,
छुड़ा के दामन अब वो दोस्त, अपना बदला,
मिला के आँखों का गम, सारा आलम धोना है,…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 6:15pm — 10 Comments
सौ साल बाद एक पैसे का सिक्का गढ्ढे से बाहर निकला। एक ऊँची इमारत बनाने के लिए खुदाई चल रही थी। एक मजदूर के फावड़े से टकराकर मिट्टी के साथ उछला और जाकर सड़क के किनारे गिरा। वर्षों बाद उसने खुली हवा में साँस ली और अपने आस पास नजर घुमाई तो उसे कई निर्माणाधीन इमारतें दिखाई पड़ीं। थोड़ी देर खुली हवा में साँस लेने के बाद धीरे धीरे उसकी चेतना लौटने लगी। उसे याद आने लगा कि कैसे वो एक सेठ की थैली से निकलकर गढ्ढे में गिर गया था। सेठ ने उसे निकालने की कोशिश की मगर अंत में थक हारकर सेठ ने उसे गढ्ढे में ही…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 19, 2012 at 5:56pm — 18 Comments
बातों ने ली ऐसी करवट
रिश्तों में आ गई सिलवट
बदला ज़रा - जरा मैं जब
सूरत से था हटा घूँघट
पानी बहा नदी का तब
बखेरी जे वो सुखा कर लट,
कलेजा निकाल कर लाया,
वो रख गयी जुबां पर हट,
आँचल हवा से उड़ता है,
जीवन न अब रहा है कट
Added by अरुन 'अनन्त' on July 19, 2012 at 5:30pm — 3 Comments
वो अगर मुझसे खफा है
हक है उसको क्या बुरा है
घोंसले के साथ जुडकर
एक तिनका जी रहा है
जो अपरिचित है नदी से
बाढ़ पर वो बोलता है
है यकीं चारागरी पर
हो जहर तो भी दवा है
देख कर मुँह फेर लेना
कुछ पुराना आशना है
टूट ही जाना है उसको
सच दिखाता आइना है
जी रहा तुकबंदियों को
आदमी जो बेतुका …
ContinueAdded by Arun Sri on July 19, 2012 at 11:55am — 29 Comments
श्रद्धाजलि -
Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 19, 2012 at 9:30am — 4 Comments
(एक अभिनव प्रयोग)
खुसरो की बेटी कहलाये
भारतेंदु संग रास रचाये
कविजन सारे जिसके प्रहरी
क्या वह कविता? नहिं कह-मुकरी!
बांच जिसे जियरा हरषाये
सोलह मात्रा छंद सुहाये
पुलकित नयना बरसे बदरी
क्या चौपाई ? नहिं कह-मुकरी!
चैन चुराये दिल को भाये
चिर-आनंदित जो…
ContinueAdded by Er. Ambarish Srivastava on July 19, 2012 at 1:00am — 23 Comments
हमारे प्यारे काका राजेश खन्ना के देहावसान पर अलबेला खत्री की शब्दांजलि
छन्न पकैया - छन्न पकैया, कहाँ चले तुम काका
छोड़ के अपना देश आपने रुख ये किया कहाँ का
छन्न पकैया - छन्न पकैया, मुमताज़ रो पड़ेगी
दो दो हीरो एक साथ गये, दुःखड़ा किसे कहेगी…
Added by Albela Khatri on July 19, 2012 at 12:40am — 18 Comments
आदरणीय गुरुजनों, मित्रों आज मैंने ग़ज़ल लिखने का प्रयास ओ.बी.ओ. के द्वारा सिखाये गए नियमों का पालन करते हुए किया. कृपया मेरा मार्ग दर्शन करें, मैं सदा आभारी रहूँगा.
खास कर पूज्य योगराज जी, की टिपण्णी का इंतज़ार रहेगा.
नाराज हूँ मैं, दिल तुझसे ज़रा खफा है,
मासूम भोली, सूरत ने दिया दगा है
खंज़र ये आँखों का, दिल में उतार डाला
हमेशा के लिए मुस्किल, जख्म मुझे मिला है,
डर डर के जिंदगी को, जीने से मौत बेहतर,
कैसा ये दर्द दिलबर, सीने में भर…
Added by अरुन 'अनन्त' on July 18, 2012 at 5:34pm — 12 Comments
Added by Deepak Sharma Kuluvi on July 18, 2012 at 5:06pm — 7 Comments
Added by Noorain Ansari on July 18, 2012 at 4:52pm — 5 Comments
जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से
मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से
मेरी रूह वही है, मेरा जिस्म वही है
मेरी आह वही है, मेरी राह वही है
मेरा रोग वही है, औ दवा भी वही है
मेरा साया पीछे छूटे भला कैसे मुझी से
मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से
जिसे देख के नाचूँ झूमूँ गाऊं ख़ुशी से
मुझे इश्क हुआ है उसी से, उसी से
मेरी यार वही है , दिलदार भी वही है
वो ही सावन है , औ फुहार भी वही है
वो ही…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 18, 2012 at 1:00pm — 11 Comments
सुगंध सुहानी आयेंगी इस मोड़ के बाद
यादें गाँव की लाएंगी इस मोड़ के बाद
जिस नीम पे झूला करता था बचपन मेरा
वही डालियाँ बुलाएंगी इस मोड़ के बाद
अब तक बसी हैं फसलें जो मेरी नज़रों में
देखो अभी लहरायेंगी इस मोड़ के बाद
बिछुड़ गई थी दोस्ती जीवन की राहों में
वो झप्पियाँ बरसाएंगी इस मोड़ के बाद
नखरों से खाते थे जिन हाथों से निवाले
वो अंगुलियाँ तरसायेंगी इस मोड़ के बाद
मचल रही होंगी…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 18, 2012 at 9:05am — 8 Comments
तुम्हारी हक़ बयानी को कभी डर कर न लिक्खेंगे ...
कि आईने को हरगिज़ हम कभी पत्थर न लिक्खेंगे...
रहे इश्को वफ़ा में ये तो सब होता ही रहता है..
तुम्हारी आज़माइश को कभी ठोकर न लिक्खेंगे....
भरोसा क्या कहीं भी ज़ख्म दे सकता है हस्ती को........
हम अपने दुश्मने जां को कभी दिलबर न लिक्खेंगे.....
तू क़ैदी घर का है, हम तो मुसाफिर दस्तो सहरा के....
कहाँ हम और कहाँ तू हम तुझे हमसर न लिक्खेंगे.....
उड़ानों से हदें होती है कायम हर परिंदे कि…
Added by MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी) on July 18, 2012 at 9:00am — 6 Comments
रोती रोटी क्यों रो रही ,कर लो बात ,
रोटी रोटी क्यों हो रही ,कर लो बात;'
तरकारी के भाव चले विन्ध्याचल को
तन्हा रोटी यों रो रही ,कर लो बात .
धान ज्वारी मक्का बासमती पेटेंट ;
नयनन जल रोटी ले रो रही कर लो बात.
भूखे को तो चंदा में रोटी दीखे;
चंदा रोटी एक हो रही ? कर लो बात .
रात को खा के सोए सुबह पेट ;
रोटी रोटी देख हो रही कर लो बात .
तीरों तलवारों से न टूटे छल बल से ;
टूटे भूखे पेट वो…
Added by DEEP ZIRVI on July 17, 2012 at 5:30pm — 1 Comment
एक अलसाई सी सुबह थी, सब काम निबटा कर बस बैठी ही थी मैं मौसम का मिजाज लेने। कुछ अजीब मौसम था आज का, हल्की हल्की बारिश थी जैसे आसमान रो रहा हो हमेशा की तरह आज न जाने क्यो मन खुश नहीं था बारिश को देखकर, तभी मोबाइल की घंटी बजी, दीदी का फोन था ‘माँ नहीं रही’। सुनकर कलेजा मुह को आने को था दिल धक्क, धड़कने रुकने को बेचैन, कभी कभी हम ज़ीने को कितने मजबूर हो जाते है जबकि ज़ीने की सब इच्छाएँ मर जाती है। मेरी माँ मेरी दोस्त मेरी गुरु एक पल में मेरे कितने ही रिश्ते खतम हो गए और मैं ज़िंदा उसके बगैर…
ContinueAdded by Vasudha Nigam on July 17, 2012 at 3:30pm — 12 Comments
रायपुर से भोपाल का हवाई सफर- घरों के घरौंदे होकर नुक्ते में बदलकर खो जाने और आसमाँ के पहाड़ के ऊपर मील दर मील चढ़ते जाने का अद्भुत सफर. चंद लम्हों में ज़मीनी सच्चाइयों का दामन छूट चुका था और हम ख़्वाबों के एक खामोश तैरते समंदर के ऊपर तैर रहे थे. हर सम्त बादलों के बगूले तरह तरह की नौइयत और शक्ल में परवाज़ कर रहे थे- उनकी आहिस्ताखिरामी और लहजे के सुकून को देखकर ऐसा लग रहा था गोया किसी फ़कीर ने अपने फैज़ का खज़ाना लुटा दिया हो और नीले सफ़ेद रुई के फाहों में ज़िंदगी की तपिश से नजात के मरहम बंट…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 17, 2012 at 3:08pm — 4 Comments
अब कहाँ आएँगे लौट के सबेरे कल के
रातमें तब्दील हो गए हैं उजाले ढल के
कोई खुशबू तेरे दामन की एहसासों में
कुछ लम्स से हथेली में तेरे आँचल के
मौत आई तो बेसाख्ता ये महसूस हुआ
कि ज़िंदगी आईहै वापिस चेह्रे बदल के
जाने वालातो सामनेसे रुख्सत हो गया
जाने क्या सुकूं मिलता है हाथ मल के
मैं कोई ख्वाब में हूँ या कोई गफलत है
आसमां में उड़ रहा हूँ, पंख हैं बादल के
बुझरही शमाने कराहते हुए मुझसे…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on July 17, 2012 at 10:24am — No Comments
"क्या कहूँ "
धीरे धीरे चलती पवन
गंभीर हो
चिंतन में डूबे को
समय देख रहे हो
या प्रवाह को महसूस कर रहे हो मेरे
या पदचाप सुन रहे हो
आने वाले समय के
क्यूँ आज…
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on July 16, 2012 at 1:38pm — 3 Comments
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